Ye Dil Pagla kahin ka - 5 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | ये दिल पगला कहीं का - 5

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ये दिल पगला कहीं का - 5

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-5

मैट्रीमोनी वेबसाइट पर वैजयंती के लिए शिरीष को पसंद किया गया। वैजयंती के पेरेंट्स चाहते थे कि उनकी बेटी वैजयंती बैंक में क्लर्क शिरीष से विवाह के गठबंधन में बंध जाये। वैजयंती स्वयं बैंक में उच्च अधिकारी के पद पर कार्यरत थी। वैजयंती सुन्दर और सुशील होकर शालीनता के समस्त गुणों को धारण कर भारतीय नारीत्व का प्रतिनिधित्व करती थी। शिरीष की प्रोफाइल अत्यंत साधारण थी। शिरीष की कद काठी भी सामान्य पुरूष से कम थी। यदि वैजयंती ऊंची हील की सेन्डील पहनकर शिरीष के साथ खड़ी हो जाये तो उसकी ऊंचाई शिरीष से अधिक हो जाती। ऊंची हील की सेन्डील पहना उसे अत्यधिक पसंद था। वह कतई नहीं चाहती थी कि अपने इस पसंदीदा श़ौक का उसे कभी परित्याग करना पढ़े। वैजयंती ने शिरीष से भेंट की।

"क्षमा करे शीरिष! प्रथमतया तो आप बैंकिंग में मुझसे जूनियर है, द्वितीय आपका व्यक्तित्व मेरी इच्छा आनुसार नहीं है। इसलिए मैं आपसे विवाह करने हेतु तैयार नहीं हूं।" वैजयंती ने शिरीष से स्पष्ट कह दिया।

"कोई बात नहीं है। मुझे प्रसन्नता है कि आपने अपने हृदय की बात मुझे बताने का साहस दिखाया। मुझे आपके निर्णय से कोई परेशानी नहीं है। विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णय बहुत सोच-समझकर ही लेना चाहिए। आपकी अस्वीकृति मुझे पुनः नये भावि जीवन साथी की तलाश के प्रयास आरंभ करने में मदद करेगी।" यह कहते हुये शिरीष वहां से चला गया।

बैंक में लंच टाइम चल रहा था।

"समय के साथ बदलने में कोई बुराई नहीं है शिरीष! सुन्दर और आकर्षक दिखना वर्तमान समय की प्रमुख मांग है।" वैवाहिक रिश्तों में असफलता प्राप्त कर रहे शिरीष से सहकर्मी आदित्य ने कहा।

"जितना व्यायाम और योग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है, वह मैं नियमानुसार करता ही हूं। मुझे माॅडलिंग नहीं करनी है और न हीं फिल्मों में काम करने के लिए मेरे पास कोई ऑफर है।" शिरीष बोला।

"देखो भई! प्रत्येक युवती चाहती है कि उसका होने वाला पति हेंडसम हो, हीरो भले ही न हो मगर हीरो की तरह दिखता हो! लड़की का हृदय जीतने के लिए सबकुछ करना पड़ता है।" आदित्य बोला।

"मेरे विचार भिन्न है आदित्य! अपने प्राकृतिक शरीर पर मुझे गर्व है। शारीरिक और मानसिक रूप से मैं पूर्णतः स्वस्थ हूं। मैं अपने पैतृक परिवार का और होने वाले जीवन साथी का दायित्व निर्वहन करने में समर्थ हूं। मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है। बाॅडी-बिल्डिंग का क्षणिक दिखावा कर मुझे किसी को प्रभावित नहीं करना।" शिरीष की बातों को आदित्य के पास कोई जवाब नहीं था।

"अपनी साधारण काया को परिष्कृत करने का असफल प्रयास कर मैं अपने माता-पिता और उस परमेश्वर का उपहास नहीं उड़ाना चाहता जिन्होनें मुझे संसार में सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रसिद्ध मानव शरीर दिया है, जिसे पृथ्वी का हर जीव प्राप्त करना चाहता है।"

शिरीष का उत्तर सुनकर आदित्य मौन हो गया।

शिरीष चाहता था कि जो भी युवती उसके साथ परिणय सूत्र में बंधने हेतु तैयार हो वह उसे 'जहां है- जैसा है' स्थिति में स्वीकार करे। क्योंकि वह स्वयं भी उस लड़की को उसकी प्राकृतिक अवस्था में स्वीकार करेगा। बनावटी दिखावे से उसे परहेज नहीं था अपितु इस क्षणिक मोह के त्वरित लुप्त जाने के उपरांत सत्य का सामने करने की पीड़ादायक परिस्थिति से उपजे दुःख की उसे चिंता थी।

वैजयंती का स्थानांतरण शिरीष की ही शाखा में हो गया। बैंक प्रबंधक भी बदल गये। दीपिका चंद्रा प्रमोट होकर बैंक में आयीं थी। ऊंची हील की सेन्डील पहनने में दीपिका से वैजयंती को कढ़ी टक्कर मिलना निश्चित था। दीपिका भी ऊंची हील की सेन्डील पहनकर बैंक आती। उसे इसकी विभिन्न वैरायटी की उच्च समझ थी। शिरीष को वैजयंती के अधीनस्थ कार्य करने में कोई परेशानी नहीं हई। वैजयंती अपने अधीन शिरीष को हेय समझती। दीपिका प्रथमतया बैंक की किसी शाखा का प्रबंधन संभाल रही थी। शिरीष के सहयोग से दीपिका को प्रबंधक की कुर्सी का यथोचित उपयोग करना शनै: शनै: आता गया। शिरीष से सलाह-मशविरा के बीना वह कोई भी बड़ा निर्णय नहीं लेती। अप्रत्यक्ष रूप से शिरीष ही बैंक प्रबंधन संभाल रहा था। वैजयंती के मन में ईष्या का बीज अंकुरित हो चूका था। बैंक में शिरीष का इतना अधिक महत्व और सहकर्मीयों द्वारा उसका महिमामंडन उसे स्वीकार नहीं था। क्योंकि वह मानती थी शिरीष से अधिक योग्य कर्मचारी बैंक में उपस्थित है। वह मानती थी कि प्रबधंक मैडम का कृपात्र होने के कारण शिरीष के दिन बदल गये है।

सियागंज क्षेत्र स्थित बैंक की यह सर्वाधिक व्यस्तम शाखाओं में एक थी। जहां बड़े-बड़े व्यापारी और व्यवसायियों के चालु बैंक खाते संचालित होते थे। शाखा में करोड़ो रूपयों का दैनिक टर्नओवर था। अच्छे-बुरे सभी स्वभाव के व्यक्तियों का बैंक में आना-जाना था। शिकायतों का प्रतिदिन अम्बार लगा रहता। दीपिका चन्द्रा जब कुछ दिन के लिए प्रशिक्षण में गयी तब बैंक प्रबंधन का कार्य शिरीष को ही लेना पड़ा। क्योंकि शाखा प्रबंधक की हाॅट सीट पर कोई भी कर्मचारी-अधिकारी बैठने का इच्छुक नहीं था। शाखा प्रबंधक और ग्राहकों की दैनिक माथापच्ची से वैजयंती भी परिचित थी सो उसने भी शाखा प्रबंधन प्रभारी का दायित्व लेने में असमर्थता जता दी। पिछले शाखा प्रबंधक से शाखा में घुसकर हुई मारपीट और तोड़फोड़ से सभी भली-भाँति परिचित थे। कोई भी कर्मचारी क्षेत्र के ग्राहकों से बैर लेने के पक्ष में नहीं था।

शिरीष की कार्य कुशलता से सबकुछ ठीक तरह से चल रहा था।

आदित्य की सायकिल चौराहे पर आकर रूकी। आदित्य ने सायकिल पर बैठ अपने तीन वर्षीय बेटे राजकुमार को नीचे उतारा। सुबह-सुबह व्यायाम और सायकिलींग के उपरांत आदित्य, रामप्रसाद की होटल पर चाय पीने आया करते थे। राजकुमार भी रामप्रसाद की होटल को पहचानता था। वहां का दुध उसे घर के बजाय अधिक पसंद था। कविता आदित्य को देखकर प्रसन्न हो जाती। वह होटल के पास से ही अपने ऑफिस स्टाफ बस की पकड़ा करती थी। कविता प्राईवेट ऑटोमोबाइल कम्पनी पीथमपुर में काम करती थी। उसके साथ अन्य महिला सहकर्मी भी राजकुमार को देखकर कुछ पल उसके साथ आनन्द से बिताना नहीं भुलती। राजकुमार का कविता से जुड़ाव हो चूका था। कविता की गोद में क्षणभर का ममत्व राजकुमार को मां के आँचल समान सुखद अनुभव दे रहा था। आदित्य जानता है कि इस क्षणिक आनंद के परिणाम दुःखद भी हो सकते है। राजकुमार की मां का दुखद देहान्त हो चूका था। आदित्य ही उसे मां और पिता का प्रेम एकसाथ दे रहा था। आदित्य दुसरे विवाह के विरूद्ध था। उसे राजकुमार की बहुत चिंता थी। सौतेली माता के किस्सें-कहानीयों से वह भयभीत था। कविता के मन में धीरे-धीरे आदित्य के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित हो चूका था। मगर वह आदित्य को कहने का साहस नहीं कर पा रही थी। आदित्य पुर्व से विवाहित था और कविता अविवाहित थी। यह कारण भी उसे आदित्य से वैवाहिक संबंध बनाने की अनुमति नहीं देगें, इस बात से वह भयभीत थी। कविता और आदित्य की शादी में सबसे बड़ी बाधा थी कविता की जन्मजात प्रजनन क्षमता का नगण्य होना। मगर राजकुमार के रूप में संतान सुख की अभिलाषा पुर्व से से निश्चित थी, एक यही आशा की किरण थी कविता के पास। जिसकी बदौलत वह आदित्य को विवाह हेतु कह सकती थी। आदित्य को भय था कि दुसरी पत्नी की भावि संतान राजकुमार के शोषण का कारण बन सकती थी। यही विचार कर वह दूसरा विवाह नहीं कर रहा था। आदित्य के विचार का समर्थन करने में प्रकृति ने कविता का साथ दिया था। आज प्रथम बार वह अपनी अन्य युवतियों की के समान महावारी नहीं आने पर शोकाकुल की बजाय प्रसन्न थी। आदित्य को मन से पति और राजकुमार को पुत्र स्वीकारने वाली कविता आदित्य से विवाह के स्वप्न देखने लगी।

"ये असंभव है कविता! मेरा और तुम्हारा गठबंधन कभी नहीं हो सकता।" सुबह की चाय रामप्रसाद की होटल पर पीते हुये आदित्य बोला। राजकुमार कविता की बांहों में खेल रहा था।

"जल्दबाजी में निर्णय न लेवे आदित्य जी! अपने और राजकुमार के विषय में सकारात्मक विचार कर फिर उत्तर देवे। मुझे आपके उत्तर की प्रतिक्षा रहेगी।" सहेलीयों के समर्थन से आज कविता ने हृदय की बात आदित्य से कह दी। इतने में वहां बस आ गई। कविता और और उसकी शेष सहेलियां बस में चढ़ गयी। कविता को बस में जाती हुई राजकुमार देखता रहा। वह हवां में हाथ हिला रहा था।

रामप्रसाद हलवाई भी चाहते थे कि बिन मां के बच्चें राजकुमार को कविता के रूप में एक मां मिल जाये। उन्होंने इस बात का समर्थन आदित्य के सम्मुख कई बार किया। मगर आदित्य को कविता से विवाह हेतु रजामंद करना सरल कार्य नहीं था। आदित्य ने चाय और दुध के रूपये रामप्रसाद को चूका दिये। बैंक जाने में विलंब होने का कहकर वह वहां से घर लौट आया। कविता के प्रति आदित्य आकर्षित अवश्य था किन्तु दुसरे विवाह का विचार ही उसे डरा देता। आदित्य यह भी भली-भाँति जानता था कि उसकी पुर्व पत्नी की मृत्यु का कारण जानते हुये भी कविता उससे विवाह करने के लिए तैयार है। कविता के मां नहीं बन सकने की बात वह जान चूका था। इसलिए भी उसके हृदय के द्वार कविता के लिए खुलने के लिए लालायित थे। आदित्य के विचारों पर कविता का आधिपत्य हो गया। बैंक के कामकाज में उसका मन नहीं लग रहा था

"सर आपने विड्राल में ये दो हजार का नोट अधिक दे दिया है।" एक ग्राहक ने बैंक कैशियर आदित्य से कहा।

"साॅरी सर! मिस्टेक से चला गया! थैंक्यू।" आदित्य ने उस ग्राहक का धन्यवाद अदा किया।

आदित्य के क्रियाकलाप कुछ दिनों से शिरीष नोट कर रहा था। उसे कविता के विषय में जानकारी थी। कविता के द्वारा विवाह का प्रस्ताव पाकर आदित्य की मनःस्थिति परिवर्तित हो चूकी थी।

"देख भाई आदित्य! कविता सबकुछ जानकार तुझसे शादी करना चाहती है। मुझे लगता है राजकुमार के हित में तुझे उससे शादी कर लेनी चाहिए।" लंच टाइम में शिरीष ने आदित्य से कहा।

"मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा आदित्य! मां के व्यवहार को तु जानता है न!" आदित्य बोला।

"तेरी मां जेल में है, ये क्यों भूल जाता है तू!" शिरीष बोला।

"सिर्फ पांच सालों के लिए। उसके बाद?" आदित्य गंभीर था।

"देख! मुझे लगता है अपनी पहली बहु को जलाकर मार देने के अपराध बोध से तेरी मां भी पछता रही होगीं! सात सालों की सजा काटने के उपरांत भी यदि वे अपनी झगड़ालू प्रवृत्ति नहीं बदलती तो तु उनसे अलग हो सकता है। कुछ दुर रहकर भी माता-पिता की सेवा की जा सकती है।" शिरीष ने समझाया।

सुगना देवी आरंभ से ही मधु को पसंद नहीं करती थी। मधु जब से ब्याह कर आदित्य के घर आई थी, सुगना देवी को वह फुटी आंख नहीं भाई। आये दिन सास-बहू के झगड़े मोहल्ले में चर्चा का विषय बनते। ससुर खेमचन्द सरल स्वभाव के थे। उनकी समझाईश का सुगना देवी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मधु भी अपनी सास सुगना देवी को प्रतिउत्तर देने में कम नहीं थी। ईंट का जवाब पत्थर से देना मधु जानती थी। आदित्य द्वारा दोनों सास-बहू का संबंध मधुर करने के सभी प्रयास असफल होते जा रहे थे।

दुर्भावना से ओतप्रोत एक दिन सुगना देवी ने अपने पति और पुत्र की अनुपस्थिति में गैस सिलेंडर ऑन कर दिया। गैस रिसाव से घर का समुचा किचन दुर्गन्ध मार रहा था। मधु को संदेह की बूं आने लगी। उसने रसोईघर में प्रवेश करते ही गैस सिलेंडर को सर्वप्रथम बंद किया। मधु के पीछे त्वरित भागते हुये सुगना देवी ने रसोईघर का द्वार बाहर से बंद कर दिया। सिगरेट लाइटर को ऑन की अवस्था में उन्होनें किचन के दरवाजे के नीचे से फैंक दिया। आग भभक चूकी थी। मधु के कराहने की आवाज़ आकाश छु रही थी। पास-पड़ोस के रहवासी मधु की आवाज़ सुनकर घर के अन्दर आने का प्रयास कर रहे थे। मगर घर की छत पर जाकर बैठी सुगना देवी घर का द्वार खोलने के लिए तैयार नहीं थी। किसी ने फायर-ब्रिगेड को फोन लगा दिया। लोगों ने मुख्य द्वार तोड़ दिया। आग विकराल रूप ले चूकी थी। रहवासी पानी का छिड़काव कर किसी तरह आग पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रहे थे। तीस मिनट उपरांत फायर-ब्रिगेड की गाड़ी ने आगर आग पर पानी छिड़कना आरंभ किया। सुगना देवी ने अपने घर की छत से पडोसी के घर की छत पर आकर अपनी जान बचाई। नीचे आकर वह अपनी बहु के जिन्दा जलने पर विलाप का स्वांग रचने लगी।

जलते घर से किसी तरह मधु को बाहर निकाला गया। वह पिनचानवे प्रतिशत जल चूकी थी। जीवित बचने की कोई संभावना नहीं थी। पुलिस ने पुछताछ आरंभ कर दी। मधु ने अपनी सास के विरूद्ध बयान दिया। तदुपरांत उसका देहावसान हो गया। सुगना देवी को गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत ने सुगना

क्रमश..