Noorin - 6 - last part in Hindi Women Focused by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | नूरीन - 6 - अंतिम भाग

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नूरीन - 6 - अंतिम भाग

नूरीन

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 6

अम्मी तुमने मेरे सामने इसके अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ा है। इसलिए जा रही हूं। हो सके तो गुनाहों से तौबा कर लेना। ज़िंदगी बड़ी खूबसूरत है। इसे खूबसूरत बनाए रखना अपने ही हाथों में है। अच्छा अल्लाह हाफिज।‘ नुरीन के खत को पूरा पढ़ते-पढ़ते नुरीन की अम्मी पसीने से नहा उठीं। उन्हें सब कुछ हाथों से निकलता लग रहा था। हाथों से कागजों को मोड़ कर उन्हें जल्दी से एक अलमारी में रख कर ताला बंद कर दिया। और दुल्हा-भाई को फ़ोन करने के लिए उस कमरे में जाने को उठीं जिसमें लैंडलाइन फ़ोन रखा था। पसीने से तर उनका शरीर कांप रहा था।

उन्होंने दरवाजे की तरफ क़दम बढ़ाया ही था कि एकदम से नुरीन सामने आ खड़ी हुई। वह एकदम हक्का-बक्का पलभर को बुत सी बन गईं। नुरीन भी उनसे दो क़दम पहले ही स्तब्ध हो ठहर गई। उसकी अम्मी के दिमाग में एक साथ उठ खड़े हुए अनगिनत सवालों ने उन्हें एकदम झकझोर कर रख दिया। फिर भी घर में मेहमानों की मौजूदगी का ख़याल उनके शातिर दिमाग से छूट न सका। वह दांत पीसती हुई आग-बबूला हो बोलीं ‘कलमुंही तू तो जहन्नुम में चली गई थी फिर यहां मरने कैसे आ गई। कहीं ठिकाना नहीं लगा।’ यह कहती हुई वह नुरीन की तरफ बढ़ने को हुई तो वह बेखौफ बोली ‘दिलशाद से बात करने के बाद मैंने इरादा बदल दिया।’ उसकी इस बात का अम्मी ने ना जाने क्या मतलब निकाला कि उस पर हाथ उठाती हुई बोली ‘हरामजादी मुझको बदचलन कहते तेरी काली जुबान कट कर गिर न गई।’ अम्मी के ऐसे रौद्र रूप से पहले जहां नुरीन दहल उठती थी वह इस वक़्त बिल्कुल नहीं डरी और अम्मी के उठे हाथ को बीच में ही थाम कर बोली ‘बस अम्मी ... अब भी संभल जाओ नहीं तो मैं चिल्ला कर सबको इकट्ठा कर लूंगी।’ कल्पना से परे उसके इस रूप से उसकी अम्मी सहम सी गईं। उन्हें जवान बेटी के हाथों में गजब की ताकत का अहसास हुआ। उन्होंने अपना हाथ नुरीन के हाथों में ढीला छोड़ दिया तो नुरीन ने उन्हें अपनी पकड़ से मुक्त कर दिया।

दोनों मां-बेटी पल-भर एक दूसरे की आंखें में देखती रहीं। नुरीन की आंखें भर चुकी थीं। अम्मी की आंखें क्रोध से धधक रही थीं। सुर्ख हुई जा रही थीं। सहसा वह बोलीं ‘मालूम होता तू ऐसी होगी तो पैदा होते ही गला घोंट कर कहीं फेंक देती।’ इतना ही नहीं यह कहते-कहते उन्होंने नुरीन को पकड़ कर एक तरह से उसे जबरन बेड पर बैठा दिया। फिर बोलीं ‘मैंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि तू ऐसी नमक हराम, एहसान फरामोश होगी। इतनी बदकार होगी कि अपनी अम्मी को ही बदनाम करने पर तुल जाएगी। बदचलन कहने में जुबान नहीं कांपेगी। तेरी जैसी औलाद से अच्छा था कि मैं बे औलाद रहती। अरे! आज तक सुना है कि किसी लड़की ने अपनी अम्मी को ऐसा कहा हो। उसकी जासूसी की होे। चली थी घर छोड़ कर भागने, मुकाम बनाने, अब्बू का इलाज कराने, उस बुढ्ढे को छुड़ाने, कर चुकी सब। अपनी यह मनहूस सूरत लेकर बाहर निकलने में जान निकल गई। घबरा नहीं मैं तेरी सारी मुराद पूरी कर दूंगी। अब तेरी रुह भी इस घर से बाहर ना जाने पाएगी। देखना मैं तेरा क्या हाल करती हूं।’

‘अम्मी तुम्हारे जो दिल में आए कर लेना, मार कर फेंक देना मुझे, मैं उफ तक न करूंगी। मगर पहले अब्बू का इलाज हो जाने दो।’ इतना सुनते ही अम्मी उसकी फिर बरस पड़ीं। बोलीं ‘हां .... ऐसे बोल रही है जैसे करोड़ों रुपए वो कमा के भरे हुए हैं घर में और बाकी जो बचा वो तूने भर दिए हैं।’

‘अम्मी उन्होंने कमा के करोड़ों भरे नहीं हैं तो तुमसे या दादा से भी कभी इलाज के लिए एक शब्द बोला भी नहीं है। जो भी उनका इलाज अभी तक हुआ है वह दादा ने खुद कराया है। एक बाप ने अपने बेटे का इलाज कराया है। और वही बाप आगे भी अपने बेटे का इलाज कराने के लिए अपनी संपत्ति बेच रहा है तो तुम्हें क्यों ऐतराज हो रहा है।’ उसकी इस बात पर उसकी अम्मी और आग बबूला हो उठीं। किच-किचाते हुए बोलीं ‘चुप .... ।’ इसके आगे वह कुछ और ना बोल सकीं। क्यों कि नुरीन बीच में ही पहले से कहीं ज़्यादा तेज आवाज़ में बोलीं ‘बस अम्मी! बहुत हो गया। मेरे पास अब फालतू बातों के लिए वक़्त नहीं है। मैं थाने जाकर अपनी कंप्लेंट वापस लेने के लिए दिलशाद को बुला चुकी हूं। वह कुछ देर में आता ही होगा। मैं हर सूरत में दादा को छुड़ा कर आज ही लाऊंगी समझीं। अब इस बारे में मैं तुमसे या किसी से भी ना एक शब्द सुनना चाहती हूं और ना ही कहना चाहती हूं।’

नुरीन की एकदम तेज हुई आवाज़, एकदम से ज़्यादा तल्ख हो गए तेवर से उसकी अम्मी जैसे ठहर सी गई। उन्हें बोलने का मौका दिए बगैर नुरीन बोलती गई। उसने आगे कहा ‘और अम्मी यह भी साफ-साफ बता दूं कि मैंने घर छोड़ने का इरादा बाहर आने वाली दुशवारियों से डर कर नहीं बदला। मैंने घर छोड़ने का इरादा दिलशाद से बात कर यह समझने के बाद बदला कि जिस मकसद से मैं यह क़दम उठा रही हूं वह तो पूरा ही नहीं होगा। दिलशाद ने साफ कहा कि ऐसे कुछ नहीं हो पाएगा। केस उलझ जाएगा। पुलिस पहले तुमको ढूढ़ने में लग जाएगी। और कोई आश्चर्य नहीं कि अपनी योजना पर पानी फिर जाने और लेटर में लिखी तुम्हारी बातों से खिसियाई, गुस्साई अम्मी तुम्हारे फूफा वगैरह पर यह आरोप लगा दें कि उन लोगों ने उनकी लड़की नुरीन का अपहरण करा लिया या हत्या कर दी।

वह कुछ भी कर सकती हैं ऐसा ही कोई और बखेड़ा भी खड़ा कर सकती हैं। ऐसे मैं दादा का छूटना, अब्बू का इलाज तो दूर की बात हो जाएगी। तुम्हारी अम्मी घर के ना जाने कितनों और को अंदर करा देगी । तुम भाग कर ना अपनी बहनों को बचा पाओगी और ना खुद को। जैसे उन्होंने तुम्हारा निकाह मुझ से तय कर दिया। वैसे ही तुम्हारे ना रहने पर तुम्हारी बहनों का निकाह ऐसे ही तय कर देंगी। मेरे इंकार करने पर दूसरे भाइयों से कर देंगी। कुल मिला कर पूरा घर तबाह हो जाएगा। जब कि यहां रह कर जो तुमने तय किया है वह सब हो जाएगा। घर की और ज़्यादा थू-थू भी नहीं होगी। मुझसे जितनी मदद हो सकेगी मैं वह सब करूंगा।

अम्मी मुझे दिलशाद की सारी बातें एकदम सही लगीं। मुझे जब पक्का यकीन हो गया कि मैं यहां रह कर ही सब कुछ कर पाऊंगी तभी मैंने अपना इरादा बदला। अम्मी दिलशाद ने सच्चे भाई होने का अपना हक बखूबी अदा किया है। वह कुछ ही देर में यहां आने वाला है। मैं फिर तुमसे कह रही हूं कि अपनी जिद से अब भी तौबा कर लो। दादा को छुड़ाने साथ चलो। अब्बू का इलाज करवाने के लिए वह जो करना चाहते हैं वह उन्हें करने दो। इससे मेरी, तुम्हारी इस घर की दुनिया में और ज़्यादा बदनामी होने से बच जाएगी। हम दोनों ये कह देंगे कि गलतफहमी के कारण यह गलती हो गई। थाने वाले मान जाएंगे। वह सब तो पहले से ही दादा को बेगुनाह मान कर ही चल रहे हैं।

अम्मी मान जाओ अभी भी वक़्त है, इससे ऊपर वाला हमें बख्श देगा। वरना ये तो गुनाह-ए-कबीरा है जो कभी बख्शा नहीं जाएगा। इसलिए कह रही हूं कि तैयार हो जाओ हमारे साथ चलो। क्योंकि अब मैं किसी भी सूरत में पीछे हटने वाली नहीं, एक बात तुम्हें और बता दूं कि मैं यहां तुम से यह सब कहने नहीं आई थी। मैं तो इरादा बदलने के बाद जो खत तुम्हारे दुपट्टे में बांध गई थी उन्हें वापस लेने आई थी। जिससे कि तुम उन्हें ना पढ़ सको। उनमें लिखी बातों से तुम्हें दुख न पहुंचे । मगर बदकिस्मती से आज तुम रोज से जल्दी उठ गई और खत पढ़ लिया। उनमें लिखी बातों के लिए अभी इतना ही कहूंगी कि मुझे माफ कर दो या बाद में जो सजा चाहे दे लेना, मगर अभी चलो।’

नुरीन अपनी बात पूरी करके ही चुप हुई। उसकी अम्मी दो बार बीच में बोलने को हुई लेकिन उसने मौका ही नहीं दिया। उसके तेवर ने उसकी अम्मी को यह यकीन करा दिया कि बाजी अब उसके हाथ से निकल कर बहुत दूर जा चुकी है। अब भलाई अगली पीढ़ी की बात मान लेने में ही है। नहीं तो इसके जोश में उठे कदम से वह भी हवालात का सफर तय कर सकती है। साजिश रचने के आरोप में। करमजला दिलशाद इसके साथ है ही। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। जिसे सुन नुरीन फिर उनसे मुखातिब हुई। कहा ‘लगता है दिलशाद आ गया है। तुम साथ चल रही हो तो मैं रुकूं नहीं तो अकेले ही जाऊं।’ उसकी अम्मी ने एक जलती हुई नज़र उस पर डालते हुए नफरत भरी आवाज में मुख्तसर सा जवाब दिया ‘चलती हूं।’ इस बीच घर में ठहरे कई मेहमान जाग चुके थे उनकी आवाजें आने लगी थीं । नुरीन बाहर दरवाजा खोलने को चल दी। वह बात किसी और तक पहुंचने से पहले अम्मी को लेकर थाने के लिए निकल जाना चाहती थी। जिससे बाकी सब कोई रुकावट ना पैदा कर दें। उसे लगा कि थाने पर जल्दी पहुँच कर इंतजार कर लेना अच्छा है। लेकिन यहां रुकना नहीं।

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