shivambhika - 2 in Hindi Love Stories by Monika kakodia books and stories PDF | शिवाम्बिका - 2

Featured Books
Categories
Share

शिवाम्बिका - 2

ये पल हैं शिव और अम्बिका के


"ये क्या पहन रही हो, ये हील्स ज़रा भी तो मैच नहीं हो रहे, मैं कहता हूँ तुम ना अम्बु मुझसे फ़ैशन की कोचिंग क्लास ले लो,सीख लो मुझसे कुछ, रुको मैं बताता हूँ मैचिंग किसे कहते हैं, पार्टी में सब तुम्हें ही मुड़ मुड़ के ना देखें तो कहना"

साड़ी के रंग से मिलती हुई नीले रंग की हील्स शिव ने अलमारी से निकाल ,अम्बिका के पैरों के पास रख दी,

"बैठो मैडम! देखों पूरा आसमान आपके कदमों में लाकर रख दिया है, आपके इस गुलाम ने ,"

अम्बिका को यूँ तो हील्स पहनना पसंद नहीं पर जब भी शिव उसकी एड़ियां अपनी हथेली पर रखता , वो उड़ने लगती बिल्कुल वैसे ही,जैसे वो सपनों में उड़ती, पीठ पर पँख उग आने पर।अपनी उंगलियों से शिव हमेशा उसकी एड़ियों पर कुछ कलाकारी करने लगता, शायद वो नदियों की धार बनाया करता ताकि नेपथ्य पर खड़ा उसका स्नेह बहता हुआ उस तक पहुँच जाए।और भिगो दें उसे एड़ियों से होते हुए मन मस्तिष्क तक। शिव की कलाकरियों से हल्की हल्की गुदगुदी अम्बिका कंधे उचकाने को मजबूर करती।

"मानो ना शिव, तुम भी ना बच्चों सी शरारत करने लगते हो तुम्हें तो बस मौका चाहिए ना,मुझे सताने का, देखो मेरे पैर ज़रा भी दुःखे ना तो तुमसे ही पैर दबवाऊंगी ,अब कहो लेट नहीं हो रहे, जाओ मैं ख़ुद पहन लूँगी "

"अजी ऐसे कैसे ,आपकी सेवा में गुलाम हाज़िर है, तो मल्लिका भला क्यों ज़हमत उठाएं ,रही बात पैर दबाने की तो हम क्या डरते हैं किसी से, भाड़ में जाए दुनिया दारी, हम तो अपनी बीवी की सेवा पूरी ईमानदारी से करेंगें"

अम्बिका ठहाके लगाने लगी,साथ में आँखो में नमी एक सुकून के साथ। शिव के बालों से खेलते हुए अम्बिका बहुत देर तक बस देखती ही रही, ज़रा भी अहंम नहीं क्या ऐसे पुरुष भी होते। कौनसे अच्छे कर्म रहें होने जिसके हिसाब में ऐसे पति मिलते हैं।

पूरी पार्टी में शिव नए आशिक़ की तरह अम्बिका के चारों ओर मंडराता रहा,प्लेट पर पूरी नज़र क्या खाया , क्या ख़त्म होने वाला है, कहीं कुछ चाहिए तो नज़र उठने से पहले प्लेट तक पहुँचा दूँ । आइसक्रीम सही समय पर प्लेट तक पहुँच जाए इसका पूरा ख्याल रखा गया।

पार्किंग की निकले हुए शिव अम्बिका की उन तस्वीरों में खो गया जो उसने चुपके चुपके अपने मोबाइल में क़ैद की थी। चुपके से ली हुई तस्वीरों में बनावटीपन नहीं होता, वो जैसा हो वैसा ही कैद कर लेती है पलों को।

"तुम्हें ज़रा भी ख़्याल नहीं रहता ना मेरा, कोई परवाह नहीं ,चले जा रहे हो अपनी ही धुन में,यूँ भी नहीं कि बीवी ने हाई हील्स पहने हैं तो, हाथ थाम सीढियां उतरने में कुछ मदद ही कर दें, ये हील्स पहनने की ज़िद भी तो तुम्हारी ही थी ना, तुम क्या जानो मेरे दर्द को, बड़े आये पैर दबाने वाले, अगली बार तुम्हारी नहीं चलेगी"

मुँह सिकोड़ें अम्बिका ख़ुद से ही शिव की शिकायत कर ही रही थी कि जैसे शिव तक शिकायत दर्ज़ हो गई

" ओह सॉरी-सॉरी , कहो तो गोद में उठा लूँ"

शिव की बढ़ी हुई बाहों ने सारी शिकायतें और दर्द हवा ही कर दिए