बच्चों को सुनाएं- 9 “फायदा अपने कारोबार से”
आर 0 के 0 लाल
सुरेश ने तीन साल पहले अपनी पी0 एच0 डी0 पूरी कर ली थी । उसने पूरी पढ़ाई अपने गाँव में ही रह कर की थी, केवल नौकरी की तैयारी के लिए शहर में कोचिंग ज्वाइन किया था। वह भारतीय प्रशासनिक सेवाओं से लेकर रेलवे के लिए अनेकों प्रतियोगिता परीक्षाओं के सैकड़ों फार्म भर चुका था । कई जगह परीक्षायेँ भी दी मगर कहीं भी सेलेक्सन नहीं हुआ । सुरेश बहुत परेशान हो गया था। उसे भूख नहीं लगती, रातों में नींद नहीं आती । जीवन एक बोझ सा लगता। कभी उसके मन में ख्याल आता कि इस जीवन से ही मुक्ति पा लिया जाए।
सुरेश को इस दशा में देख कर उसकी मम्मी ने कहा, “चलो किसी पंडित जी से पूछते हैं। तुम्हारी कुंडली दिखाते हैं । कब नौकरी मिलेगी, कहां मिलेगी”? उसके मुहल्ले में ही एक ज्योतिषी रहते थे। उन्होंने सुरेश का हाथ देख कर बताया कि कुंडली में बीस साल , छ्बीस, छतीस और पचास साल में भाग्य चमकने का योग है । सुरेश ने कहा, “इस समय मेरी उम्र सताइस वर्ष है, क्या मुझे नौ साल तक इंतजार करना पड़ेगा। छोड़ो माँ! जब समय आएगा देखा जाएगा”। परंतु इतना लंबा समय कैसे बिताया जा सकता था । सुरेश ने फिर कहा, “माँ यह मोहल्ले के पंडित थे, दक्षिणा भी नहीं लिये इसलिए ठीक से नहीं बताया होगा, चलो किसी दूसरे पंडित से पूछते हैं”।
फिर सुरेश कहने लगा, “न जाने कौन बताएगा। सही पंडित मिलेगा भी या नहीं। अगर पंडित सही नहीं मिला तब तो सब गड़बड़ हो जाएगा। सही बात का पता ही नहीं चलेगा। आजकल सही पंडित पाना बहुत कठिन और महंगा है”। कई जगह पूछने पर उसे रामदत्त शास्त्री का पता चला। उनके यहाँ बहुत भीड़ थी, पूरा दिन निकाल गया। सभी लोग उनके बरामदे में मिठाई और फूल का डिब्बा लिए नंबर लगाए बैठे थे । सुरेश और उसकी मम्मी को भी पाँच घंटे इंतज़ार करना पड़ा तब जाकर नंबर आया । शास्त्री जी ने कुंडली उठाए बिना ही बताया कि तुम्हारी पत्नी बहुत सुंदर होगी। किसी बड़े बाप की बेटी होगी। उत्तर दिशा में उसका घर होगा। मगर ग्रहों का फेर है तुम्हारी कुंडली में। उसे शांत कराना होगा, कुछ पूजा पाठ करना होगा। नौकरी से पहले तुम्हें पत्नी मिल सकती है। लोगों का मानना है कि नौकरी की तलाश में किस्मत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और किस्मत बदलना ज्योतिषियों का काम होता है, परंतु सुरेश के पिता ने पूजा-पाठ कराने से मना कर दिया।
सुरेश को पता चला था कि आजकल टॉप जॉब सर्च एप्स जैसे वर्क एन आर बाई, लिंक्डइन, टाइम जॉब डॉट कॉम, नौकरी डॉट कॉम आदि को अपनाकर अपने लिए शानदार और अच्छी नौकरी की तलाश किया जा सकता है । सुरेश ने यह सब आजमा लिया था। एक दो जगह कुछ काम बन रहा था मगर चयन प्रक्रिया पर माननीय न्यायालय ने स्टे लगा दिया था।
सुरेश के पिता इस बात से चिंतित थे कि प्रतिभावान होते हुए भी सुरेश परीक्षा में सर्वश्रेष्ठता की दौड़ में क्यों नहीं आ पता । वे अक्सर किसी न किसी से मिल कर उसकी नौकरी का जुगाड़ करने की बातें करते रहते। परंतु कहीं से सफलता नहीं मिल पा रही थी। इसी क्रम में उसके पिताजी को एक अध्यापक मिले। उन्होंने कहा, “आजकल के जमाने में हमें अपने भाग्य के भरोसे नहीं बैठे रहना चाहिए बल्कि कोई सार्थक प्रयास करना चाहिए। आजकल प्रतियोगिता का जमाना है इसलिए हमें प्रतियोगिता के हिसाब से ही सारी तैयारी करनी चाहिए। अगर कोई नौकरी पानी है तो सारी योग्यताओं के साथ ही साथ आजकल सोर्स सिफ़ारिश का भी जमाना है इसलिए उस ओर भी प्रयास करना चाहिए”।
यह सोचकर सुरेश गांव के तमाम उन लोगों का पता लगाने की कोशिश की जो लोग सरकारी विभागों में अच्छी जगह पर तैनात हैं। हो सकता है कि गांव के नाते कोई मदद कर दे। कम पैसे में काम बन जाए। बहुत से एजेंट भी यह काम करते हैं। लेकिन आए दिन अखबारों में छपता रहता है कि नौकरी देने के नाम पर लाखों रुपए की ठगी कर ली गयी । इसलिए उनसे सावधान रहना चाहिए। सुरेश ने कई नेताओं से संपर्क किया, कई अफसरों के पास भी गए। सब ने पूरा आश्वासन दिया। कई महीने बीत गए मगर कोई नतीजा नहीं निकला।
खाली समय में सुरेश तमाम लोगों के व्याख्यान जैसे- कैसे नौकरी पाने की तैयारी करें, कहां-कहां रोजगार की संभावनाएं हैं आदि सुनता रहता था। । उन्हीं के माध्यम से उसे पता चला कि अपने देश में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। कोई जरूरी नहीं है कि सरकारी नौकरी सबको मिले। अपना स्वतः रोजगार करके भी बहुत लाभ अर्जित किया जा सकता है । सुरेश को भी लगा कि सरकारी नौकरी से अच्छा है कि अपना कोई रोजगार किया जाए। उसमे जितना मेहनत करेंगे उतना फायदा होगा। किसी कंपनी के मालिक बन सकेंगे फिर कई लोगों को नौकरी दें सकेंगे। किस्मत ने साथ दिया तो जल्दी ही लखपति बन जाएंगे।
सुरेश के अध्यापक ने उसे समझाया कि इस दुनिया में काम करने के लिए बहुत से अवसर हैं लेकिन हम वही करना चाहते हैं जैसा दूसरे लोग करते रहते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो नयी पॉसिबिलिटीज को देख पाते हैं। बस तुम्हारे दिमाग में आ जाना चाहिए कि तुम कुछ नया कर सकते हो। अगर तुम पहल कर लोगे तो हमेशा आगे निकलते चले जाओगे। यह केवल सोचने से नहीं होगा बल्कि तुम्हें रियलिटी को समझदारी से एग्जीक्यूट करना होगा। उन्होंने सुरेश को यह भी समझाया कि अवसर की प्रतीक्षा करना छोड़ो, स्वयं अवसर का निर्माण करने की आदत डालो । नकारात्मक बातों को नियंत्रित करो। ज्यादा कंपिटिसन में जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि कंपटीशन की सोच ने तो हमारे जीवन को बर्बाद कर दिया है।
चूंकि सुरेश ग्रामीण अंचल से था, उसके पास थोड़ी खेती भी थी इसलिए उसने सोचा कि कृषि संबन्धित कोई कार्य किया जाए। मगर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। उसमें तो टैलेंट कूट कूट कर भरा था केवल किसी के सपोर्ट की जरूरत थी। एक दिन उसने टी वी में देखा कि आजकल जैविक खेती की बहुत ही जरूरत है। उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए लोग तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। इसका निराकरण जैविक खादों एवं दवाईयों से हो सकता है । आज लोग अपनी फसलों को हाइब्रिड बना लिए हैं मगर उसमें कोई दम नहीं रहता, उनमें विटामिंस की कमी हो गई है, उनमें कोई स्वाद नहीं मिलता। इसलिए आजकल लोग जैविक सब्जियों एवं अनाजों की तलाश करते हैं। शहरों में तो खासतौर से इसकी अलग से दुकानें भी खुल गई हैं। सुरेश ने भी विचार बनाया कि जैविक खेती के क्षेत्र में स्वतः रोजगार किया जाए।उसने अपने पिताजी से वार्ता की तो वे आधे बीघे खेत देने को तैयार हो गए। उसी से सुरेश ने अपना काम शुरु किया। उसने इस कार्य में गाँव के एक और दोस्त को लगा लिया।
सुरेश ने बहुत सी जानकारियां इंटरनेट, ग्राम समाज और ब्लॉक स्तर पर एकत्रित की और अपने काम में जुट गया । भारत सरकार भी जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार करती है और जैविक खेती प्रोत्साहन योजना बनाई हैं, जिसका उपयोग सुरेश ने किया। एक दिन उसे एक विज्ञापन दिखाई पड़ा जिसमें जैविक खेती करने के लिए किसानों को दी जाने वाली सुविधाओं एवं प्रशिक्षण की जानकारी जिला उद्योग केंद्र में देने की बात लिखी थी। सुरेश ने भी उसमें आवेदन कर दिया और वहां पर प्रशिक्षण के लिए पहुंच गया । वहाँ सुरेश की मुलाक़ात एक बड़े जैविक कृषि के वैज्ञानिक परमात्मा सिंह से हो गयी । सुरेश ने उन्हें अपना फार्म हाउस दिखाया । वे सुरेश की लगन से बहुत प्रभावित हुये। उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी भरपूर मदद का वादा करता हूँ”। बाद में उनकी मदद से सुरेश को कई सरकारी योजनाओं से लोन, सबसिडी, और विपणन की सहायता भी मिली।
परमात्मा सिंह की एक बेटी रीना भी थी जो ऐग्रीकल्चर से ही बी० एस० सी० कर रही थी, उसकी भी रुचि एक मॉडल जैविक फार्म हाउस और स्वायल टेस्टिंग लैब बनाने की थी जिससे वह कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को उनके खेत की मिट्टी के बारे में जानकारी दे सके और किसान सही मात्रा में खाद उर्वरक का प्रयोग कर सकें| रीना ने कृषि मंत्रालय के अधीन मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन योजना के अंतर्गत ग्रामीण युवा एवं किसान ग्राम स्तर पर मिनी मृदा परिक्षण प्रयोगशाला की स्थापना भी कर लिया। रीना लैब का कार्य देखती थी । अब रीना समय समय पर किसानों की मिट्टी की जाँच कर उसके बारे में उचित परामर्श देती है और जैविक खाद, बीज और दवाइयों की दुकान भी चलाने लगी है |
सुरेश और रीना दोनों ने मिलकर फार्म हाउस संचालित करने लगे थे। उन्होंने उसके लिए एक पम्पिंग सेट, एक ट्रिल्लर मशीन की भी व्यवस्था कर लिया था । सुरेश की मेहनत से उनके आधे बीघे के खेत में शीघ्र ही लौकी, तरोई, फूलगोभी, पत्ता गोभी, मूली और गुलाब के फूल उगाने में उन्हें आशातीत सफलता मिल रही थी। मात्र छ: महीने में ही उनके खेत से सब्जियां निकलनी शुरू हो गयी थी। आज धीरे धीरे वे पचास लोगों के लिए सब्जियाँ सप्लाई करने लगे हैं । सुरेश को जैविक खेती कर रहे किसानों के रूप में कई ईनाम भी मिल चुके हैं ।
परमात्मा सिंह ने रीना की शादी सुरेश से तय कर दी है। उनके एक ही लड़की है , इस प्रकार उनकी सारी संपति सुरेश को ही मिलेगी। ज्योतिषी की भी बात सही निकल आई । आज सुरेश के पास धन दौलत और शोहरत सब कुछ है। यही फायदा है अपने कारोबार का।
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