prem do dilo ka - 12 - last part in Hindi Fiction Stories by VANDANA VANI SINGH books and stories PDF | प्रेम दो दिलो का - 12 - अतिम भाग

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प्रेम दो दिलो का - 12 - अतिम भाग

यह बात राजा को बरदास ही नही हुई और वह फिर से वही करने लगा जो पहले करता था । उसने एक रोज छोटी बच्ची और नीरू को जान से मारने की योजना बना ली। जब नीरू को यह बात पता चली तो वह दोनो बच्चियो को लेकर घर से भाग गयी ,नीरू ने गांव से बाहर निकल कर निर्मल के दफ्तर में फोन किया।वह निर्मल के साथ अपने घर आ गयी ।
लेकिन विजय को ये बात बिल्कुल अच्छी नही लगी ।अब तक विजय अपनी सारी जायदाद सराब में खत्म कर दिया था ।घर की हालत भी भिखरियो वाले हो गये थे।निर्मल ने विजय से कहा बस नीरू को घर में रहने दे ।वह घर का परा खर्च देगा ।
विजय यही तो चाहता था नीरू छह महीने रही उस बिच पूरे गावँ में नीरू और निर्मल के चर्चे होने लगे।नीरू के ससुराल से उसके ससुर और कुछ लोग उसे ले जाने के लिये आये ।विजय ने जबरजस्ती नीरू को उनके साथ भेज दिया।एक बार नीरू कैसे भी भाग निकली राजा के चंगुल से लेकिन इस बार यह सम्भव नही था।
नीरू को भी अब यह लगने लगा की उसकी जिन्दगी खत्म हो गयी है ।राजा जनवर बन चुका था वह नीरू को इसलिए बुलाया था क्योकी उसने अपने कुछ दोस्तो को सहर से बुलाया था और वह नीरू के द्वारा उन्हे खूश करके पैसे कमाने की सोच रहा था , जिसमे उसके ससुर भी सामिल थे ।
उस रात घर में एक भोज रखा गया ।नीरू के ससुर बलवन्त ने विजय से ये कहा की उसकी लडकी की सादी है मेरी बहू को घर में होना जरुरी है । उस भोज में जैसे नीरू का गोरा बनना हो।
नीरू एक कमरे में अपनी छोटी सी बच्ची के साथ बन्द है।इतने में दरवाजा खुलता है और राजा नीरू से कहता है तैयार होकर बाहर आ जाओ।नीरू साड़ी लेकर छत पर जाती है ।पडोस की एक महिला उसकी भागने में मदत करती है।वह फिर से अपनी इज्जत बचा कर वहा से भाग निकलती है ।
बस पकड़ कर सिधे निर्मल के दफ्तर सुबह चार बजे पहुचती है ।दफतर बन्द होने की वजह से वह दफ्तर के सामने बैठ कर इन्तजार करने लगती है।सुबह होती हैं ,निर्मल दफ्तर पहुचता है ।नीरू की ये हालत निर्मल को सब कुछ बता देती है।अब निर्मल ने यह ठान लिया की नीरू को अपना लेगा ।उसने इस समाज के डर से पहले भी नीरू को नही अपना पाया था ।अब उसे कोई नही रोक सकता ।
नीरू के रहने का वेवस्था करता है।अब पूरे गाँव में खबर फैल गयी नीरू मिल नही रही ।निर्मल गाँव वापस जाके नीरू को ठूंठने का नाटक करता है जब थोडा माहौल ठंढा होता है तो वह तलाक लेता है अपनी पहली निर्मला से और नीरू संग ब्याह करके रहने लग जाता है।जब प्रेम सच्चा हो तो उसे इस बात का बिलकुल फर्क नही पडता की प्रेमी की जिन्दगी में क्या है ?
नीरू निर्मल समाज के भय से,लज्जा से इतने दिन एक दुसरे से दूर रहे ,इतने कस्ट सहे ।सभी को अपने कर्मो की सजा मिलती है,नीरू दुबारा कभी अपने गाव नही आई।दोनो पंछी इस समाज से बहुत उपर उड़ गये ।

'' यही पर यह कहानी समाप्त होती है ।कहानी कैसी लगी हमे जरुर बताये "