Kacchi Amiya in Hindi Short Stories by Pratap Singh books and stories PDF | कच्ची अमिया

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कच्ची अमिया

कच्ची अमिया

"मैडम वो अभी लौट कर आने वाले ही होंगे। आप चिंता न करें।" पेट्रोल पंप के कर्मी उस नवविवाहिता महिला को समझाने की कोशिश कर रहे थे जिसे भरी रात में उसका पति अपनी स्कूटी में तेल भरवाने के बाद छोड़ कर चला गया था, वह रोए जा रही थी। पट्रोल पंप कर्मी उसे दिलासा दे रहे परन्तु वह कुछ भी समझने को तैयार नहीं थी।
रात के करीब ग्यारह बजे पेट्रोल पंप पर एक महिला को घेर उसे समझाने की कोशिश करते पेट्रोल पंप कर्मियों को देख अपनी बाइक में पेट्रोल भरवाने के बाद मैंने भी उनके पास खड़े होकर मामला समझने की कोशिश की।
"वो कैसे आएंगे, उन्होंने तो एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा। अब इतनी रात को मैं कहां जाऊंगी? मुझे तो इस शहर के बारे में ज्यादा पता भी नहीं है। और मेरे पास इतने पैसे भी नही है। कि घर अकेली घर जा सकूँ।
"मैडम एक बार उन्हें फ़ोन लगा कर देख लीजिए।, पेट्रोल पंप कर्मी ने सुझाव दिया।
"कितनी बार ट्राई कर चुकी हूं पर वो फ़ोन उठाएं तब न!" आंखों से बहते हुए आँसुओं को महिला अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए बोली।
"मैडम आप रोएँ नहीं, ये लीजिये पहले पानी पीजिये। दलीप.. आफिस से कुर्सी लेकर के आ!" पेट्रोल पंप के वरिष्ठ कर्मी ने महिला को पानी देते हुए साथी कर्मचारी को निर्देश दिया।
मैं भी शाम की ड्यूटी कर के निकला ही था। आगे क्या होने वाला है। यह कौतूहल था या फिर शायद उस भद्र महिला की मदद करने का जज्बा। इस तरह एक महिला को परेशान छोड़ बाइक में किक मारने की मेरी हिम्मत भी न हुई। लिहाजा बाइक साइड में लगा, पूरा मामला समझने का प्रयास किया।
"क्या हुआ?"
"भाई साहब इनके हस्बैंड ने स्कूटी में तेल भरवाने के लिए इन्हें स्कूटी से उतारा और इन्हें यहीँ छोड़ कर चले गए।" पेट्रोलपंप का मैं नियमित ग्राहक था। उसने एक बार में सारी बातों सार मुझे बता दिया।
"मैडम आप बेकार परेशान हों रहीं हैं। दरअसल उन्हें पेट्रोल भरवाने की बाद स्कूटी स्टार्ट करने के बाद पता ही नहीं चला होगा कि आप बैठ गयी है, या नहीं। और वो स्कूटी लेकर चले गए होंगे। आ जाएंगे.. अभी थोड़ी देर में ...जब उन्हें रास्ते में पता चलेगा....तो!" मुझे सारा मामला समझ आ चुका था।
"नहीं... वो मुझे जानबूझ कर छोड़ कर गए है। अब इतनी रात को में कहां जाऊंगी?"
"दरअसल आपको शायद गलतफहमी हो रही है, उन्होंने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया होगा। और जरूरत पड़ी तो मैं आपको आपके घर छोड़ कर आऊंगा।" मैंने आश्वाशन दिया।
मेरे दिए आश्वाशन की गहराई जांचने के लिए उसने भी मुझे ऊपर से नीचे तक देखा।
"आप इतने यकीन से कैसे कह सकते है... कि वो मुझे जानबूझ नहीं छोड़ कर गए हैं?"
"दरअसल मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है। और एक बार नहीं...दो-दो बार!" अतरिक्त आश्वाशन देने के लिए मैंने अपने एक बार के अनुभव को दो बार बता कर उसे सयंत करने की कोशिश की।
मेरे बताने के अंदाज से वह भी मुस्कराए बिना नहीं रह सकी।
"सॉरी!.. स्वीटी...मैनु पता ही नहीं चल्या..! सॉरी बेबी सॉरी...!" तभी उसके सामने स्कूटी खड़ी करके उस महिला का पत्ति माफी माँगते हुए बोला। "चल बैठ!"
"तुस्सी घर चलो.. तैनूं तो मैं घर जा कर देखागीं।" महिला अपने पत्नी- चरित्र में वापस आ चुकी थी।
मैंने अपनी भूल चुकी भुल जो किसी के मुस्कराने की वजह बनी थी। याद कर मुस्कराते हुए उस कच्चे आम सी खट्टी-मीठी उस नवदंपति की नोंक-झोंक को देखते हुए घर जाने को अपनी बाइक में किक मारी।
स्वरचित
Dt 31.05.2020
प्रताप सिंह
9899280763
वसुंधरा, गाज़ियाबाद।