तीन औरतों का घर - भाग 2
कही मैं बस सोचता ही रह जाऊं और हामिदा का डोला कोई और ही ले जाए!" साबिर को ये सोचते ही कंपकंपी छूट गई! उस दिन साबिर के दिल को मानो कही चैन नहीं मिल रहा था! कभी वह दुकान में रखी सुराही से पानी निकालकर गट गट पानी पीने लगता कभी बीड़ी सुलगाने लगता और कभी नुक्कड़ की चाय की गुमटी से चाय मंगाता! उसके दिलो दिमाग पर हामिदा हावी थी! वह सोचता 'कहीं मेरा प्यार एक तरफ़ा तो नहीं! हामिदा के दिल में भी उसके लिए कुछ ख़ास हैं या नहीं! उसके दिल का हाल वह कैसे जाने? हामिदा कभी उसे अकेले में मिलती भी तो नहीं?' फिर साबिर के दिमाग में हामिदा से हुई कुछ मुलाक़ाते घूमने लगी जो थी तो चंद मुलाक़ाते लेकिन साबिर का दिल उन खूबसूरत मुलाक़ातों के एहसासो में कई बार गोते लगाता था!
आज वह इन मुलाक़ातों में ही गुना भाग करने लगा कि वह उसे चाहती है या नहीं! जैसे पिछले महीने ईद की ही बात हैं हामिदा अपनी अम्मी के साथ ईद की खरीदारी करने घर से बाहर निकली थी और उसकी दुकान में भी आई थी जब हामिदा की पतली बारीक सी आवाज हामिदा ने कहा था
"साबिर मियाँ आपकी दुकान में फिरोजी रंग का कढ़ाईदार दुपट्टा हैं!"
और साबिर ने भी बड़े नरम लहजे में कहा था "हाँ हैं!" और साबिर की नजरें हामिदा से टकरा गई थी! साबिर से नजरें मिलते ही न जाने क्यों हामिदा ने नजरें झुका ली उसके चेहरे पर एक लाली सी उभर आई थी! उस वक्त साबिर का दिल नजरों नजरों की इस मुलाक़ात में बल्लियों उछलने लगा था! साबिर के चेहरे पर भी एक रौनक सी आ गई थी और चोर निगाहों से हामिदा के चहरे की और देखकर उसने नीले फिरोजी रंग के सारे दुपट्टे हामिदा के आगे बिछा दिए! हामिदा के हाथ में फिरोजी रंग की चूड़ियों का पैकेट था उसने एक दो चूड़ियां उस पैकेट में से निकाली और कहने लगी "अम्मी यह रंग तो मिल ही नहीं रहा! देखो थोड़ा बहुत अंतर हैं!"
"अरे थोड़ा बहुत उन्नीस बीस का फर्क तो चले हैं! इनमें से ही ले लें दुपट्टा! उसकी अम्मी लापरवाही से बोली!
हामिदा का मुँह थोड़ा उतर गया! साबिर भला यह कैसे सहता उसकी हामिदा को उसके होते मनपसंद फिरोजी रंग का दुपट्टा न मिले!
वह बोला " आप यह चूड़ियां दुकान पर ही छोड़ जाइए! मैं बड़े बाज़ार जाकर शाम तक दुपट्टा घर पहुँचा दुंगा!
हामिदा ने अपनी अम्मी की और देखा! अम्मी भी बेटी को त्यौहार पर मायूस नहीं करना चाहती थी! सो बोल उठी "ठीक हैं साबिर मियां पैसे भी शाम को घर से ले लेना! " हामिदा की अम्मी और फूफी में एक ख़ास बात थी पैसो की बात और लेनदेन वह तत्काल करती थी ताकि सामने वाले को यह एहसास रहे किसी की खैरात उपहार की उन्हें कोई दरकार नहीं हैं!
हामिदा और उसकी अम्मी के जाते ही साबिर ने चूड़ियों का डिब्बा उठाया एक पल उन्हें निहारा और फिर उसमें से एक चूड़ी निकालकर दराज में रख दी! बाकी चूड़ियों को डिब्बे में डाला और अपने कुर्ते की जेब में रखा साइकिल निकाली और बड़े बाज़ार की और फिरोजी रंग का दुपट्टा लेने निकल पड़ा! भरी दोपहर इस बात की गवाह हैं केवल एक घंटे में साबिर बड़े बाजार की छोटी बड़ी सभी दुकानों में घूमा और आखिर में उसे हामिदा वाला फिरोजी रंग का दुपट्टा मिल गया! बड़े बाजार से ही वह सीधा हामिदा के घर पसीने में लथपथ हुआ पहुँचा!
दरवाजा हामिदा की अम्मी ने खोला!
"अरे मियां इतनी जल्दी क्या थी शाम तक दे जाते दुपट्टा!" अम्मी की आवाज सुनकर हामिदा भी आ गई !
"ले देख ले , तुझे यही फिरोजी रंग चाहिए था ?"
"हाँ अम्मी" हामिदा ने एक नजर दुपट्टे की और देखा और अपनी नजरें साबिर पर टिका दी! पसीने और गर्मी से साबिर का मुँह लाल हो गया था! हामिदा को यूँ अपनी और देख उसके होठो पर एक मुस्कराहट आ गई हामिदा ने भी मुस्कुराते हुए अपनी नजरें झुका ली जैसे वह साबिर को शुक्रिया कहना चाहती हो या फिर उसने साबिर के दिल की बात जान ली हो!
"मियां कितने पैसे हुए इस दुपट्टे के?" अम्मी की आवाज सुनकर दोनों की तन्द्रा टूटी!
"जी ढाई सौ रूपए"
हामिदा की अम्मी ने दुपट्टे के कोने की गाँठ खोलकर उसमे से रूपए निकाले और साबिर को पकड़ाते हुए बोली "और चूड़ियों का डिब्बा कहा हैं?"
"ओह मैं तो भूल ही गया था" कहते हुए साबिर ने कुर्ते की जेब से चूड़ियों का डिब्बा निकाल कर हामिदा की अम्मी को पकड़ा दिया!
उस दिन दुकान पर वापस आकर वह न जाने कितनी बार दराज में रखी चूड़ी को निकाल कर देखता रहा था! और इस मुलाक़ात के मीठे मीठे लम्हो को महसूस करता रहा था!
और अभी पिछले हफ्ते की तो बात हैं जब हामिदा और उसकी फूफी बाजार से रिक्शे पर घर आ रही थी! गली के नुक्कड़ पर पहुंचते ही रिक्शेवाला अकड़ गया गली में रिक्शा नहीं ले जाएगा अगर ले जाएगा तो तय किराया से दस रूपए ज्यादा लेगा! यह सुनकर हामिदा की तेज तर्रार फूफी का दिमाग गुस्से में सातवे आसमान में पहुंच गया!
"गली तक रिक्शा ले जाने की बात हुई थे इसी किराये में!" हामिदा की फूफी गुस्से में फुफकारते हुए बोली! लेकिन रिक्शेवाला टस से मस नहीं हुआ! अपनी बात पर अड़ा रहा!
आखिर हामिदा और उसकी फूफी रिक्शे से नीचे उतर गई! हामिदा की फूफी ने बीस का नोट रिक्शेवाले की और फेका और होठो से बद्दुआ निकाली "अल्लाह की लानत हो तुझ पर"!
"बद्दुआ क्यों देती हो फूफी छोड़ो रहने दो घर चलो " हामिदा फूफी के कान में फुसफुसाई! झगड़ा सुनकर आस पास मजमा लगने लगा था! हामिदा को यह पसंद न था!
झगड़ा सुनकर साबिर भी अपनी दुकान से बाहर आ गया था! पहले उसे लगा था! होगा कोई राहगीर लेकिन जैसे किसी ने खबर दी हामिदा और उसकी फूफी हैं तो वह तुरंत अपनी दुकान से बाहर भागा! हामिदा की फूफी का साबिर को भी एक खौफ रहता था "क्या पता बुढ़िया कब क्या जहर उगल दे!" रिक्शे में भारी भरकम राशन के थैले भी थे! अब इन् थेलो को घर तक कैसे लेकर जाए! साबिर ने हिम्मत करके थूंक गटक कर कहा! फूफी लाओ मैं यह थैले पहुँचा दूँ!
हामिदा की फूफी मान गई! और उस दिन भी साबिर और हामिदा की आमने सामने एक और मुलाक़ात थी! थैले उठाते हुए साबिर का हाथ हामिदा के हाथ से छु गया और उसे उसके पुरे बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई! हामिदा के चेहरे पर भी एक शर्म सही उतर आयी और होठो में एक महीन सी मुस्कराहट छा गई!
अभी तक साबिर पिछली मुलाक़ातों के गुणा भाग करके ही हामिदा के दिल का हाल समझने की कोशिश कर रहा था! हामिदा भी उसे चाहती हैं या नहीं?
क्रमश: