Neha ka chhata in Hindi Children Stories by Kusum Agarwal books and stories PDF | नेहा का छाता

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नेहा का छाता


नेहा देखो मैं तुम्हारे लिए एक नया छाता लाई हूं। तुम इसे अपने बस्ते में रख लो ताकि जरूरत पड़ने पर यह तुम्हारे काम आए- माँ ने कहा।


नेहा ने ध्यान से उस छाते को देखा। वह नीले रंग का छाता उसके पहले वाले छाते से भी अधिक सुंदर था।


- मैं इस छाते को खराब नहीं करूँगी, नेहा ने सोचा और छाते को अपने बस्ते में रखकर स्कूल की ओर चल पड़ी।


सावन का महीना था। कुछ ही देर चलने के बाद बूंदाबांदी शुरु हो गई। नेहा भीगने लगी पर उसने अपना छाता नहीं निकाला। वह बिना छाते के ही अपने रास्ते पर चलती रही। बूंदाबांदी से उसकी यूनिफॉर्म और बस्ता दोनों थोड़े-थोड़े गीले हो गए थे।


अचानक नेहा के बस्ते में कुछ हलचल सी हुई। उसने अपना बस्ता खोलकर देखा। वहाँ सब कुछ ठीक-ठाक था। उसने बस्ता फिर से बंद कर दिया और स्कूल के रास्ते पर बढ़ गई।


यूँ तो नेहा को बूंदाबांदी बहुत अच्छी लगती थी परंतु इस समय उसे स्कूल जाना था और वह भीगकर स्कूल नहीं जाना चाहती थी इसलिए उसे यह बूंदाबांदी अच्छी नहीं लग रही थी।


काश! यह बूंदाबांदी बंद हो जाए वरना मैं पूरी गीली हो जाऊँगी - वह बड़बड़़ाई।


उसकी बड़बड़ाहट सुनकर बस्ते में फिर हलचल हुई। यह हलचल पहले वाली हलचल से तेज थी।


नेहा रुक गई और वर्षा से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई। पेड़ के नीचे खड़ी होकर उसने फिर अपना बस्ता खोला।


वहाँ फिर सब कुछ ठीक था। फिर ये हलचल कैसी? वह सोचने लगी। तभी उसे लगा कि उसके बस्ते में पड़ा नीला छाता हिल रहा है और वह कुछ कहना चाहता है।


- बोलो क्या बात है क्यों बार-बार हिलडुल कर मुझे परेशान कर रहे हो? वह ज़रा गुस्से से छाते को बोली।


इस पर नीला छाता बोला - मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता हूं। मैं तो बस ये चाहता हूं कि तुम मुझे बस्ते में से बाहर निकालो।


- नहीं मैं तुम्हें बस्ते में से बाहर नहीं निकालूँगी। बाहर बरसात हो रही है। आस-पास कीचड़ भी है। तुम गीले और गंदे हो जाओगे।


- तो क्या हुआ? मैं बस्ते में पड़ा - पड़ा बोर हो गया हूं। मैं भी वर्षा का आनंद लेना चाहता हूं, खुली हवा के साथ झूमना चाहता हूं। बस्ते के अंदर पड़े-पड़े मेरा दम घुट रहा है - वह बोला।


- एक बार कह दिया ना मैं तुम्हें बाहर नहीं निकालूँगी। मेरा पहले वाला छाता भी इसी कारण खराब हो गया था। कभी धूप में कभी वर्षा में रहने के कारण उसका रंग भी फीका पड़ गया था और धीरे-धीरे उसका बदन भी जर्र - जर्र हो गया था। तुम जानते हो मुझे अपना वह छाता बहुत प्यारा लगता था। मुझे बहुत दुख हुआ था।


- इसमें दुखी होने की क्या बात थी? दुनिया में हर चीज पुरानी होकर फटती है, यह प्रकृति का नियम है परंतु उसका उपयोग होने में ही उसकी सार्थकता है। यदि तो मुझे बस्ते में से बाहर नहीं निकालोगी तो मैं तुम्हें वर्षा से कैसे बचाऊँगा? देखो तुम गीली हो रही हो।


नेहा ने एक नजर अपने कपड़ों पर डाली। सचमुच बूंदाबांदी के कारण उसके कपड़े कुछ गीले हो गए थे। फिर उसने एक नजर अभी हो रही बूंदाबांदी पर भी डाली। अब बूंदाबांदी पहले से काफी बढ़ गई थी।


नेहा ने सोचा- यदि मैं इस बूंदाबांदी में बिना छाता खोले स्कूल जाऊँगी तो बुरी तरह से भीग जाऊंगी। तब नेहा ने बस्ते में से छाता निकाला और उसे खोला।


वाह! वह नीला छाता वास्तव में बहुत सुंदर था। उस पर कई सुन्दर चित्र भी बने हुए थे।


बस्ते में से निकलते ही छाता मुस्कुराने लगा। उसने अपना पसीना पोंछा और ठंडी हवा के साथ लहराने लगा।


फिर छाता बोला - अब तुम मुझे अपने हाथ में पकड़ कर सिर पर तान लो। मैं तुम्हें बूंदाबांदी से बचा लूंगा।


-मगर तुम तो गीले हो जाओगे ना। क्या तुम्हें गीले होने से डर नहीं लगता?


छाता हंसने लगा और बोला - इसमें डरना कैसा? यह तो मेरा काम है। मैं सर्दी, गर्मी और वर्षा किसी से नहीं घबराता हूं। और यदि किसी की सेवा करते-करते मेरे प्राण भी चले जाएं तो मुझे परवाह नहीं।


छाते की बात सुनकर नेहा हैरान हो गई। वह बोली - वाह! छाते भैया तुम तो बड़े बहादुर हो पर फिर भी मैं तुम्हें गंदा नहीं करना चाहती। मुझे मेरी चीजो को गंदा करना या तोड़ना -फोड़ना पसंद नहीं है। मैं मेरे खिलौने, कॉपी-किताबें, कपड़े सभी चीजें संभाल कर रखती हूं।


- यह तो बहुत अच्छी बात है - छाते ने कहा परंतु चीजें संभाल कर रखना और उनका उपयोग न करने में अंतर है। सोचो यदि तुम पुस्तकें खरीद कर उन्हें केवल संभाल कर रखो और फटने के डर से उन्हें ना पढ़ो तो फिर उन्हें खरीदने से क्या लाभ? तुम किसी चीज का उपयोग करके भी उसे संभाल कर रख सकती हो।


नेहा को छाते की बात कुछ कुछ समझ ना रही थी। वह बोली - छाते भैया, तुम्हारी बातें सोलह आने सच है। अब से मैं ऐसा नहीं करुंगी। मैं अपनी सभी वस्तुओं का यथा समय उपयोग करूँगी तथा फिर उन्हें संभालकर भी रखूँगी।


- यह हुई ना बात ,छाते ने हँसकर कहा। चलो अब स्कूल चलते हैं ,तुम्हें देर हो जाएगी।


नेहा ने छाते को अपने सिर पर तान लिया और स्कूल की ओर चल पड़ी।


और जब-जब छाते के बदन पर वर्षा की बूंदें पड़तीं, वह खुशी से झूम उठता। पूरे रास्ते उसने नेहा को बूंदाबांदी से बचाए रखा। अपना कर्तव्य निभा कर छाता बहुत खुश था।


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