Ye Dil Pagla kahin ka - 6 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | ये दिल पगला कहीं का - 6

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ये दिल पगला कहीं का - 6

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-6

देवी को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। आदित्य और उसके पिता खेमचन्द निर्दोष सिध्द होकर सकुशल घर लौट आये। तब राजकुमार एक वर्ष का था। तभी से दोनों पिता-पुत्र मिलकर राजकुमार की परवरिश कर रहे थे।

यह सब जानते हुये भी कविता राजकुमार की मां बनने को तैयार थी। शनिवार को अर्ध अवकाश के दिन निर्धारित समय से आदित्य घर आ पहूंचा। घर पर पुर्व से कविता उपस्थित थी। आज कविता का अवकाश था सो वह राजकुमार से मिलने आदित्य के घर आ गयी। खेमचन्द ने आदित्य के मुंह से कविता के विषय में सुना था। यदि आदित्य रजामंद होवे तब वे कविता को अपनी बहु बनाने के लिए संघर्ष तैयार थे। खेमचन्द की अभिस्वीकृती पाकर कविता उत्साहित थी। वह दुसरा पढ़ाव पार कर चूकी थी। पहला पढ़ाव तो राजकुमार को अपना बनाकर वह पुर्व में ही पार कर चूकी थी। अब तीसरा और अंतिम पढ़ाव आदित्य के मुख से उसके लिए प्रेम की स्वीकृति की प्रतिक्षा थी। मन में आदित्य भी कविता को चाहने लगा था। कहने मात्र में आदित्य संकोच कर रहा था।

रविवार के दिन दीपिका चन्द्रा शिरीष के मकान की ओर से निकली। उसने शिरीष से मुलाकात का विचार कर उसके घर के सामने कार रोक दी। शिरीष के माता-पिता ने दीपिका की आगवानी की। उन दोनों के मिलनसार प्रवृती के चिरपरिचित व्यवहार से दीपिका प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकी। शिरीष घर में नहीं था। वह किसी कार्य से बाज़ार गया था। शिरीष के पिता नानुराम और माता कांता ने शिरीष के विषय में चर्चा आरंभ कर दी।

"शिरीष आरंभ से संयमित जीवन जीने का पक्षधर रहा है। उसे प्रकृति ने स्वीकार्यता का विशेष गुण दिया है।" नानुराम बोल पड़े।

"छद्म वेश बनाकर किसी को धोखा देने के विरूद्ध शिरीष सत्य पर अडिग रहते हुये यथास्थिति प्रकट करने में अधिक विश्वास रखता है। जो भूमिका निर्वहन का उसे दायित्व अब तक मिला है उसका अक्षरश: पालन करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी।" कांता देवी बोली।

"पांच वर्ष पुर्व मैंने शीरीष को विवाह हेतु कहा था। तब वह मुझसे कहने लगा कि जब तक अपनी स्वयं की कमाई से घर नहीं बना लेता तब तक विवाह नहीं करेगा।" नानुराम बोल रहे थे।

घर की साज-सज्जा से लेकर रसोईघर तक में शिरीष का हस्तक्षेप था। परिवार की सभी आवश्यकताओं को प्राथमिकता से पुर्ण करने मे शीरीष समर्थ था। दीपिका प्रसन्न थी। उसने शिरीष के माता-पिता के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा। वह शीरीष से विवाह करना चाहती थी। नानुराम और कांता देवी इस प्रस्ताव पर प्रसन्न हुये बिना न रह सके। किन्तु शिरीष से आयु में दस वर्ष अधिक और तलाकशुदा दीपिका को बहु के रूप में स्वीकार करने में कुछ संकोच अवश्य कर रहे थे। शीरीष घर लौटा। नानुराम ने दीपिका से सौजन्य भेंटवार्ता का विस्तृत ब्यौरा कह सुनाया। शिरीष शांत स्वभाव से सबकुछ सुनता रहा।

"मुझे दीपिका से विवाह करने में कोई परेशानी नहीं है। यदि आप लोग सहमती देवे तो हम दोनों ग्रहस्थ जीवन आरंभ कर सकते है!" शिरीष ने कहा।

विचारों की उथल-पुथल में अंततः नानुराम और कांता देवी ने अपने बेटे के निर्णय का स्वागत किया। दीपिका और शिरीष की बेमेल जोड़ी की न्यूज जिसने भी सुनी, आश्चर्य में पड़ गया। बैंक कर्मीयों के लिए तो यह प्रतिदिन की चर्चा का विषय बन गया था।

दीपिका ने ऊंची हील की सेन्डील पहना बंद कर दी। अब वह सामान्य सेन्डील पहना करती। उसका यह त्याग शिरीष के लिए था। शिरीष की ऊंचाई से ऊंची वह दिखना नहीं चाहती थी। आज दोनों का विवाह था। आदित्य अपने मित्र शिरीष के लिए प्रसन्न था। दीपिका और शिरीष दोनों साथ-साथ थे। यह देखकर आदित्य को भरोसा हो गया कि प्रेम शारीरिक बनावट अथवा ऐश्वर्य का परिणाम नहीं अपितु प्रेम, परस्पर त्याग और समर्पण की वह उन्नत पराकाष्ठा है जिसे एक नि:स्वार्थ और सत्यनिष्ठ प्रेमी ही प्राप्त कर सकता है। उसने कविता से विवाह का निश्चय कर लिया। शिरीष और दीपिका को विवाह की शुभकामनाएं देकर वह घर लौट आया। आदित्य को अब सुबह की प्रतिक्षा थी। जब वह कविता से मिलकर उसके प्रेम को स्वीकार करेगा।

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इस कहानी को खुब पसंद किया गया। अब अगली प्रेम कहानी के नायक-नायिका ओडिसा के पुरी शहर से थे। चांदनी और सुरज ने अपनी इस कहानी के माध्यम से बताया कि कभी-कभी महज आकर्षण को प्रेम समझ लिया जाता है। इसकी पहचान जरूरी है-----

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*चां* दनी सलाहकार इंजीनियर बनकर गांव आई थी। मुसाखेड़ी गांव की मुख्य सड़क प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनान्तर्गत निर्मित होना थी। पुर्व में किये गये सर्वे के आधार पर पांच किलोमीटर लम्बी सड़क निर्माण में चांदनी की सहमती से कार्य आरंभ हुआ। रोड रोलर, जेसीबी, डामर टैंक इत्यादि एक-एक कर सड़क निर्माण के सभी संसाधन गांव में आने लगे। सुरज के मकान के बगल में रिक्त स्थान पर रोड निर्माण की सामग्री रखी गई। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कर्मचारियों ने सुरज के ही घर में डेरा जमा दिया। यहां उन्हें रहने के लिए किराये से कमरें सरलता से मिल गये। सड़क निर्माण करने वाले मजदुर भी एक अन्यत्र खुले स्थान पर अपनी अस्थायी झोपड़ीयां बनाकर रहने लगे। सुरज दसवीं अध्ययनरत होकर इंजीनियर चांदनी मैडम पर मोहित था। उन्हें एक टक देखना और चांदनी के आसपास ही बने रहना सुरज को रूचिकर लगता था। गर्मियों के दिन थे। भीषण गर्मियों के दिन रोड़ पर गिट्टीयां बिछाकर सड़क को समतल किया जा रहा था। चांदनी भरी धूप में निर्माणाधीन सड़क मार्ग की लम्बाई-चौड़ाई का यथास्थिति माप ले रही थी। उसे पानी पिये अधिक समय हो चूका था। धुल धुएं के गुबार उठ रहे थे। उसने रूमाल से पसीना पोछा और सुर्य की ओर पल भर के लिए देखा। यकायक उसे चक्कर आने लगे। सिर पर हाथ रखकर वह नीचे जमीन पर गिर पड़ी। सुरज अपने घर के मुख्य द्वार पर खड़ा चांदनी को ही देख रहा था। उन्हें गश्त खाकर नीचे गिरता देख सुरज चांदनी की और भागा। अदम्य साहस का परिचय देकर सुरज ने चांदनी को अपनी बाहों में उठा लिया। वह चांदनी को अपने घर के अंदर ले आया। पीछे-पीछे अन्य सहकर्मी भी आ गये। चांदनी को बिस्तर पर लिटाकर सुरज ने कुलर की हवा उसकी ओर कर दी। उसने मेडिकल शाॅप की और दौड़ लगा दी। भरी दोपहरी में दो किलोमीटर सायकिल चलाकर वह इलेक्ट्राल और ग्लूकोज पावडर चांदनी के लिए लेकर आया। प्राथमिक चिकित्सा पाकर चांदनी सामान्य होकर अपने काम पर लौट आई। सुरज की सेवा ने चांदनी को प्रभावित कर दिया। वे दोनों अच्छे दोस्त बन गये। स्कूल से लौटने पर चांदनी सुरज की प्रतिक्षा करती हुई मिला करती। दोनों खुब गपशप किया करते। चांदनी की स्कूटी पर बैठकर सुरज संपूर्ण निमार्णाधीन सड़क का मुआयना करता। चांदनी उसे सड़क निर्माण संबंधी सभी जानकारियां दिया करती। सुरज स्कूटी पर चांदनी की कमर में हाथ डालकर बैठता। इससे चांदनी को आपत्ति न थी। सुरज आयु में चांदनी से दस वर्ष कम था इसलिए किसी को संदेह भी न हुआ। सुरज चांदनी की सुन्दरता के आकर्षण से अभिभूत था तो वहीं चांदनी को सुरज के रूप में एक अच्छा दोस्त मिल गया था। एक दिन चांदनी सुबह-सुबह सड़क निर्माण कार्य देखने मुसाखेड़ी आ पहूंची। सड़क मार्ग से कुछ दुरी पर स्थित एक घर के द्वार पर कोई महिला खड़ी थी। वह अपने सम्मुख पीठकर नीचे बैठे किसी बुजुर्ग को अपने बायें पैर से लात मार रही थी। चांदनी को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। तभी सुरज चांदनी के पास आया। चांदनी की हैरत भांपकर वह बोला-" यह महिला की जीभ काले रंग की है। जिसे गांव में पग-पायलियां कहा जाता है। जिसकी भी पीठ में दर्द रहता है प्रातःकाल इस महिला के द्वार पर आकर बैठ जाता है। यह महिला उसकी पीठ पर लात मारती है जिससे पीड़ित का पीठ दर्द समाप्त हो जाता है।" सुरज की बातों ने चांदनी को विचार मग्न कर दिया। सुरज ने चांदनी को यह भी बताया की गांव में मंत्रोच्चारण से सिरदर्द और सर्प दंश का विष उतारने वाले लोग भी है, जो वर्षों से यह कार्य कर रहे है। टाइफाइड नाम के रोग को भगाने के लिए दुध डेयरी के संचालक दयाराम काका आयुर्वेदिक दवाई तीन दिनों की पुड़िया बनाकर देते है। जिनके सेवन से रोगियों को लाभ मिलता है। यह सब जानकारी चांदनी के लिए एकदम नई थी। सो उसे यह रूचिकर लगी। सुरज ने टीवी सीरियल में देखा कि अपनी आयु से कम नायक से नायिका प्रेम करने लगती है।आगे चलकर दोनों हंसी-खुशी प्रेमानंद से जीवन का आनंद उठाते है। सीरीयल के काल्पनिक कथानक का सुरज पर गहरा असर पड़ा। उसने एक दिन चांदनी को प्रेम प्रस्ताव दे दिया।

"ये नहीं हो सकता सुरज! तुम मुझसे बहुत छोटे हो। अभी तुम्हारी पढ़ने-लिखने की उम्र है।" चांदनी ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया।

मगर सुरज कहां मानने वाला था। लड़कपन का आकर्षण वह प्यार समझ बैठा था। चांदनी की न सुनकर वह विचलित हो गया। उसे हर किमत पर चांदनी अपने लिए चाहिए थी। सुरज ने पुरा घर सिर पर उठा लिया। उसका पागलपन बढ़ता ही जा रहा था। पढ़ाई में वह पिछड़ में चुका था। सुरज की मां आशा देवी ने चांदनी से इस संबंध में बात की। सड़क निर्माण अंतिम समय पर था। यदि चांदनी यहां से चली गई तब गुस्सैल सुरज कोई गलत कदम न उठा ले? चांदनी ने इस विषय पर विस्तार से मनन किया। वह आत्म ग्लानि से भर उठी। उसने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। सुरज को अपने नजदीक आने, स्वंय को छुने से चांदनी ने कभी टोका नहीं। इसी कारण किशोर आयु में सुरज पर मद का नशा सिर चढ़कर बोल रहा था। उसने चाइल्ड साईकोलाॅजी का अध्ययन किया। अपने पुर्व काॅलेज प्रोफेसर्स से इस संबंध में सहायता मांगी। कुछ दिनों के बाद चांदनी को पता चला की सुरज ने विषपान कर लिया है। उसे हाॅस्पीटल में भर्ती किया गया है। जहां डाक्टर्स ने उसे खतरे से बाहर बताया है। चांदनी हाॅस्पीटल में जाकर सुरज से मिली। चांदनी को अपने सम्मुख देखकर वह खुशी से फुल उठा। सुरज बेड से उठा और उठकर चांदनी से लिपट गया। चांदनी ने उसे सहानुभूति से स्नेह किया। चांदनी का स्नेह पाकर वह जल्दी ही ठीक होकर घर लौट आया। चांदनी निरंतर उससे मिलती रही। एक दिन चांदनी सुरज से मिलने उसके घर आई। सुरज के कुछ दोस्त भी वहा सुरज से मिलने आये थे। उन सबक क्रिकेट खेलने की योजना थी। सुरज के हाथ में बल्ला था जिसे वह हवा में स्टोक मारने का अभ्यास कर रहा था। चांदनी ने उसके दोस्तों को बताया कि सुरज और वह जल्दी ही शादी करने वाले है। सभी दोस्त चौंक पढ़े।

"हां यह सच है।" सुरज ने सहमती दी।

चांदनी ने सुरज के दोस्तों से कहा- "अब आप लोग यहां मत आया करो। सुरज अब से स्कुल नहीं जायेगा।" चांदनी बोली।

"क्यों?" सुरज के दोस्त राहुल ने पुछा।

"क्योंकी अब से सुरज काम पर जायेगा। शादी के बाद इसे रूपये तो कमाना होगा न? वर्ना मुझे खिलायेगा क्या? कल को हमारे बच्चें होंगे जिनके पालन-पोषण के लिए और भी अधिक रूपयों की आवश्यकता होगी। आगे चलकर सुरज को दिन-रात मेहनत करनी होगी?" चांदनी ने कहा।

सुरज के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी।

"अब तुम लोग अपनी क्रिकेट टीम का नया कप्तान ढूंढ लो। क्योंकि सुरज अब से तुम्हारे साथ क्रिकेट भी नहीं खेलेगा।" कहते हुये चांदनी ने सुरज के हाथों से बल्ला छुड़ाकर उसके दोस्त राहुल को दे दिया।

राहुल प्रसन्न था। अब से वहीं स्कूल क्रिकेट टीम का कैप्टन बनेगा। सुरज के बाद वही सबसे अच्छा खिलाड़ी है टीम में। चांदनी ने सुरज की स्कूल किताबे भी रद्दी वाले को बेचने की बात कहकर सुरज को और भी अधिक भयभीत कर दिया। वह चांदनी जो पुर्व में उसे सर्वाधिक प्रिय थी आज उसी चांदनी पर उसे अत्यधिक क्रोध आ रहा था। उसे अपना बचपन छिनता हुआ दिखाई दिया। घर-गृहस्थी के चक्कर में वह नहीं पढ़ना चाहता था। उसके दोस्त उसे ऐसे ट्रिट कर रहे थे मानों सुरज किसी अन्य दुनिया में जाने वाला हो! जहां से वह कभी लौटकर नहीं आयेगा। अगले दिन पुरे स्कूल में सुरज की शादी की खबर फैल गई। कोई उसका उपहास उड़ा रहा था तो कोई उसे सांत्वना दे रहा था। उसके मोहल्ले के दोस्त भी उससे कटने लगे थे। एक बार फिर वह विचलित हो गया। इस समस्या को उसने स्वयं ही खड़ा किया था सो उसे ही इसका हल भी निकालना था। कुछ निर्धारित कर वह अपनी मां के पास आया।

"मैं अपनी उम्र से बड़ी लड़की से शादी नहीं करना चाहता। आप चांदनी मैडम को कह देना कि वे मुझे भुल जाये।" सुरज बोला।

"तु खुद क्यों नहीं बोल देता उनसे?" आशा देवी ने पुछा।

सुरज कुछ नहीं बोला। उसने टेनिस बाॅल उठायी और क्रिकेट खेलने घर से बाहर निकल पड़ा। आशा देवी प्रसन्न हो उठी। चांदनी की योजना काम कर गई। शादी की मनाही सुनते ही सुरज के दोस्त उसे फिर से मिल गये। अब वह ध्यान लगाकर पढ़ाई करने लगा।

यह कहानी नैतिक होकर सुलझी हुई थी। जिसने समाज में पनप रही बहुत से अबोध लव स्टोरीज़ को एक संदेश दिया। अगली कहानी चेन्नई से थी।

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क्रमश..