Aadhi duniya ka pura sach - 9 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आधी दुनिया का पूरा सच - 9

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आधी दुनिया का पूरा सच - 9

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

9.

हृदय में भय और विवशता तथा चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान लेकर आज साँवली का झुग्गी के उस प्रतिबंधित भाग में प्रवेश हुआ था, जिसमें झाँकना भी आज से कुछ दिन पहले तक उसके लिए वर्जित था। इधर साँवली को लेकर रानी का मन:मस्तिष्क भिन्न-भिन्न प्रकार की होनी-अनहोनी आशंकाओं से भर रहा था । रात गहराने लगी थी, किन्तु रानी की आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। रानी की आँखों से नींद खली उड़ते देखकर माई ने उसको अपने पास झुग्गी के बाहरी खुले भाग में बुला लिया था, जहाँ बैठकर माई सिगरेट सुलगा रही थी । न चाहते हुए भी रानी माई के पास बैठ गयी । वहीं पर निराशा के भँवर में डूबी मुंदरी चारपाई पर लेटी हुई आकाश को घूर रही थी।

रानी ने देखा, माई ने अपने हाथ में दो-दो हजार के नए-नए नोटों की कई गडि्डयाँ थामी हुई हैं। माई बार-बार उन नोटों को निहारती हुई मुस्कुरा रही है और कोई लोकगीत गुनगुना रही है। गीत गुनगुनाते हुए माई ने निकट ही रखा एक भिगोना उठाया और उस पर ढोलक की भाँति ताल बजाते हुए ऊँचे स्वर में गीत गाने लगी । ठीक उसी क्षण झुग्गी के भीतर से साँवली के चीखने का स्वर उभरा । उसके बाद साँवली का रूदन-स्वर निरन्तर तीव्र और ऊँचा होता गया । साँवली के रूदन का स्वर जितना ऊँचा हो रहा था, माई भी अपने गीतों का स्वर उतना ही ऊँचा करती रही थी। रानी यह देखकर आश्चर्यचकित थी कि साँवली के रूदन का स्वर सुनकर भी माई के हृदय में दया-संवेदना का भाव जागृत नहीं हुआ। इसके विपरीत नोटों की गड्डियाँ देख-देखकर माई की आँखों में चमक और चेहरे पर अतीव प्रसन्नता झलक रही है। यह देखकर रानी के ह्रदय में माई के प्रति घृणा उत्पन्न हो रही थी, किंतु उसने अपने मनोभाव को व्यक्त नहीं होने दिया।

अगली सुबह रानी बिस्तर से नहीं उठ सकी। उसके हृदय में इतना क्षोभ बढ़ा था कि उसने दो दिन तक भोजन नहीं खाया। माई के दो दिन तक बार-बार आग्रह करने पर भी उसने कुछ खाने-पीने से यह कहकर मना कर दिया कि उसको अरुचि हो रही है। माई को अपनी अवज्ञा से अरुचि थी, इसलिए माई ने रानी को उसी समय तुरन्त खाना नहीं खाने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। माई की चेतावनी के परिणामस्वरूप किसी अनहोनी से बचने के लिए रानी ने तत्काल भोजन तो कर लिया, लेकिन भोजन करते ही रानी को उल्टियाँ होने लगी । खाने-पीने से अरुचि और निरंतर उल्टियाँ होने के कारण वह इतनी दुर्बल हो गई थी कि उसको अपने पैरों पर खड़ा होना कठिन हो रहा था। वह खड़ा होने का प्रयास करती, तो चक्कर खाकर गिर पड़ती। उसकी शोचनीय दशा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यही हाल रहा, तो अगले दो दिन के अंदर उसको इस नर्क से अवश्य ही मुक्ति प्राप्त हो जाएगी । माई यह नहीं चाहती थी कि रानी के इलाज के चक्कर में कोई नई समस्या उत्पन्न हो ! "लेकिन मुनिया को कुछ हो गया, तो ... !" मन में यह विचार आते ही माई घबरा उठी और अपने हानि-लाभ का विश्लेषण करने लगी -

"इलाज कराऊँगी, तो नुकसान केवल तभी होगा, जब अस्पताल का डॉक्टर या अन्य कोई डॉक्टर उसको पहचान कर या संदेह के आधार पर पुलिस को इसके बारे में बताएगा कि माई ने अपनी झुग्गी में किसी लड़की को नजरबंद करके रखा है ! पर इलाज न कराने की वजह से मुनिया की जान चली गयी, तो बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा !"

सब कुछ जोड़-घटा और गुणा-भाग करके माई ने रानी का इलाज करने का निर्णय ले लिया । उनके निर्णय में विशेष बात यह थी कि उन्होंने रानी को अस्पताल लेकर जाने की जगह किसी स्थानीय डॉक्टर को झुग्गी में बुलाकर ही उसका इलाज कराना था ।

माई के निर्देशानुसार एक स्थानीय झोला छाप चिकित्सक को झुग्गी में बुलाकर रेणु का परीक्षण कराया गया। चिकित्सक ने सबसे पहले रानी के दुर्बल शरीर पर बड़े ही रहस्यमयी ढंग से विहंगम दृष्टि डालते हुए कहा-

"बहुत विलंब से सुध ली है आपने ! पर चलो देखते हैं, बच्ची की जान बच जाए तो अच्छा है ! तदोपरांत उस झोलाछाप चिकित्सक ने रानी की नाड़ी-नब्ज का गहन परीक्षण करके माई को बताया-

"जिगर में खराबी आ गई है ! इसी वजह से उल्टियाँ नहीं रुक रही हैं ! लगातार उल्टियाँ होने से शरीर में पानी खत्म हो गया है ! उस पानी की पूर्ति करने के लिए ग्लूकोज की बोतल चढ़ाना जरूरी है और इसके लिए मरीज को भर्ती करना पड़ेगा ! तभी इसके प्राण बचा पाना संभव है, वरना तो दो दिन के अंदर ऊपर ... !" चिकित्सक ने हाथ व आँख के संयोग से संकेत करते हुए कहा।

"डॉक्टर साहब, ग्लूकोज चढ़ाना है, तो यहीं पर चढ़ा दो ! भर्ती नहीं करेंगे !" माई ने दृढ़ता पूर्वक कहा।

"यह संभव नहीं है !" झोलाछाप डॉक्टर ने निर्णायक मुद्रा में कहा और जाने के लिए उठ खड़ा हुआ।

चिकित्सक द्वारा रानी के स्वास्थ्य के संबंध में बेबाकी से की गई टिप्पणी सुनकर भी माई विचलित नहीं हुई थी। लापरवाही की मुद्रा में चिकित्सक से बोली-

"डॉक्टर साहब, ग्लूकोज न सही, कोई ऐसी दवा ही दे दो जिससे इसकी उल्टियों में कुछ आराम मिल जाए !"

"ग्लूकोज के बिना, सिर्फ दवाइयों से यह ठीक नहीं हो सकेगी ! भर्ती आप करोगे नहीं ! मेरे इलाज के दौरान यहाँ इसे कुछ हो गया तो ... ? मैं ऐसे मरीज नहीं पकड़ता, जिससे मेरा नाम बदनाम हो और फिर मेरा धंधा ही चौपट हो जाए ! ... मैं चलता हूँ !" कहते हुए चिकित्सक झुग्गी से बाहर निकल गया ।

माई के समक्ष गंभीर स्थिति आ खड़ी हुई- "एक ओर कुआँ है, दूसरी ओर खाई ! मुनिया को अस्पताल में भर्ती कराऊँ, तो यह डर कि कोई नयी आफत न आ पड़े ! अस्पताल में भर्ती न कराऊँ और इसको कुछ हो जाए, तब भी बड़ा नुकसान ! सुंदरी को लाने के कितने दिनों बाद यह एक लड़की हाथ लगी है ! कब से धंधे को बढ़ाने की सोच रही थी, यहाँ अब इसकी भी जान के लाले पड़े हैं !" सोचते-सोचते माई ने बाहर जाते चिकित्सक को पुकारा-

"डॉक्टर साहब ! मेरी लाड़ो में मेरी जान बसी है, इसको बचा लो ! आप जैसा कहोगे, मैं करूँगी ! भर्ती करने को कहोगे, मैं वह भी करूँगी !"

"ठीक है ! ... तो क्लीनिक पर ले आइए, मैं वहीं मिलूँगा ! तभी वहीं ग्लूकोज़ भी लगा देंगे !" यह कहकर चिकित्सक चला गया। पीछे-पीछे रानी को रिक्शे में बिठाकर माई भी झोलाछाप चिकित्सक के विधि द्वारा निर्धारित मानकों की धज्जियाँ उड़ाकर स्थापित किए गए क्लीनिक पर पहुँच गयी और रानी को वहाँ पर भर्ती करा दिया गया।

रानी तीन दिन तक क्लीनिक में माई की निगरानी में रही। बीच-बीच में जब माई नहाने-खाने के लिए घर जाती थी, तब माई का चिर-परिचित अधेड़ युवक जग्गी रानी पर निगरानी रखता था । चौथे दिन की शाम को चिकित्सक ने माई को बताया-

"मरीज के स्वास्थ्य में अब सुधार है। कल शाम को आप इन्हें अपने घर लेकर जा सकते हैं ! आठ दिन तक दवाइयाँ खिलानी पड़ेंगी, तभी धीरे-धीरे कमजोरी दूर हो सकेगी !"

डॉक्टर से रानी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना पाकर माई ने राहत की साँस ली और बेसब्री से अगले दिन की शाम के उस क्षण की प्रतीक्षा करने लगी, जब वह अपनी मुनिया को वापस झुग्गी में ले कर जाएगी ।

कल शाम और आज शाम के बीच में कल का दिन और आज की एक पूरी रात शेष थी । अंधेरा बढ़ने लगा था । माई को झुग्गी पर आने वाले नये-पुराने अतिथियों के स्वागत की चिन्ता सताने लगी थी । अतः रानी की निगरानी का काम जग्गी को सौंपकर माई झुग्गी पर चली गयी थी।

रानी के निगरानी के दायित्व का गुरु-भार अपने कंधों पर ढोता हुआ जग्गी बहुत जल्दी ही थकान से सुस्त पड़ गया । ज्यों-ज्यों रात बढ़ रही थी, त्यों-त्यों जग्गी की आँखों पर नींद का प्रकोप बढ़ता जा रहा था । नींद को भगाने के लिए जग्गी ने बीड़ी का धुआँ भी पीया और चाय भी, परंतु प्रतीत होता था कि नींद पराजित होने वाली नहीं है। बार-बार उसको नींद की झपकी आती थी और वह हर बार एक लम्बी ऊँघ से नींद को पटखनी देने का उपक्रम कर रहा था।

रात के लगभग बारह बजे जग्गी स्टूल पर बैठा हुआ ऊँघ रहा था । उसी समय रानी को दवाई देने के लिए कमरे में नर्स ने प्रवेश किया। दवाई देने के पश्चात् नर्स ने रानी को समाचार-पत्र में छपी एक फोटो दिखाकर संकेत करके धीमे स्वर में पूछा -

"यह फोटो तुम्हारी है ?" रानी ने देखा, यह वही फोटो और समाचार था, जिसको देख पढ़कर माई रानी को लाने के लिए अनाथ आश्रम पहुँची थी और रानी आश्रम से मुक्त होने के लालच में माई के जाल में फँसी थी। महीनों पश्चात् नर्स के हाथ में आज उसी फोटो और समाचार को देखकर रानी थोड़ी-सी भयभीत हो गयी । उसने सोचा -

"अभी तो माई से भी मुक्ति नहीं मिली, नर्स के रूप में यह कौन-सी नयी मुसीबत आ गयी है !" यह सोचते ही उसकी आँखों में आँसू छलक आये, परन्तु उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकला।

नर्स ने रानी के मर्म को सहलाते हुए पूछा -

"माई तुम्हारी माँ है ?" रानी ने इस बार भी शब्दों में कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन उसकी आँखों से टपकती हुई आँसुओं की बूंदों ने बिना बोले ही नर्स के प्रश्न का उत्तर दे दिया था। बाथरूम जाना हो, तो चलो ! फिर मैं सोने के लिए चली जाऊँगी और अब के बाद सुबह ही आऊँगी !"

रानी ने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया । फिर भी, नर्स ने रानी को सहारा देकर उठाया और बाथरूम में ले गयी। बाथरूम में पहुँचकर रानी के मर्म का स्पर्श करते हुए नर्स ने पुन: कहा -

"मैं जानती हूँ, माई दूर-दराज के इलाकों की भोली-भाली गरीब लड़कियों को बहला-फुसलाकर ले आती है और झुग्गी में उनसे धंधा करवाती है ! सुना है, कुछ महीने पहले एक और लड़की को ले आयी थी माई ? शायद तुम वही हो ?"

रानी ने नर्स के इस प्रश्न का भी कोई उत्तर नहीं दिया । किन्तु अब उसके आँसुओं का वेग बढ़ गया था और चेहरा विकृत हो गया था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अभी उसके कंठ से रुलाई फूट पड़ेगी।

"तुम माई के जाल से निकलना चाहो, तो तुम्हारे पास भागने का आज अच्छा मौका है !" नर्स ने रानी को उकसाते हुए कहा।

"कैसे ?"

"इस बाथरूम के पीछे से जाकर एक दरवाजा बाहर सड़क पर खुलता है । दरवाजा थोड़ा-सा टूटा हुआ है ! उसमें में ताला नहीं पड़ सकता, इसलिएउस रस्सी से बांधा हुआ है ! धीरे से खोल कर निकल जाना ! मैं रस्सी की गाँठ को ढीला कर दूँगी !"

"पर वो ... ?" रानी ने जग्गी की ओर संकेत करके कहा ।

"वह तो कब से ऊँघ रहा है । दस-बीस मिनट में सो जाएगा ! नहीं सोएगा, तो उसको मैं अपनी बातों में उलझा लूँगी, तू निकल जाना !" यह कहकर नर्स ने अपने ब्लाउज से छोटा-सा पर्स निकाला और उससे सौ रुपये निकालकर रानी को देते हुए कहा -

"यह लो, अपने पास रख लो ! तुम्हारे पास किराये के लिए पैसे नहीं होंगे ! यहाँ से निकलकर थोड़ी दूर तक सीधे पैदल चलने के बाद स्टेशन की बस मिल जाएगी । वहाँ से रेल में बैठकर चली जाना !"

रानी ने चुपचाप रुपए अपने हाथ में थाम लिए और नर्स के साथ-साथ कमरे में वापस आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी। नर्स भी जग्गी से यह कहकर सोने के लिए चली गयी कि "मरीज को कुछ आवश्यकता पड़े, तो बुला लेना ! मैं बगल वाले कमरे में ही सो रही हूँ !"

दस-बीस मिनट पश्चात् ही जब जग्गी भी नींद के मोह-जाल में फँस गया, तब नर्स के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए रानी भी मुक्ति के प्रयास में सक्रिय हो गयी और क्लीनिक से निकल भागी।

क्रमश..