Student ticket in Hindi Comedy stories by Bharti books and stories PDF | स्टूडेंट टिकिट

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स्टूडेंट टिकिट

स्टूडेंट टिकिट

यह उन दिनों की बात है जब बिन्नी ने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की थी और अब कोर्ट में प्रैक्टिस करने के दिन आ गए थे।

बारिशों का मौसम था और उसका कोर्ट का पहला दिन।बड़े चाव से आज सफेद सलवार कुर्ता सफेद चुन्नी जो विद्यार्थियों की तरह तय करके और सेफ्टी पिन लगा के बड़े तरीके और सलीक़े से पहने हुए थी।इन सब के ऊपर काला कोट।अगर एक बार को काले कोट के बिना उसे देखा जाता तो उस दिन उस यूनिफार्म में वो किसी स्कूल की बच्ची ही लग रही थी।

खैर!पूरी तरह से तैयार हो कर वो कोर्ट के लिए बस स्टैंड की तरफ चल पड़ी।चूंकि अभी विद्यार्थी जीवन से निकली ही थी इसलिए बसों में चलने की उसे अच्छी आदत थी,साथ ही अभी इतने पैसे भी नहीं थे कि वह कोई गाड़ी ले पाए।मग़र वह इन सब में भी खुश और उत्साहित थी।थोड़ी देर में ही कोर्ट को जाने वाली एक बस आयी और वो उसमें खुशी खुशी बैठ गई।चूंकि बारिश का मौसम था औऱ पापा ने हिदायत दी थी कि कोट को भीगने से बचाना,नहीं तो इसके कंधे के पैड और कोट पूरा खराब हो जाएगा।इसलिए बिन्नी ने बस के आने से पहले ही अपना काला कोट अच्छी तरह से तय कर के प्लास्टिक बैग में रख लिया था।अब वो कहीं से भी वकील ना लग कर किसी स्कूल की छात्रा ही लग रही थी और यही वो चाहती भी थी कि कम से कम बस में उसे छात्रा ही समझा जाये ताकि वो टिकट के पूरे पैसे देने से बच जाए। थोड़ी देर में कंडक्टर बिन्नी के पास आया औऱ कहाँ जाना है पूछा,बिन्नी ने कोर्ट का नाम लिया तो कंडक्टर ने टिकट के पैसे मांगे तो उसने ST यानी स्टूडेंट कह के पैसे दे दिए,एक बार को तो कंडक्टर ने बिन्नी को ऊपर से नीचे तक देखा,शायद कोर्ट के नाम से उसे बिन्नी के वकील होने का शक हुआ होगा लेकिन बिन्नी ने भी तुरंत मौके की नज़ाकत समझते हुए बच्चों जैसा मुँह और हाव भाव बना लिए। फिर भी दिल में धुक धुक तो हो ही रही थी कि कहीं किसी तरह कंडक्टर को पता न चल जाये कि वह ST नहीं वाकई में वकील बन आज कोर्ट जा रही है और उससे पूरी टिकट के पैसे मांग ले।कंडक्टर बिन्नी से ST के आधे टिकट के पैसे लेकर आगे बढ़ गया।अब कंडक्टर अपने टिकट बनाने में बिजी था और ये देवी बस के कोने से लगातार कंडक्टर को तिरछी तिरछी कातर नज़रों से बार बार देख रहीं थीं कि कहीं वो उसे ही तो नहीं देख रहा या शक कर रहा।कभी कंडक्टर किसी को पुकारता तो उसके कान खड़े हो जाते कि कहीं कंडक्टर उसे ही तो आवाज नहीं दे रहा।कंडक्टर बेचारा,बिन्नी की इस तरह की भाव भंगिमाओं से पूर्णतया अनभिज्ञ था और देवी जी की सारे कार्य कलाप बड़े ही हास्यास्पद लग रहे थे।ये बात अलग थी कि किसी को बिन्नी की इस श्यानपट्टी का पता नहीं था।


खैर!कंडक्टर को बिना बात आड़ी तिरछी नज़रों से देखते और दिल की धुक धुकी के साथ सफर पूरा हो गया औऱ अंततः कोर्ट आ ही गया।अब कंडक्टर ने कोर्ट पर उतरने वालों के लिए आवाज लगाई।कोर्ट वाले आ जाओ,ऐसे वो आवाज लगाने लगा।अब बिन्नी की अंतिम परीक्षा बाकी थी जो उसकी खुद की बनाई हुई थी औऱ मन ही मन चल रही थी।वो कोशिश कर रही थी कि उसकी इस तरह की क्रिया प्रतिक्रिया का किसी को पता न चले औऱ इस फ़ेर में कभी वह स्वयं को कॉंफिडेंट दिखाने का प्रयास कर रही थी तो कभी पूरे रास्ते और अभी की अपनी क्रियाओं पर मन ही मन हँस रही थी।बाहरी दुनिया अपने तरीके से चल रही थी पर बिन्नी की तो अलग ही दुनिया और हास्यास्पद क्रियाएं हो रही थीं।कंडक्टर अभी भी आवाज दिए जा रहा था,शायद उसे ध्यान था कि बिन्नी ने कोर्ट तक का टिकट लिया है।अब बिन्नी बस के दरवाजे पर उतरने के लिए खड़ी थी औऱ सफलतापूर्वक कंडक्टर की नज़रो से जबरदस्ती खुद को बचाते हुए उतर भी गई थी और आगे भी बढ़ गई थी कि तभी कंडक्टर की पीछे से आवाज आई, मैडम!बिन्नी के खुद के मन के पैदा डर ने पीछे देखने से मना कर दिया कि कहीं कंडक्टर पहचान न गया हो,बिन्नी कंडक्टर की आवाज़ को जानबूझकर अनसुना कर आगे बढ़ने लगी तो कंडक्टर ने थोड़ा जोर लगा के कहा कि ओ मैडम!आपका रूमाल यहाँ गिर गया है, ये सुनते ही बिन्नी ने देखा कि अरे उसका रूमाल उसके हाथ में नहीं है, शायद कंडक्टर से अनजानी लुका छिपी खेलने के चक्कर में गिर गया था।रूमाल की बात सुन कर बिन्नी की जान में जान आयी और वो तुरंत पूरा बाहरी आत्मविश्वास दिखाते हुए पलटी और कंडक्टर को थैंक यू बोलते हुए रूमाल ले लिया कि किसी को कोई शक न हो और कोर्ट की तरफ जल्दी जल्दी चल दी।दरअसल वास्तव में किसी को कोई शक नहीं था लेकिन बिन्नी की यह हास्यास्पद दुनिया तो अलग ही चल रही थी।


खैर!कोर्ट का टाइम पूरा हुआ और अब बिन्नी को कोर्ट से फिर घर जाना था औऱ वो भी ST की टिकट पर,जो उसके लिए एक बड़ा टास्क था।गंभीर भी और हास्यास्पद भी।शाम को कोर्ट से निकलते वक्त बादल आसमान में पूरी तरह छा चुके थे और इक्का दुक्का बारिश की बूंदे गिरनी भी चालू हो चुकी थीं।बिन्नी को तुरंत पापा की हिदायत याद आयी और उसने कोर्ट से निकलते वक्त ही अपना काला कोट जो एकमात्र उसके वकील होने को पुख्ता करता था, को दुबारा प्लास्टिक बैग में रख लिया।अब वो दुबारा छात्रा लग रही थी।कोट जो गायब हो गया था।अब वो ST बन गई थी।बिन्नी जल्दी जल्दी बस स्टैंड पर पहुंची,थोड़ी देर में ही घर को जाने वाली बस आ गई और वो उसमें चढ़ गई।सीट भी मिल गई तो पूरे दिन की कोर्ट की थकान को सुस्ताती हुई सीट पर बैठ गई।उसकी बग़ल में ही एक स्कूल का लड़का आकर बैठ गया।वो लड़का स्कूल का छात्र था,यह उसकी स्कूल की ख़ाकी यूनिफार्म से अच्छी तरह पता चल रहा था।लड़का शक्लो सूरत से छात्र उम्र से काफी बड़ा लग रहा था लेकिन उसका बिन्नी के पास बैठना बिन्नी को कतई बुरा नहीं लगा वरना इतने बड़े लड़के को देवी जी कतई अपने आस पास बर्दाश्त नही करती थी।लेकिन आज ST दिखने के लिए किसी औऱ स्टूडेंट का देवी जी के पास बैठना देवी जी को बिल्कुल उपयुक्त लग रहा था।

बहरहाल,थोड़ी ही देर में कंडक्टर टिकट मांगता हुआ बस में आगे बढ़ने लगा और इधर बिन्नी के दिल की धुक धुकी भी। बिन्नी ने कोट वाला प्लास्टिक बैग कस के दबा के गोद में इस तरह रख लिया कि कंडक्टर को बैग में कोट होने का आईडिया ना लग जाए।धीरे धीरे कंडक्टर टिकट मांगता हुआ बिन्नी के पास आया और टिकट मांगी,बिन्नी ने पूरे बाहरी आत्मविश्वास के साथ ST कहते हुए घर तक कि टिकट ले ली।इस बार वाले कंडक्टर ने एक बार में ही बड़ी आसानी से बिन्नी को स्टूडेंट मानते हुए टिकट दे दी और दूसरी सवारियों की तरफ बढ़ गया,लेकिन देवी जी की धुक धुकी तो तब तक नहीं जाती जब तक कंडक्टर टिकट दे के बस के गेट पर वापस नहीं टंग जाता। फिर कंडक्टर ने उस स्कूल के लड़के से,जो बगल में ही बैठा था, से टिकट मांगी तो उसने भी ST कहते हुए पैसे दे दिए,उसके मुंह से ST सुनते ही कंडक्टर उस लड़के पर भड़क गया और उसे ST मानने से मना करने लगा औऱ उस लड़के से स्कूल का पास मांगने लगा।लड़के और कंडक्टर में ST को ले कर छोटी सी बहस हो गई।लड़का बार बार अपने स्टूडेंट होने का विश्वास दिला रहा था।और इन सब के बीच बिन्नी की धुक धुकी दिल फाड़ के बाहर आने को बेताब हो रही थी,वो कभी बस की खिड़की से बाहर देखे जा रही थी तो कभी बस के अंदर खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी,कि कहीं उस पर किसी की नज़र न पड़ जाए और मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि कहीं इस लड़के व कंडक्टर की ST की बहस में उसका टिकट ना कट जाए क्योंकि वो तो ST है भी नही। वह ये सब सोच ही रही थी कि तभी लड़के के बार बार खुद को ST कहने पर कंडक्टर बड़े आत्मविश्वास के साथ बिन्नी को देखते हुए लड़के से बोला कि ये देख ये बच्ची ST है और साफ ST दिख भी रही है तो क्या मैंने इससे पास मांगा!!!यह सुनते ही बिन्नी की स्थिति अजीबो गरीब हो गई,एक तरफ तो कंडक्टर के उसे ST मानने से वो खुश थी तो दूसरी तरफ बच्ची शब्द सुनकर सोचने लगी कि आज मेरा वकील के रूप में पहला दिन था और इधर सबको अगर में बच्ची लगती हूँ तो कौन इस बच्ची वकील के पास आएगा।

अब बिन्नी की स्थिति बहुत ही हास्यास्पद हो रही थी,एक तरफ उसे हंसी आ रही थी तो दूसरी तरफ रोना।अंत में उस लड़के के पास दिखाने पर कंडक्टर मान गया और उसे टिकट दे के आगे भी बढ़ गया।लेकिन बिचारी बिन्नी के हाव भाव देखने लायक थे,कभी वो बस में खड़े कंडक्टर से नज़र मिलने पर मुस्कुरा रही थी तो कभी खिड़की के बाहर देखते हुए खुद को बच्ची वकील सोच के कुड़ रही थी।