महामाया
सुनील चतुर्वेदी
अध्याय – अठारह
बाबाजी योग के बारे में बोल रहे थे। किसी विदेशी ने प्रश्न किया था। ‘‘योग केवल आसन और प्रणायाम तक सीमित नहीं है। यह एक पूर्ण विज्ञान है। योग अंतरिक्ष के सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्वों को पकड़कर अपने अनुकुल कार्य करने की प्रेरणा देता है।
‘‘योग अंतरिक्ष के सूक्ष्म तत्वों को कैसे पकड़ता है ?’’ विदेशी युवक ने पूछा।
‘‘ऐसा है बेटे स्काट, अंतरिक्ष में जो कुछ हो रहा है उसका शरीर से गहरा संबंध है। और जो कुछ भी हर पल शरीर में घट रहा है उसका अंतरिक्ष से गहरा संबंध है। योग शरीर के केन्द्र को अंतरिक्ष के केन्द्र से जोड़ता है। मन को चंद्रमा से। बुद्धि को बुध से। वासनाओं को जूपिटर से। बौद्धिकता को बृहस्पति से। चित्त को सूर्य से। बाह्य जगत को अंतः जगत से। जब यह शरीर और अंतरिक्ष का योग हो जाता है तो मनुष्य आत्मबोध को प्राप्त कर सकता है।
‘‘इस स्थिति को कैसे प्राप्त किया जा सकता है’’ बाबाजी के पास बैठी नवयुवती ने प्रश्न किया।
‘‘तुम्हारी जिज्ञासा उच्चकोटि की है बेटे। तुम्हे यह जानकर आश्चर्य होगा कि हिमालय वास्तव में एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला है। वहाँ इस प्रयोगशाला में सैंकड़ों गुप्त साधक सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही रूपों में अनेक प्रकार के शोध कार्य में जुटे हुए हैं।
हिमालय में हर पल प्रयोग हो रहे है। कोई सन्यासी जमीन के भीतर के भूचालों को रोकने में लगा है। कोई पर्वतों को एक नजर में बिखेर देने की शक्ति प्राप्त करने में जुटा है। कोई संत मुट्ठी भर पंच तत्वों को फूंक मारकर पर्वत का आकार देने के प्रयोग में रत है। तो कोई हिमालय के कुछ स्थानों पर शून्य का निर्माण करने में जुटा है। कोई अंतरिक्ष में विचरने वाली सूक्ष्म आत्माओं से सीधे संपर्क करने में व्यस्त है तो कोई अंतरिक्ष में व्याप्त शब्दों को पकड़कर उन पर शोधरत है।
बाबाजी की ओर टकटकी लगाये सभी विस्मित होकर सुन रहे थे। अखिल और अनुराधा की आँखें आश्चर्य से फटी हुई थी।
‘‘बाबाजी क्या इस प्रयोगशाला को देखा जा सकता है?’’ एक विदेशी युवती ने प्रश्न किया।
‘‘बेटी एना तुम जब चाहो मैं तुम्हे दिखा सकता हूँ’’
‘‘व्हाउ... वंडरफूल... इट्स एक्साइटिंग’’
‘‘बेटी, तुम लोगों के लिये यह एक्साइटिंग हो सकता है। लेकिन भारतीय साधु सन्यासियों के लिये यह साधारण सी बात हैं।’’
‘‘बाबाजी यह प्रयोगशाला क्या हिमालय में कहाँ है? अनुराधा ने प्रश्न किया।
‘‘नहीं बेटे, पूरा हिमालय प्रयोगशाला है। असल में साधु सन्यासियों को लेकर आम लोगों की एक ही धारणा है। पूजा-पाठ, वेराग्य, भगवा कपड़े, प्रवचन, चमत्कार, पर असल में यह साधु इतना भर नहीं है। इसमें लोगों के समझने का दोष भी नहीं है। साधु ऊपर से ऐसा ही दिखायी देता है।
‘‘पर बाबाजी, मैंने तीन चार बार हिमालय की यात्रा की है। मुझे ऐसा प्रयोग कहीं दिखायी नहीं दिया’’ अखिल ने संशय प्रकट किया।
‘‘तुम्हारे दिमाग में प्रयोगशाला को लेकर फिजिक्स, कैमेस्ट्री लेब की छवि बनी हुई है। यदि तुम ऐसी प्रयोगशाला हिमालय में ढूंढोगे तो नहीं मिलेगी। असल में कोई भी योगी या संत ध्यान की उच्चावस्था में ही इन प्रयोगों को करता है। ध्यान की उच्चावस्था ही योगी की प्रयोगशाला है’’ बाबाजी ने जवाब दिया।
‘‘भारतीय अध्यात्म तो पूरा विज्ञान है!’’ तीसरी विदेशी युवती ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा।
‘‘हाँ तुम ठीक कह रही हो भारतीय अध्यात्म एडवांस साइंस है। नासा में छोटे-छोटे प्रयोगों के लिये बड़े और महंगे उपकरणों की जरूरत पड़ती है। लेकिन हिमालय में बैठा योगी समाधि में पहुँचकर बिना किसी उपकरण के इन सारे रहस्यों को खोल रहा है। सूक्ष्म से सूक्ष्म विज्ञान को जान रहा है। मैंने खुद ऐसे कई रहस्यों को जाना है। मैंने अंतरिक्ष और पृथ्वी के गर्भ में छुपे अनेक रहस्यों के सत्य को समझा है। पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा को लेकर ऐसे-ऐसे रहस्य मेरे सामने उद्घाटित हुए हैं जिन्हे जानने में अभी नासा को कम से कम पचास साल लगेंगे। कहते-कहते बाबाजी अचानक चुप हो गये। नजरे स्थिर हो गई। जैसे वो शून्य में कुछ तलाश कर रहे हो... किसी रहस्य को भासित होते देख रहे हों।
संत निवास के इस कमरे में सन्नाटा था। सब आश्चर्य में डूबे थे। नवयुवती ने आलथी-पालथी में बैठे-बैठे ही अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रखा। अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा किया और धीरे से दोनों आँखें बंद कर ली। वानखेड़े जी ने माला फिराते-फिराते ही दोनों हाथ सिर पर ले जाकर जोड़े। सिर को थोड़ा नीचे झुकाया और उच्च स्वर में बुदबुदाये... ‘जय गुरूदेव’। चारों विदेशियों ने भी हाथ जोड़कर सिर झुकाया। नवयुवती अभी भी ध्यानावस्था में बैठी थी।
शून्य से दृष्टि हटाकर बाबाजी कुछ बोलने ही जा रहे थे तभी संतु महाराज ने तेजी से कमरे में प्रवेश किया और एक पर्चा बाबाजी दिया। बाबाजी ने पर्चा पढ़ा और अखिल को थमा दिया। इसी बीच बाबाजी ने विदेशी भक्तों से कहा कि वे लोग अपने-अपने कमरों में जाकर आराम करें। शाम को फिर मुलाकात होगी। विदेशी भक्त बाबाजी को प्रणाम कर उठ खड़े हुए।
नवयुवती के माता-पिता बाबाजी से बात करना चाहते थे। पर बाबाजी ने उन्हें भी शाम को आने का कहा। नवयुवती ने बाबाजी को प्रणाम किया। बाबाजी ने बड़े ही लाड़ से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा ‘‘बेटे सारिका अपने अंदर की आवाज सुनो और तैयारी करो’’ सारिका कुछ पल के लिये ठिठकी और फिर बिना कुछ बोले बाहर चल दी।
अखिल पर्चे को पढ़कर गंभीर हो गया। उसने पर्चा अनुराधा की ओर बढ़ा दिया।
पर्चे वाली बात तेजी से बाहर फैल गयी थी। थोड़ी ही देर में बाबाजी की स्थायी मंडली के सभी लोग बाबाजी के कमरे में एकत्रित हो गये। सबके अंदर उत्तेजना थी, बाबाजी शांत थे।
‘‘बाबाजी, हमें इनसे सीधे-सीधे बात करनी चाहिये’’ अखिल ने सुझाव दिया।
बाबाजी बोलते इससे पहले पठारे बोल पड़ा ‘‘अखिल भैया ये लातों के भूत है बातों से नहीं मानने वाले’’
‘‘पर ये लोग हैं कौन’’ मोघे जी ने पठारे को शांत करते हुए पूछा।
‘‘अरे वही राधागंज वाला... उस हरामी को मैंने सुबह यहां घूमते हुए देखा था’’
‘‘कौन राधागंज वाला...’’ मोघे जी समझ नहीं पा रहे थे।
‘‘अरे वो ही जो काशाराम बापू की कथा के टाइम पे आश्रम में बनी आयुर्वेदिक दवाईयों के बारे में जानकारी ले रहा था। बैच नम्बर क्यों नहीं है...? इस पर क्यों नहीं लिखा है कि दवाई में कौन सी जड़ी बूटियां मिली है...? पठारे ने अपनी बात को विस्तार दिया।
‘‘अरे अच्छा...! मोघे जी अब पहचान गये थे।
‘‘उसने कानून का हवाला देकर प्रशासन से समाधि रोकने की माँग की है। इसलिये हमें सीधे उनसे बात करनी चाहिये।’’ अनुराधा ने शांत रहते हुए कहा।
‘‘समाधि धार्मिक मामला है बेटे.. लाखों लोगों की श्रद्धा का प्रश्न है। यदि लोगों की श्रद्धा के बीच कानून आता है तो लोगों को ऐसे कानून का विरोध करना चाहिए।’’ कहते हुए बाबाजी उठ खड़े हुए और यज्ञ मण्डप की ओर चल दिये। बाबाजी ने अनुराधा और अखिल को भी अपने साथ ले लिया।
बाबाजी के जाते ही वानखेड़े जी ने कमान संभाली।
‘‘हमको तो लगता है कि ये लीला भी इनकी ही रची हुई है। ये लीलाधारी हैं। फिर भी भैया हमें सब चीजें सांसारिक रीति-नीति से देखना पड़ेगी। ये पर्चा समाधि के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे हिन्दु धर्म के खिलाफ है। पठारे तुम तो कुछ लड़कों को समाधि स्थल पर लगा दो। बाकि तैयारियाँ भी करो।
पठारे ने ऐसे धर्म विरोधियों को लाठी की भाषा में समझाने का अपना संकल्प फिर दोहराया।
उसने तत्काल मोबाइल से सूचना देकर पच्चीस-तीस बाउंसर (पहलवान) मंदिर परिसर में बुलवा लिये। ये लोग दो-दो, चार-चार की टोली बनाकर मंदिर परिसर में चारों और फैल गये। बाबाजी की स्थायी मंडली ने समाधि स्थल के करीब डेरा डाल दिया था।
कुछ लोग धर्म का विरोध कर रहे हैं। ये बात महिलाओं के खेमें में भी फैल गई। कानाफुसी का दौर शुरू हो गया।
‘‘देखो कैसा जमाना आ गया है’’ एक प्रोढ़ा ने कहा।
‘‘कलजुग है... कलजुग’’ दूसरी बोली।
‘‘कलजुग नहीं घोर कलजुग कहो सुमित्रा’’ तीसरी ने बात को आगे बढ़ाया।
‘‘कैसे लोग हैं। धरम-करम का विरोध करते हैं’’ चैथी चुप नहीं रह सकी।
‘‘धरम का विरोध कौन सी नयी बात है काकी’’ दूसरी ने कहा।
‘‘सही कह रही हो कौन से युग में धरम का विरोध नहीं हुआ’’ तीसरी ने दूसरी का समर्थन किया।
‘‘पर हम तो कहते हैं कि बाबाजी के अंदर सत है उनके आगे कोई नहीं टिक पायेगा’’ चैथी ने विश्वास से कहा।
‘‘वो तो साक्षात् शिव है। विष्णु जी नहीं कह रहे थे उस दिन’’ तीसरी ने अपना मत दिया।
‘‘अभी बाबाजी की तीसरी आँख खुल गई तो पर्चे और पर्चे वाले सब भस्म’’ एक बुढ़िया ने दोनों हाथ फैलाते हुए अपनी बात इस तरह कही कि सब हँस दी।
पुरूष एकमत होकर धर्म के लिये लड़ने मरने वाली किसी सेना की तरह सक्रिय हो गए । टोलियों में बंटे लोग यहाँ-वहाँ फैलकर चर्चा कर रहे थे।
‘‘सुना है, साले मंदिर के सामने ही मंच लगाकर विरोध करने वाले हैं’’
’‘‘सारा विरोध फुस्स हो जाने वाला है। सारी प्लानिंग हो गई है।’’
‘‘क्या प्लानिंग हुई’’
‘‘शाम को चार बजे पत्रकार वार्ता बुलाई है’’
‘‘लगता है उस दिल्ली वाले लौंडे का दिमाग है ये’’
‘‘कौन दिल्ली वाला’’
‘‘अरे वही जो हमेशा उस छमिया के साथ चाय की गुमटी पर बैठा रहता है’’
‘‘बस समझो हो गया काम, दिल्ली वालों के आगे नौगाँव वाले कहाँ लगेंगे।’’
‘‘सुना है किशोरीलाल जी अखबार वालों को विज्ञापन भी दे रहे हैं।’’
‘‘फिर तो उस पर्चे को कोई अखबार वाला सूंघेगा भी नहीं’’
‘‘अपने किशोरीलाल ने शायद किसी मंत्री से भी बात कर ली है। समाधि वाले दिन मंत्री जी खुद आ रहे हैं’’
‘‘फिर तो प्रशासन बाबाजी के आगे दूम हिलाने लगेगा’’
‘‘यदि यह लोग इस सबके बाद भी नहीं माने तो’’
‘‘जूता है हमारे पास हाथ-पाँव तोड़ देंगे हरामियों के’’
‘‘मैं तो कहता हूँ आज ही एक दो के हाथ पांव तोड़ देते हैं। फिर कायका मंच और कायका विरोध’’
उधर दूसरे समूह में एक कह रहा था ‘‘ये पर्चा निकालने वाले लोग बुद्धिजीवी संगठन के हैं। मैं जानता हूँ इन लोगों को।
‘‘बुद्धिजीवी होने का मतलब ये तो नहीं कि अपने ही धर्म का विरोध करो’’ दूसरे ने तल्ख स्वर में कहा।
‘‘इसमें धर्म के विरोध की क्या बात है’’ पहले ने समझाने की कोशिश की।
‘‘ये हिन्दू धर्म का विरोध नहीं तो क्या है?’’ तीसरे ने आपत्ति दर्ज कराई।
ध्यान से इस पर्चे को पढ़ो, इसमें धर्म का विरोध कहाँ है? उन्होंने लिखा है कि नौ फुट लंबे, नौ फुट चैड़े और नौ फुट गहरे कच्चे गड्डे में इतनी आॅक्सीजन रहती है कि एक व्यक्ति एक सौ चालीस घंटे तक इस गड्डे में जीवित रह सकता है। थोड़े से अभ्यास से प्राकृतिक क्रियाओं को भी बहत्तर घंटे तक आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है’’ पहले ने तर्क प्रस्तुत किया।
‘‘अब तुम तो विज्ञान के नाम पर कल यह भी कहने लगोगे कि शास्त्र झूठे है और धर्म पाखंड है’’ दूसरा धीरे-धीरे उत्तेजित हो रहा था।
‘‘ये सब बातें इनकी समझ में नहीं आयेगी। इन भाई साहब को ही गड्ढे में उतार देते हैं सीधा सा ईलाज है।’’ तीसरे ने सुझाव दिया।
‘‘हाँ, इनको किस बात का डर। इनके पास तो इनका विज्ञान है’’चौथे ने तीसरे का समर्थन किया।
‘‘तुम मुझे उन लोगों के साथ क्यों जोड़ रहे हो? मैं कोई उनका साथी थोड़े ही हूँ।’’ पहले ने अपना बचाव किया।
‘‘अब साथी होने में बचा ही क्या है। इतनी देर से तरफदारी तो तुम उनकी ही कर रहे हो’’ तीसरे ने दूसरे का समर्थन किया।
‘‘ये तो एक हिन्दु धर्म है। जिसके बारे में जिसकी जो इच्छा हो कह देता है। दूसरे धर्मों के बारे में जरा सा भी बोलोगे तो सारी होशियारी पीछे के रास्ते से अंदर घुस जायेगी’’ दूसरा अब उत्तेजित हो चुका था।
‘‘मेरा कहने का मतलब वो नहीं था, आप लोग मुझे गलत समझ रहे हो’’ पहले ने पूर्ण बचाव की मुद्रा में कहा।
‘‘गलत-वलत कुछ नहीं जो समझ रहे हैं सही समझ रहे हैं। अब आपकी भलाई इसी मंे है कि चुपचाप बढ़ लो यहाँ से और जा के अपने उस हरामी दोस्त की माँ की... में घुस जाओ’’ दूसरा अब दादागिरी पर उतारू हो गया था।
‘‘चल बढ़ले... वरना धुलाई कार्यक्रम की शुरूआत तुझसे ही हो जायेगी... तीसरे ने बाहें चढ़ाते हुए कहा।
पहला अपने खिलाफ गरमाते माहौल को देखते हुए चुपचाप वहाँ से बाहर हो गया।
क्रमश..