Ardaas in Hindi Short Stories by डिम्पल गौड़ books and stories PDF | अरदास

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अरदास


गंगा घाट की सीढ़ियों पर बैठी नयनतारा जीवन के विगत पलोंको आँखों में भर बहती गंगा की धारा को शून्य सी होकर निहार रही थी ।
सीढ़ियों पर उतरते चढ़ते लोगों के मन में उमड़ते गंगा मैया के लिए आस्था के भाव उसे आल्हाद किए जाते थे । इन्हीं श्रद्धालुओं के दान पुण्य से ही तो उसका जीवन यापन चलता है । यदि गंगा मैया का आसरा न मिलता तो कहाँ जाती वह । इसके किनारे बैठ जीवन के बीस वर्ष कब गुजर गए मालूम न चला । श्वेत सूती साड़ी के पल्लू को केश विहीन मस्तक पर भलीभांति ओढ़ वह अपने स्थान से खिसकते हुए,चार-पाँच सीढ़ियां उतर गंगा मैया के एकदम समीप जा पहुँची । दो चार डुबकी लगाने के पश्चात अपनी अंजुलि में गंगाजल भरा और उसे उगते भास्कर को समर्पित कर नतमस्तक हो,प्रणाम कर, गंगा मैया के समक्ष हाथ जोड़ कहने लगी--
"हे गंगा मैया, इस जीवन से प्राप्त दुःखों की समस्त स्मृतियाँ विस्मृत कर देना चाहती हूँ । अब मोह माया रूपी संसार से विलग हो जाना चाहती हूँ । तुझ में समा जाने की अभिलाषा है अब तो "
वह गंगा मैया से नित यही प्रार्थना करती परन्तु जीवन चक्र के बंधन से मुक्ति ईश्वरीय इच्छा शक्ति पर ही निर्भर होती है। जीव को कब तक इस चक्रव्यूह में उलझे हुए रहना है यह तय करना उस सृष्टि चालक के ही हाथ है ।
एक पैर से अपाहिज नयनतारा स्नानादि कर सीढ़ियां चढ़ने लगी । सामने से सात-आठ सुहागन स्त्रियाँ सजधज कर गंगा मैया की पूजा अर्चना करने चली आ रही थीं ।
नयनतारा को लगा पूजा करने से पूर्व कुछ दान दक्षिणा करेंगीं ये सब । यही सोच उनके आगे हाथ फैला दिए ।
"क्या माँजी ! कुछ समझ नहीं है क्या तुमको ! सुहागनों के आगे आकर खड़ी हो गई एकदम से "उनमें से एक प्रौढा बोल पड़ी । वह भी पूरे श्रृंगार में थी ।
"शुभ-अशुभ इन जैसी को क्या पता जिज्जी । कुछ देकर हटाओ इसे यहाँ से ।" दूसरी ने हाथों के लटके-झटके दिखाते हुए अपनी समझ बिखेरी।
दो-चार फल और दस रुपए उसकी झोली में पटक आगे बढ़ गया महिलाओं का समूह किंतु उनकी पायलों की झंकार अब भी नीरवता में गूंज रही थी ।
अचानक एक स्त्री जिसने सोलह श्रृंगार किया हुआ था समूह में से निकल नयनतारा की तरफ आ गई । आते ही चरण स्पर्श करते हुए बोली- "आशीष देना माई अगले वर्ष गंगा घाट पर अपनी संतान के साथ आऊँ ।"
"बच्चा नहीं है तुम्हारे " नयनतारा ने सिकुड़ी आँखें फैलाते हुए पूछा ।
"नहीं माई । पाँच वर्ष हो गए शादी हुए मगर..."
"नयनतारा ने हाथ ऊँचे करते हुए आशीष दिया-गंगा मैया की कृपा से सूनी गोद जल्दी भर जाएगी बिटिया "
वह उसे प्रणाम करते हुए खुशी-खुशी अपनी साथिनों के साथ जा मिली ।
अब घाट की सीढियां समाप्त हो चुकी थी । समतल सतह पर लंगड़ाते हुए नयनतारा बरगद के वृक्ष के नीचे आ पहुँची। इसके चारों ओर बना विशाल चबूतरा ही उसका एकमात्र ठिकाना था ।
वृक्ष के ठीक सामने कन्नू की चाय की एक छोटी सी दुकान थी । उसे देखते ही कन्नू चाय ले आया ।

"दादी आज तो बहुत बखत लगा दिया स्नान करने में ।"

"हाँ रे बिटुवा, मैया से आज कुछ ज्यादा ही बातचीत हो गयी।"

" अच्छा दादी ! लो चाय पी लो "

नयनतारा ने गिलास हाथ में पकड़ते हुए मुँह के लगाया ही था कि वह हाथों से छूट नीचे गिर पड़ा ।
नयनतारा गिलास छूटते के साथ ही बेहोश हो चबूतरे पर गिर पड़ी ।
कन्नू ने बहुत हिलाया-डुलाया ! कई बार आवाज़ें भी लगाई! परंतु वह अचेत ही रही । लग रहा था जैसे गंगा मैया ने नयनतारा की अरदास सुन ली हो ।