"ओह्ह गॉड कितनी तेज बारिश है।" अहाना अपने दोनों हाथो को सिर पर उठाए बारिश से बचने की कोशिश कर रही थी।
"आस पास कुछ है भी नहीं जिधर हम रुक सके।" अजय इधर उधर नजर दौड़ाते हुए बोला।
"प्लीज अजय कुछ करो। क्या हम ऐसे ही फंसे रहेंगे?" अहाना बच्चों की तरह ठुनकते हुए बोली।
"मैं करता हूँ कुछ कोशिश। चलो अभी उस पेड़ की नीचे चलो उधर पानी थोड़ा कम आएगा।" ये कह कर अजय अहाना को एक बड़े घने पेड़ के नीचे ले गया। "तुम यही रुको, मैं कुछ देखता हूँ मदद के लिए।"
अहाना- "मुझे अकेले डर लगेगा।"
अजय- "हम ऐसे तो नही रह सकते ना। कुछ तो करना ही पड़ेगा। रुको तुम मैं बस अभी आया।"
अहाना और अजय दिल्ली के रहने वाले थे। दोनों की एक ही महीने पहले शादी हुई थी। हनीमून के लिए दोनों शिमला आये थे। आज दोनों को आये तीसरा दिन था। अहाना को जंगल और पहाड़ बहुत पसंद थे। अहाना के कहने पर अजय उसे फूलों की घाटी दिखाने लाया था। दोनों की प्राइवेसी में कोई दखल ना हो इसलिए उन्होंने टूरिस्ट गाइड भी नही लिया था। फ्लावर्स वैल्ली से लौटते वक्त दोनों पैदल ही हाथो में हाथ डाले जा रहे थे। पर अचानक मौसम खराब हो गया। हालांकि मौसम बारिश का नही था फिर भी तेज आंधी और बारिश आ गयी जिसमे ये दोनों रास्ता भटक कर फस गए थे। अब ना तो बारिश से छिपने के लिए कोई जगह मिल रही थी ना ही कोई इंसान जिससे मदद मांग सके। मोबाइल भी किसी काम के नही रहे थे क्योकि उनसे नेटवर्क नदारद था।
अहाना को इंतजार करते हुए कोई बीस मिनट बीत गए थे पर अभी तक अजय नही आया था। बारिश और आंधी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। हालांकि उसने गर्म कपड़े पहन रखे थे पर फिर भी वो सर्दी से जमी जा रही थी।
कोई पांच मिनट बाद थोड़ी दूर से अजय आता दिखाई दिया। "अहाना चलो मैंने यहां से कुछ दूरी पर कोई घर देखा है वहां शायद हमे मदद मिल जाये।"
दोनों वहां से कांपते, भीगते निकल गए।
पंद्रह बीस मिनट रास्ता तय करने के बाद, दूर एक कमरा सा बना दिखाई दिया। बारिश और आंधी की वजह से साफ नही दिख रहा था।
थोड़ा और पास जाने पर एक बॉउंड्री वाल के अंदर बना कमरा दिखाई दिया। काफी बड़ी सी जगह को घेर कर बॉउंड्री वाल बनाई गई थी उसके अंदर एक कमरा।
अहाना- "ये क्या है?"
अजय- "जो भी है फिलहाल हमे रुकने को जगह मिल जाएगी।"
अहाना- "यहाँ तो ऐसा लग रहा कि कोई रहता भी नहीं है।"
दोनों बात करते हुए उस बड़े से दरवाजे के पास पहुँच गए थे। दरवाजा काफी पुराना जंग खाया था। दरवाजे से अंदर का नजारा साफ दिखाई दे रहा था। वो जगह एक कब्रिस्तान थी। तमाम टूटी फूटी कब्रे थी और उन पर घास उगी हुई थी। बॉउंड्री वाल से लगे हुए कतार में काफी पेड़ भी लगे हुए थे।
अहाना- "ये कहाँ ले आये तुम। ये तो....ये तो कब्रिस्तान है।'
अजय- "ये कब्रिस्तान है ये मुझे मालूम नही था। पर जो भी है बारिश से बचने को छाव तो मिलेगी।"
अहाना- "अजय तुम पागल हो। हम कब्रिस्तान में रुकेंगे।चलते टाइम मां ने बोला था कि नई दुल्हन को ऐसी वैसी जगह नही जाना चाहिये। इसी लिए उन्होंने मुझे ताबीज भी दिया था।" उसने अपने टॉप की बाजु को उपर कर ताबीज दिखाया।
अजय- "पर डार्लिंग हम बारिश में भी तो नही भीगते रह सकते ना। और फिर कब्रिस्तान ही तो है क्या फर्क पड़ता है। चलो आओ अंदर।" ये कह अजय ने लोहे के दरवाजे को धक्का देकर खोल दिया।
दरवाजा अजीब सी ची की आवाज करते हुए खुल गया। दोनों उस कमरे की तरफ बढ़ चले।
"कोई है?" अजय ने आवाज लगाई।
अहाना- "किसको बुला रहे हो? भूतों को भला कब्रिस्तान में कौन होगा?"
अजय- "अरे जब कमरा बना हुआ है तो कोई तो रहता ही होगा। वो क्या होता है गोरकन।"
दोनों चलते चलते उस कमरे के दरवाजे के सामने आकर खड़े हो गए। कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द था। जिसका मतलब साफ था कि अंदर कोई है।
अजय- "देखो मैंने कहा था।" अजय ने आगे बढ़ कर दरवाजा खटखटाया।
अंदर से किसी बुजुर्ग की खंखारती हुई आवाज आई। "आज इतनी जल्दी क्यो आ गयी रे?"
अजय- "दरवाजा खोलिए हमे मदद चाहिए।"
"ऐसी तूफानी बरसात में कौन है जो यहाँ मरने आया है?"
बूढ़े की ये बात सुन अहाना ने डर कर अजय का हाथ पकड़ लिया।
अजय- "बाबा हम टूरिस्ट है। रास्ता भूल गए है। हमे बारिश बन्द होने तक रुकने को जगह चाहिए।" उसने अपनी आवाज में मिठास घोलते हुए कहा।
बूढ़े ने ये सुन दरवाजा खोला। कोई अस्सी के करीब उम्र होगी उन बुजुर्ग की। हल्की झुकी हुई कमर, पोपला मुँह, झुर्रियों में दबी हुई आंखे। बाहर देख कर उन बुजुर्ग ने दो तीन बार आंखे झपका कर देखा और बोले- "हाँ अभी अंधेरा नहीं हुआ है। आ जाओ अंदर आ जाओ जल्दी।" ये कह बूढ़ा दरवाजे से हट गया।
दोनों कमरे के अंदर आ गए। कमरे में एक बिल्कुल गहरी टूटी फूटी सी चारपाई पड़ी थी। एक कोने में मटमैली लालटेन जल रही थी। चारपाई के पास ही एक घड़ा रखां था।
"आओ आओ...बैठो।" बुजुर्ग ने उन दोनों को चारपाई पर बैठने का इशारा किया।
दोनों सिकुड़ते हुए एक तरफ चारपाई पर बैठ गए।
"ऐसे बरसते समय तुम दोनों यहां क्या कर रहे थे?" बूढ़ा खाँसते हुए बोला।
"हम लोग फूलों की घाटी घूमने आये थे। पर लौटते वक्त मौसम खराब हो गया औऱ हम रास्ता भूल गए।" अजय बोला।
"हें... फूलों की घाटी। वो तो बिल्कुल ही दूसरी तरफ है। रास्ता भटक कर भी यहां कैसे आ गए?" बूढ़ा हैरान होकर बोला।
"पता नही, हमे आंधी, बारिश में कुछ समझ नही आया बस चलते आये।"
बूढ़ा- "हम्म। अब दिन होने तक बाहर मत निकलना।"
अजय- "ऐसा क्यो?"
बूढ़ा- "रात में यहां बाहर निकलना ठीक नही। सूरज डूबने से पहले जहां जाना है जा आओ उसके बाद नही।"
अहाना- "यहां क्या कुछ है बाबा जी?"
बूढ़ा- "हाँ रात में महुआ आती है।"
अहाना- "ये महुआ कौन है?"
बूढ़ा- "आये तब देख लेना। रानी है इस कब्रिस्तान की।"
बूढ़े की बाते अहाना को अजीब लगी। उसने ये सोच कर आगे नही पूछा कि बूढ़ा अकेले रहते रहते पागल हो गया होगा।
अहाना- "वैसे बाबा जी आप यहां अकेले ही रहते है?"
बूढ़ा- "अकेला कहाँ हूँ बेटी। इतनी कब्रे है।" कह के वो हंसने लगा।
ये सुन अजय औऱ अहाना भी मुस्कुरा दिए। अहाना को सर्दी लग रही थी उसके दांत बराबर बजे जा रहे थे।
बूढ़ा- "लाओ मैं आग जला देता हूँ, आग सेंक लो तो ठंड नही लगेगी।" ये कह कर बूढ़े ने चारपाई के पीछे से मिट्टी के तेल का स्टोव निकाल कर जलाया। "लो इसी पर हाथ और कपड़े सेंक लो।"
स्टोव की लौ तो कम थी पर ठंड में उतनी आग भी राहत दे रही थी। अजय औऱ अहाना ने उसी के सहारे अपने कपड़े सेंक कर सूखा लिए।
अब दोनों को थोड़ा आराम मिल गया था।
बूढ़ा- "लाओ मैं चाय बना देता हूँ। चाय पियोगे?"
अहाना- "हां बाबाजी चाय के लिए तो मैं मरते टाइम भी मना नही करुँगी।"
ये सुन बूढ़े ने जोरदार ठहाका लगाया। " हाँ मेरी भी यही एक बुरी लत है।"
बूढ़े ने दोनों के लिए चाय बनाई। चाय पीते अहाना बोली -" बाबा जी कुछ अपने बारे में बताइये ना?"
बूढ़ा- "क्या बताऊँ बेटा। जिंदगी गुजर गई इस कब्रिस्तान में रहते रहते। कुछ बताने लायक कभी हुआ ही नहीं।"
अजय- "आप यहां अकेले क्यो रहते है?"
बूढ़ा- "एक समय मैं यहां का गोरकन हुआ करता था। तब ये कब्रिस्तान चालू हालत में था। मेरे बाप ने भी इसी में काम किया था वही नौकरी मुझे मिल गयी। हर महीने पेट चलाने लायक पगार मिलती थी। फिर समय के चलते ये कब्रिस्तान बन्द हो गया। पहले तो मैं देख रेख के लिए रहा इसमे फिर आदत हो गयी रहने की। वैसे भी कोई और ठिकाना तो था नहीं। और इन कब्र के वाशिंदों से दोस्ती भी हो गयी थी, तो सोचा गुजर लायक पैसे मिल ही रहे है अपने पुराने दोस्तों को छोड़ के क्यो जाऊं?"
अहाना- "आप कितने जिंदादिल है बाबा जी। कब्रो में भी जीने की वजह ढूंढ ली।"
बूढ़ा- "और कुछ था भी तो नहीं इसके अलावा।"
अहाना- "अच्छा बाबाजी ये महुआ कौन है जो रात में आती है। जिसकी वजह से आप बाहर जाने से मना कर रहे थे।" अहाना का पूछे बिना मन नहीं माना। हालांकि अजय उसे ज्यादा बात करने के लिए इशारों ही ईशारो में मना कर रहा था।
बूढ़ा- "मेरी दोस्त है पुरानी। आती है मीठी सुरीली आवाज में गाने सुनाती है फिर चली जाती है।"
अजय- "लगता है अब बारिश बन्द हो गयी है।" अजय ने बन्द खिड़की को खोलना चाहा, पर उसके कब्जे जाम हो चुके थे वो खुल ही नही रही थी। उसने खिड़की खोलना छोड़ दरवाजा खोल कर देखना चाहा।
तभी बूढ़े का अजय पर ध्यान गया- "नही नही... दरवाजा मत खोलना।" ये कह बूढ़ा अजय को रोकने के लिए लपका पर तब तक अजय दरवाजा खोल चुका था।
बाहर बारिश बन्द हो चुकी थी पर अजय की नजर ठीक सामने वाली कब्र पर पड़ी। जिस पर कोई बैठा रो रहा था शायद लड़की थी, क्योकि आवाज से लड़की ही लग रही थी। अजय कुछ और आगे करे तब तक बूढ़े ने उसे अंदर खींच कर दरवाजा बन्द कर दिया।
"खबरदार जो दुबारा दरवाजा खोला।" बूढ़े का स्वर कठोर हो गया था।
अजय- "पर बारिश बन्द हो चुकी है। औऱ हम रात भर तो यहां नही रह सकते ना।"
बूढ़ा- "चाहे जो हो सूरज उगने से पहले दोनों कही नही जाओगे।"
ये सुन कर अजय चिढ़ गया। "बाबा जी आपने हमारी मदद की उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया, पर अब जो आप कर रहे है वो गलत है।"
अहाना- "अजय रात भर की ही तो बात है। मान लेते है ना बाबा जी की बात। वो कुछ सोच कर ही ऐसा कह रहे होंगे।"
अजय- "ओह कम ऑन यार हम ऐसी जगह पर रात भर कैसे बन्द रह सकते है? औऱ फिर अभी टाइम भी ज्यादा नही हुआ है सिर्फ आठ बजे है।"
अहाना- "पर बाहर घुप्प अंधेरा है अजय। औऱ तुमने सुना नहीं बाहर किसी के रोने की आवाज।"
अजय- "ओह्ह सुना क्या वो मैंने देखा ही। वो कोई अपने की कब्र पर आई है इसमे अजीब क्या है?"
बूढ़ा- "वो महुआ है।"
अजय- "तो क्या हुआ? हम यहाँ अब और नही रुक सकते। चलो अहाना।"
बूढ़ा- "आज अमावस्या है। अगर ये जगह छोड़ कर गए तो तुम्हे कोई नही बचा पायेगा।"
इन लोगो की बहस चल ही रही होती है तभी बाहर से पायलों की छन छन के साथ बेहद सुरीली दिलकश गाने की आवाज आने लगती है। कोई लड़की बडी दर्दभरी आवाज में विरहा गा रही थी।
अहाना- "ये कौन गा रहा है?"
बूढ़ा- "महुआ।"
अहाना- "पर वो अचानक ऐसे गाने क्यो लगी?"
बूढ़ा- "वो रोज रात को यहां आकर रोती है, फिर गाती है। सालो गुजर गई। कभी एक भी दिन ऐसा नही गया जब वो ना आई हो, यही देखते देखते मैं बूढ़ा हो गया।"
ये सुन दोनों चौंक जाते है। "पर आवाज से तो वो कोई सत्रह अठारह साल की लड़की लग रही है?" अहाना ने कहा।
बूढ़ा- "हाँ इतने की ही है वो।"
अहाना- "ऐसा कैसे हो सकता है बाबा जी।" दोनों हैरान थे।
बूढ़ा- "वो जिंदा लड़की नही आत्मा है। वो किसी और कि कब्र पर नही अपनी ही कब्र पर रोती है।"
ये सुन कर दोनों हैरान रह जाते है। अहाना तो डर के अजय से सट जाती है। अब अजय को बूढ़े की बात पर विश्वास होने लगा था।
बूढ़ा- "डरो मत वो इसके अंदर कोई नुकसान नही पहुचायेगी। उसे किसी का इंतजार है कई सालों से। जिस दिन वो आ गया उस दिन ये जरूर कहर ढायेगी।"
अजय- "क्या कहानी है महुआ की?"
बूढ़ा आगे कुछ बोलता उससे पहले ही बाहर तरह तरह की आवाजें आने लगी। ऐसा लग रहा था मानो बाहर भूचाल आ गया हो। अहाना तो बहुत बुरी तरह डर रही थी। डर के मारे वो अजय से चिपक कर कोने में बैठी थी।
अहाना- "बाबा जी वो यहां तो नही आएगी न?"
बूढ़ा- "आज तक तो नही आई। पर आज तो कुछ औऱ ही ढंग मालूम होता है इसका।"
बाहर ऐसा लग रहा था मानो जमीन फट रही हो। पेड़ उखड़ उखड़ कर गिर रहे हो। बड़ी भयानक आवाजे निकाल रही थी वो। फिर एक घोड़ागाड़ी के आने की आवाज आई और उसके बाद एक लड़की के चीखने की आवाज आई। ऐसा लग रहा था मानो बाहर विनाश का तांडव चल रहा हो ऊपर से आती भयानक चीखे।
बूढ़ा- "गुस्से में है वो बहुत गुस्से में है।"
तभी उस कमरे के दरवाजे को किसी ने बहुत जोर से भड़भड़ाया।
बूढ़ा- "यहां क्यो आई है?"
"बाहर निकाल उसको।" बड़ी ही भयानक थी वो आवाज। मजबूत दिल वाला इंसान भी सुन कर दहल जाए।
बूढ़ा- "यहाँ से जा महुआ। इनका तुझसे कोई लेना देना नहीं है।"
"वो आ गया है...वो आ गया है। निकाल उसे।" फिर वैसी ही आवाज गूंजी।
अब बूढ़े ने अजय की ओर देखा। अजय और अहाना इससे डरे हुए हैरान से देख रहे थे।
"निकाल उसे वरना आज तेरी दहलीज को भी ये महुआ पार कर जाएगी।"
बूढ़ा चुप था उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था क्या करे। तभी महुआ ने एक झटके में दोनों किवाड़ उखाड़ कर फेंक दिए।
उसके ऐसा करते ही आसमान में जोरदार बिजली कौंधी, उसमे वो साफ दिखाई दी।
लाल लहंगे चोली में सत्रह अठारह साल की लड़की भयानक रौद्र रूप लिए खड़ी थी। बाल खुले हवा में उड़ रहे थे। उस माहौल में उसका वो रूप बहुत डरावना लग रहा था।
अजय औऱ अहाना एक दूसरे से चिपट गए। महुआ ने अपनी भयानक नजर अजय पर डाली औऱ आँखो के सहारे ही उसे वहां से उठा कर बाहर फेंक दिया।
बूढ़ा- "महुआ छोड़ दे इसे, इसने कुछ नही किया।"
"चुप एकदम चुप। आज महुआ अपने सारे बदले पूरे करके रहेगी।"
अजय- "महुआ मैंने सच मे कुछ नही किया तुम्हारे साथ मैं पहली बार यहां आया हूँ।" दहशत से अजय की हालत खराब थी। अहाना तो ये सब देख बेहोश हो गयी थी।
महुआ- "याद कर अपने पुराने पाप।"
अजय- "मैं सच मे कुछ नही जानता महुआ।"
"चल भाग बचा अपनी जान, महुआ इतनी आसानी से नही मारेगी।"
अजय उठ कर भागा पहले वो अहाना की तरफ आया। पर महुआ ने अपनी ताकत से फिर उसे पीछे फेंक दिया। वो वापिस उठ कर कब्रिस्तान के बाहर की तरफ भाग चला, पूरी ताकत लगा कर वो भागा दरवाजे की तरफ, पर दरवाज़ा उसके निकलने से पहले ही बन्द हो गया। उसने दरवाजे से चढ़ कर निकलना चाहा पर महुआ ने आकर उसे फिर से अंदर की तरफ फेंक दिया। अजय बार बार भागता औऱ महुआ उसे बार बार उठा कर फेंकती ये सब देख महुआ ठहाके लगा कर हंस रही थी।
अजय ने एक आखिरी बार जोर लगाया, वो फिर से दरवाजे की तरफ भागा पर इस बार महुआ बहुत ही डरावनी शक्ल लेकर सामने आ गयी। पूरा सड़ा हुआ शरीर था उससे आती भयँकर बदबू मानो सीधा कब्र से निकल कर आ रही हो। अजय को उल्टी आ गयी। वो वापिस अंदर की तरफ भागा पर वो फिर सामने आ गयी।
अजय इस चूहे बिल्ली के खेल से तंग आ चुका था। उसके शरीर का पोर पोर दुख रहा था। वो निढाल होकर गिर पड़ा और बोला "मुझे मारना है तो मार दो महुआ पर मेरे बाद मेरी बीवी को छोड़ देना।"
ये सुन कर महुआ फूट फूट के रोने लगी।
"बताओ जॉन क्यो की थी मेरी जिंदगी खराब?" रोते रोते महुआ बोली।
"मैं नही जानता। मैं जॉन नही मैं अजय हूँ।"
बूढ़ा इधर अहाना को होश में लाने की कोशिश कर रहा था। जब वो होश में ना आई तो वो बाहर की तरफ भागा।
बूढ़ा- "महुआ ये बेकसूर है इसे छोड़ दे।"
"यही है जॉन जिसने मेरी जिंदगी बर्बाद की थी।"
"ये दूसरा जन्म लेकर आया है, इसे कुछ याद नहीं है महुआ।"
"अच्छा इसे याद नहीं तो बुला अपने बाप को। यही सो रहा है वो भी, बुला उसे बचाने के लिए।"
ये सुन बूढ़े के दिमाग मे कुछ दौड़ा। वो अजय से बोला "जल्दी से महुआ के बगल वाली कब्र पर जाके बुला अपने बाप को, वो आएंगे।"
अजय भागा भागा गया। "अगर मैं जॉन हूँ और आप मेरे बाप हो तो आओ बचाओ मुझे।"
अजय कब्र पर सिर रख के चिल्ला रहा था। पीछे से महुआ आ गयी उसने अजय का सिर पकड़ कर कब्र पर दे मारा। उसकी नाक फुट गयी उससे खून बह कर कब्र पर गिरने लगा। खून के गिरते ही एक रोशनी सी निकली कब्र से और एक अंग्रेज दिखने वाला आदमी आकर खड़ा हो गया।
"बता अपने बेटे को क्या किया है इसने।"
"इसने कुछ नही किया है महुआ।" वो अंग्रेज की आत्मा बोली।
"मेरी जिंदगी बर्बाद की इसने।"
"नही महुआ। ये तुमसे शादी का वादा कर इंग्लैंड गया था। पर वहां पहुँच कर एक कार एक्सीडेंट में इसकी मौत हो गयी। तुम यहाँ इंतजार करती रही पर वो मर चुका था फिर कैसे आता। मैं ये सदमा बर्दाश्त नही कर पाऊंगा ये सोच कर मुझे इसकी मां ने ये बात नही बताई। मुझे तुम्हारे मरने के बाद मालूम हुआ। जॉन धोकेबाज नही था महुआ। उसे किस बात की सजा फिर।" ये कह आत्मा गायब हो गयी।
ये सुन महुआ रोने लगी। जो अभी तक भयानक शक्ल में थी अब वो एक सुंदर पहाड़ी लड़की दिखने लगी थी। अब वो अजय को देख कर कभी रोते हुए तो कही हंसते हुए बोले जा रही थी "मेरा जॉन धोकेबाज नहीं है। मेरा जॉन धोकेबाज नहीं है। मुझे पता था मेरा जॉन ऐसा नहीं है। चलो जॉन हम दोनों साथ साथ रहेंगे बहुत इंतजार किया है मैंने तुम्हारा।"
"महुआ मैं अब तुम्हारा जॉन नही हूँ। मैं अब किसी और का बेटा किसी और का पति हूँ।" अजय कराहकर बोला।
इधर अहाना को होश आ गया था। वो भाग कर बाहर आई तो उसने ये सब देखा। वो दौड़कर अजय के पास आई औऱ उसे बाहों में भर कर महुआ से बोली "मेरे पति को मुझसे कोई दूर नही कर सकता।"
"मेरा जॉन मेरे साथ जाएगा।" महुआ फिर गुस्से में आ गयी थी।
"कोशिश करके देख लो।" अहाना ने अपने हाथ मे लिए ताबीज को कस कर पकड़ लिया।
महुआ ने जैसे ही आगे बढ़ कर अजय को छुआ तो वो बुरी तरह चीख कर पीछे जा गिरी।
"महुआ तुम जॉन से बदला लेना चाहती थी, उसे सजा देना चाहती थी पर जॉन तो बेकसूर था। वो तो खुद शिकार हो गया था किस्मत का। क्या जिस तरह तुमने जॉन के बिना दिन गुजारे क्या तुम चाहती हो कि कोई और भी वैसे ही दिन गुजारे। तुम तो जॉन से प्यार करती थी, फिर तुम प्यार की अहमियत कैसे नही समझ सकती।" अजय की ये बाते सुन महुआ शांत हो चली थी।
"हां मैं मेरे जॉन से बहुत प्यार करती हूं। अब भी करती हूं।" महुआ रो रही थी।
"अहाना भी मुझसे करती है। मैं भी उसे करता हूँ। जॉन ने अपनी जिंदगी में तुम्हे प्यार किया पर अब जॉन नही है, पर उसका प्यार तो जिंदा है ना। क्या कोई महुआ और जॉन की कहानी भूल सकता है। उस कहानी में मुझे शामिल करके जॉन की अहमियत मत खत्म करो। कहानी तुम्हारी और जॉन की है ये तुम दोनों की ही रहनी चाहिए, और मैं जॉन नही हूँ महुआ।"
महुआ शायद समझ गयी थी। "हां भला कोई मुझे और जॉन को कैसे भूल पायेगा। ये पहाड़ अभी भी हमारी कहानी दुहराते है।"
बूढ़ा- "चली जा महुआ अब। तेरा इंतजार खत्म हुआ। उस दुनिया मे जाके जॉन का इंतजार कर। वो अगले जन्म में तुझे जरूर मिलेगा।"
"हाँ महुआ तुम्हारा जॉन तुम्हे अगले जन्म में जरूर मिलेगा। वादा है मेरा। तुम दोनों का प्यार यूँ अधूरा नही रह सकता। ये कहानी का अंत नहीं है।"
ये सुन महुआ मुस्कुरा दी। आसमान से एक रोशनी की चमक आयी और महुआ उसमे गायब हो गयी।
रात अभी थोड़ी और बाकी थी। ये तीनो लोग उसी उथल पुथल कमरे में बैठे चाय पी रहे थे।
अहाना- "बाबाजी ये महुआ की पूरी कहानी बताओ।"
बूढ़ा- "मेरे बाप के जमाने में यहां एक अंग्रेज रहा करता था रोबर्ट। उसका एक बेटा था जॉन, खूबसूरत नेक दिल। उस अंगेज के बंगले में काम करने वाला एक माली था उसकी बेटी थी महुआ खूबसूरत, चंचल। जॉन और महुआ बचपन मे साथ खेला करते थे। जवानी आते आते दोनों में प्यार हो गया। जॉन का बाप इस रिश्ते के खिलाफ था। पर दोनों ने तो साथ जीने मरने की कसमें खा ली थी। उस साल जॉन ने महुआ से शादी करने का वादा किया, पर तभी उसको किसी काम से इंग्लैड जाना पड़ा। जहां से वो फिर वापिस नही आया। महुआ दिन रात उसका इंतजार करती और विरहा गाती। उसे उम्मीद थी कि वो आएगा। पर अंदर ही अंदर उसे लगता कि जॉन वही बस गया शादी करके। जॉन के जाने के दो साल बाद एक घोड़ागाड़ी के नीचे आकर महुआ की मौत हो गयी। मरते वक्त उसने कहा कि उसे जलाने की बजाय इस कब्रिस्तान में दफनाया जाए ताकि कभी जॉन आये और यहां मरे तो दोनों की कब्र एक साथ रहे। पर जॉन नही आया। आता भी कहा से। महुआ मर कर भी हर रात यहां आती, रोती, गाती और चली जाती। मैं उसके दुख को सुनने वाला इकलौता आदमी था। मेरे साथ उसने कभी कुछ नही किया कभी मेरी दहलीज पार नहीं की। बस यही है।"
"बड़ी दुख भरी कहानी है उसकी।" अहाना बोली।
अजय घायल था और थका हुआ भी वो सुनते सुनते सो गया था।
सुबह दिल्ली जाने वाली ट्रेन में अहाना अजय से लड़ने में लगी थी।
"बेबी मैंने क्या धोखा दिया तुम्हे?" अजय बेबसी में बोला
"एक तो तुमने मुझसे पहले किसी और से अफेयर कर रखा और अब अगले जन्म की भी बुकिंग कर ली।" अहाना गुस्से से भरी बैठी थी।
"पर बेबी वो पिछले जन्म की बात है।"
"तो क्या हुआ। तुमने मेरे अलावा किसी और से अफेयर किया कैसे? अगला जन्म हो या पिछला जन्म।"
"अब मुझे थोड़ी न पता था कि इस जन्म तुम मिलोगी वरना नही करता।"
"लोगो के इस जन्म के कांड खुलते है पर तुम्हारे तो पिछले जन्म तक के आ रहे है। तुमने धोखा दिया है मुझे। तुम झूठे और मक्कार हो। मेरे ही सामने तुम उसे अगले जन्म का वादा कर रहे थे भूल गए हमारा रिश्ता सात जन्म के लिए है। और सात जन्म ही क्यो मैं तो हर जन्म में तुम्हारी छाती पर मूंग दलूँगी कोई और चुड़ैल आकर तो देखे कैसे आती है हुह....।"
औऱ इसी तरह दिल्ली तक अहाना अजय को सुनाती गयी और अजय किसी अपराधी की तरह चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा।