Jo Ghar Funke Apna - 43 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | जो घर फूंके अपना - 43 - गुरु की तलाश में

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जो घर फूंके अपना - 43 - गुरु की तलाश में

जो घर फूंके अपना

43

गुरु की तलाश में

ऑफिसर्स मेस में साथ रहने के लिए अब मेरे दो चार अविवाहित दोस्त भी नहीं बचे थे. गुप्ता की शादी की तारीख भी निश्चित हो गयी थी और अधिकाँश समय वह गायब रहता था. मैं मेस में अकेलापन महसूस करने लगा था. घर से माँ का आग्रह लगातार बना हुआ था कि दिल्ली से फिर कहीं दूर-दराज़ पोस्टिंग होने से पहले मैं अब शादी कर डालूँ. मेरे अर्दली हरिराम का सुझाया हुआ जीवन दर्शन यदि सही था कि “साथ रहते रहते हर मर्द औरत को आपस में मोहब्बत हो ही जावे है” तो फिर गौतम की तरह से जीवनसंगिनी चुनने का काम घर वालों पर छोड़ देने वाला रास्ता ही सही होगा. इसी मनःस्थिति के चलते एक दिन जब माँ ने फोन पर फिर उलाहना दिया तो मैंने उसे ये कहकर अवाक कर दिया कि मैं अब शादी करने के लिए तैयार था. जो लडकी माँ और पिताजी को पसंद हो उससे बात पक्की कर लें. सलाह देने के लिए दीदी, जीजाजी, भाई साहेब, भाभी सभी उपलब्ध थे. बस मुझसे कुछ ना पूछा जाए. यहाँ तक कि अब मैं किसी लडकी की फोटो भी नहीं देखना चाहता था. यानी मेरी तरफ से खुला एलान कर दिया जाए कि मैं तय्यार हूँ- जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ! मैं समझता था माँ यह सुनकर खुशी से फूल जायेगी पर उसकी प्रतिक्रया उल्टी निकली. वह चिढ़कर बोली “ तू हमेशा ऊट-पटांग बातें क्यूँ करता है? ऐसा कहने से कोई भी लडकी यही समझेगी कि तुझे खुद विवाह में कोई दिलचस्पी नहीं है और तुझे उसके सर पर थोपा जा रहा है. फिर लडकी खुद भी तो तुझे देखना परखना चाहेगी. ऐसी लड़की आजकल कहाँ मिलेगी जिसे गाय की तरह से रस्सी में बांधकर तेरे हाथ में पकड़ा दिया जाए और वह चुपचाप तेरे साथ चली आये. फिर उसके घर वाले भी क्या तुझे देखे बिना शादी कर देंगे तेरे साथ?”

मैंने स्पष्टीकरण दिया “चलो यही सही, मैं तो ऐसी किसी भी लडकी से शादी करने को तैयार हूँ जो आप सबको पसंद हो. रहा सवाल उनका मुझे देखने का तो मैं अब कहीं बाहर जाने का चक्कर नहीं पालूंगा. जिसे देखना हो यहाँ मेरे पास आकर मुझे देख जाए. लडकी और उसके घरवाले, जो चाहें, जब चाहें, मेरा इंटरव्यू ले डालें. हाँ आपलोगों को पसंद हो तो मेरी तरफ से हाँ पहले से ही बोली जा सकती है. नहीं कहने का अधिकार इस बार पूरी तरह से उनके हाथों में छोड़ दिया जाए, बस इतना चाहता हूँ मैं. ”

पिताजी समझाते हुए बोले “बेटा, तुम्हे हम सब पर इतना भरोसा है सुनकर बहुत अच्छा लगा. पर ये कोई बच्चों का खेल तो है नहीं. बड़ी भारी ज़िम्मेदारी तुम हम सब पर छोड़ना चाहते हो. अगर हमारी पसंद तुम्हारी आशा पर खरी नहीं उतरी तो क्या होगा? जीवन तो तुम्हे उसके साथ बिताना होगा, हमारा क्या, आज हैं कल नहीं रहेंगे. ”

मैंने हठ पकड़ लिया. कहा “ और खुद मेरी पसंद गलत निकल गयी तो ? आप लोग मुझे जितना जानते हैं उतना शायद मैं खुद को नहीं जानता. और फिर ये लडकी की ही नुमायश हमेशा क्यूँ लगाई जाती है? लड़के की क्यूँ नहीं? एक फौजी अफसर की पत्नी के जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आते हैं जब उसका पति अग्रिम मोर्चे पर होता है और अकेले उस बेचारी को बच्चों के पालन पोषण से लेकर हर तरह की घर अकेले चलाने की ज़िम्मेदारी आती है. आत्मविश्वास, सूझ बूझ और साहस, ये सारे गुण जिसमे हों वही लडकी एक आदर्श फौजी पत्नी बन सकती है. मैं समझता हूँ पहले कदम पर ही अपना जीवनसाथी चुनने का निर्णय जो आत्मविश्वास के साथ ले सके वही लडकी मेरे लिए सही होगी. ”

बातें तो मैं ऊंची ऊंची कर रहा था पर मन ही मन जानता था कि अभी तक जीवनसाथी चुनने का मेरा हर प्रयास फ्लॉप निकला था. अब अपनी ज़िम्मेदारी माँ बाप के सर पर पटक कर मैं असफलता से बचना चाह रहा था. या फिर जैसे ताश के जुवे में बार बार हारनेवाले मांग करते हैं कि अब ताश के दूसरे पैक से खेला जाए वैसे ही मैं भी कुछ करना चाह रहा था जिसे दिल्ली, पंजाब वाले “टशन’ कहते हैं. मन के अन्दर छिपे असफलता के डर को मैंने किस सफाई से पितृभक्ति और मातृभक्ति में सराबोर आदर्श पुत्र के मुखौटे के पीछे छिपाया था इसकी आज याद करता हूँ तो हंसी भी आती है और पछतावा भी होता है. बहरहाल मेरी जिद के आगे माँ और पिताजी ने हथियार डाल दिए और तय हुआ कि वही सब ज़िम्मेदारी ले लेंगे. हाँ, मैं इसके लिए तैयार रहूँ कि लड़कीवाले आकर मुझे देखेंगे और अपना निर्णय भी मुझी को सुनायेंगे.

वाह ! इस बार वो आयेगी ! बस आगे का दृश्य मन की आँखों के सामने ठीक से बन नहीं पा रहा था. क्या वो टांग पर टांग चढ़ाकर बैठेगी और मैं चाय की ट्रे लेकर आऊँगा? क्या वो मुझसे पूछेगी कि मैं खाना बनाने और घर के काम करने में रूचि रखता हूँ या नहीं? क्या वे लोग मुझसे मेरी वेतनपर्ची (पे स्लिप)की सत्यापित प्रतिलिपि मांगेंगे? कहीं कोई मुझसे गाना सुनाने को तो नहीं कहेगा. बहुत सारे प्रश्न थे. उत्तर तो भविष्य ही बतायेगा.

अपनी परेशानी माँ, पिताजी आदि के कन्धों पर सिंदबाद जहाजी के जोंक की तरह चिपक जाने वाले बूढ़े आदमी की तरह मैंने लाद तो दी पर चैन सकून अभी भी नहीं मिल पाया. बस ये विचार सांत्वना देता था कि जो स्वयं अपनी पसंद से मुझसे विवाह करेगी वह विवाहोपरांत सामान्य झगड़ों की शुरूवात उस घिसे पिटे संवाद से नहीं कर पायेगी कि “अगर मुझे शादी से पहले पता होता कि तुम ऐसे हो तो ----. ” हाँ, अपनी महानता का एहसान लादते हुए ये ज़रूर कह सकती थी कि “मैंने तो पहली नज़र में ही भांप लिया था कि तुम ऐसे ही हो फिर भी -----”. लेकिन तब मैं कह सकता था “ तो इसमें मेरी क्या गलती? जो किया तुमने अपनी मर्जी से किया. ”

खैर, अभी तो असली डर मुझे उस साक्षात्कार से लगता था जिसमे पहल करने की मैं अपनी भावी पत्नी को पूरी छूट देना चाहता था. ये घोषित करने के बाद कि माँ-पिताजी की पसंद की कोई भी लडकी मुझे देख ले, बस मुझे कहीं जाने का कष्ट न दिया जाए, मैं इस तलाश में लग गया कि दिल्ली में कहीं कोई प्रशिक्षण संस्था मिल जाए जो मुझे भावी पत्नी या उसके परिवारवालों के साक्षात्कार को झेलने के लिए तैयार कर सके. पर इसमें भी असफल रहा. आई ए एस के लिए, सर्विसेज़ सेलेक्शन बोर्ड के लिए, आई आई टी के लिए, मेडिकल के लिए, यहाँ तक कि हीरो हीरोइन बनने के ख्वाब देखने वालों के लिए ऑडिशन की तय्यारियाँ कराने वाले गुरु तो मिल जाते थे पर पूरे शहर की दीवारों को इस दावे से रंगवा कर बैठेने वाले कि ‘दुल्हन वही जो अमुकजी दिलवाएं’, भी इस सवाल का जवाब नहीं दे सके कि साक्षात्कार करने वाली लडकी से भावी दूल्हा कैसे प्रश्नों की उम्मीद करे और उनके क्या उत्तर दे. उनसे भी मिल आया जिनका नाम हर रेलवे लाइन के किनारे दीवारों से गुहार लगाता था कि “मिल तो लें. ”. पर वहाँ भी ऐसी कोचिंग का कोइ प्रबंध नहीं था. मिल लेने के बाद मिलवा देने की तो वे गारंटी देते थे पर मिलने के बाद क्या बातें होंगी इससे उनको कोई सरोकार नहीं था.

बिना कोचिंग के तो आजकल सौन्दर्य प्रतियोगिता में भी कोई नहीं जाता. आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. विश्व सुंदरियों के चुनाव में भारतीय सुन्दरियों ने यूँ ही थोड़ी अपना झंडा बुलंद कर रखा है. जैसे ही पता चला कि शरीर के सारे अंगों की नाप तौल हो जाने के बाद चेहरे के ऊपर रखे हुए दिमाग का ढक्कन भी खोला जाएगा उन्होंने अबतक अनदेखी किये हुए शरीर के उस भाग की तरफ भी ध्यान देना शुरू कर दिया जिसे सुंदरियों के मामले में केवल एक खाली डिब्बा समझा जाता था. फ़टाफ़ट स्नेह, ममता, सेवा, त्याग और तपस्या जैसे शब्दों से उनका परिचय कराने के लिए कोचिंग शुरू कर दी गयी. इस कोचिंग का कमाल देखिये कि उनकी टांगों, नितम्बों, कटिप्रदेश, उरोजों और अधरों से ऊपर उठते -उठते जब निर्णायकों की पैनी नज़रें उनकी केशराशि को भेदकर नीचे छिपी बुद्धि का जायज़ा लेने पहुँचती हैं तो भारतीय सुंदरियां अचानक दार्शनिक मुद्रा में आ जाती हैं. धर्मचक्र प्रवर्तन करते हुए तथागत बुद्ध जैसी भंगिमा बनाकर तपाक से वे बताती हैं कि मदर टेरेसा उनकी रोल मॉडल हैं और जीवन में असली सौन्दर्य वे केवल केयर और शेयर अर्थात सेवा और साझेदारी में ही देखती हैं. इस उत्तर को सुनते ही जूरी पर जूडी बुखार चढ़ जाता है. निर्णायक मंडल का अध्यक्ष किसी दक्षिण अमेरिकी या दक्षिण अफ्रीकी सुन्दरी की तरफ जाते जाते मुड़कर भारतीय बाला के सर पर तियारा (ताज) रख देता है. हमारी सभ्यता संस्कृति की प्रतीक भारतीय नारी अब सुन्दरता के आकाश पर भी कब्ज़ा जमा लेती है. उसके प्रेमाश्रु निकल कर उन प्रशिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के नाम से परिचित कराया था. विश्व के निर्वस्त्र आकाश पर, क्षमा कीजिएगा, निरभ्र आकाश पर, भारतीय सुंदरियां कब्जा जमा पाने में क्या बिना उचित प्रशिक्षण के सफल हो पातीं?

फिर मुझे ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले पुरुष प्रत्याशियों की याद आई. लगा कि उनके बाजुओं की चमकती हुई मछलियाँ, पिंडलियों और जाँघों की बड़ी बड़ी गुठलियाँ, चक्की के जैसा चौड़ा सीना और उसके नीचे डमरू के बीचवाले हिस्से की जैसी दुबली कमर देखने के बाद कन्धों के ऊपर रखी सर की हांडी के अन्दर उनके निर्णायकों ने भी अब झांकना शुरू कर दिया होगा. भारत सुन्दरी और विश्व सुन्दरी प्रतियोगिताओं में यौवन के साथ चिंतन-मनन की क्षमता देखने वाले नए चलन की नक़ल में अब शायद वे भी इन प्रत्याशियों से कुछ प्रश्न पूछने लगे होंगे और पहलवानों को भी साक्षात्कार का सामना करने की ट्रेनिंग दी जाने लगी होगी.

इस विषय में दिल्ली के एक प्रमुख अखाड़े के भीमकाय मांसपेशीपुंज गुरु जी से पता चला कि अखाड़े में धूल चाटने से बचने के लिए ट्रेनिंग ले रहे पहलवानों को केवल मुंह सख्ती से बंद रखना ही सिखाया जाता है. पहलवानों की व्यावसायिक सहायता वहाँ ली जाती है जहां लातों के भूत बातों से नहीं मान रहे हों, अतः उनको ट्रेनिंग दी भी जाती है तो मुंह खोलने की नहीं बल्कि मुंह खुलवाने की. अंत तंग आकर मैंने साक्षात्कार की ट्रेनिंग लेने का इरादा छोड़ दिया. तय पाया कि अवसर के अनुसार जो बातचीत होगी वैसा उत्तर दे लूँगा. किसी लडकी ने पूछा कि आप मुझसे शादी क्यूँ करना चाहते हैं तो सच-सच बता दूंगा “इसलिए कि अभी तक और कोई लडकी मुझे शादी करने के लिए मिली ही नहीं”

क्रमशः -----------