Hone se n hone tak - 31 in Hindi Moral Stories by Sumati Saxena Lal books and stories PDF | होने से न होने तक - 31

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होने से न होने तक - 31

होने से न होने तक

31.

लड़कियों ने स्टेज पर एैंन्ट्री ली ही थी कि प्रबंध समीति कि एक अन्य सदस्या जिनको अभी किसी ने कमला जी नाम से पुकारा था वे हाथ ऊपर कर रुकने का निर्देश देती हुयी उठ कर खड़ी हो गयी थीं ‘‘तुम सब स्टेज की एक तरफ की विंग से एक साथ एैन्ट्री न लेकर दो हिस्सों में दोनो विंग से एक साथ अन्दर आओ फिर एक दूसरे के पीछे हो जाओ।’’

लड़कियॉ परेशान हाल सी मंच पर खड़ी एक दूसरे की तरफ देखने लगी थीं।

‘‘अरे’’ हम सब के मुह से एक साथ निकला था,‘‘अब आख़िरी क्षण पर यह बच्चे एकदम गड़बड़ा जाऐंगे।’’

मानसी बड़बडायी थीं,‘‘जैसे औंधी खोपड़ी दिख रहे हैं सब के सब देखना आगे क्या होता है, अभी तो यह मूर्ख औरतें डॉस के स्टैप्स बदलने के लिए कहेंगी,गाने की लाइने बदलवाऐंगीं।’’

‘‘अरे ऐसे कैसे ?’’नीता ने मानसी की तरफ उलझी निगाह से देखा था जैसे सारी गड़बड़ वे ही कर रही हों।

‘‘कैसे क्या ?जैसे अभी कर रही हैं और हम सब चुपचाप बैठे हैं ग़ुलामों की तरह। कुछ मूर्ख स्त्रियॉ सारे कालेज को नचा रही हैं।’’

नीता चुप रही थीं। बाकी सब भी। वैसे भी उन सब के बीच तो बहस का कोई मुद्दा था भी नहीं। तभी मानसी ने पूछा था,‘‘इस बिल्ली के गले में घण्टी कौन बॉधेगा।’’

मैंने घबड़ा कर उन के घुटनों पर हाथ रख दिया था,‘‘मानसी जी आप नहीं। आपको शहीद होने की ज़रुरत नही है।’’

मानसी हॅसी थीं,‘‘चलो हम भी इंतज़ार कर रहे है कि इस स्टाफ के लिए दर्द इतना तो बढ़े कि दवा हो जाए। या तो इन्हें झेलने की आदत पड़ जाए या इनसे भिड़ने की हिम्मत। कुछ तो होना ही होगा।’’

‘‘शायद आप ठीक कह रही हैं।’’जवाब केतकी ने दया था।

हर बार की तरह वार्षिक उत्सव इस बार भी बहुत सफल रहा था। मीनाक्षी अच्छी गायिका है। हमेशा ही अच्छा गाती है। पर इस बार तो उसके स्वर में दिव्य उल्लास था। लगा था जैसे उस भव्य दो मज़िला आडिटोरियम का कण कण उसके संगीत पर थिरक रहा हो। सारे साजां से अलग और उनके ऊपर उठ कर शब्द प्राणवान हो हवा में बहने लगे थे। गाना गा कर वह नीचे उतरी थी तो दीपा दी ने उसे गले से लगा लिया था। प्रबंध समीति की मिसेज़ पंत और अतिथियों मे से कुछ अन्य लोग भी अलग से आ कर उससे मिले थे। अध्यक्षा और प्रबंधक कार्य क्रम समाप्त होते ही अतिथियों के साथ ही बाहर निकल गए थे।

उसी रात मीनाक्षी दिल्ली चली गयी थी। वह बेहद ख़ुश लग रही थी।

‘‘यह लॉन्ग डिस्टैंन्स मैरिज मीनाक्षी को बहुत सूट कर रही है।’’ नीता ने प्यार से छेड़ा था।

‘‘अभी देखना सेम रूफ मैरिज मुझे और ज़्यादा सूट करेगी।’’मीनाक्षी ने हॅसते हुए अपनी बात कही थी।

मैं और नीता कुछ समझे नहीं थे। केतकी ने बताया था कि मीनाक्षी ने उसके घर के कहीं आस पास ही घर किराए पर ले लिया है। अब की से दिल्ली से लौट कर सीधे अपने घर ही उतरेगी और अम्मा चाचा को फोन से या चिट्ठी से इन्फार्म कर देगी।

‘‘अरे’’ नीता के मुह से निकला था। मैं एकदम अवाक् रह गयी थी।

केतकी मुस्कुरायी थी,‘‘कभी तो यह करना ही था नीता। कभी न कभी तो बताना ही था,सूनर इस बैटर।’’ वह मीनाक्षी के लिए ख़ुश लग रही है।

‘‘हॉ शायद तुम ठीक कह रही हो।’’ नीता ने सोचते हुए कहा था। उसके स्वर में अटकन है। मैं अभी भी चुप ही रही थी।

पिछले वर्षो के मुकाबले इस बार एनुअल फंक्शन का कुछ अधिक ही तनाव था। इस आयोजन को ले कर पिछले सालों की तरह कोई उत्साह या उल्लास मन में नही था। सब कुछ ठीक ठाक निबट गया था इसलिए बहुत हल्कापन लग रहा था। वैसे भी बीच में एक दिन की छुट्टी रही थी सो लगता है पूरी थकान मिट गयी थी। मानसी और मैं कालेज पहुॅचे तो नीता पहले से स्टाफ रूम में बैठी हुयी मिली थीं। मैं नीता के बगल में बैठने लगी थी तो मानसी ने राय दी थी,‘‘चलो सबसे पहले दीपा दी से मिल लिया जाए। कल के फंक्शन के लिए उन्हें बधाई दे दें।’’

हम तीनो उठ कर खड़े हो गए थे,‘‘परसों फंक्शन में शशि अंकल की बहुत याद आयी। उनका उत्साह इनफैक्शयस होता था। लगता था जैसे पूरे माहौल में कालेज के लिए प्यार और मुमैन्टम भर देते थे। फिर अगले दिन का उनका लंच। वह माहौल हम लोग कभी भूल नही सकते। कभी कभी शशि अंकल को सच में मिस करते हैं।’’नीता का स्वर भावुक होने लगा था।

हम लोग बातें करते हुए दीपा दी के कमरे में पहुंच गए थे। सोचा था वे ख़ुश मिलेंगी पर वे थकी और सुस्त लगी थीं। नीता ने कारण पूछा था और उन्होने अध्यक्षा मिसेज़ चौधरी का पत्र सामने बढ़ा दिया था। नीता ने ज़ोर से उसे पढ़ना शुरू किया था। पत्र क्या था सवालों की लंबी चौड़ी सूचि थी जिसका जवाब प्राचार्या और उनके काम करने वालों की टीम से मॉगा गया था। प्रबंधक कार्यालय से भेजी गयी सूचि में कुछ लोगो को निमंत्रण क्यों नही मिले थे? अतिथियों को गेट पर रिसीव करने के लिए कोई सीनियर स्टाफ क्यों नही था? सजावट में फूलों पर इतना अधिक ख़र्चा क्यों किया गया था? नृत्य नाटिका का निर्देशन करने के लिए निर्देशक बाहर से क्यों बुलाए गए थे यह काम टीचर्स ने स्वयं क्यों नही किया? साजों पर संगत बाहर से आए कलाकारों ने क्यो दी?

पत्र पूरा पढ़ पाने से पहले ही हम लोग बौखला गए थे,‘‘दीदी गैस्ट लिस्ट में से एक एक के घर कार्ड भेजा गया था। चपरासी दे कर आए हैं। जो लोग नहीं मिले उनके घर कार्ड डलवा दिए गए थे।’’ नीता ने कहा था।

दीपा दी बहुत थकी लग रही हैं। उन्होने हम लोगों की तरफ देखा था,‘‘वही तो। उनका कहना है व्यक्तिगत तौर पर सब से फोन पर बात की जानी चाहिए थी।’’

नीता चिड़चिड़ा पड़ी थी,‘‘नाऊ दिस इज़ आस्किंग टू मच। मिसेज़ चौधरी न तो हमे इस फंक्शन के लिए कोई एक्स्ट्रा स्टाफ दे देती हैं और न उतने दिन के लिए हमारे क्लासेज़ ही बंद हो जाते हैं। ऊपर से दर्जन भर मीटिंग कॉल कर चुकी हैं। उनकी हर मीटिंग ढाई तीन घन्टे चलती है। हर दिन हमारे काम का हर्ज होता है या नहीं। और दीदी हमने डॉस के लिए डायरैक्टर और संगत के लिए कलाकार क्यों हायर किए तो उन्हें बता दीजिए कि हम सब यहॉ सिर्फ अपना सब्जैक्ट पढ़ाने के लिए हैं और बस उतनी ही लियाकत है हमें। यह तो चॉस है कि मीनाक्षी सिंगर है नही ंतो हमें सिंगर भी हायर करने पड़ते। यह प्रायमरी स्कूल नहीं है जहॉ स्टाफ का अपायन्टमैंन्ट सब्जैक्ट के आधार पर नही को करिकुलर एक्टिविटीज़ के आधार पर किया जाता है। फिर हर संस्था की एक परंपरा होती है। हम सालों से ऐसा कर रहे हैं और वह बात हम छिपाते भी नही हैं। प्रोग्राम भी इन्हे ऐसा चाहिए की इनकी नाक ऊॅची हो जाए।’’

लगा था दीपा दी किसी की बात पर ध्यान नही दे रहीं,‘‘मेरा एक काम कर दो नीता। इस पत्र का एक जवाब बना दो,’’ वह कुछ क्षण को सोचती सी रही थीं ‘‘ध्यान रखना हमें अपनी बात समझानी है। अपनी सफाई देनी है। कोई बहस या लड़ाई नही छेड़नी है।’’

हम तीनो उठ कर खड़े हो गए थे। हम सभी के चेहरे पर गुस्सा है। नीता ने हताशा में अपने सिर को हिलाया था,‘‘दिस इज़ डिस्गस्टिंग। रीयली डिस्गस्टिंग। एक बार तारीफ नहीं, थैंक्स नहीं,’’उस ने झुंझला कर हाथ में लिये कागज़ सामने फहराये थे,‘‘यह प्रेम पत्र भेज दिया। ’’

मानसी खिसियाया सा मुस्कुरायी थीं,‘‘पहले का मैनेजमैण्ट था। हर कोशिश की तारीफ करते थे। ग़ल्तियों को अनदेखा करते थे। तब लगता था मैनेजमैएट और स्टाफ एक है। हम सब मिल कर काम कर रहे हैं। यह तो ज़बरदस्ती ग़ल्तियॉ ढूॅडने की बात हुयी।’’

‘‘हॉ शशि अंकल... ’’

मानसी ने मेरी बात बीच मे ही काट दी थी,‘‘शशि अंकल तो थे ही। हम तो उनसे भी बहुत पहले की बात कर रहे हैं। तब तुम दोनो ही कालेज में नही थे। कालेज की फाउन्डर मिसेज़ चंन्द्रा सहाय साथ आ कर बैठती थीं। छोटे छोटे काम पर पीठ थपथपाती थीं। शशि अंकल ने उनके ट्रैडीशन को निभाया था। हरि सहाय जी ने भी टीचर्स की पूरी इज़्जत की और उनकी मेहनत की तारीफ की। आज की तरह नौकर मालिक का रिश्ता नहीं था। कल के आए यह मैम्बरान कालेज के बारे मे कुछ जानते नहीं और मालिकों की तरह बिहेव करते हैं। अपने ऊपर तरस आता है कि हम ऐसे घटिया लोगो के लिए काम कर रहे हैं।’’

थोड़ी देर सब लोग चुपचाप खड़े रहे थे। नीता ने हाथ के कागज़ दीपा दी के सामने बढ़ा दिए थे,‘‘अध्यक्षा का यह पत्र मैं लिए जा रही हूं दीदी। जवाब बना कर कल तक मैं आपको दे जाऊॅगी। फिर कुछ दिन की छुट्टी चाह रही हूं। मेरे पीछे मेरे पीरियड में अंजू अपने पेपर्स पढ़ा लेगी। फिर लौट कर आने पर मैं उसके क्लासेज़ भी लेकर कोर्स पूरा कर लूंगी।

मानसी और मुझ को नीता के छुट्टी पर जाने की बात से आश्चर्य हुआ था। कुछ देर पहले तक उसका ऐसा कोई प्रोग्राम नही था। मैं जानती हॅू कि नीता ने अनायास ही छुट्टी का मन बना लिया है। शायद कालेज के इस क्लेश भरे माहौल से थोड़े समय की फुर्सत चाह रही है वह।

कौशल्या दीदी ने नीता, केतकी, मीनाक्षी,मुझे और मानसी जी को खाने पर बुलाया था। सारे समय वे कालेज और नए मैनेजमैंण्ट के बारे में बात करती रही थीं। वे कालेज से चली गयी हैं पर कालेज उनसे छूट कहॉ पाता है। उन्होने ही बताया था कि दीपा बहुत परेशान है। शायद प्रैसीडैन्ट ने उन्हे बुला कर काफी सख्त लहज़े में काफी कुछ कहा है। शशि भाई के ज़माने मे जो कुछ गड़बड़ियॉ हुयी हैं उस पर भी इधर उधर से सुनी सुनायी के आधार पर बहुत कुछ कहा गया है। यह भी कहा है कि अब प्रिंसिपल और स्टाफ की मनमानी नही चलने दी जाएगी और उन्हे एक पैसे की हेरा फेरी की छूट नहीं दी जाएगी।

‘‘अरे।’’ हम सब के मुह से अनायास निकला था।

Sumati Saxena Lal

Sumati1944@gmail.com