लौट आना तुम
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हर बार लौटने के अपने सुख होते हैं और अपने दुख भी , उसने लौटते हुये पीछे छूटे अपने घर को देखा और देर तक अपलक देखती रही , मानो वो कह रहा हो लौट आना तुम । हर बार जब भी माँ के घर से वापस ससुराल जाने की घड़ी नज़दीक आती तो उसकी आंखे जाने क्यों उदास हो जाती , जाना तय था दूसरा कोई रास्ता भी नहीं , फिर भी उसे लगता कि काश ! काश ये घडी कुछ देर थम जाये, रूक जाये समय का चक्का और दुनिया अपनी धुरी पर स्थिर हो जाये, इन रूके हुये पलों में वो फिर से समेट ले अपनी छूटी स्मृतियों को ,अपने बचपन को , झूलों को ,सावन को ,स्कूल जाने वाली सड़क को और सड़के के किनारे फूलों से लदे पीले अमलतास को ..।पर जीवन और दुनिया के नियम शायद एक से होते हैं ...चलना और निरन्तर चलते रहना । गली तक आते आते उसने पीछे छूटे घर को एक निगाह फिर से देखा और भर लिया आँखों में उस सफेद चूने पुत्ती इमारत को, जो धीरे धीरे पीछे छूट रही थी ..। उसके पैरों ने रफ़्तार पकड़ ली थी और मन ने भी , गली ख़त्म होते ही मुख्य सड़क पर उसे किसी सवारी का इंतज़ार था सामने आती कैब को इशारे से रोक वो झट से बैठ गई भीतर । पीछे का पीछे ही छोड़ दिया ! माँ ने कुछ सामान दिया था जाते समय उसे याद आया , पर अब क्या वो तो वहीं घर में ही भूल आयी थी , अब दोबार हिम्मत नहीं उसकी घर जाने की , फिर से सारी यादों को धोहराने की ,उसने एक गहरी साँस भरी , और टैक्सी वाले से स्टेशन चलने को कहा ।आँखों पर अपना काला चश्मा लगा वो उदास आँखों से देख रही थी पीछे छूटते अमलतास को । एक बार फिर से अपने शहर को छोड़ने का समय आ गया था , हांलकि इस शहर को छोड़े उसे दशक से ऊपर हो चुका था , पर जिस शहर में आप जन्म लेते हैं जहाँ आपका बचपन बड़ा होता है ता उम्र वही शहर आपकी धमनियों में दौड़ता रहता है , तमाम उम्र किसी और शहर किसी और घर में बिताने के बाद भी आपका घर वही पहला घर ही होता है वही शहर आपका अपना शहर होता है ! घर और शहर की स्मृतियों में हमेशा माँ का घर ही होता है आप कितने सालों दूसरे शहर में भले बिता ले लेकिन असली शहर तो वही होता है ! एक सुख जो उसकी प्रतीक्षा में था और एक अपने शहर से लौटने का दुख , मन की कितनी परतें होती हैं हम चाह कर भी उन्हें कहाँ देख पाते हैं , उसने चश्मे के नीचे बह आयी पानी की लकीरों को अहिस्ता से पोछा और खिड़की से बाहर देखने लगी ,स्टेशन आने वाला था घर और शहर छूटने वाला , हर बार की तरह इस बार उसने पलट कर कुछ नही देखा कैब वाले को पैसे दिये अपना बैग उठाया और सामने दिख रही सिढीयों में तेज़ी से विलीन हो गई .........
@सीमा सिंह