Bhadukada - 46 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 46

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भदूकड़ा - 46

एक गहरी राहत की सांस ली सुमित्रा जी ने। जानकी को कोई बीमारी न निकल आये, वे यही मना रही थीं बस। अगर उसने अपने बचाव के लिए बब्बा जू की सवारी का ड्रामा भी किया, तो क्या ग़लत किया? अपनी सुरक्षा के लिए की गई हत्या को भी तो अपराध नहीं माना जाता। कुंती के जुल्मोसितम से बचने के लिए 17-18 साल की कोई लड़की, और कर भी क्या सकती थी? गाँवों में सासों के अत्याचार से पीड़ित पता नहीं कितनी लड़कियों को इसी प्रकार या तो देवी आने लगती हैं या बब्बा जू। कई तो बाक़ायदा पागल होने का अभिनय भी करने लगती हैं जो कई बार उनके पक्ष में सही नहीं होता। लेकिन देवी जी या बब्बा जू के आने पर लड़की सुखी हो जाती है। ग्रामीण परिवेश में वैसे भी इन दोनों कुलदेवताओं को ग्रामदेवता का दर्ज़ा मिला हुआ है, तो गांव के लोग, ये देवी देवता जिसके भी सिर पर आते हैं, उस व्यक्ति का अतिरिक्त सम्मान करने लगते हैं। जबकि पागल व्यक्ति केवल दुत्कार का अधिकारी होता है। इस लिहाज से जानकी ने सही ऑप्शन चुना था।
" छोटी अम्मा, तुमाई सौं, ऐसो करबे के पीछें हमाई कछु बुरई मंसा न हती। हम तौ बस अम्मा सें बचे चाउत ते और अम्मा पापा खों दई जा रईं गारियन सें उनै बचाओ चाह रय ते। तुमे कसम है छोटी अम्मा, अम्मा सें सिकायत न लगाइयो। वैसे हम जानत हैं कि आप ऐसी हौई नईं। तबई तौ आप खों सब बात सांसी सांसी बता दई हमने।"
"तुम निश्चिंत रहो, कुंती से कोई जिक्र नहीं होगा इस बात का। न कुंती से, न किसी और से।"
सुमित्रा जी का इतना कहना काफी था, जानकी के लिए। ये अलग बात है, कि सुमित्रा ये आश्वासन न भी देती, तब भी उन्हें करना यही था। चुगलखोरी की तो आदत ही नहीं उनकी।
दो दिन किशोर और जानकी ग्वालियर रुकने के बाद वापस गांव चले गए थे। डॉक्टर ने कहा था कि जानकी को कोई मानसिक तनाव न हो पाए, इसका पूरा ख़याल रखना है। ये बात गांव पहुंच के किशोर ने कुंती को समझा दी थी। कुंती भी दो बार जानकी का रौद्र रूप देख चुकी थी तो उसने बेहतरी इसी में समझी कि जानकी को कुछ भी उल्टा सीधा न बोला जाए। इसी बीच किशोर ने जानकी का दसवीं का फॉर्म भरवा दिया था। नौकरी और पढाई का महत्व वो जानता था। जनता तो ये भी था, कि कुंती की शांति बहुत दिनों की नहीं है तो बेहतर यही होगा कि कम से कम बारहवीं करके जानकी बीटीसी कर ले, और नौकरी करने लगे तो कम से कम पांच छह घण्टे घर से बाहर रहेगी। बीए करते करते किशोर की भी शिक्षा विभाग में नियुक्ति हो गयी थी। छोटे प्रशांत का भी पॉलिटेक्निक का डिप्लोमा पूरा हो गया था और उसने दो तीन प्रतियोगी परीक्षाएं भी दी थीं।
कुंती जानती थी कि छोटे प्रशांत का चयन कहीं न कहीं हो ही जायेगा, तो क्यों न उसकी भी शादी निपटा ही दी जाए! नौकरी करने लगेगा, तो बाहर की हवा लग जायेगी तब कहीं अपनी पसंद न थोपने लगे। वैसे भी छोटा किशोर की तरह न सीधा था, न आज्ञाकारी।
क्रमशः