carrector_2 in Hindi Philosophy by sk hajee books and stories PDF | किर_दार 2

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किर_दार 2

हमने पहले पार्ट मे व्यक्ति विशेष के बारे मे जाना, अब उस किरदार की बात करते है जो हम जिस समाज मे रहते है, उसमे इन्सानो,मनुष्य जाती के जो किरदार है उसे थोड़ी-बहोत मात्रा मे जानने की कोशिश करते है ।

कभी-कभी लगता जब मानव समाज इतनी बड़ी बस्तीयाँ बनाकर जब रहने को शुरूआत की तब उसकी बड़ी बस्तीयाँ बनाकर एक साथ रहने की सोच क्या थी होगी ? जब जंगलों से रहकर वह ज्यादा खुश, सुखी था या अब ज्यादा सुखी है ? अब इन्सान का लालच इतना बढ़ गया है के वह पैसे के आगे कुछ भी नही सोंचता ।

फ़िलहाल का दौर हम कोविड-19 से परेशान होकर गुजार रहे है, लाॅकडाउन के शुरूआत मे जो गरीबों को समस्याएँ उत्पन्न हुई, उसकी भरपाई तो कोई कर ही नही सकता, ऐसे ही हाल मे एक घटना सामने आई जो दिल को और व्यथित कर दिया । एक जगह का सरकारी अस्पताल है तक़रीबन 250 बेड या उससे भी और ज्यादा बडा है । खास कर सरकारी अस्पतालों मे आम आदमी के सिवाय शायद ही कोई जाता होगा । शायद लाॅकडाउन मे प्राइवेट अस्पताल बंद या सही ट्रीटमेंट नही मिलने की वजह से शायद ही कोई अच्छा-खासा कमाने वाला बंदा सरकारी अस्पतालों मे गया होगा ।
एक माह मे तक़रीबन 8- से 10 हजार कमाने वाला शख्स जोकी पिछले चार-पाँच माह से बेरोजगार है, उसके पत्नी का उस सरकारी अस्पताल मे सीजर हुआ, उसे 7-8 हजार की मेडीसिन उस सरकारी अस्पताल वालों ने बाहर से ही वाने को कहा और उस हालत मे उसने उन्होंने जैसा कहा, वैसे ही माना । ऐसे अनगिनत लोग है जो पैसों की कमी के कारण् ही सरकारी अस्पताल मे इलाज के लिए जाते है । वहाँ काम करने वाले सभी को पता होता है के यह गरिब वर्ग के लोग है, फिर सब जानते हुए भी ऐसा कारनामा ! आपको बताने का मक़सद इतना ही है के ऐसे दौर मे भी इन्सान बस पैसे कमाने की सोच रहा है, चाहे आगे वाला कितने बड़े मुष्किल दौर से क्योँ न गुजर रहा हो ।
(ऐसा नही के, पुरे सरकारी अस्पताल मे यही होता होगा, बहोत से आपके जैसे अच्छे लोग भी मौजूद है)

ऐसे हर जगह अनेक उदाहरण मिलेंगे, कोई कसूर रहे बिना आम इन्सान पिसा चला जाता है ।

जब इन्सान कम संख्या मे होते थे और पुरी तरह से(पैसा न होने के बावजुद) सुखी थे, आज के दौर के मुताबिक आत्मनिर्भर थे । तब उनकी दुसरे लोगों के लिए यही सोच रही होगी ? पता नही लालच की पैदावार कोनसे दौर मे शुरू हुई और इन्सानो मे इतनी निचता कैसे आ गई । अब इन्सान के पास भौतिक सुख के सभी साधन मौजुद है, क्या इन्सान खुश है, यह हम कह सकते है ?

जिस तरह से आज इन्सानो का अपने जातिय मतलब के लिए हर वक्त उसकी सोंच से लेकर उसके काम भी मतलबी हो गए है । बेमतलब के साथ देने वाले हमारी दुनिया मे कितने लोग बचे होंगे ? जिनको दुसरे व्यक्ति से, उसका साथ देने के लिए, कोई फायदे की जरूरत ही नही होती, मानवता को जिंदा रखने मे ऐसे लोग कितने जरूरी है, वरना पुरी दुनिया ही ऐसी मतलबी हो जाए, तो क्या हाल होगा इन्सानो का !

अगर कोई लोगों का मतलब बतलाने वाली मशीन का इजाद कर दे और उससे यह समझे के कोन कितना मतलबी है, पता नही कितना बवाल मचेगा इस दुनियाँ मे ।

कुछ इन्सानों का, सामने एक रूप और पिछे एक रूप होता है, सामने तो मिठी और फायदा पहुंचाने वाली बातें करेंगें लेकीन उसके जाते ही उसके बारे बुरा सोंचेंगे, पता नही इन्हें ऐसा कर कर कोणसा मानसिक समाधान मिलता हो, यह कोई मानसिक रोग के विशेषज्ञ ही बता सकते है । शायद यह लोग समाज को नई राह मे लेजाना नही चाहते, समाज की बुराईयों को खत्म कर एक ऐसा समाज का निर्माण हो सभी मायनों मे सही निकले ।

यही भावना अब यहाँ से निकलकर अब दो संप्रदाय,समुदायों, धर्मों के लोगों के बिच भी उत्पन्न हो रही है, सामने तो यह इतने दुसरे मजहब की इज्जत करने वाले बने रहेंगे, लेकिन बाद का कैरेक्टर् कुछ और होगा । उसको हम आगे के पार्ट मे देखेंगे, जल्द ही ...

(जारी रहेगा ...)