Noorin - 3 in Hindi Women Focused by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | नूरीन - 3

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नूरीन - 3

नूरीन

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 3

दादा बेड पर लेटे-लेटे उस बिल्डर का इंतजार कर रहे थे। जिसे वह बात करने के लिए फ़ोन कर बुला चुके थे। क्योंकि माफिया नेता ने उन्हें निराश किया था। वह अपने को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे। उसने बड़ी होशियारी से उनकी खूब आव-भगत की थी। गले लगाया था। बड़े आत्मीयता भरे लफ्ज़ों में कहा था। अरे चचाजान आप परेशान न होइए। आपको शाद के इलाज के लिए जितना पैसा चाहिए बीस-पचीस लाख वह ले जाइए। पहले उसका इलाज कराइए बाकी सौदा लिखा-पढ़ी होती रहेगी। आप जो रकम कहेंगे हम देने को तैयार हैं। मगर पहले शाद का इलाज जरूरी है। चचा ये बड़ी भयानक बीमारी है। संभलने का मौका नहीं देती। और फिर शाद का मामला तो बहुत गंभीर है। पहले ही एक ऑपरेशन हो चुका है।’

उसकी बात याद कर उन्होंने मन ही मन उसे गरियाते हुए कहा ‘कमीना मुझे कैसे डरा रहा था। बीस-पचीस लाख में करोड़ों की प्रॉपर्टी हड़पना चाहता है। बीस-पचीस लाख दे कर पहले फंसा लेगा फिर औने-पौने दाम देगा कि इससे ज़्यादा नहीं दे पाऊंगा चाहे दें या ना दें। मेरे पैसे वापस कर बात खत्म करिए। और क्योंकि तब पैसे वापस करना मेरे वश में नहीं होगा। तब औने-पौने में सब लिख देने के सिवा मेरे पास कोई रास्ता नहीं होगा। इसके चक्कर में पड़ा तो यह तो दर-दर का भिखारी बना देगा। कमीना कितना पीछे पड़ा हुआ था। कि पैसा लिए ही जाइए। जब दाल नहीं गली तो कैसे आवाज में तल्खी आने लगी थी। देखो अब यह बिल्डर क्या गुल खिलाता है।’

जब तक बिल्डर आया नहीं तब तक वह इन्हीं सब बातों में उलझते रहे। इस बीच नुरीन के बड़ी जिद करने पर उन्होंने मूंग की दाल की थोड़ी सी खिचड़ी खायी थी। जब ढाई-तीन घंटे बाद बिल्डर आकर गया तो उससे भी उन्हें कोई उम्मीद नहीं दिखी। उसने सीधे कहा कि ‘वह एरिया ऐसा है जो अपॉर्टमेंट या शॉपिंग-कॉम्प्लेक्स दोनों ही के लिए कोई बहुत अच्छा नहीं है। फिर भी हम कोशिश करते हैं। कुछ बात बनी तो आएंगे।‘ नुरीन के दादा ने देखा कि उसकी मां इस दौरान खिड़की के आस-पास बराबर बनी हुई है। उसकी इस हरकत पर उन्हें गुस्सा आ रहा था कि यह छिप कर जासूसी कर रही है। बिल्डर अभी उन्हें निराश करके गया ही था, वह अभी निराशा से उबर भी न पाए थे कि वह अंदर आ गई और सीधे बेलौस पूछताछ करने लगी कि ‘यह क्या कर रहे हैं?‘ उनके यह बताने पर कि ‘शाद के इलाज के लिए दुकान बेच कर पैसे का इंतजाम कर रहा हूं।’ तो वह बहस पर उतर आई कि ‘आप बिना बताए ऐसा कैसे करने जा रहे हैंं।

वह मेरे शौहर हैं, जो करना है मैं करूंगी। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मुझे क्या करना है क्या नहीं। आपको कुछ करने की जरूरत नहीं। आप तो हम सबको भीख मंगवा देंगे ।‘ नुरीन के दादा उसकी अम्मी की इन बातों का आशय समझते ही सकते में आ गए। उसने सख्त लहजे में कहा था कि आप दुकान नहीं बेचेंगे। इस पर क्रोधित हो कर उन्होंने भी पुरजोर आवाज़ में कहा ‘वो तो मैं भी जानता हूं कि वह तुम्हारा शौहर है और तुम उसके साथ क्या कर रही हो। लेकिन उससे पहले वह मेरी औलाद है, मेरे जिगर का टुकड़ा है। मैं उसे अपने जीते जी कुछ नहीं होने दूंगा। प्रॉपर्टी मेरी है, मैं उसे बेचुंगा, उसका इलाज कराऊंगा। मुझे रोकने वाला कोई कौन होता है।

अगर मेरे रास्ते में कोई आया तो मैं उसे छोडूंगा नहीं, पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगा।’ जब और ज़्यादा बोलने की ताब ना रही तो वह अपना थर-थर कांपता शरीर लेकर बेड पर लेट गए। इस बीच दोनों की तेज़ आवाजें सुन कर नुरीन दौड़ी चली आई थी। वह अब्बू के पास बैठी थी जब उसने यह तेज़ आवाज़ें सुनी थीं। उसकी बाकी बहनें भी आ गई थीं। मगर सब अम्मी का आग-बबूला चेहरा देख कर सन्न खड़ी रह गईं। नुरीन भी कुछ बोलने की हिम्मत न कर सकी। क्षण भर भी न बीता कि अम्मी दरवाजे की ओर पलटी और चीख पड़ी ‘यहां मरने क्यों आ गई सब की सब। इतने बड़े घर में कहीं और मरने का ठौर नहीं मिला क्या?‘ अम्मी का भयानक चेहरा देख सभी सिहर उठीं। सभी देखते-देखते वहां से भाग लीं। नुरीन भी चली गई। तब उसकी अम्मी बुद-बुदाई ‘देखती हूं बुढ़ऊ कि बिना मेरे तू कैसे कुछ करता है। कब्र में पड़ा है, ऊपर खाक भर पड़ने को बाकी रह गई है और हमें धमकी दे रहा पुलिस में भेजने की, मुझे पुलिस के डंडे खिलाएगा। घबड़ा मत पुलिस के डंडे कैसे पड़वाए जाते हैं यह मैं दिखाऊंगी तुझे।

अगला दिन तू इस घर में नहीं पुलिस के डंडों, गालियों के बीच थाने में बिताएगा। नुरीन को बरगला कर उसे मेरे खिलाफ भड़काए रहता है ना, देखना उसी नुरीन से मैं तुझे न ठीक कराऊं तो अपनी वालिद की औलाद नहीं।‘ इसके बाद नुरीन की अम्मी का बाकी दिन, सोने से पहले तक का सारा समय बच्चों को मारने-पीटने, गरियाने, शौहर की इस दयनीय हालत में भी उनको झिड़कने और अपने दुल्हा-भाई से कई दौर में लंबी बातचीत करने में बीता। रात करीब दस बजे दुल्हा भाई को उन्होंने घर भी बुलाया। फिर उसको और नुरीन को लेकर एक कमरे में घंटों खुसुर-फुसुर न जाने क्या बतियाती रही। नुरीन के अलावा बाकी बच्चों को दूसरे कमरे में सोने भेज दिया था। बातचीत के दौरान नुरीन कई बार उठ-उठ कर बाहर जाने को हुई, लेकिन उन्होंने उसे पकड़-पकड़ बैठा लिया। उस रात उसे सुलाया भी अपने ही पास। यह अलग बात है कि नुरीन रात भर रोती रही, जागती रही, सो नहीं पाई।

अगली सुबह रोज जैसी सामान्य ही दिख रही थी। नुरीन दादा को उनका नाश्ता दे आई थी। मगर उसके चेहरे पर अजीब सी दहशत, अजीब सा सूनापन ही था। वह खोई-खोई सी थी। फिर ग्यारह बजते-बजते उसकी अम्मी उसे तैयार कर चौक थाने पहुंच गई। जब घंटे भर बाद नुरीन को लेकर लौटी तो उसने सबसे पहले ससुर के कमरे की ही जांच-पड़ताल की। वहां दो लोगों को बैठा पाकर ‘भुन-भुनाई बुढ्ढा प्रॉपर्टी डीलरों का जमघट लगाए हुए है। सठिया गया है। कुछ देर और सठिया ले। तेरा सठियानापन ऐसे निकालूंगी कि कब्र में भी तेरी रुह कांपेगी। दुल्हा-भाई को लोफर कहता है ना .... घबरा मत।‘ इधर नुरीन ने कमरे में पहुंचते ही बुर्का उतार कर फेंका और फूट-फूटकर रो पड़ी। उसकी अम्मी बाकी बहनों को दूसरे कमरे में बंद कर उसके पास पहुंची। बोली ‘देख मैं जो भी कर रही हूं तेरे अब्बू की जान बचाने के लिए कर रही हूं। मैं उनको और किसी को भी कुछ नहीं होने दूंगी। अब तू खुद ही तय कर ले कि अपने अब्बू की मौत का गुनाह अपने सिर लेना चाहती है या उनकी जान बचा कर अल्लाह की नेक बंदी बनना चाहती है।’

अम्मी की बातों का नुरीन पर कोई असर नहीं था। वह फूट-फूटकर रोती ही रही। उसे थाने से आए हुए घंटा भर न हुआ था कि इंस्पेक्टर दो कांस्टेबलों के साथ आ धमका। घर के दरवाजे से दादा के कमरे तक उन्हें उसकी अम्मी ही लेकर गई। उसके दादा बेड पर आंखें बंद किए लेटे हुए थे। प्रॉपर्टी डीलर कुछ देर पहले ही जा चुके थे। कमरे में इंस्पेक्टर, कांस्टेबलों के जूतों की आवाज़ सुन कर दादा ने आंखें खोल दीं। दाहिनी तरफ सिर घुमा कर तीन लोगों को अम्मी संग खड़ा देख वह माजरा एकदम समझ ना पाए। तभी इंस्पेक्टर बोला ‘जनाब उठिए आपसे कुछ बात करनी है।‘ इंस्पेक्टर का लहजा बड़ा नम्र था। शायद दादा की उम्र और उनकी जर्जर हालत देख कर वह अपने कड़क पुलिसिए लहजे में नहीं बोल रहा था। चेहरे पर अचंभे की अनगिनत रेखाएं लिए दादा उठने लगे। उठने में उनकी तकलीफ देखकर इंस्पेक्टर ने उन्हें बैठने में मदद की और साथ ही प्रश्न भरी नजर नुरीन की अम्मी पर भी डाली।

दादा ने बैठ कर कांपते हाथों से चश्मा लगाया और इंस्पेक्टर की तरफ देखकर बोले ‘जी बताइए क्या पूछना चाहते हैं,‘ दादा का चेहरा पसीने से भर गया था। इंस्पेक्टर ने उनका नाम पूछने के बाद कहा ‘आपकी पोती नुरीन ने कंप्लेंट की है कि आप आए दिन उसके साथ छेड़-छाड़ करते हैं। आज तो आपने हद ही कर दी, सीधे उसकी आबरू लूटने पर उतर आए। उसके अब्बू बीमार हैं, लाचार हैं तो आप उसकी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।‘ इंस्पेक्टर इसके आगे आपनी बात पूरी ना कर सका। दादा दोनों हाथ कानों पर लगा कर बोले ‘तौबा-तौबा, या अल्लाह ये मैं क्या सुन रहा हूं। इस उमर में इतनी बड़ी जलालत भरी तोहमत। या अल्लाह अब उठा ही ले मुझे’ यह कहते-कहते दादा गश खाकर बेड पर ही लुढ़क गए। इस पर इंस्पेक्टर ने एक जलती नजर अम्मी पर डालते हुए कहा ‘इनके चेहरे पर पानी डालिए और अपनी बेटी को भी बुलाइए।‘ इस बीच इंस्पेक्टर ने मोबाइल पर अपने सीनियर से बात की जिसका लब्बो-लुआब यह था कि मामला संदेहास्पद है। दादा को जब तक होश आया तब तक इंस्पेक्टर ने नुरीन से भी पूछताछ कर मामले को समझने की कोशिश की। लेकिन नुरीन ने रटा हुआ जवाब बोल दिया। अब तक उसके ख़ालु सहित कई लोग आ चुके थे।

घर के बाहर भी लोगों का हुजूम लगने लगा था। लोगों तक बात के फैलते देर न लगी। छुट्टभैये नेता मामले को तूल देने की फिराक में लग गए। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि अब तक अस्सी-बयासी वर्ष का जीवन इज्ज़त से बेदाग गुजार चुके असदुल्ला खां उर्फ मुन्ने खां अपनी पोती के साथ ऐसा करेंगे । अपने समय के मशहूर कनकउएबाज (पतंगबाज) मुन्ने खां का आस-पास अपने समय में अच्छा-खासा नाम था। पूरे जीवन उन पर किसी झगड़े-फसाद, किसी भी तरह के गलत काम का आरोप नहीं लगा था। मजहबी जलसों में भी वह खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। लोगों के बीच उनकी जो छवि थी उससे किसी को उन पर लगे आरोप पर यकीन नहीं हो रहा था। थाने उनके पहुंचने के साथ ही लोगों की भीड़ भी पहुंचने लगी थी। लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था, कि आरोपित, आरोपी दोनों एक ही परिवार के एक ही घर के सदस्य हैं। किसको क्या कहें। थाने पर वरिष्ठ अधिकारियों ने समझा-बुझा कर भीड़ को वापस किया। मुन्ने खां, नुरीन उसकी अम्मी से कई बार पूछ-ताछ की गई। नुरीन से महिला अफसर ने बड़े प्यार से सच जानने का प्रयास किया। लेकिन नुरीन ने हर बार उसे वही सच बताया जो उसकी अम्मी और ख़ालु ने रटाया था। इससे वह बुरी तरह खफा हो गई।

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