Bhadukada - 49 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 49

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भदूकड़ा - 49

शास्त्री जी जल्दी ही जल चढा के आ गए। तीनों जीप पर सवार हुए और शास्त्री जी के घर पहुंचे। छाया घर के बाहर ही चबूतरा बुहार रही थी। दूर से जीप आती दिखी तो उसे खटका हुआ। ऐसी ही जीप से तो उसे देखने वाले आये थे। जब तक वो कुछ तय करती तब तक जीप दरवाज़े पर आ गयी। छाया हाथ की झाड़ू वहीं छोड़ अंदर भाग गई। अंदर दौड़ते जाती छाया की एक हल्की सी झलक मिली छोटू को वो भी पीछे से। बस लहराती लम्बी चोटी ही देख पाया इस आकृति की।
शास्त्री जी बड़े आदर, प्यार के साथ दोनों को भीतर लाये। पत्नी को आवाज़ लगा के चाय बनाने को कहा। छोटू मना रहा था कि छाया ही चाय ले के आये तो ठीक हो। लेकिन चाय लाईं छाया की अम्मा। अब कोई चारा न था। बेमन से दोनों भाइयों ने चाय पी और प्रणाम करके बाहर निकले। शास्त्री जी भी साथ में थे तो छोटू अपनी निगाहें इधर उधर नहीं चला पा रहा था, कि कहीं तो दिख जाए वो लड़की जिसके चर्चे इतने सुन लिए। लेकिन कोई जुगाड़ जमा नहीं। जीप पर सवार होते होते छोटू ने एक निगाह शास्त्री जी के घर पर डाली, तो ऊपर की अटारी की खिड़की से झांकती उसे हिरनी जैसी दो आंखें दिखाई दीं बस। किशोर ने जीप आगे बढ़ा दी थी।
जीप में बैठे छोटू का मन बार बार पीछे की तरफ लौट रहा था, जहां अटारी की खिड़की में दो आंखें जड़ी थीं। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। बड़ा गुस्सा आया उसे इस लड़की पर जो आज खुद जल चढ़ाने नहीं आई थी।
कुछ हो नहीं सकता था अब। जीप आगे बढ़ी तो पीछे से शास्त्री जी की आवाज़ सुनाई दी-
"शाम को कितने बजे लौटना है लालाजी? चाय पानी करते हुए जाइयेगा।"
"कुछ कह नहीं सकता शास्त्री जी। एक बजे पेपर ख़त्म होगा।" अचानक ब्रेक लगाने से जीप झटका खा गई।
"तो चल देंगे न सीधे, या झांसी में काम है? लौटते हुए यहीं भोजन कीजिये दोपहर का। हम लोग इंतज़ार करेंगे और यही तय रहा।"
"जी ....कुछ छोटा-मोटा काम है...हम लोग शायद ही...!
" आएंगे हम लोग पक्का आएंगे। मुझे तो भूख लगने लगेगी दो बजे तक। पेपर छूटते ही हम चल देंगे। क्यों भैया?"
किशोर इंकार करने वाला है, ये बात छोटू ने ताड़ ली थी सो किशोर का वाक्य पूरा हो उसके पहले ही छोटू बोल पड़ा। ऐसा सुनहरी मौक़ा वो गंवा नहीं सकता था। भगवान भोलेनाथ ने सुन ली उसकी। कृतज्ञ नज़रों से पीछे छूट गयी शिव मड़िया को छोटू ने मन ही मन प्रणाम किया। साढ़े सात बजे गए थे। अब किशोर ने जीप को सरपट दौड़ाया। पेपर शुरू होने के एक घण्टा पहले परीक्षा स्थल पर पहुंचना ज़रूरी था।
उस दिन का पेपर, छोटू ने कैसे दिया, वही जानता है। आंसरशीट पर पर थोड़ी थोड़ी देर में उसे कभी चोटी लहराती, दौड़ती आकृति दिखती तो कभी खिड़की से झाँकतीं दो आंखें...! तीन घण्टे से पहले हॉल से निकल नहीं सकते थे सो मजबूरन छोटू को अंदर ही रुकना पड़ा, वरना पेपर तो दो घण्टे में ही कम्प्लीट हो गया था उसका।
एक बजे छोटू जब बाहर निकला, तो किशोर गरम समोसे लिए गाड़ी के पास खड़ा था। दोनों ने एक एक समोसा खाया, चाय पी और वापस हो लिए। एक घण्टे बाद ही वे ठाठीपुरा के मोड़ पर थे। किशोर का तो मन था कि चुपचाप अपने गांव निकल लिया जाए लेकिन शास्त्री जी भी दिल से चाहते थे कि वे दोनों उनके घर खाना खा के ही आगे निकलें, तभी तो दो बजे दोपहर की कड़ी धूप में वे गांव के मोड़ पर, पीपल के नीचे खड़े जीप का इंतज़ार कर रहे थे। मतलब उन्हें भी अंदेशा था कि ये दोनों लड़के सीधे निकल सकते हैं।
क्रमशः