चीन का सम्राट अनगिनत जीत हासिल करके भी बहुत परेशान था। मन मे उठते हुए विचार उसके चितवन मे अनगिनत तरंगे पैदा कर रहे थे। उसकी आत्मा भीतर से बेचैन थी। वो जितना राज्यों पर जीत हासिल करता, उसके मन मे बेचैनी उतनी हीं बढ़ती चली जाती थी।
उसका राज्य जब छोटा था, जब उसे और बड़ा करने की बेचैनी थी। फिर जब साम्राज्य फैलता गया, उसे बड़े राज्य को संभालने की जरूरत आन पड़ी। अनेक शत्रुओं से राज्य को सुरक्षित करने की जिम्मेवारी जो अलग थी सो अलग। जितनी उसकी ताकत बढ़ती जाती, उसके शत्रु भी उसी रफ्तार से बढ़े जाते थे ।
बढ़ती हुई ताकत ने अनगिनत वासनाओं को जन्म दिया। धन , दौलत , प्रतिष्ठा, स्त्री सबका उपभोग उसने किया, पर शांति नहीं मिल पाई।वो शांति की प्राप्ति के लिए बेचैन था।
उन्हीं दिनों भारत के एक महान संत बोधिधर्म चीन पहुँचे हुए थे। उन्होंने अनगिनत लोगो को ईश्वर प्राप्ति के उपाय सुझाए थे। धीरे धीरे उनकी ख्याति चारो ओर फैलने लगी।
ये खबर सम्राट के पास भी पहुंची। उसने सुना कि भारत के एक महान संत बोधिधर्म चीन में आये हुए हैं और अनेक लोगो के मन में शांति स्थापित कर चुके हैं। सम्राट भी बोधि धर्म के पास पहुँचा।
बोधिधर्म से सम्राट ने कहा, स्वामी मेरा मन बहुत परेशान है। इतने सारे राज्यों को जितने के बाद भी चित्त अशांत है। मेरे पास आज अपार संपदा है। दुनियां में सुख सुविधा के तमाम साधन मेरे पास उपलब्ध हैं। हर तरह की स्त्रीयाँ मेरे लिए प्रस्तुत है। पर जितनी संपदा है उतनी हीं अशांति।
मन मे तमाम आशंका के बादल मंडराते रहते हैं। एक अलग सी बेचैनी रहती है। इसे शांत करने का उपाय बताईये।
बोधिधर्म ने कहा, ठीक है। मै तुम्हारे मन को शांत कर सकता हूँ। लेकिन इसके लिए एक शर्त है। तुम्हें कल सुबह चार बजे मेरे पास आना होगा। लेकिन ध्यान रहे साथ मे कोई न हो। बिल्कुल अकेले आना है।
सम्राट रात भर बेचैनी में करवटें बदलता रहा। रात भर नींद नहीं आई।जब सुबह सम्राट चार बजे पहुँचा तो उसने देखा कि बोधिधर्म के हाथ में एक डंडा है। सम्राट बड़ा आश्चर्य चकित हुआ। इस डंडे का भला क्या काम? मन मे तमाम प्रश्न आने के बावजूद उसने कुछ नहीं कहा। वो बोधि धर्म के आदेश सुनने को उत्सुक था।
बोधि धर्म ने सम्राट से पूछा:क्या तुम्हारा मन तुम्हें आज भी परेशान कर रहा है?
सम्राट ने कहा:हाँ महाराज, मेरा मन आज भी परेशान कर रहा है।
बोधिधर्म ने कहा:ठीक है, जरा ढूंढों तो, तुम्हारा मन कहाँ है? यदि मिले तो बताना। इस डंडे से मैं अभी शांत कर दूँगा।
सम्राट उलझन में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था, मन को ढूंढे आखिर तो कहाँ? अंत मे वो आँख बंदकर अपने मन को समझने की कोशिश करने लगा। वो जितना देखने की कोशिश करता, विचार तिरोहित होते चले जाते। धीरे धीरे वो विचार शून्यता की अवस्था मे पहुँच गया। जब उसने आँखें खोली, उसका मन शांत हो चुका था।
बोधिधर्म ने सम्राट को बताया: जब भी मन परेशान करें, साक्षी भाव मे स्थित हो जाओ। देखने की कोशिश करो, विचारों की श्रृंखला आखिर आ कहाँ से रही हैं। विचारों का प्रवाह अपने आप रुक जाएगा। सम्राट को उत्तर मिल चुका था। उसका चित्त शांत हो चुका था।