anniversary in Hindi Short Stories by Dipak Raval books and stories PDF | एनिवर्सरी

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एनिवर्सरी

‘एनीवर्सरी’

दीपक रावल

पंचम और वर्षा को अलग हुए आज एक साल हुआ. आज एनीवर्सरी!! वर्षा को अजीब लग रहा था. अलग होने की भी कोई एनीवर्सरी मनाता है? पर राजु को कुछ ऐसा ही सूझता. उसे हर बात में पार्टी चाहिए. थोड़ी धमाल-मस्ती, खाना-पीना, झूमना उसे बहुत अच्छा लगता. कल तो राजु और वर्षा एनीवर्सरी मनाने के लिए मलेशिया जाने वाले हैं पर राजू कहता है नहीं, पंचम और श्रद्धा को मिलकर जाते हैं। पंचम और राजु पक्के दोस्त थे. दोनों ने अफ्रिका से शुरुआत की थी. भारत से पहने हुए कपड़ों पर आये थे. खूब मजदूरी की. राजु को दिन में एक दुकान में नौकरी और रात को सिनेमा थिएटर में डोरकीपर का काम मिला. उसे क्या पता था कि वह एक दिन स्वयं फिल्म प्रोड्युसर बन जाएगा!! पंचम एक डेयरी में काम करता था. बाद में दोनों को एक बैंक में नौकरी मिल गई. धीरे-धीरे स्थायी हुए. बाद में इंग्लैंड शिफ्ट हुए. राजु की पत्नी और उसके दोनों बच्चे अफ्रिका में ही हैं, उसके ससुरजी के साथ. वह पैसे भेजता है और अपना फर्ज निभाता है. पंचम ने इंग्लैंड आकर काम करते हुए पढ़ाई की, आर्किटेक बना और शादी की. राजु को अफ्रिकन बैंक की इंग्लैंड स्थित शाखा में ही नौकरी मिल गई थी. एक मित्र की मदद से उसने एड फिल्म्स बनाना शुरु किया, बाद में फिल्में, बहुत कमाया, इन्डिया में फिल्मों में फायनेंस करने लगा. बहुत बड़ा नाम हो गया. दोनों अपने-अपने क्षेत्र में विकसित हुए किंतु दोस्ती बनी रही.

राजु ने कल ही पंचम को फोन किया था.

'क्या चल रहा है भाई? मजे में? साले मिलता ही नहीं, कितने ही दिनों से फोन भी नहीं, तबीयत तो ठीक है?'

'मजे में हूँ. तू कैसा है? अभी काम का बोझ कुछ ज्यादा ही है. एक थ्री-स्टार होटल के कॉन्ट्रेक्ट के लिए नेगोसिएशन चल रहा है उसमें बिज़ी हूँ.'

'अरे यार दोनों हाथों से नोटें इकठ्ठा कर पर यार-दोस्तों को तो याद रख...'

'अब तेरे जितनी नोटें तो मिलती नहीं. तुझे तो एक फिल्म से ही तीन सौ-चार सौ करोड़ का खजाना मिल जाता है.'

'ठीक है यार. नोटें तो आती हैं, जाती हैं पर दोस्ती बनी रहनी चाहिए. तुझे याद है ना कल तुझे और वर्षा को अलग हुए एक साल पूरा होगा. साले तेरी फ्रेन्ड को एक साल से संभाल रहा हूँ।'

'हाँ, ये कैसे भूल सकता हूँ....'

'हाँ, तो कल शाम को मिलते हैं, पार्टी करेंगे. किसी फाईवस्टार हॉटल में चलेंगे.'

'ना, तुम लोग मेरे घर ही आ जाओ. श्रद्धा को हॉटल में जमता नहीं.'

'ओ.के., कल शाम को तुम्हारे घर मिलते हैं, शेम्पैन लेकर आऊँगा.'

कार चल रही थी और वर्षा की विचारधारा भी. एक साल बीत गया. अरे! वैसे तो पाँच साल बीत गये. पंचम से शादी करके आयी थी तब कुछ भी नहीं आता था. पंचम ने ही सिखाया. कैसे तैयार होना है, कैसे बोलना है, पार्टियों में किस तर बर्ताव करना है, पार्टियाँ कैसे ऑर्गेनाइज़ करना और न जाने क्या-क्या. इतना बड़ा आर्किटेक होने के बावजूद वह उसके लिए पूरा समय निकालता, बहुत प्यार करता. राजु उसका पक्का दोस्त था. वह बड़े फिल्म प्रोड्युसर, रौबदार व्यक्ति, बड़े-बड़े स्टार, प्रिमीयर, फिल्मों के प्रमोशन, हिरो-हिरोईन वगैरह के आने पर उनसे मिलने ले जाता. वह बहक गई थी उस चमक से. एक दिन अचानक राजु ने प्रपोज़ किया 'आई लाइक यू... केन वी स्टे टुगेदर?' उसने भी हाँ कह दी. वह शादी-शुदा था, दो बच्चों का बाप था यह जानने के बावजूद बिना सोचे हाँ कर दी... पंचम के साथ उसकी शादी होने वाली थी तब भी कहाँ सोचा था? उसका वो पागल प्रेमी किरण.. बेचारा. जब उससे कहा कि उसकी शादी लंदन में हो रही है तब वह निढाल हो गया था. थोड़ी देर असहाय-सा अश्रु-भरे नैनों से उसकी ओर तक रहा था. फिर बिना कुछ बोले खड़ा होकर चला गया था. बहुत ही प्रेम करता था. उसका मासूम चेहरा भूलाया नहीं जाता. वह कुछ भूल ही नहीं सकती.

गाड़ी ने मोड़ लिया. घर अब नज़दीक आया. उसने देखा रास्ते के मोड़ पर कोने के पास एक अच्छा-सा पेड़ था, वह नहीं दिख रहा था. किसी ने काट डाला होगा? वह पेड़ पहचान थी उस घर की. पेड़ दिखते ही लगता था कि घर आ गया.

कार खड़ी रही. ड्राइवर ने कार का दरवाज़ा खोला. दोनों उतरे. श्रद्धा और पंचम दरवाज़े पर ही खड़े थे. दोनों बारी-बारी गले मिले. राजु ने पंचम को शैम्पेन की बोतल दी.

'थैंक यू. अगर नहीं भी लाते तो चलता. मेरे घर में होती ही है.'

'मुझे पता है. पर सोचा कि खाली हाथ क्यों जाएँ... शैम्पेन तुम्हारी हो या मेरी क्या फर्क पड़ता है. एक ही तो है. हमने कहाँ कभी भेद किया है? एनी वे.... एनीवर्सरी मुबारक.... '

पंचम हँसा. राजु भी जोर-से हँस पडा.

'साले एक तो मेरी वाइफ को उठा ले गया और ऊपर से मुबारकबाद दे रहा है.... वर्षा ये देखो... चोरी ऊपर से सिनाजोरी....'

'जाने दे ना यार.... वो ऐसा ही है. प्यारा लगने वाला चोर.' वर्षा बोली और पंचम से गले मिली. फिर श्रद्धा से भी गले मिली. 'भले तुम्हारी वाइफ को ले गया पर तुम्हें कहाँ अकेले छोड़ा है. श्रद्धा से तो मिला ही दिया!'

'हाँ, ये सही है. अगर श्रद्धा न होती तो मैं अकेला घुट-घुटकर मर जाता.' पंचम ने श्रद्धा को अपने पास खिंचकर चुम लिया.

वातावरण थोड़ा भारी लगने लगा तो राजु ने बोला 'कट... कट... ज्यादा मेलोड्रामा नहीं.'

'साले यहाँ कौन-सी तेरी फिल्म की शुटिंग चल रही है जो कट-कट कर रहा है. ये मेरा घर है.' फिर पंचम ने श्रद्धा का हाथ पकड़ कर कहा, 'हमारा घर'.

'हाँ भई हाँ... तुम्हारा घर, पर तुम्हारे घर पर कोई आये तो उसे पानी-बानी कुछ मिलता भी है या फिर...?' राजु ने सोफे पर बैठते हुए कहा. वर्षा भी उसके बगल में बैठी. पंचम उसके पास वाले सोफे में बैठा. श्रद्धा पानी लेने दौड़ी.

'नौकर नहीं है? दो थे न?'

'तुम थी तब थे. श्रद्धा ने निकाल दिये. कहती है मेरे घर का काम मैं ही करुँगी' पंचम ने आँखे झपकाई.

'क्यों झुठ बोल रहा है. बाबू देश में गया है. पंचम ने उसे वहाँ फ्लैट लेकर दिया है. मार्था की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए नहीं आई.' श्रद्धा ने हँसते हुए कहा.

वर्षा सोच रही थी. पंचम और श्रद्धा के बीच अच्छा ट्युनींग हो गया है. उसके जाने के बाद पंचम अकेला पड़ गया था. कहीं मिलने पर वह हँसता-बोलता तो था पर उसकी उदासी उभरकर आती. उसकी बहुत चिंता होती. ऐसा भावुक, प्रेमल व्यक्ति अकेला कैसे रह पाता होगा? वह श्रद्धा को जानती थी. राजु के अन्य दोस्त की पत्नी. थोड़े समय पहले ही विधवा हुई थी. कम बोलने वाली, घर को सँभालनेवाली. पहले उसने राजु से बात की. उसने पंचम से बात की. दोनों की मुलाकात की व्यवस्था गई. परिचय कराया गया. फिर दोनों दो-चार बार मिले और साथ में रहना तय किया. दोनों अच्छी तरह रह रहे हैं.

श्रद्धा पानी लेकर आयी.

'आज क्या खिलाने वाली हो?' राजु ने पूछा.

'आपको अच्छा लगे ऐसा बहुत कुछ है. टेबिल पर बैठेंगे तब पता चलेगा.' श्रद्धा ने गिलास लेते हुए कहा.

'ओहो... सस्पैंस. कोई बात नहीं. पर पहले शैम्पेन की बोतल खोलें?'

श्रद्धा गिलास लेने जा रही थी तभी वर्षा ने कहा 'तुम बैठो, मैं लेकर आती हूँ.' रसोई में जाकर गिलास की अलमारी खोलने गई पर वहाँ अलमारी नहीं थी, छोटा-सा पूजा घर था. इतने में श्रद्धा आई. 'गिलास यहाँ है, इस टेबिल के खाने में. कम इस्तेमाल होनेवाली और काँच की चीजें इस टेबिल के खाने में रख दी हैं. टेबिल पर आवश्यक छोटी-मोटी चीजें रखती हूँ.' वर्षा देखती रह गई. पूरा रसोई घर बदल गया है.

'बाईटिंग के लिए पातरे बनाये हैं... चलेंगे न?'

'अरे दौड़ेंगे और बहुत भायेंगे भी... चल.'

श्रद्धा ने एपल ज्यूस का पैक भी लिया.

'तुम नहीं पीती?' वर्षा ने आश्चर्य से पूछा. 'मैं कभीकबार सबके साथ ले लेती हूँ. आज नहीं पीऊँगी. उसे सँभालना भी तो पड़ेगा न? उसे पीने के बाद होश नहीं रहता. दो पैग गले के नीचे जाते ही उसकी बक-बक शुरु हो जाती है.' वर्षा ने दबी आवाज़ में श्रद्धा से कहा. 'लेकिन फिर सुबह कुछ नहीं. अगर हम पूछें कि रात को क्या बक-बक कर रहे थे तो उसे कुछ भी पता नहीं होता.'

'पंचम भी कभी-कभी ही पीता है. पर पीने के बाद एकदम शांत हो जाता है.'

'हाँ, जानती हूँ उसका स्वभाव.'

वर्षा और श्रद्धा गिलास, बाईटिंग की डीश लेकर ड्राइंग रूम में आये.

शैम्पेन की बोतल खुली, लहरें उठीं, राजु ने श्रद्धा और पंचम को भी भिगो दिया. वर्षा को तो कहाँ छोड़ने वाला था?

सब खूब हँसे, बैठे. राजु ने दो गिलास में शैम्पेन भरी. तीसरे गिलास में भरने ही जा रहा था कि वर्षा ने मना किया.

'क्यों? तुम कंपनी नहीं दोगी?' राजु ने उसकी ओर देखा.

'नहीं. देर रात को हमें घर नहीं जाना है क्या? मुझे तुम्हें भी तो सँभालकर ले जाना पड़ेगा... तुम्हारे साथ हम थोड़ा ज्यूस ले रहे हैं. फिर तुम लोग अपनी महफ़िल जमाओ. हम डीनर की तैयारी करेंगे और बातें करेंगे.'

'ओ.के., एज यू विश.' राजू ने जाम हाथ में लिया. पंचम ने भी. श्रद्धा और वर्षा ने अपने एपल ज्यूस के गिलास लिये. चारों ने जाम टकराये. 'एनीवर्सरी के नाम... आज का जाम....'

राजु और पंचम बातें करते हुए पीने लगे. श्रद्धा और वर्षा ज्यूस पीकर रसोई में गये.

'तुमने तो पूरा घर ही बदल डाला है !!'

'हाँ दीदी. घर का रंग कुछ फीका पड़ गया था तो सोचा कलर करवा लेते हैं. डार्क ब्लू के बदले थोड़ा लाईट क्रीम कलर पसंद किया. फिर पर्दे भी उसी रंग के बनवाये. यहाँ कोने में एक छोटी-सी लायब्रेरी बनवाई. मुज़े पढ़ने का बहुत शौक है.'

'अच्छा किया. घर तो मन को भाये ऐसा ही होना चाहिए.' वर्षा घर को देखती रही.

'तुम्हें पता है यह घर हमने बहुत ही मेहनत से बनाया था. एक-एक चीज़ मैंने पसंद की थी. शादी करके आयी तब उसके कैरियर की शुरुआत थी अभी. हम लोग किराये पर रहते थे. शुरु-शुरु में थोड़े वक्त तक एक फैमिली के साथ शेरिंग भी किया. उसे एक अच्छी जॉब मिल गई फिर सब बदलने लगा. पंचम बहुत ही मेहनती है. उसे इन्डिया में बैंग्लोर के लिए भी बहुत बड़ा ऑफर आया था. पर मैंने उसे नहीं जाने दिया. इंग्लैंड छोड़ना नहीं था. एकाध साल तक नौकरी करने के बाद उसने प्राइवेट काम करना शुरु किया. राजु ने पंचम को कॉन्ट्रेक्ट दिलाने में और बिज़नेस की शुरुआत करने में बहुत आर्थिक मदद की थी.' वर्षा भावावेश में बातें कर रही थी. साथ ही उसकी नज़र घर की एक-एक वस्तु को देख रही थी. बहुत कुछ बदल गया है. पंचम और उसने मिलकर इस घर को सजाया था. इस घर की एक-एक वस्तु पर उसका स्पर्श है... था...'

'आपका घर तो बहुत ही बड़ा है दीदी. पंचम भी बड़े घर में शिफ्ट होने के लिए कह रहे थे. मैंने ही मना किया. हमारे लिए तो यही बस है. आपने और राजुभाई ने मुझे पंचम से मिलवा दिया, मैं तो जैसे स्वर्ग में ही आ गई हूँ.'

'हाँ, पंचम बहुत ही प्रेमपूर्ण और डाउन टु अर्थ है. राजु बड़ा ड्रीमर है. बड़े-बड़े सपने देखने में, उन्हें साकार करने में उसे मजा आता है. मेरा भी बहुत ध्यान रखता है. मुझे स्विमिंग का शौक है तो अभी स्विमिंग पुल बनवा दिया. मैं जो भी माँगती हूँ तुरंत हाजिर.'

दोनों ने धीमे स्वर में बातें करते-करते डाइनिंग टेबिल तैयार किया.

'अब खाना खाने बुलायें?' श्रद्धा ने पूछा.

'चलो पूछकर देखते हैं. खाने का मूड़ है या नहीं.'

दोनों ड्राइंगरूम में आये. पंचम शांति से बैठा था. उसके खाली गिलास में राजु शैम्पेन डालने जा रहा था औऱ पंचम मना कर रहा था.

'अरे पी ना यार... इसके जैसी कोई चीज़ नहीं है. बाकी सब बकवास... लाइफ स्साली..'

'अरे रहने दो.. बहुत हुआ. तुम भी अब बस करो.' वर्षा ने राजु को रोका.

'तुम कौन हो... अरे ये तेरी वाइफ.. साले कुछ सिखाया नहीं तुने... कुछ नहीं आता... एक बस...'

'ये क्या बोल रहे हो? होश में तो हो? ' वर्षा उसके पास जाकर बैठी. श्रद्धा अभी भी खड़ी थी. पंचम ने उसका हाथ खिंचकर पास बिठाया और इशारे से चुप रहने के लिए कहा.

'पैसा... बस पैसा ही महत्व का है.... तुम्हें याद है अफ्रिका में साला हमें कोई बुलाता भी नहीं था... इंग्लैंड आये... पैसा आया तो साले सब हमारे पीछे दौड़ते हैं..' राजु थोड़ी देर वर्षा के सामने देखता रहा; 'ये तेरी बीवी... मेरे साथ रहने क्यों आयी, पता है? पैसा... ग्लैमर... ब्लडी फ....' थोड़ी देर फिर चुप बैठा. 'मेरी बीवी साली अफ्रिका में सड़ रही है.... मेरे पैसों से गुलछर्रे उड़ा रही है... पर मेरे बच्चों को कभी ये नहीं होता कि बाप को एक फोन तो करें... थोड़ी बातें करें.... थोड़ा प्यार करें... अरे झुटमुट ही सही.... पर किसको पड़ी है.... मैंने कहा भी था मेरे पास आ जाओ... पर नहीं आये... साले माँ के पल्लू से ही चिपके रहे... यहाँ मेरे पास आये होते तो लाइफ बना देता.... '

'बस करो अभी, चलो खाना खाते हैं. पंचम समझाओ इसको...' वर्षा ने राजु का हाथ पकड़ कर उठाने का प्रयास किया, पर वह खड़ा नहीं हुआ.

'पंचम दोस्त, तू इन्सान नहीं... फरिश्ता है फरिश्ता.... एंजल.... अफ्रिका में हम एक छोटी-सी खोली में रहते थे... नीचे चटाई बिछाकर सो जाते थे. तू खुद भूखा रहकर मुझे खिलाता था, याद है? तू मेरे कपड़े भी धो देता, कपड़ों को इस्त्री कर देता... कितना खयाल रखता था मेरा... और मैं गधा... क्या किया मैंने तेरे साथ.. मुझे माफ़ कर दे दोस्त.. सॉरी.. वेरी सॉरी...' राजु पंचम के पैर पड़ने गया और लड़खड़ा गया... पंचम ने उसे पकड़ लिया. राजु पंचम के गले मिलकर उसे चुमने लगा. दोनों एक-दूसरे से गलबहियां कर खड़े रहे. श्रद्धा की आँखों में आँसू आ गये. वर्षा ने श्रद्धा का हाथ पकड़ शांत रहने का इशारा किया.

'अरे पागल, ये सब क्या लेकर बैठ गया? चल खाना खाते हैं, बहुत भूख लगी है. चल. तुम लोग चलिए मैं उसे लेकर आता हूँ.' पंचम ने वर्षा और श्रद्धा से कहा.

दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे का हाथ थामे किचन में गईं.