थोड़ी सी कृपा हम पर भी, कर दो हे गोपीनाथ।
दिल से ना बिसारे आपको, दिन हो या हो रात्रि।।
हे करूणा के सागर अगर, कोई हो जाए हम से भुल।
अज्ञानी समझ देना छमा,करना ना हमें खुद से दुर।।
सारे जगत के तारणहार प्रभू, हमको भी शरण में लो।
कर पाए आपका वंदन,थोडी सी कृपा आप करदो।।
भटक गए है कर्तव्य पथ से, रास्ते आप ही दिखलाओ।
अंधकार हो गया है जिवन में, ज्ञान का दिप जला दो।।
जगद्गुरु कृपालु हे नाथ,थोड़ी सी उम्मीद जगा दो।
दे दो जगह अपने चरण रज में,इतनी कृपा वर्षा दो।
जिवन रूपी नैया के,आप ही है खेवनहार प्रभू।
बिच भंवर में है मेरी नैया भी,इसको भी पार लगा दो।।
अहिल्या को को तार दिया, आपने अपने रज कणों से।
सबरी को दिया पुण्य फल प्रभू, उसके जुठे बैर खाके।।
बस इतनी कृपा एक कर दो प्रभू,आया शरण तिहारो।
ले लो शरण में हमको, सब अपराध बिसारो।।
सारा जगत हुआ पापमय,प्रभू इससे हमको उभारों।
नहीं लालसा धन दौलत की,चाहूं सिर्फ शरण तिहारो।।
इतनी सी कृपा कर दो प्रभू, करता रहूं वंदन बारम्बार।
हे दयालु हे दिनबंधू ,मेरी इतनी अरज सुन लिजै।।
मिले जन्म जब भी यहां ,बस अपनी शरण हमें दीजै।
भटक गया कर्तव्य मार्ग से, ज्ञान पटल खोल दिजै।।
करता रहूं आपका वंदन,यही है हमारी अभिलाषा।
मिले जन्म चाहे कितने भी, यही हमारी है लालसा।।
जय श्री राम,जय श्री कृष्ण 🙏
रनजीत कुमार तिवारी
प्रिय पाठकों
आप सबको मेरा प्रणाम।यह कहानी वास्तविक जीवन से है। आज का परिवेश पहले से बहुत बदल गया है।हर जगह अब केवल लोभ, लालच, जलन और घृणा का माहौल है।आपस में प्यार कम होता जा रहा है।लोगों की नजर और सोच नकरात्मक होती जा रही है। मेरे कहानी लिखने का सिर्फ एक ही उद्देश्य है। आज के परिवेश पर प्रकाश डालना। आइए अब कहानी पर चलते हैं।एक गांव में एक भरा पुरा मुस्लिम परिवार रहता है। उस परिवार के मुखिया अपने बच्चों को मेहनत मजदूरी करके पालन पोषण करते हैं। बच्चो के बड़े होने पर भी वह निरंतर अपना कार्य जारी रखते हैं।सारे बच्चों के बडे और समझदार हो जाने पर मुल्ला जी उनकी शादी कर देते है। मुल्ला जी अब पांच वक्त की नमाज अदा करने लगते हैं।वह अपना टाइम अब खुदा की इबादत में लगाते हैं। कुछ समय बाद मुल्ला जी की इच्छा मस्जिद बनाने की होती है।वह अपने परिवार मे इसकी जिक्र करते हैं। और कुछ ही दिनों में पुरे गांव के मुस्लिम समुदाय के लोगों के सहयोग से मुल्ला जी अपनी जमीन देकर एक अच्छी मस्जिद बनवाते हैं।पुरे गांव में उनकी बहुत इज्जत बढ़ जाती है। मुल्ला जी बहुत खुश रहने लगे। कुछ समय बाद वह बिमार हो जाते हैं।और उनकी मृत्यु हो जाती है। गांव के मुस्लिम समुदाय के काफी लोग इकट्ठे होते है।सब की राय बनती है। मुल्ला जी को मस्जिद के पास ही दफ़न कर दिया जाए।नेक इंसान थे पर बच्चों के दिमाग में लालच,ने घर कर लिया।और वह तरह तरह के बहाने बनाने लगे।लोगों ने बहुत समझाया बुझे मन से वह मान तो गए ।लेकिन अंदर से उनके मन में अभी भी इच्छा नहीं थी।उनको डर था कहीं यह कब्रिस्तान ना घोषित हो जाए।जब तक वहा घृणा से भरे एक मौलवी साहब ने अपना फतवा सुना ही दिया। इन्होंने हज की है ,पिर है,नहीं ना इसलिए इन्हें वहीं दफ़न करो जहां सबको दफ़न किया जाता है। मौलवी साहब को मस्जिद के पास उनका दफ़न करना इसलिए नहीं भाया इनका इतना सम्मान जबकि यह सामान्य आदमी है।हम तो इमाम है।इनकी आने वाले समय में इबादत पुजा ना होने लगे। मौलवी साहब ने बच्चों के मन की बात कही थी। वह अन्दर से खुश थे।यही है इन्सान की किमत दो गज जमीन। मेरी कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइएगा।और कोई गलती हो तो माफ़ करना। धन्यवाद