Jo Ghar Funke Apna - 40 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | जो घर फूंके अपना - 40 - लज्जा की लज्जा

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जो घर फूंके अपना - 40 - लज्जा की लज्जा

जो घर फूंके अपना

40

लज्जा की लज्जा

मेरे मन में तस्वीर बन रही थी एक बहुत चुपचाप, हर बात पति और ससुराल वालों की इच्छा से करने वाली एक मध्यकालीन बहू की. ज़रूर वह गौतम को पतिपरमेश्वर के समकक्ष मानती होगी. शाली, नहीं- नहीं, अतिशालीन किस्म की होगी. आजकल की लड़कियों से बिलकुल फरक !

पर शाम को गौतम के घर पर जिस उन्मुक्त मुस्कान के साथ उसकी नयी नवेली पत्नी ने मेरा स्वागत किया उसके लिए मैं तैयार नहीं था. उसके स्वागत से स्पष्ट था कि गौतम ने मेरे पहुँचने के पहले ही विस्तार से मेरा परिचय दे रखा था. मुझे गौतम ने उसका नाम बताया –लज्जा. अधिक औपचारिक माहौल बनने का प्रश्न था ही नहीं पर उसके व्यवहार में सहजता के साथ साथ शालीनता भी थी.

गौतम ने हंसते हुए उससे कहा “ लज्जा,इस वर्मा के मन में बहुत उत्सुकता है जानने की कि पूरी तरह से माँ बाप द्वारा चुनी गयी पत्नी कैसी निकल सकती है. तुम्हारी क्या राय है ?क्या इसे भी मेरी तरह अंधा जुआ खेलना चाहिए?” लज्जा से लज्जा के गाल लाल हो गए. हलके से मुस्कराई पर बोली वह कुछ भी नहीं. गौतम ने फिर छेड़ा “लगता है,जब तक ये भी मेरी तरह कुछ बेवकूफी नहीं दिखा देता तुम इसके सामने भी कुछ बोलोगी नहीं. ”

मेरा कौतूहल बढ़ गया. “ये बेवकूफ़ी दिखाने की भला क्या बात हुई ? मैं तो समझता था मुझे ही इस काम में महारत हासिल है” मैंने उत्सुकता के साथ पूछा.

गौतम बोला “ये लो ! अरे,शादी के तुरंत बाद अगर मैं अपनी बेवकूफ़ी न दिखाता तो ये जो ज़बरदस्त मौनव्रत धारण किये हुए थी न मालूम कब तक जारी रखती. उस बेवकूफ़ी से खुश होकर ही तो इन्होने मौन भंग किया. अच्छा, ये कहानी सुनाता हूँ अभी. पहले एकाध कप चाय तो हो जाए. ”

फिर चाय आई,उसके साथ लज्जा के हाथों से बने हुए गर्मागर्म पकोड़े भी आये. फिर चाय की चुस्कियां लेते हुए गौतम ने अपना जो किस्सा सुनाया,उसे उसी के शब्दों में पेश कर देता हूँ.

“तुम्हे तो पता ही है,मैंने अपनी शादी के लिए लडकी देखने से लेकर शादी के छोटे छोटे डिटेल्स तक अपने पेरेंट्स और बड़े भाई साहेब के ऊपर छोड़ दिए थे. भाभी ने इनके लिए और मेरे लिए सारी शौपिंग कलकत्ते में ही कर ली. बलिया में पापा के रसूख और व्यवहार के कारण हमारे घर के सारे इंतजाम भी चुटकियां बजाते हो गए. मैं तो अपनी शादी में खुद ही मेहमान जैसा बस दो-एक दिन पहले पहुंचा था कि लगभग पूरी छुट्टी शादी के बाद के लिए बची रहे जिसमे मैं उस अपरिचित, अनजान लडकी से दोस्ती कर सकूं जिसे मेरे बड़े बुजुर्गों ने मेरे लिए चुना था. मैंने तो फोटो में देखने के बाद सिर्फ जयमाल की रस्म के समय इनका चेहरा देखा था. ”

मैं विस्मित था. क्या बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में किसी सुशिक्षित परिवार में वास्तव में ऐसा हुआ होगा? पर गौतम ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया और बात जारी रखी.

“शादी तो हमारे यहाँ जैसा होता है पूरे सनातनी संस्कारों के साथ लगभग रात भर चलती रही. सुबह सुबह तारों की छाँव में विदाई की रस्म हुई. विदाई के समय मेरे श्वसुर जी ने फिर एक बार मेरे माथे पर तिलक लगा कर आख़िरी रस्म पूरी की और चलते चलाते आशीर्वाद के तौर पर मेरे हाथ में दो सिक्के पकड़ा दिये जो मैंने अपने कोट की पॉकेट में डाल दिए. और फिर पिछली शाम की धूमधाम, गहमा-गहमी से बिलकुल विपरीत,शहनाई पर बजती भैरवी के दर्द में सराबोर एकदम उदास सी वह सुबह दुल्हन की सिसकियों और उसकी माँ और परिवार की अन्य महिलाओं के आंसुओं में डूबने उतराने लगी. ट्रेन से बलिया आने के लिए हम स्टेशन के लिए रवाना हो गए. कार में मेरी बगल में बैठी लज्जा मुठ्ठी में पकडे हुए सुगंधित रूमाल से अपने आंसुओं को अपने उदास चेहरे से मिटाने में लगी रही. माथे से ऊपर खिंचा हुआ उसका छोटा सा घूंघट एक औपचारिकता मात्र था. फिर कार के पांच सात मिनट चलने के बाद उसने मुझे अपने चेहरे पर नज़रें गडाए देखा तो एक प्रश्नवाचक भाव उसके चेहरे पर आ गया. फुसफुसाते हुए कि आगे की सीट पर ड्राइवर न सुन ले,मैंने कहा “मुझे अपराध भावना सता रही है कि तुम अकेले रो रही हो और अग्नि के सामने शपथ खाने के बाद भी कि हम जीवन भर हर काम में एक दूसरे का साथ देंगे, मैं रोने में तुम्हारा साथ नहीं दे रहा हूँ. कहो तो मैं भी रो लूँ थोडा सा. यहाँ तुम्हारे सिवा मुझे कोई देखने वाला भी नहीं है!” लज्जा के गालों पर दौड़ गयी लाली ने उसका नाम सार्थक किया और मैंने अपना फुसफुसाना जारी रखा ‘वैसे मैं ये देखकर बहुत आश्वस्त हूँ कि रोने पर भी आंसुओं से तुम्हारा मेक अप धुल कर साफ़ नहीं हो गया है. किस ब्रैंड के प्रसाधन इस्तेमाल करती हो? पता चल जाए तो आगे चलकर शौपिंग वगैरह में तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगा. ’ इस बार वह हंस पडी. और यार क्या बताऊँ, शादी के पहले उससे कभी नहीं मिलने का इनाम था या अपरिचय का तोहफा, उसकी वह पहली मुस्कान मैं कभी नहीं भूलूंगा.. ”

हमारी बातें चुप चाप सुनती हुए लज्जा अब खिलखिला कर हंस पडी. मैंने भी हँसते हुए कहा “ अरे शाबाश मेरे शेर ! लोग क्या क्या फ़िल्मी डायलोग रटते हैं उस पहली मुलाक़ात के लिए. तूने तो बिना किसी तय्यारी के “ तेरी कुडमाई हो गयी क्या “ जैसे अमर प्रश्न को भी पीट कर रख दिया. ”

गौतम जो अपनी पत्नी के साथ उस पहली मुलाक़ात के रंग में आकंठ सराबोर हो गया था,अचानक हमारे हंसने से वर्तमान में आ गया. बोला “अरे यार, ये भी बड़ी ऊंची चीज़ निकलीं. मैंने तो सोचा कि एक बार हंसा दूंगा तो बातचीत का रास्ता खुल जाएगा. पर इन्हें शायद समझा कर भेजा गया था कि आज के युग में शादी केवल माँ बाप की पसंद से कर लेने वाला अजीब सा लड़का पता नहीं जियादा बोलना बतियाना पसंद करे या नहीं. तो बस, उस छोटी सी हंसी के बाद फिर चुप पकड़ कर बैठ गयीं. कार कुछ ही देर में स्टेशन पहुँच गयी थी जहाँ इनके घर के सारे लोग इन्हें सी ऑफ करने आये हुए थे. स्टेशन पर रोने धोने के दूसरे सत्र में इनके भाई, बहन वगैरह सबका कोरस में रोने का प्रोग्राम चला. ”

मैंने पूछा “यार,तुम तो पहली बार ही इनके रोने से द्रवित हो गए थे,इस बार सबके साथ रोने पर तो ज़रूर ही तुम्हारा सीरियसली साथ देने का मन कर गया होगा. ”

“नहीं यार!” गौतम ने बात जारी रखी “ तब तो नहीं,मगर ट्रेन में भी मेरे लाख प्रयत्न करने पर भी जब इन्होने केवल हाँ, नहीं और मोनोसिलेबुल्स में ही सारी बातों का उत्तर दिया तब ज़रूर मेरा रोने का मन करने लगा. अंत में ध्यान आया कि रात भर शादी के फेरे लगने से लेकर आगे की और कई सारे रस्मे पूरी करते करते तो सुबह हो गयी थी. फिर उसके बाद में रोने धोने का लंबा सीन चला था. जब मैं खुद ही इतना थक गया था तो इस बेचारी दुबली पतली लडकी में कहाँ इतनी जान होगी कि अब एक नितांत अजनबी से बातें करे. और वो भी तब जब कि इस अविस्मरणीय यात्रा में मुंह से निकली पहली बातों का सारे जीवन भर याद रह जाने का ख़तरा हो. मुझे लगा कि इसे चुप चाप आराम करने दूं और खुद भी थोडा सो लूं. फर्स्ट क्लास के कूपे में थे हम दोनों और अभी बलिया तक की लम्बी रेल यात्रा बाकी ही थी. तो मैंने बहुत प्यार से कहा “ अच्छा तुम थोडा आराम कर लो, बहुत थकी होगी” और उत्तर में इन्होने धीरे से सम्मतिसूचक गर्दन हिला दी. फिर मैं ऊपरवाली बर्थ पर जाकर लेट गया. वास्तव में शादी की पिछली शाम से चल रही परेड इतनी थकाऊ थी कि शायद दो मिनट भी नहीं लगे होंगे कि मैं गहरी नींद में था. ”

अब मेरे चौंकने की बारी थी. मैंने बहुत निराश स्वर में कहा “ यार,एक कुंवारे की हैसियत से मैंने न जाने क्या क्या रोमांटिक बातें सुनने की आशा की थी. अब जिस सीन में रोमांस में डूबने उतराने के शॉट्स दिखने वाले थे उसमे से तुम्हारे खर्राटों का शोर सुनायी पड़ रहा है. तुमने कहा था न कि तुम्हारी बेवकूफी के कारण ही लज्जा ने अपना मौनव्रत तोडा था. ज़रूर इन्होने कहा होगा “ए जी,इतनी जोर जोर से खर्राटे न भरिये,मैं सो नहीं पा रही हूँ. ”

“नहीं यार,थोडा धीरज रखो. बेवकूफी वाली घटना तक तो अभी पहुंचा ही नहीं. ” उसने अपने कहानी जारी रखी.

क्रमशः ------------