"त्राहिमाम, प्रभु, त्राहिमाम" कैलाश की सुरम्य वादियों में एक वेदना भरा नारी स्वर गूँजा।
"अरे ये तो देवी पृथ्वी की आवाज़ है। वो इस प्रकार व्याकुल होकर महादेव को क्यों पुकार रही हैं?" आवाज़ की दिशा में देखते हुए नंदी महाराज ने वहाँ उपस्थित एक अन्य गण से कहा।
"लीजिये देवी पृथ्वी से ही पूछ लीजिये। वो यहाँ पहुँच चुकी हैं।" गण ने जवाब दिया।
"प्रणाम माते। आप इस प्रकार व्याकुल क्यों हैं? आपके माथे पर ये चिंता की लकीरें कैसी?" नंदी महाराज ने देवी पृथ्वी को प्रणाम करते हुए पूछा।
आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाकर देवी पृथ्वी बोली "नंदी, भयंकर विपदा आ पड़ी है। मुझे शीघ्र महादेव के पास ले चलो।"
"लेकिन माते, महादेव तो इस वक्त समाधि में लीन हैं।" नंदी महाराज की आवाज़ में विवशता की झलक थी।
"नंदी, देवी पृथ्वी को सम्मानपूर्वक हमारे सम्मुख ले आओ।" ये आवाज़ माता पार्वती की थी।
"जगतजननी, माँ जगदम्बा को मेरा प्रणाम।" माता पार्वती के समक्ष पहुँचते हुए देवी पृथ्वी बोली।
"क्या बात है देवी? आप इतनी व्यथित क्यों दिखायी दे रही हैं?" माता पार्वती ने पूछा।
देवी पृथ्वी व्याकुल स्वर में बोली "माता, आप और महादेव तो अंतर्यामी हैं। फिर भी मैं अपनी और मनुष्य रूपी अपनी समस्त संतानों के संकट के विषय में मदद माँगने हेतु कैलाश आयी हूँ।
अब आप दोनों ही मेरी और मेरे संतानों की रक्षा कर सकते हैं।"
"ऐसा क्या संकट आन पड़ा है देवी?" माता पार्वती ने पुनः अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर की।
"माता, पूरी पृथ्वी पर कोरोना नाम का एक ख़तरनाक विषाणु तेजी से फैल रहा है, जो सभी मनुष्यों को धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रहा है।
मेरे बच्चे बहुत दुखी और विवश हैं माता। वो अपनी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। और ना ही मैं उनके लिए कुछ कर पा रही हूँ। उन्हें बचा लीजिये।" देवी पृथ्वी ने अश्रुपूरित नैनों से माता पार्वती की तरफ देखते हुए कहा।
माता पार्वती रोष भरे स्वर में बोली "देवी, ये उन कृतघ्न मनुष्यों के कर्मों का ही फल है। जिस प्रकार अपने स्वार्थ के लिए वो दिन-प्रतिदिन पर्यावरण को, आपको नुकसान पहुँचा रहे हैं, अपने से कमजोर जीवों की रक्षा करने की बजाये अपने मनोरंजन के लिए और स्वयं को श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए उनका वध कर रहे हैं, उसके लिए ये सज़ा बहुत ही कम है।
आप व्यर्थ ही उन दुष्टों के लिए दुखी हो रही हैं।"
"माता, संतान चाहे जैसी भी हो पर माता को प्रिय होती है। मेरा अस्तित्व तो मेरे बच्चों से ही हैं।
उनके अपराधों को क्षमा करके उनकी रक्षा करने का कोई मार्ग सुझाइये।
मुझे पूरी उम्मीद है भूतकाल में की हुई भूलों को अब वो नहीं दोहरायेंगे।" देवी पृथ्वी विनीत स्वर में बोली।
"ठीक है देवी। आप कृप्या ध्यान की अवस्था में आकर महादेव को पुकारिये। वो अवश्य आपकी सहायता करेंगे।" माता पार्वती ने कहा।
देवी पृथ्वी वहीं एक वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठकर 'ॐ नमः शिवाय' का जप करने लगी।
कुछ समय बीतने के पश्चात देवी पृथ्वी का अवचेतन शरीर महादेव के ध्यान स्थल के सम्मुख उपस्थित हो गया।
"महादेव को पृथ्वी का प्रणाम।" देवी पृथ्वी ने महादेव के चरणों में सर झुकाते हुए कहा।
"कहिये देवी, हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?" महादेव ने बंद नेत्रों से ही पूछा।
"प्रभु, पृथ्वी पर फैले हुए खतरनाक विषाणु से मेरी संतानों को बचा लीजिये प्रभु।" देवी पृथ्वी ने कहा।
देवी पृथ्वी की बात सुनकर कुछ क्षण महादेव मौन अवस्था में रहे।
जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था देवी पृथ्वी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
वो पुनः कुछ कहने ही जा रही थी कि सहसा महादेव के तीसरे नेत्र से एक ऊर्जा प्रकट हुई।
देखते ही देखते वो ऊर्जा ग्यारह भागों में विभक्त हो गयी।
कुछ ही क्षणों के पश्चात वो सभी भाग मानव रूप में परिणत हो गये।
उनमें से ग्यारहवीं ऊर्जा का शरीर मानव और कपि का मिला-जुला रूप था।
उन्हें देखते ही देवी पृथ्वी ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा "राम भक्त हनुमान के चरणों में मेरा प्रणाम।"
हनुमान ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाने के पश्चात महादेव से कहा "प्रभु, हम ग्यारह रुद्रों को किस प्रयोजन हेतु बुलाया गया है? आज्ञा कीजिये।"
"हनुमान हमारे ग्यारह रुद्रों में आप ना सिर्फ सर्वाधिक पूजनीय हैं, वरन हमारे आराध्य श्रीराम ने आपको कलियुग की समाप्ति तक अमरता का वरदान भी दिया है। इसलिए इस अति महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए हम आपको सभी रुद्रों का प्रमुख घोषित करते हैं।" महादेव हनुमान से मुख़ातिब होकर बोले।
"आज्ञा प्रभु।" हनुमान के साथ सभी रुद्रों ने महादेव को प्रणाम करते हुए कहा।
"पृथ्वी पर किसी भयानक विषाणु के प्रकोप से सभी मनुष्य अत्यंत दुखी और निराश हैं। उन्हें कष्ट में देखकर देवी पृथ्वी अत्यंत व्यथित हैं।
इसलिए आप सब पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों के बीच रहकर इस विषाणु से लड़ने और उसे समाप्त करने में उनकी मदद कीजिये।" महादेव आज्ञा देते हुए बोले।
"अवश्य प्रभु। हम इसी वक्त पृथ्वी के लिए प्रस्थान करते हैं। वहाँ पहुँचकर सारी स्थितियों को देखने के बाद हम इस संबंध में कार्य-योजना बनायेंगे।
आपके मार्गदर्शन की भी हमें आवश्यकता होगी प्रभु।" हनुमान विनम्र स्वर में बोले।
"हम आप सबकी सहायता के लिए हर पल उपस्थित रहेंगे। अब आप सब विलम्ब ना करें।" कहते हुए महादेव ने पुनः अपनी आँखें बंद कर ली।
देवी पृथ्वी का अवचेतन शरीर भी पुनः उनके शरीर में प्रवेश कर गया, लेकिन उनकी ध्यानावस्था ज्यों की त्यों बनी रही।
कुछ ही क्षणों में हनुमान सहित सभी रुद्र पृथ्वी पर स्थित भारत देश में पहुँचकर मनुष्यों के बीच आम मनुष्य की तरह घुल-मिल चुके थे।
हनुमान की आज्ञानुसार विषाणु और उससे संबंधित समस्याओं और उनके निवारण के संबंध में जानकारी हासिल करने हेतु सभी रुद्र प्रस्थान कर चुके थे।
स्थान: हिमालय की एक गुप्त कंदरा
रात्रि के ग्यारह बज चुके थे। हनुमान की आज्ञानुसार सभी रुद्र सारा दिन भ्रमण करने के पश्चात विषाणु द्वारा फैली महामारी के संबंध में जानकारियाँ और उस पर अपने सुझाव लेकर आ चुके थे।
उन्हें आसन ग्रहण करने का इशारा करते हुए हनुमान बोले "सर्वप्रथम हम आप सबका नया नामकरण करते हैं जो इन पृथ्वी वासियों के बीच रहने के लिए अनुकूल हो।
प्रथम रुद्र का नाम होगा 'काल'।
द्वितीय रुद्र को हम सब 'तारक' कहेंगे।
कमशः तृतीय, चतुर्थ और पंचम रुद्र 'भुवन' 'विध्येश' और 'भैरव' कहलायेंगे।
"छठे, सातवें और आठवें रुद्र का नाम होगा 'मस्तक' 'द्युम्न' और 'मुखर'।
नौवें और दसवें रुद्र क्रमश: 'मतंग' और 'कमल' होंगे।
मैं स्वयं 'अंजन' कहलाऊँगा।"
सभी रुद्र अपने नए नाम पाकर अति प्रसन्न थे।
सभी ने बारी-बारी से अब अपने अनुभवों को सुनाना शुरु किया।
काल बोले "ये विषाणु बहुत ही तेजी से मनुष्य से मनुष्य में फैल रहा है। इसका उपचार करने वाले चिकित्सक भी इससे ग्रसित हो रहे हैं। इसलिए हमें उनकी सुरक्षा का उपाय ढूँढ़ना होगा।
समस्त विश्व की सरकार ने मनुष्य को मनुष्य से दूरी बनाकर रखने के लिए कहा है, पर कुछ मनुष्य सुनने-समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
हमें किसी भी तरह उनका आपस में संपर्क तोड़ना होगा।"
तारक ने कहा "इस विषाणु के संक्रमण का तेजी से पता लगाने के लिए आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता को जल्द से जल्द पूरा करना होगा। पूरा विश्व उपकरणों की कमी से चिंतित है।"
"हमें प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक औषधियों की उपलब्धता को बढ़ाने की भी सख्त जरूरत है।" ये भुवन की आवाज़ थी।
विध्येश ने अपनी आँखों से एक रोशनी निकालकर सामने स्क्रीन जैसा बनाकर उस पर एक दृश्य दिखाते हुए कहा "हमें ऐसे मशीनी मानवों की भी आवश्यकता होगी जो बीमार लोगों के आसपास रहकर उनकी देखभाल करें क्योंकि मशीनी मानव में संक्रमण नहीं होगा।"
"भारत में जितने भी गरीब मजदूर हैं वो सब इस महामारी से बहुत प्रभावित हो रहे हैं। उन्हें काम मिलना बंद हो गया है, जिसकी वजह से उनके पास पैसे नहीं हैं, मकान-मालिक उन्हें निकाल रहें हैं, जिनके लिए वो काम करते हैं वो उन्हें निकाल रहें हैं। उनकी संख्या बहुत ज्यादा है और वक्त एवं साधन बहुत कम। इसलिए सरकार को भी उनकी व्यवस्था करने में मुश्किल हो रही है। हमें सबसे पहले उनके लिए कुछ करना होगा।" भैरव बोले।
मस्तक ने कहा "इस महामारी के प्रकोप में घर बैठने के कारण जिन गरीब और मध्यम-वर्ग के लोगों का काम पूरी तरह ठप्प हो गया है, हमें उनके लिए राशन की व्यवस्था करनी होगी। जो लोग किराये पर रहते हैं उनके मकान-मालिकों को सहयोग देने के लिए समझाना होगा।"
"हमें काल द्वारा बताये गये मूर्ख मनुष्यों को उनके घरों में रोके रहने के लिये सड़कों पर कड़ी चौकसी की व्यवस्था करने के साथ-साथ चौकसी करने वालों की सुरक्षा का प्रबंध करना होगा।" द्युम्न ने अपनी बात रखी।
मुखर बोले "मनुष्यों द्वारा पृथ्वी पर फैलायी हुई गंदगी और अस्पतालों की साफ-सफाई से लेकर बीमारों को लाने-ले वाले वाहनों की सफाई के लिए हमें ज्यादा संख्या में सफाईकर्मियों की भी आवश्यकता होगी।
मुझे लगता है इसके लिए विध्येश द्वारा सुझाये गये मशीनी मानव उचित रहेंगे। वो तेजी से कार्य भी करेंगे और उनकी वजह से मनुष्यों को इस काम में लगने से भी हम बचा पायेंगे।"
"इस महामारी के प्रकोप की वजह से बहुत से मनुष्य मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। हमें उनके अंदर सकारात्मकता को जगाना होगा। तभी वो मिलकर इस महामारी से लड़ सकेंगे।" मतंग ने कहा।
"मुझे जल्द से जल्द इस महामारी से बचाव के टीके की इजाद सबसे अहम आवश्यकता लगती है। वो भी इस कीमत पर जिसे निर्धन और धनी सभी खरीद पायें।" कमल बोले
उन सबकी बात सुनने के बाद हनुमान अर्थात अंजन बोले "मैंने भी कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा ली हैं।
भारत देश के स्वास्थ्य सचिव कल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ मंत्रणा करने वाले हैं। उसके बाद वो विश्व के सभी देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ इस महामारी का सामना करने के लिए एक अहम बैठक में भाग लेंगे।
हम सभी को उनके साथ इस बैठक में भाग लेना होगा और अपने सुझावों को दुनिया के सामने रखकर अलग-अलग जरूरतों के लिए अलग-अलग समूह बनाने होंगे।
हम उन समूहों के मुखीया होंगे। हमारे निर्देशन में सभी जल्द से जल्द कार्य करते हुए सारी जरूरतों को पूरा करेंगे। जिसमें हमारी शक्तियां गुप्त रूप से उनकी मदद करेंगी।"
"पर हम इस बैठक में भाग कैसे लेंगे? और सारी दुनिया हमें अपना मुखिया क्यों बनायेगी?" सभी रुद्र एक स्वर में बोले।
"उसकी चिंता आप मुझ पर छोड़ दीजिये। और अपने-अपने समूहों का नेतृत्व कैसे करना है उस पर विचार कीजिये।" इतना कहकर अंजन ध्यान में लीन हो गये।
बाकी रुद्र भी ध्यानावस्था में बैठ गये।
स्थान- भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव मिस्टर सिंगला का दफ्तर
वक्त: सुबह के आठ
चारों तरफ अफ़रातफ़री मची हुई है। सब लोग जल्दी-जल्दी अपना काम खत्म करने में लगे हुए हैं।
तभी फोन की घण्टी बजती है, जिसे मिस्टर सिंगला के पीए 'कुमार' उठाते हैं।
"हैलो"
"नमस्कार, क्या मेरी बात श्री सिंगला से हो रही है?"
"नहीं, मैं उनका पीए बोल रहा हूँ। आप कौन?"
"मेरा परिचय जानने में अभी वक्त मत बर्बाद कीजिये श्रीमान। आप कृप्या सचिव जी से मेरी बात करवाइये।"
इस आवाज़ में पता नहीं ऐसी कौन सी मोहिनी शक्ति थी कि कुमार ने बिना किसी सवाल-जवाब के फोन सचिव साहब की तरफ बढ़ा दिया।
"देखिये हम लोग इस वक्त बहुत परेशान हैं। आप जो भी हैं कृप्या बाद में संपर्क कीजिये।" सचिव साहब बोले।
"आप जिस वजह से परेशान हैं मैं उसी संदर्भ में आपसे बस दो मिनट बात करना चाहता हूँ।" फ़ोन के दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।
"जो कहना है जल्दी कहिये।" सचिव साहब की आवाज़ से व्यग्रता झलक रही थी।
"मेरे विश्वस्त ग्यारह वैज्ञानिकों के समूह को मैंने आपके दफ्तर भेजा है। आप सभी देशों के साथ होने वाले स्वास्थ्य सम्मेलन के लिए और कोई तैयारी मत कीजिये। बस इन लोगों को अपने साथ सम्मेलन में ले जाइये। ये सब सम्भाल लेंगे।"
"वैज्ञानिकों का समूह? पर कौन हैं ये लोग? और मैं मंत्री जी से इनके विषय में क्या कहूँगा?"
"मंत्री जी को भी मैं फोन कर दूँगा। उसकी फिक्र आप मत कीजिये। और ये वैज्ञानिक इसी समाज की धरोहर हैं, जिन्हें उचित वक्त आने पर मैं समाज को सौंप रहा हूँ।"
सचिव साहब भी इस आवाज़ की मोहिनी में बंध चुके थे।
उन्होंने हामी भरकर फोन रख दिया।
तभी एक बार फिर फोन कि घंटी बजी।
दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री 'श्री चौहान' जी थे।
"सुनिये सिंगला जी, अभी-अभी एक सूत्र से पता चला है कि हमारे ग्यारह विशेष वैज्ञानिकों का एक समूह जो गोपनीय रूप से अपने शोध में लगा हुआ था, वो इस महामारी से निपटने में हमारी मदद करने के लिए आ रहा है।
वो लोग कुछ ही देर में आपके दफ्तर पहुँच जायेंगे। आप उन्हें साथ लेकर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मेरे दफ्तर पहुँचिये।"
"जी सर, मैं ऐसा ही करूँगा।" सिंगला जी ने कहकर फोन रख दिया और बेचैनी से चहलकदमी करने लगे।
कुछ ही देर में उनके पीए कुमार ने आकर कहा "सर एक बड़ी सी गाड़ी अभी-अभी दफ्तर के बाहर रुकी है। उसमें ग्यारह लोग हैं।"
"जल्दी से उन सबको अंदर ले आइये कुमार जी।" सिंगला जी बोले।
ग्यारह रुद्र जब सिंगला जी के सामने पहुँचे तो सिंगला जी कुछ क्षण मोहाविष्ट से उन्हें देखते रहे।
अंजन ने ही खामोशी को भंग किया और बोले "सचिव साहब मैं हूँ अंजन और ये है मेरा समूह।"
सभी रुद्रों ने बारी-बारी से अपना परिचय देते हुए कोरोना महामारी पर की गयी अपनी शोध के विषय में संक्षेप में सिंगला जी को बताया।
उनकी बातें सुनकर सिंगला जी अब कुछ आश्वस्त नज़र आ रहे थे।
तय वक्त पर सिंगला जी और ग्यारह रुद्र विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वास्थ्य मंत्री के दफ्तर पहुँच चुके थे।
सिंगला जी ने रुद्रों से हुई बातचीत के बारे में जब मंत्री जी को बताया तब उनके माथे से भी चिंता की लकीरें कुछ कम हो गयी।
दफ्तर के कॉन्फ्रेंस हॉल में बड़ी सी स्क्रीन पर सभी देशों के स्वास्थ्य मंत्री, सचिव, और स्वास्थ्य विशेषज्ञ नज़र आ रहे थे।
सम्मेलन शुरू हुआ।
सभी देश महामारी के बढ़ते हुए प्रकोप से अत्यंत चिंतित थे। उन्हें इससे निपटने का कोई भी तात्कालिक समाधान नज़र नहीं आ रहा था।
सबके विचारों को सुनने के बाद अब सबकी नज़रें भारत के स्वास्थ्य मंत्री श्री चौहान साहब पर थी।
चौहान साहब ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा "हमारे देश के ग्यारह वैज्ञानिकों के समूह से आज मैं आपका परिचय करवा रहा हूँ।
इन सभी ने इस महामारी से निपटने के लिए कुछ विशेष शोध किये हैं। मैं चाहता हूँ एक बार आप सब इन्हें सुनें।"
सभी देशों ने मेज थपथपाकर चौहान जी की बात से सहमति जतायी।
सबकी स्वीकृति मिलते ही अंजन ने माइक संभाला और बोलना शुरू किया।
"जैसा कि हम सभी जानते हैं कुछ ही वक्त में कोरोना नाम की इस महामारी ने सम्पूर्ण विश्व को संकट में डाल दिया है। और हमें इस वक्त अलग-अलग देशों की तरह नहीं बल्कि एक विस्तृत समूह की तरह मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
मेरे साथी वैज्ञानिकों ने इस विषय पर अत्यंत सूक्ष्मता से शोध किया है।
इस महामारी का सामना करने के लिए हमें इस वक्त जिन चीजों की आवश्यकता है, वो हैं-
सभी स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक ऐसी किट जो उनके पूरे शरीर को अच्छी तरह ढ़का रखे ताकि उनका संक्रमण से बचाव हो सके।
टेस्टिंग किट जो सस्ती भी हो और जल्दी परिणाम दे, साथ ही चिकित्सा के लिए अन्य जरूरी उपकरण।
प्राथमिक उपचार की उचित व्यवस्था, सभी जरूरी दवाइयों की उचित मात्रा में उपलब्धि।
मशीनी मानव यानी कि रोबोट, ताकि कम से कम इंसानों को बीमार लोगों के आसपास रहना पड़े और संक्रमण का खतरा घटे।
भारत समेत जिन देशों में गरीब मजदूर हैं जो इस महामारी में बेघर, बेरोजगार हो गये हैं, उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की व्यवस्था।
सभी गरीब और मधमयवर्ग के लोग जिनकी आय इस वक्त पूरी तरह बंद हो गयी है उनके लिए राशन कि व्यवस्था।
सड़कों पर निरंतर चौकसी ताकि लोग सजग-सचेत रहे और अगर कहीं कोई आपात स्थिति दिखे तो उसे नियंत्रित किया जा सके।
सफाई कर्मचारी, जिसके लिए रोबोट ही उचित रहेंगे।
महामारी और लॉकडाउन के कारण गहरे सदमे में गये लोगों को प्रेरित करके नकारात्मकता को दूर करने में मदद करने वाले वक्ता
और सबसे जरूरी जल्द से जल्द इस महामारी का प्रतिरोधक टीका।
साथ ही एक देश से दूसरे देश तक जल्द से जल्द जरूरी साधनों का आवागमन।"
"हम सब आपकी बात से सहमत हैं। लेकिन ये सब इतनी जल्दी होगा कैसे? हालात तो बेकाबू होते जा रहे हैं।" सम्मेलन में शामिल सभी लोग एक स्वर में बोले।
अंजन ने फिर कहना प्रारंभ किया "हमने सारी रूपरेखा तैयार कर ली है। उसके अनुसार आप सब अपने-अपने देश के विशेषज्ञों को मेरे वैज्ञानिकों के साथ काम करने की व्यवस्था कीजिये बस।"
"वो रूपरेखा क्या है?" सबने जिज्ञासा ज़ाहिर की।
"इनसे मिलिये। मेरे समूह के पहले वैज्ञानिक 'काल'। ये सुरक्षा कवच के निर्माण में निपुण हैं।
ये हैं तारक। ये टेस्टिंग किट और उपकरणों के निर्माण की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं।
ये हैं भुवन। जो प्राथमिक उपचार के लियए आवश्यक दवाओं को बना सकते हैं।
ये विध्येश जो रोबोट विज्ञान में सिद्धहस्त हैं। ये तेजी से पर्याप्त संख्या में रोबोट्स बना सकते हैं।
अगले वैज्ञानिक हैं भैरव जो मजदूरों की उचित व्यवस्था के लिए तात्कालिक विश्राम गृह का निर्माण करेंगे।
और ये हैं मस्तक जो गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों में वितरण के लिए राशन की व्यवस्था का कार्य देखेंगे।
ये हैं द्युम्न जो सड़कों पर कड़ी चौकसी की व्यवस्था करेंगे और लोगों को जागरूक करेंगे।
अगले वैज्ञानिक हैं मुखर जो सफाईकर्मियों को प्रशिक्षित करेंगे और उनके काम की निगरानी करेंगे
मतंग सभी मनुष्यों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए प्रेरित करने वाले वक्ताओं के साथ मिलकर काम करेंगे
और कमल इस महामारी से निपटने के लिए टीका बनाने की जिम्मेदारी लेंगे।
मैं अंजन एक देश से दूसरे देश में साधनों की आवाजाही का कार्य देखूंगा। ताकि जल्दी से जल्दी हम सभी साधन सभी जरूरतमंद देशों तक पहुँचा सके।
निर्माण का सारा काम हम हैली द्वीप पर करेंगे। वहीं से सुरक्षा किट, टेस्टिंग किट, अन्य चिकित्सा उपकरण, दवाइयाँ, रोबोट्स वगैरह का निर्माण करके हम सभी देशों तक भेजेंगे।
अब आप लोग मेरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने वाले लोगों को चुनकर उनकी सूची मुझे दीजिये ताकि मैं उनके हैली द्वीप पर पहुँचने की व्यवस्था कर सकूँ।
हैली द्वीप हिन्द महासागर के बीचों-बीच एक गुप्त द्वीप था, जिसका आज तक सबने बस नाम ही सुना था।
कई खोजी दलों ने इस द्वीप का पता लगाना चाहा पर नाकाम रहे।
आज इस द्वीप का नाम सुनकर सभी देश अचंभित थे।
साथ ही अंजन और उनके समूह के विस्तृत शोध के बारे में सुनकर आश्चर्यचकित भी।
सभी देशों ने अपने-अपने विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करके सभी रुद्रों के साथ मिलकर कार्य करने वाले लोगों की सूची अंजन को सौंप दी।
अंजन ने कहा "आप सभी कल सुबह विशेषज्ञों को अपने-अपने शहर के एयरपोर्ट पर भेजीये। वहाँ एक विशेष विमान उनकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। जो उन सबको हैली द्वीप पर ले आयेगा।
जो लोग भैरव के साथ मिलकर मजदूरों के लिए तात्कालिक निवास स्थान बनाने वाले हैं, उन्हें भैरव इसे बनाने की विधि अपने अगले ऑनलाइन सम्मेलन में देंगे।
इसी तरह मस्तक, द्युम्न और मतंग भी अपने साथ मिलकर कार्य करने वाले लोगों को बतायेंगे की किस प्रकार बिना स्वयं को खतरे में डाले सड़कों पर चौकसी करनी है और जरूरतमंद परिवारों का पता लगाकर उन तक राशन पहुँचाना है। साथ ही लोगों को सकारात्मक वार्ताओं से किस प्रकार नकारात्मक सोच में खो जाने से बचाना है।"
सभी लोगों ने अंजन से सहमति जताई और अपने-अपने कार्य में लग गये।
अगले दिन शाम ढ़लते-ढ़लते हैली द्वीप पर सभी देशों के विशेषज्ञ पहुँच चुके थे।
काल, तारक, भुवन, विध्येश, मुखर और कमल की निगरानी और निर्देशों के अंतर्गत सभी लोग तेजी से निर्माण कार्य में लग चुके थे।
जैसे-जैसे सुरक्षा उपकरण, टेस्टिंग किट, चिकित्सा के अन्य उपकरण, रोबोट्स का निर्माण होता जा रहा था, अंजन अपनी शक्ति से उन्हें तीव्रता से जहाजों के माध्यम से सभी देशों में पहुँचा रहे थे।
उधर भैरव अपने लोगों के साथ मिलकर जगह-जगह मजदूरों के रहने के लिए शिविर बनाते जा रहे थे। जिससे बेघर-बेबस मजदूरों में अब हर्ष की लहर थी।
उनके सही-सलामत रहने की खबर सुनकर दूर रहने वाले उनके परिवार वाले भी अब बेफिक्र थे।
मस्तक ने भी अपने लोगों के साथ मिलकर जगह-जगह से राशन एकत्रित करके जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाने का कार्य बखूबी संभाल लिया था।
द्युम्न ने अपने विशेष ताकतवर समूह के साथ मिलकर सभी सड़कों पर चौकसी का काम संभाल लिया था, ताकि मूर्ख मनुष्यों को उनके घरों में रोका जा सके।
उनकी सुरक्षा के लिए भी भैरव ने छोटे-छोटे शिविर बना दिये थे, और अंजन ने सुरक्षा किट उपलब्ध करवा दी थी।
उनके खाने-पीने की जिम्मेदारी मस्तक के समूह की थी।
मतंग और उनके लोग अपनी सकारात्मक वार्ताओं से लोगों के अंदर भर गयी उदासी और तनाव को भगाने का काम बखूबी कर रहे थे।
सभी रुद्रों के नेतृत्व में अब सभी देशों में धीरे-धीरे कोरोना का प्रकोप बहुत कम हो चुका था।
अब सब लोग बेसब्री से कमल और उनके समूह द्वारा टीके के आविष्कार का इंतज़ार कर रहे थे।
आख़िरकार दो महीनों की लगातार मेहनत के बाद टीका बनकर तैयार हुआ।
टीके का परीक्षण करने के लिए जब कमल और अंजन ने स्वयं को चुना तो सभी लोग स्तब्ध थे।
सभी लोगों का मत था कि उन्हें खतरा उठाने की आवश्यकता नहीं है। सभी टीकों की तरह इसका परीक्षण भी जानवरों पर किया जाना चाहिए।
लेकिन अंजन और कमल ने इससे इनकार करते हुए कहा कि जानवरों के प्राण भी अमूल्य हैं।
आख़िरकार टीके के परीक्षण के लिए पहले इस खतरनाक कोरोना वायरस का अंश कमल और अंजन के शरीर में प्रविष्ट करवाया गया। और जब दोनों कोरोना संक्रमित हो गये तब उन्हें बचाव वाला टीका दिया गया।
तीन दिन गुज़र चुके थे, लेकिन अभी तक अंजन और कमल में खास सुधार नहीं हुआ था।
सम्पूर्ण विश्व के लोग साँस थामे टीके से सबंधित अंतिम घोषणा का इंतज़ार कर रहे थे।
चौथे दिन की सुबह आ चुकी थी। सूरज की किरणों ने अभी-अभी धरती के आँचल को स्पर्श करना शुरू ही किया था कि जिस चिकित्सा कक्ष में कमल और अंजन थे, वहाँ उनकी देखभाल के लिए मौजूद स्वास्थ्य कर्मी तेजी से अन्य चिकित्सकों को बुलाने के लिए दौड़े।
सभी चिकित्सक बिना देर किए कमल और अंजन के पास पहुँचे और उनका परीक्षण किया।
सभी लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गयी जब उन्होंने देखा कि कमल और अंजन का शरीर टीके के साथ मिलकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहा था और उनके शरीर से संक्रमण के लक्षण अब खत्म हो रहे थे।
कमल और अंजन के निर्देश पर उनके उपचार में लगाये गए अन्य उपकरणों को हटा दिया गया, साथ ही अन्य औषधियां भी बंद कर दी गयी।
शाम तक जब उन दोनों की हालत स्थिर बनी रही और संक्रमण दोबारा नहीं बढ़ा, तब खुशी से सब लोग नाच उठे।
अंजन के निर्देश पर सभी देशों के प्रमुख की बैठक बुलायी गयी। बैठक में अंजन ने कोरोना महामारी के टीके का परीक्षण सफल होने की सूचना जैसे ही सभी लोगों को दी, सब लोग आश्चर्यमिश्रित खुशी में डूब गये।
धीरे-धीरे विश्व के सभी लोगों तक भी ये खबर पहुँच गयी। सब लोग मन ही मन अपने ईश्वर का आभार प्रकट कर रहे थे।
देखते ही देखते बड़े पैमाने पर टीके का उत्पादन शुरू हो गया और सभी देशों में उचित मात्रा में इसका वितरण किया गया।
कमल के प्रयासों से ये टीका इतना सस्ता था कि सभी देशों के सरकारों को इसे अपनी गरीब जनता तक पहुँचाने में किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा था।
कुछ ही महीनों में पृथ्वी पूरी तरह कोरोना मुक्त हो चुकी थी।
लोगों का जीवन अब पटरी पर लौट आया था।
चारों ओर हर्षउल्लास का माहौल वापस आ चुका था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बैठक में घोषणा की कि अब चूँकि ऑनलाइन सम्मेलन की आवश्यकता नहीं है, इसलिए सभी देशों के प्रमुख एक विशेष आयोजन में भाग लेकर भारत के इन विशेष ग्यारह वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु उपस्थित होंगे।
सभी देश इस बात से सहमत थे। भारत के लिए ये एक गौरवपूर्ण क्षण था, जब उसके विद्वानों ने सम्पूर्ण विश्व के आगे उसकी ज्ञान-पताका फहरा दी थी।
सभी रुद्र इस वक्त भारत के स्वास्थ्य मंत्री के आवास में ही मौजूद रहकर महामारी संकट पर अपनी नज़रें जमाये हुए थे कि कहीं फिर से किसी तरह का प्रकोप उत्पन्न ना हो।
लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद जब कहीं से किसी तरह की कोई बुरी ख़बर नहीं आयी तो सब लोग निश्चिन्त हो गये।
अब वो लोग वापस जाने के लिए महादेव के संकेत की राह देख ही रहे थे की मंत्री श्री चौहान जी ने उन्हें सम्मान समारोह की खबर दी।
सभी रुद्र इस खबर को सुनकर बस मुस्कुरा दिये और मंत्री जी के जाने के बाद ध्यान में बैठ गये।
जिस संकेत की वो सब प्रतीक्षा कर रहे थे, वो उन्हें मिल चुका था।
अगली सुबह जब मंत्री जी के आदमी सभी रुद्रों को बुलाने उनके कक्ष में पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं था।
वो लोग लौट ही रहे थे कि एक आदमी की नज़र सामने शीशे पर चिपके हुए एक लिफाफे पर गयी।
उन्होंने वो लिफ़ाफ़ा ले जाकर मंत्री जी को दे दिया।
मंत्री जी ने उसे खोला तो उसके अंदर एक चिट्ठी थी।
समस्त विश्व के लोगों
हम सिर्फ मानवता की भलाई के लिए कार्य करते हैं। हमें किसी सम्मान की आवश्यकता नहीं है। हम अपने गुप्त स्थान पर लौट रहे हैं ताकि अगर विश्व पर फिर से कोई संकट आये तो हम उसका सामना करने के लिए स्वयं के ज्ञान को बढ़ाते रहें। हमें खोजने की कोशिश व्यर्थ है।
आप सबसे यही आग्रह है कि एक-दूसरे के साथ परिवार की तरह मिलकर रहियेगा। युद्ध और बेवजह के शक्ति प्रदर्शन से विश्व में किसी का भला नहीं हो सकता।
आपके शुभचिंतक
ग्यारह वैज्ञानिकों का गुमनाम समूह
इस चिट्ठी को पढ़कर मंत्री जी हतप्रभ थे।
भारत के साथ-साथ सभी देशों के लोग अब उन ग्यारह वैज्ञानिकों को ईश्वरीय चमत्कार मानते हुए समस्त विश्व को इस महामारी से बचाने के लिए आभार प्रकट कर रहे थे।
उधर कैलाश पर जैसे ही सभी ग्यारह रुद्रों का आगमन हुआ, नंदी ने जयघोष करके उनका स्वागत किया।
जयघोष की आवाज़ से ध्यान में बैठी हुई देवी पृथ्वी की आँखें भी खुल गयी।
अपने बंद नेत्रों से पृथ्वी पर अब तक घटे हुए सभी घटनाक्रमों को वो देख चुकी थी।
उन्होंने गयारह रुद्रों के प्रति आभार प्रकट किया तो वो सब समवेत स्वर में बोले "ये हमारा कर्तव्य था माते।"
महादेव और माता पार्वती ने भी आज स्वयं उठकर उन सभी का स्वागत किया।
"आप सबने जिस प्रकार पृथ्वी पर उत्पन्न हुए इस संकट का सामना किया उसके लिए हम आप सबकी प्रशंसा में जो भी कहें वो कम होगा।" महादेव बोले।
"प्रभु, हम सब तो आपका ही अंश हैं। हमने जो भी किया आपकी ही प्रेरणा से किया।" अंजन समेत सभी रुद्र बोले।
"फिर भी आप सब बधाई के पात्र हैं। इसलिए हम आप सबको वरदान देते हैं कि जब तक पृथ्वी पर जीवन रहेगा, मनुष्यों का अस्तित्व रहेगा आप सभी की भी पूजा होगी।" माता पार्वती ने सभी रुद्रों को आशीर्वाद देते हुए कहा।
उनका आर्शीवाद ग्रहण करके उनके प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हुए सभी रुद्र पुनः महादेव के तीसरे नेत्र में समाहित हो चुके थे।
देवी पृथ्वी भी प्रसन्नचित होकर महादेव और माता पार्वती के प्रति आभार प्रकट करते हुए अपने निवास स्थान की ओर लौट चुकी थी।