कर्म पथ पर Chapter 46
भुवनदा की प्रेस मोहनलाल गंज के सिसेंदी गांव में थी। उनको यहाँ लोग वसुदेव गुप्ता के नाम से जानते थे। वैसे उनके लहजे में एक बंगालीपन था। इसके लिए भुवनदा ने कह रखा था कि बचपन में उनके पिता उन्हें बंगाल ले गए थे। वो सिलीगुड़ी में एक चाय बागान के मैनेजर थे। वहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। इसलिए बंगाली बोलने की आदत रही थी। पर पिछले कुछ सालों से वह अपने मूल निवास स्थान लौटने की सोंच रहे थे। उन्हें यह संपत्ति मिल गई तो यहाँ आकर रहने लगे।
वृंदा का परिचय उन्होंने अपनी विधवा भतीजी सावित्री के रूप में दिया था। उन्होंने आसपास के लोगों को बताया था कि वह कानपुर में अपने पिता के साथ रहती थी। पर उनके भाई की मृत्यु के बाद उनके साथ रहने लगी।
बंसी बंगाल से उनके साथ आया उनका सेवक था। मदन विलास के नाम से उनके साथ रह रहा था। उसका परिचय उनके सहायक के रूप में दिया गया था।
प्रिंटिंग मशीन पुरानी थी। वह हाथों द्वारा संचालित होती थी। भुवनदा ने यह प्रेस इसलिए खरीदी थी क्योंकी यहाँ छिप कर काम करना आसान था।
इस प्रिंटिंग मशीन पर बहुत कम प्रतियां ही छप पाती थीं। लेकिन कागज़ की उपलब्धता एवं वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उतनी ही पर्याप्त थीं। उनका वितरण आसानी से हो जाता था। वृंदा उन प्रतियों की प्रिंटिंग में भी सहायता प्रदान करती थी।
वृंदा की कक्षा में अभी केवल चार ही छात्र थे। चंदर और सुंदर दोनों सगे भाई थे। उनके साथ उनका चचेरा भाई नवीन भी आता था। एक लड़का था श्याम जो अत्यंत ही निर्धन परिवार से था। पर बहुत ही बुद्धिमान था।
पर वृंदा चाहती थी कि बच्चों की संख्या बढ़े। खासकर गांव की लड़कियां पढ़ने आएं। पर बहुत समझाने पर भी अभी सिर्फ इन चार लड़कों ने आना शुरू किया था। लड़कियों को शिक्षित करना तो गांव वालों को बेकार की बात लगती थी।
कक्षा अभी हिंदी वर्णमाला के ज्ञान तक ही पहुँच पाई थी। वृंदा ने सबको अपनी तख्ती पर पूरी वर्णमाला लिखकर दिखाने को कहा था। सबसे पहले श्याम अपनी तख्ती लेकर आया था। उसकी लिखावट देखकक वृंदा खुश हो गई। उसने उसकी तारीफ की।
चंदर और नवीन ने एक आध गलती ही की थी। पर सुंदर ने एक भी वर्ण सही प्रकार से नहीं लिखा था। वृंदा ने उसे डांटते हुए कहा,
"क्या बात है सुंदर ? मन नहीं लगता है तुम्हारा पढ़ाई में।"
सुंदर सर झुकाए खड़ा रहा। चंदर ने कहा,
"दीदी मैंने इसे समझाने की कोशिश की। पर यह ध्यान ही नहीं देता।"
वृंदा ने सुंदर को समझाया कि वह मन लगा कर पढ़े। कुछ समझ ना आए तो उससे या अपने भाइयों से पूँछ लें। सुंदर के बैठ जाने के बाद वृंदा सबको गिनती सिखाने लगी। वह बोलती एक तो चारों बच्चे ज़ोर से कहते एक।
आज उसने दस तक गिनती सिखाई थी। कक्षा समाप्त होने का समय हो रहा था। श्याम ने कहा,
"दीदी आपने कल कहा था कि आप बापू के जीवन का एक किस्सा सुनाएंगी। सुनाइए ना।"
वृंदा हंस कर बोली,
"तुम्हें बापू के बारे में सुनना अच्छा लगता है।"
श्याम के साथ सभी बोल पड़े,
"हाँ दीदी..."
"ठीक है....सुनाती हूँ...पर पहले..."
कहती हुई वृंदा कक्षा के बाहर गई। हाथ से पकड़ कर एक लड़की को भीतर लेकर आई। कोई चौदह पंद्रह वर्ष की उम्र होगी उसकी। पहनावे से लग रहा था कि वह विधवा है।
उस लड़की को देखते ही चंदर बोल पड़ा,
"जिज्जी तुम..."
वृंदा ने उससे पूँछा,
"तुम जानते हो इसे चंदर ?"
चंदर की जगह सुंदर बोला,
"हमारी बड़ी बहन हैं। चार साल पहले हमारे बहनोई खतम हो गए। तबसे हमारे पास हैं।"
वृंदा ने उस लड़की से पूँछा,
"नाम क्या है तुम्हारा ?"
उस लड़की ने नज़रें झुका लीं। चंदर ने कहा,
"जिज्जी का नाम लता है। जिज्जी को पढ़ने का बहुत शौक है। जो आप सिखाती हैं वह सब जिज्जी चुपचाप मुझसे सीख लेती है।"
वृंदा ने लता को देखकर कहा,
"तभी चुपचाप खिड़की से झांक कर हमारी बातें सुन रही थी।"
लता ने धीरे से सर हिला कर हाँ कहा।
"तो फिर तुम भी इन लोगों के साथ क्यों नहीं आती।"
लता वैसे ही चुपचाप खड़ी रही। वृंदा ने कहा,
"क्या हुआ कुछ बोलती क्यों नहीं ?"
चंदर ने जवाब दिया,
"जिज्जी ज्यादातर चुप ही रहती है। बस घरवालों से कभी कभी बात करती है।"
वृंदा को लता में अपनी छवि दिखाई पड़ी। एक समय वह भी ऐसे ही गुमसुम हो गई थी। एक बार फिर अपने ताऊ के लिए उसके मन में श्रद्धा जागी। ताऊ जी ने उसे जिस अंधेरे से निकाला था आज लता उसी अंधेरे में थी। अब उसकी बारी थी उसे वहाँ से निकालने की। उसने तय कर लिया था कि वह लता को इस अंधेरे से निकाल कर रहेगी।
वृंदा ने लता को बैठने को कहा। वह कक्षा के एक कोने में बैठ गई। वृंदा सबको बापू के साथ दक्षिण अफ्रीका में रेलयात्रा के दौरान घटी घटना के बारे में बताने लगी।
वृंदा ने लता के घर का दरवाजा खटखटाया। चंदर ने दरवाजा खोला।
"अरे दीदी आप...."
"चंदर मुझे तुम्हारी माँ से मिलना है।"
चंदर को समझ नहीं आया कि दीदी उसकी अम्मा से मिलने क्यों आई हैं ? कहीं उनकी शिकायत करने तो नहीं आईं। वह कुछ बोलता तब तक उसकी अम्मा ने पूँछा,
"कौन है चंदर ?"
"पाठशाला वाली दीदी आई हैं।"
सुनकर उसकी अम्मा कमला बाहर आई। उसे डांटते हुए बोली,
"मूरख है...बैठाना तो था दीदी को।"
कमला ने आंगन में खटिया डालते हुए कहा,
"आइए दीदी.... बैठिए..."
वृंदा बैठ गई। कमला ने पूँछा,
"इन लोगों ने कोई शैतानी की है दीदी।"
"नहीं मैं इनकी शिकायत करने नहीं आई।"
वृंदा ने इधर उधर देखते हुए कहा,
"लता कहाँ है ?"
कमला को समझ नहीं आया कि दीदी लता के बारे में कैसे जानती हैं। वृंदा समझ गई। उसने कहा,
"चंदर ने बताया था कि उसकी एक बड़ी बहन भी है।"
कमला कुछ दुखी होकर बोली,
"क्या कहें दीदी अभागिन है। देख सुन कर अच्छे घर में रिश्ता तय किया था। पर दो बरस में विधवा होकर लौट आई। अभी सुंदर के साथ कशीश्वर महादेव मंदिर जल चढ़ाने गई है। अब महादेव का ही सहारा है।"
कमला ने कहा,
"आप बैठो हम आपके लिए थोड़ा गुड़ पानी लेकर आते हैं।"
वृंदा ने रोकते हुए कहा,
"आप परेशान ना हों। मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
कमला बैठ गई। वृंदा ने उन्हें कल स्कूल में घटी सारी बात बताई। सुनकर वह गंभीर हो गई। वृंदा ने समझाया,
"मैं भी बाल विधवा हूँ। पर मैं पढ़ लिख गई तो अपने आप को संभाल पा रही हूँ। लता का मन लगता है पढ़ने में। उसे मेरे पास भेजा करिए।"
कमला सोंच में पड़ गई। कुछ देर बाद बोली,
"आप लोगों की बात और है दीदी। शहर के रहने वाले हो। पर यहाँ विधवा का पढ़ना अच्छा नहीं मानेंगे लोग। हम साधारण लोग हैं दीदी। जैसे तैसे गुजर कर लेते हैं। पर समाज में निकाल दिया तो कहाँ जाएंगे।"
कमला बहुत बेबस नज़र आ रही थी। तभी लता सुंदर के साथ लौट कर आई। सुंदर ने उन्हें नमस्ते किया फिर चंदर की तरफ देखा। उसे लगा शायद उसकी शिकायत करने आई हैं।
लता कुछ नहीं बोली। बस वृंदा को देख रही थी। वृंदा को वापस जाना था। उसने चलते हुए कहा,
"सोंचिएगा जो मैंने कहा।"
चलते समय उसने चंदर और सुंदर से समय पर स्कूल आने को कहा। घर से निकलने से पहले एक नज़र लता पर डाली।
वह अभी भी उसे ही देख रही थी। कुछ देर तक वृंदा भी उसे देखती रही। लता की आँखों में कुछ था।
शायद वह समझने की कोशिश कर रही थी कि दीदी यहाँ क्यों आई हैं।
या फिर बिना कहे विनती कर रही हो कि मेरे लिए कुछ करो।