Badi Pratima - 5 in Hindi Moral Stories by Sudha Trivedi books and stories PDF | बडी प्रतिमा - 5

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बडी प्रतिमा - 5

बडी प्रतिमा

(5.)

एक सुहानी सुबह ! शनिवार का दिन था। पूर्णिमा का चांद अभी पश्चिम में चमक ही रहा था। आज नजदीक के कस्बों से छात्रावास में आई सभी छात्राएं अपने-अपने घर जानेवाली थीं । अब वे चार दिन के बाद ही आतीं। कुछ लडकियां जो दूर से आई हुई थीं, वे इन चार दिनों की छुटिटयों में भी हाॅस्टल में ही रहनेवाली थीं। विभा इस बार घर नहीं जा रही थी। उसे अपने कैप्स्यूल पूरे करने थे। चूंकि आज ज्यादातर छात्राएं घर जानेवाली थीं इसीलिए मेस में ड्यूटियर की कमी थी। उसने सोचा था कि मीरा का हाथ बंटा देगी । इसी लिए सुबह चार ही बजे उठ गई और शौचालय की ओर चली। अभी बाकी लडकियां सो रही थीं। एक बार वे उठ जाएंगी, तो सारे नल और शौचालय उनकी किचकिच से भर जाएंगे, यही सोचकर विभा उसी समय शौचालय की ओर चली। आम के बागीचों में एकदम सन्नाटा पसरा था। कभी कभी एकाध कोयल कूक उठती थी। वह एक बाल्टी में पानी लिए आगे बढ रही थी, तभी उसे लगा कि सामने से कोई लंबी छाया चली आ रही है। छाया का मुंह लंबे बालों से ढंक रहा था। अपने बालों और सिर को खूब झटकती हुई वह छाया विभा की ओर ही बढी चली आ रही थी। विभा ने कद काठी से अंदाजा लगाना चाहा कि यह लडकी कौन हो सकती है, मगर तभी वह छाया उसके बिल्कुल पास आ गई और उसे मजबूती से जकड लिया। विभा डरी तो नहीं, पर अंदाजा न लगा पाने के कारण पूछने जरूर लगी – “कौन है ? कौन है ???”

उस मजबूत जकड ने अब विभा को गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया । विभा फिर भी डरे बिना कहती रही – “कौन हो तुम, छोडो मुझे । मैं कम्प्लेन करूंगी तुम्हारी ।

लेकिन छाया की न तो पकड कम हुई, न ही उसने विभा को चक्कर देना कम किया । विभा भूत-वूत पर बिल्कुल विश्वास नहीं करती थी, मगर एक पल के लिए उसेे लगा कि हो न हो यह सचमुच कोई भूतनी है । आते समय विभा ने देखा था कि सुभद्रा उठ गई है और घर जाने का अपना बैग वैग संभाल रही है। इसीसे वह जोर से चिल्लाई – “सुभद्रा, सुभद्रा । जल्दी आओ।

भोर का समय होने के कारण बहुत दूर होने पर भी सुभद्रा ने चीख सुन ली। वह क्या हुआ विभा दी कहती हुई दौडी। साथ ही बाकी लडकियों को भी आवाज लगाने लगी – “अरी दौडो । विभा दी को लेकर कोई भाग रहा है।

चीख सुनकर सुभद्रा के साथ बहुत सारी और लडकियां भी दौड पडीं। सुबह-सुबह हंगामा हो गया। हल्ला-हंगामा हो जाने पर भूतनी ने विभा को छोडा और बालों को सहेजकर हंसती हुई बोली – “अब बोलो विभा दी, डरीं कि नहीं ? आप तो कहती थीं कि आप को भूत से डर नहीं लगता है ?”

वह हाॅस्टल नंबर वन की छात्रा मीरा थी। उसका पति सेना में था। पति के साथ वह भी बहुत दिनों तक अंबाला छावनी में रही थी। पंजाब का पानी उसके रक्त में समाकर उसके सुगठित शरीर को और भी सबल बना गया था।

विभा बोली – “यह कोई मजाक है मीरा ? मेरी जगह कोई और होती तब तो उसका हार्ट ही फेल हो जाता ! वार्निंग दे रही हूं । दुबारा ऐसी वाहियात हरकत की तो एक्सपेल्ड कर दी जाओगी।

छोटी प्रतिमा बोली – “यह सुभद्रा तो चिल्लाये जा रही थी कि कोई आपको लेकर भाग रहा है ?”

इस पर सभी लडकियां जोर से हंसने लगीं।

सभी जानती हैं कि बगल के गांव का कोई छैला विभा दी की एक झलक पाने के लिए हाॅस्टल के इस हिस्से की चारदीवारी के आसपास चक्कर काटा करता है। जब विभा दी क्लास लेने जाती हैं, तो वह आगे-पीछे साइकिल घुमाया करता है। एक दिन जब लडकियां क्लास लेकर आ रही थीं, तब वह बीच सडक पर अपनी साइकिल रोककर उसकी चेन बनाने का बहाना करने लगा था। विभा दी को आता देखकर उसका चेहरा लाल हो आया था।

डाॅली ने तब अपने खिलंदडेपन में पूछ भी दिया था- “लोगों को देखकर ही आपकी साइकिल खराब हो आती है जी ?”

उसने बडे साहस से एक बार विभा दी की ओर देखकर नजरें झुकाते हुए कहा था – “यहां तो आदमी खराब हो जाता है, आप साइकिल की बात करती हैं ?”

और लडकियां खिलखिलाती, एक दूसरी पर गिरती पडती आगे बढ गई थीं । उसी घटना को याद करके सुभद्रा के मुंह से एकाएक यह वाक्य निकल गया था, जिसको लेकर अभी सुबह सुबह इतना गुल गपाडा हो रहा था। सब हंसती हुई अपने कमरों की ओर लौट रही थीं कि फील्ड में बडी प्रतिमा मुंह बनाए आती दिखी – “सुबह-सुबह इतना मत हंसो बउआ लोग, रोना पडेगा। जाओ देखो, गीतू रो रही है। उसकी पायल नहीं मिल रही है।

अब एक और नया लफडा ! सबने मिलकर गीतू की पायल ढूंढने की कोशिश की, पर वह नहीं मिली, तो नहीं मिली । कुछ देर तक सबने ढूंढा फिर थक हारकर सब तैयार होने चली गईं। ससुराल जाने वाली ब्याहताएं इस दिन अच्छे से तैयार होकर जाया करती हैं । उनमें से कई बालों में रीठा आंवला लगाकर बाल धोने लगीं, कोई नल चलाने लगा, कोई कपडे धोने लगा। खूब चिल्ल-पों मची।

गीतू को भी आज घर जाना था। वह भी तैयार होने चली गई। विभा इधर मेस में खाना बनाने में सहयोग करने लगी। साढे आठ होते-न-होते लडकियां खाना खाने आ जुटीं। गीतू भी मोरपंखी सूट पहनकर अपनी सहज स्मित के साथ खाना लेकर खाने लगी। विभा को थोडा आश्चर्य भी हुआ । उसने पूछा – “अरे! अभी तो तू रो रही थी कि पायल गुम गई है और अभी इतनी खुश होकर खाना खाने बैठ गई ?”

गीतू – “मैं तो इतना ही जानती हूं विभा दी कि जो बीत गई सो बात गई।

डाॅली – “जियो मेरी फिलाॅसफर !”

इस तरह सभी लडकियां खा-पीकर खुशी-खुशी क्लास को चलीं । क्लास के छूटते ही वे सब की-सब दो बजे की बस पकडकर घर चली जाएंगी। जिनके पति या भाई मोटरसाइकिल लेकर आएंगे, वे उनके साथ चली जाएंगी। लेकिन बारह ही बजे एक ऐसी घटना हो गई कि फजली सर ने घोषणा कर दी, मेरे परमीशन के पहले कोई घर नहीं जाएगा।

क्रमश..