पैसे की तलाश में आदमी को क्या क्या न करना पड़ता है। मोहन एक छोटा सा व्यापारी था। घर में पत्नी के अलावा दो बच्चे थे। गाँव में उसकी कपड़ों की छोटी सी दुकान थी। इस दुकान से उसका जीवन यापन चल तो रहा था ,पर गुजारा बमुश्किल हीं हो पाता था।
किसी से उसने सुना कि गाँव से तकरीबन 100 मील की दुरी पर पहाड़ के उस पार के शहर में कपड़े बहुत सस्ते मिलते हैं। मोहन के दिमाग में एक योजना आई। उसने सोंचा क्यों न उस पहाड़ को पार करके शहर जाया जाए और सस्ते दाम कपड़ों को खरीदकर गाँव में बेच दिया जाए। इस तरह काफी मुनाफा हो जायेगा।
अपनी बैलगाड़ी लेकर वह चल पड़ा। जब पहाड़ के पास पहुंचा , तो उसकी उंचाई देखकर आँखें चौंधिया गई। उसके बैलों ने आगे जाने से मना कर दिया। उसे किराये पर पहाड़ी गधों को लेना पड़ा। जैसे जैसे वो पहाड़ की ऊँचाई पर चढ़ने लगा , हवा सर्द होने लगी। ठंडी हवा मानो उसके बदन को काट रही थी।
पर साथ हीं साथ उसने आकाश में उड़ते बादलों को अपने नीचे पाया। पंछियों की पहुँच से वो आगे निकल गया था। पुरे के पुरे मैदान उसके सामने नजर आ रहे थे। बड़े बड़े खेत , छोटी छोटी माचिस की टिकिया की तरह नजर आ रहे थे। नदी एक पतली लकीर की तरह दिख रही थी। प्रकृति की खूबसूरती का इतना अद्भुत नजारा उसने आज तक नहीं देखा था।
लगभग महीने भर की यात्रा के बाद वो अपनी मंजिल पहुँच गया। दुसरे शहर में कपड़े वाकई बहुत कम दाम पे मील रहे थे। उसने ढेर सारे कपड़ों को सस्ते दाम पर खरीदकर अपने गाँव लौट आया।उन कपड़ो को अच्छे मुनाफे पे बेचकर काफी पैसे बना लिए।अब उसकी गिनती सम्पन्न व्यापारियों में होने लगी थी।
फुर्सत के समय एक दिन उसकी पत्नी और बच्चों ने उसकी यात्रा के बारे में पूछा।मोहन अपनी यात्रा वृतांत सुनाने लगा। जब वो पहाड़ की उंचाई के बारे में बताने लगा तो बच्चे उत्सुक होकर पूछे , कितना बड़ा पहाड़ था ? क्या 10 हाथियों से बड़ा ? मोहन ने बताया , उससे भी बड़ा ? बच्चों ने पूछा , क्या बरगद से भी बड़ा , मोहन ने कहा , उससे भी बड़ा ? बच्चों ने फिर पूछा, क्या 10 ताड़ के पेड़ से भी बड़ा ? मोहन उलझन में पद गया।
उसकी बीबी और बच्चों को समझ नहीं आ रहा था। मोहन को भी समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे समझाए ? उसने कहा , वो जो बादल देखते हो , उससे भी ऊँचा । पहाड़ बादल से भी ऊपर होते है । बीबी और बच्चों ने पूछा , पर बादल पहाड़ को कैसे संभालते होंगे? बादल तो हल्के है और पहाड़ भारी ।फिर पहाड़ बादल के ऊपर कैसे हो सकते हैं?
बड़ी मुश्किल थी मोहन के सामने। वो पहाड़ों को देख चूका था । बादलों के भी पार जा चुका था। चिड़ियों से भी ऊपर के आकाश का अनुभव कर चूका था । पर उस अनुभव की समझाने के लिए उसके पास कोई उदाहरण नहीं था।
बच्चों का सवाल भी उचित था। भला पहाड़ बादल के ऊपर कैसे जा सकते हैं? चिड़ियों के पार जाना एक अलग हीं अनुभूति थी। उसके पिता ने उस अनुभव को प्राप्त कर तो लिया था, पर समझाए कैसे? बड़ी भारी मज़बूरी थी। इसी तरह की मज़बूरी लगभग हर सद्गुरु के साथ होती है। सदगुरू जिस भगवत्ता का दर्शन कर लेता है, उसका वर्णन कर समझाने में अक्सर मात खा जाता है।
जिस अन्तरचक्षु से वो ईश्वर की असीमित अस्तित्व का दर्शन कर लेता है उसे अपने अनुयायियों को बताए कैसे? बहुत बड़ी समस्या होती है सद्गुरु के लिए। रसगुल्ले का स्वाद तो किसी को खिला के हीं बताया जा सकता है, बता के नहीं।