kaash me samaj pata - 2 in Hindi Moral Stories by Mahek Parwani books and stories PDF | काश ! में समज पाता - 2

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काश ! में समज पाता - 2

बस ये बात जैसे प्रणव कि माताजी को कांटे कि तरह चुभ सी गई । दिन-रात एक ही चिंता उसे सता रही थी , अगर बेटी आई तो इस घर का वंश आगे कैसे बढ़ेगा ? उन्होंने प्रणव के पिताजी , प्रणव और प्रेरणा से यह बात की , सबने कहा ," बेटा-बेटी एक सम्मान है ।" प्रणव के माताजी की रातो की नींद उड़ गई थी । चिंता की वजह से उनकी तबियत ख़राब रहने लगी , सबने बहोत समझाया , किन्तु वहेम की कोई दवाई नहीं होती । एक दिन अचानक से दिल में भारी दर्द उठा , डॉक्टर ने पूछा," कोई परेशानी ?" हालात को नज़र में रखते हुए उन्हें ठीक करने का एक ही रास्ता था , प्रेरणा के गर्भ में पल रहे बच्चे का चेक उप । प्रेरणा के पति और ससुर इसके खिलाफ थे पर मजबूर थे ।
प्रणव अपनी माँ को ठीक करने के लिए प्रेरणा से चेक अप कराने की विनंती कर रहा था । प्रेरणा के पेरो तले जमीं खिसक गयी , आखिर अब वो भी एक माँ थी । बस प्रणव को देखती रही , आखिर वो ये कैसे कह सकता था ! पर वो मजबूर था ।
पिता बनने का इंतज़ार उसे भी था । प्रणव प्रेरणाका हाथ थामते हुए ,ईश्वर को प्रार्थना करते हुए डॉक्टर के पास जाता है , चेक अप होता है । बस रिपोर्ट का इंतज़ार था । रिपोर्ट्स से पता चला की प्रेरणा के गर्भ में पल रही नन्ही सी जान , बेबी गर्ल है । ऐसा लगा जैसे कोई बिजली सी गिर गई । प्रणव और प्रेरणा के दिल में एक तूफान पहले से चल रहा था की बहार भी मौसम का रुख बदलने लगा । प्रणव ," हे भगवान ! तू आज कोनसा खेल, खेल रहा है ? किस दोराहे पे ला कर खड़ा कर दिया है ?" डॉक्टर बहार गया है , यह कहकर थोड़े दिन तक बात छुपाये रखी , पर आखिर कब तक? वक़्त का मिज़ाज़ देख कर घर के सभी सदस्यों ने माँ को समझाने की बहोत कोशिश की , लेकिन माँ एक न मानी। प्रेरणा की रिपोर्ट सुनते ही माँ को दिल का दोहरा पड़ा ।
प्रणव मंदिर जाकर ईश्वर से पूछता है ," माँ ये पाप में कैसे करू ?" प्रेरणा ,"एक बेटी होकर में अपनी ही बेटी को नहीं मार सकती ।" प्रणव तो पूरी तरह से टूट चूका था , जैसे प्रेरणा से अपनी माँ की जिंदगी की भीख मांग रहा था, पर होनी को कौन टाल सकता था ? ऐसा लग रहा था की , घर की सुख शांति को किसी की नज़र लग गई । प्रणव ," प्रेरणा बच्चा तो दूसरा भी आ जाएगा पर एक बार माँ को कुछ हो गया तो में खुद को माफ़ नहीं कर पाउँगा।" कहते हुए रो पड़ता है । प्रेरणा मजबूर होकर एबॉर्शन कराती है, सिर्फ घर की खुशियों के खातिर इतना बड़ा बलिदान ! प्रणव, " प्रेरणा, आई ऍम सॉरी, में तुम्हारा ये क़र्ज़ कभी न उतार सकूंगा।" प्रेरणा ," बस तुम मेरे साथ रहना ।" अब प्रेरणा बड़ी उदास रहती थी , प्रणव भी प्रेरणा को देखतेही उदास हो जाता था , न घर में मन लगता था न ऑफिस में । कुछ महीने बाद प्रेरणा फिर से एक बार खुश खबरी सुनाती है हीचकिचाहट के साथ ...........