एडल्ट के लिए सीख
आर 0 के 0 लाल
चारों दोस्त रमन, सुंदर, भूपत और रामबाबू एक बड़े होटल में डिनर पर बहुत दिनों के बाद आज एक साथ मिले थे । वे खाने की टेबल पर स्टार्टर के साथ अपने बचपन की यादें ताजा कर रहे थे। चारों एक ही स्कूल में एक साथ पढ़ते थे । वे स्कूल जाते और अपना अपना बस्ता डेस्क के भीतर रखकर कभी पिक्चर तो कभी कैंटीन निकल जाते थे । चारों की गिनती स्कूल के खुराफाती लड़कों में होती थी। हमेशा सबसे लड़ाई करना और दूसरे के सामान छीन लेना इनकी आदत में शुमार था। पढ़ाई-लिखाई के बाद चारों अपने-अपने काम में लग गये थे। रामबाबू एक अच्छे बिजनेसमैन बन गए थे, रमन एक सरकारी अफसर, भूपत नेता तो सुंदर एक इंजीनियर बन गये थे। चारों की शादियां हो गई थी और उनके बच्चे भी हो गए थे। वे चारों चाहते थे कि उनके बेटे उनकी तरह न बने बल्कि एक ऐसा इंसान बने जो जीवन भर सुखी रह सके क्योंकि उन चारों को अपने कृत्यों पर पछतावा होता रहता है कि उन्होंने अपने बैंक बैलेंस , गाड़ी , बंगला आदि बनाने में कहीं न कहीं कुछ गलत काम किया है। उनके लड़के न जाने क्यों सही रास्ते पर नहीं चल रहें हैं । चारों अपनी कहानी सुना रहे थे।
रामबाबू ने बताया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नौकरी की बहुत तलाश की परंतु कभी रिटेन एग्जाम में फेल हो जाते तो कभी इंटरव्यू में छट जाते, उन्हें कहीं कामयाबी हासिल नहीं हुई । वे निराश हो गये थे, इसलिए उन्होंने यूनिवर्सिटी रोड पर एक पेड़ के नीचे गुमटी रखकर उसमें पुलिस हेड क्वार्टर , एस एस सी, पब्लिक सर्विस कमीशन आदि की वैकेंसी के फॉर्म लटका दिए और उन्हें बेचने लगे। धीरे-धीरे वे कुछ शुल्क लेकर लोगों को फार्म भराने और जमा कराने में मदद करने लगे। तभी उसके पास एक एजेंट आकर बोला, “अगर किसी को नौकरी चाहिए तो मैं जुगाड़ करवा सकता हूं, मैं तुम्हें भी कमीशन दूंगा।" राम बाबू उसके साथ काम करते करते शीघ्र ही खुद एजेंट का काम करने लगे। वे परचा आउट कराने और नकल करवाने के चक्कर में एक बार उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और जेल भेज दिया। बहुत मुश्किल से जमानत हो पायी थी ।
जेल से छूटने के बाद वे विभागों में ठेकेदारी का काम करने लगे। ज्यादा कमाने और कमीशन देने के चक्कर में दो नंबर का काम भी करते। शिकायत और जांच में वे महीनों परेशान रहते। उनके बहुत ढेर सारे दोस्त आए दिन दावत उड़ते रहते थे । अब उनका बेटा बड़ा हो रहा है जो सब कुछ देखता-समझता है । राम बाबू सोचते हैं कि गलत काम का नतीजा भी गलत होता है इसलिए वे चाहते हैं कि उनका लड़का उनकी तरह न बने बल्कि वास्तव में वह एक अच्छा आदमी बने। मगर उनकी सोच फलीभूत होती नहीं दिख रही है। उनका लड़का उन्हीं के पद चिन्हों पर ही चल रहा है, उसने भी बहुत ढेर सारे दोस्त बना लिए हैं । पढ़ाई कम और दोस्तों के साथ मौज मस्ती ज्यादा करता है । आप जो कहेंगे वह उसका उल्टा ही करता है। लगता है कि वह मेरी आबरू मिट्टी में मिला देगा । इसलिए राम बाबू दुखी रहते हैं और कहते हैं कि, “बच्चे सुधरने के बजाय बिगड़े तो उसकी ज़िम्मेदारी अपनी होती है। उसका तुरंत प्रतिक्रमण कर डालना चाहिए इसलिए वे अपने बेटे को मारते पीटते हैं मगर कोई फायदा नहीं हो रहा है ।
भूपत ने भी अपनी बात सुनाई । बचपन से ही वे कोई गलत काम नहीं बर्दाश्त कर पाते थे इसलिए यूनिवर्सिटी में जब भी कोई किसी को परेशान करता या गलत काम करता तो वे उसके खिलाफ मोर्चा खोल देते थे। आगे चल कर वे स्टूडेंट यूनियन के सदस्य भी बन गये थे। उन्होंने पढ़ाई के बाद कई जगह नौकरी के लिए साक्षात्कार दिया लेकिन ऐसे नेता को कोई नौकरी नहीं देना चाहता था । तभी विधान सभा का चुनाव आ गया जिसमें भूपत ने रैली लगवाने का काम शुरू कर दिया। रैली में आने-जाने, खाने-पीने की व्यवस्था होती और जेब खर्च के लिए अलग से उन्हें कुछ भत्ता भी दिया जाता। भूपत को दूसरे शहरों में रैली कराने की भी ज़िम्मेदारी मिली जिसके लिए पार्टी वाले अच्छा पैसा देते वह भी एड्वान्स। इस प्रकार भूपत की अच्छी कमाई होने लगी और वह एक नेता बन गये । उन्होंने रूलिंग पार्टी की सदस्यता भी ले ली क्योंकि वे विधायकी का चुनाव लड़ना चाहते थे मगर उसके पास करोड़ों रुपए नहीं थे । एक बार वे किसी तरह कारपोरेटर बन ही गये तो उनका महत्व और कमाई दोनों बढ़ गयी। अब सबकी समस्या के लिए उन्हें दौड़ना पड़ता है । मोहल्ले की रामलीला की व्यवस्था एवं संचालन वे ही करते हैं । अच्छा खासा चंदा इकट्ठा हो जाता है, खाने पीने भर का मिलता रहता है।
भूपत ने बहुत बड़ा मकान बनवा लिया है भगवान का दिया हुआ एक बेटा भी है जिसे इंग्लिश स्कूल में एडमिशन करा दिया है मगर उसका पढ़ने में मन नहीं लगता । वह मोहल्ले के तमाम लोगों को भूपत के पास लेकर आता है और उनके काम कराने के लिए कहता है। पता चला है कि वह काम करवाने के बदले में कुछ पैसा भी लेता है। उसमें भी भूपत कि सारी आदतें लग रही हैं हालांकि वे उसको अपने काम से दूर रखते हैं । वे भूल कर भी अपने बेटे को अपनी तरह पॉलिटिक्स में नहीं ले जाना चाहते , परंतु उसके संस्कार ठीक नहीं लगते। वह किसी पर दया नहीं करता, भिखारियों को भी धकेल देता है उनसे भी सामान छीन लेता है। वे चिंतित हैं कि उनका बेटा कैसे सुधरेगा?
अब बताने की बारी सुंदर की थी जो इंजीनियरिंग करने के बाद एक फ़ैक्टरी में मैनेजर बन गए थे । कुछ ही दिनों में फ़ैक्टरी बंद हो गयी तो उन्होंने उस पर कब्जा कर लिया था । वे तो ईश्वर की महान कृपा बताते हैं कि उनके एक लड़का और एक लड़की है। उनका सारा प्रयास यही है कि उनका बेटा अच्छा इंसान बन जाए और बेटी के लिए अच्छा घर मिल जाए। उन्हें लगता है कि उनका बेटा बिल्कुल वैसा नहीं करता जैसा वे चाहते हैं। आए दिन ऐसी बात करता है जिससे लगता है कि वही सुंदर का बाप हो।
राम बाबू बोले, “अरे सुंदर भाई! तुम भी चाहते होंगे कि तुम्हारा बेटा तुम्हारी तरह निकले। अभी से उसमें तुम्हारे सारे गुण आ गए होंगे”। सुंदर ने उत्तर दिया , “अरे यार! यही तो रोना है । मैं उसे एक इंजीनियर नहीं बनाना चाहता हूँ क्योंकि एक इंजीनियर की जिंदगी बहुत कठिन होती है। नहीं जानता वह क्या बनेगा । कभी-कभी तो मुझे शक होता है कि कहीं वह क्रिमिनल न बन जाए क्योंकि आजकल जब भी दुकान पर जाता है तो केवल बंदूक, रायफल, या मशीन गन ही लेता है। दूसरे खिलौने उसे पसंद ही नहीं आते। वह हमेशा सबको मारने की धमकी देता रहता है। एक दिन वह मेरी लाईसेंसी गन ले कर स्कूल चला गया था। अगर यही आदत उसमें पड़ गई तो एक दिन वह बहुत बड़ा मुजरिम बन जाएगा। मैं चाहता हूं कि वह कर्तव्यनिष्ठ बने उसकी बौद्धिकता बढ़े और वह संयमी बने”।
रमन अपने को बहुत लकी मानते हैं क्योंकि वे एक सरकारी अफसर बन गए थे। उन्हें सरकारी आवास , गाड़ी, नौकर चाकर मिले थे। फिर भी वे चाहते हैं की उनका बेटा कोई सरकारी अफसर न बने और कोई प्राइवेट कंपनी में काम करे क्योंकि उनकी नौकरी में वैसे तो ऊपरी कमाई अच्छी ख़ासी है लेकिन उन्हें बहुत ज्यादा काम करना पड़ता है। वे ज़्यादातर घर में नहीं रह पाते है , हमेशा पब्लिक का काम निपटाना पड़ता है । अधिकारियों और मंत्रियों की जी-हुज़ूरी करनी पड़ती है। इन सब से बचने के लिए जब भी कोई आदमी उनके घर आता जो उनके फायदे वाला नहीं होता तो वे अपने बेटे से कहलवा देते कि वे घर में नहीं हैं। उनका लड़का धीरे-धीरे झूठ बोलने में माहिर हो गया है। अब तो किसी का फोन भी आता है तो वह स्वयं ही कह देता है कि पापा कहीं काम से गए हैं उनका फोन यहीं रह गया है। साथ ही अपने बारे में भी झूठ ही बोलता है। अभिनय करने में तो वह बहुत माहिर हो गया है, हमेशा तर्क वितर्क करता रहता है । रमन का मानना है कि उसे पता ही नहीं चलता कि कैसे वह गलत राह पर जा रहा है। किसी ने उन्हें बताया कि अभी से वह किसी के रिलेशनशिप में पड़ गया है। मैं उसे कुछ भी समझाता हूँ तो मुझसे कहता है, “मैं आप की प्रॉपर्टी नहीं हूं कि आप जैसा चाहें वैसा मुझे डील करें।
उन दोस्तों की बातें सुनकर वहाँ बैठे एक बुजुर्ग ने कहा, “ अगर बच्चे के माता - पिता ठीक नहीं हैं तो बच्चे खराब निकलेगे ही। पिता बनते ही आदमी का नया जन्म होता है इसलिए उसे अपनी बुरी बातों को त्याग देना चाहिए । दूसरी बात यह है कि टीनएजर की उम्र बनने - बिगड़ने वाली होती है। इस उम्र में बच्चे जो सीख लेते हैं वह जिंदगी भर उनके साथ बनी रहती है। इसलिए जब बच्चों के हाव-भाव में खराब परिवर्तन आने लगे तो माता-पिता को सजग होकर यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उनका बच्चा क्यों बिगड़ रहा है। बच्चों को सुधारने से ज्यादा जरूरी है कि अडल्ट माता-पिता अपने को सुधारें ।
उन बुजुर्ग ने आगे कहा , “यदि आप कहोगे कि आपका बेटा आपको बहुत दुःख दे रहा है तो मैं कहूँगा कि गलती आपकी है, इसलिए शांति से चुपचाप भुगत लो, अथवा जितना हो सके अपने को सुधार लो । मारने पीटने से कुछ नहीं होगा बच्चे तो धीमे-धीमे समझेंगे। ज़बरदस्ती करोगे तो वे उल्टे चलेंगे। बच्चे के बचपन में एक पिता को सख्त पिता ही रहना चाहिए उसका मित्र नहीं”।
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