Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 7 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 7

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 7

अचानक जगा की जोर जोर की कान फोड़ने वाली चीखें वातावरण में गूंज उठी. हम सब दहशत से थरथरा गए.
क्या हो गया? सब के मन में एक ही प्रश्न था.
मैंने तुरंत मुड़कर जगा की और देखा! उनके चेहरे पर मौत का दर साफ़ दिखाई दे रहा था. तुरंत मेरी नजर नीचे गई.
वहां दो बड़ी बड़ी आँखों वाला एक विकराल जबड़ा था. जो जगा के पाँव को नुकीले दांतों में जकड़े हुए था. और जगो उससे पीछा छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.
वह एक ज़मीं पर रेंगने वाला घड़ियाल था. जो इस झाड़ियों में कहीं छिपकर बैठा हुआ था. और जगो अब उसके जबड़े में फँस चूका था.
मैंने तुरन ही अपनी बंदूक से गोलियां चलाई, पर उसकी मोटी चमड़ी में जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
उसी वक्त विनु उस पर हमला करने के इरादे से जरा सा पीछे क्या हटा, तुरंत जैसे कि सीने उसे जोर से उठाकर फेंक दिया. विनु एक पेड़ के साथ टकरा कर गिरा. वह भी बहुत घायल हो गया. उठ ही नहीं पा रहा था.
उस घड़ियाल ने अपनी पूंछ से विनु पर जोरदार प्रहार किया था.
कृष्णा और हसमुख विनु की मदद के लिए दौड़े.
यहाँ मैं टहनी से उस घड़ियाल की ठुड्डी पर जोर जोर से प्रहार करने लगा. तुरंत ही वह जगा के पाँव को छोड़ कर पीछे हटा. हरी ने मौका न गँवाते हुए जगा को संभालकर उसके जबड़े से खिंच लिया.
वह घड़ियाल जबड़ा फाड़े फिर से हमले की तैयारी करने लगा.
संकर को मौका मिला. घड़ियाल का मुंह खुला देख, उसने तुरंत ही अपनी बंदूक से घड़ियाल के खुले मुख में गोलियां दाग दी. वह वहीँ तड़प ने लगा.
अब हमारा ध्यान जगा और विनु की और गया. वे दोनों गंभीर रूप से घायल थे. हमने दोनों को उठाया और दूर भागे.
अब हमारे लिए मुश्किलियाँ बढ़ गई थी. दोनों को उठाकर हमें चलना पड़ रहा था. विनु की सायद हड्डी टूट गई थी और जगा का बहुत खून बह रहा था. दोनों को गंभीर चोटें आई थी. थोड़े दूर निकल कर हमने अपने अपने रूमाल उनके घावों पर कसकर बाँध दिए.
इस बार हमारा नसीब खुल गया था. हमें समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देने लगी. हम जोश से भर गए और जल्दी जल्दी आवाज़ की दिशा में बढ़े. थोड़ी ही देर में हम बीहड़ से निकल गए और सामने ही किनारा दिखाई देने लगा. हमारी आंखें चमक उठी. हमने ईश्वर को शुक्रिया कहा.
किनारे पर पहुंचकर अपनी बोट को ढूंढने लगे. पर हमें अपनी बोट कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. न वो नाव दिखाई दे रही थी. फिर गभराए. मुसीबत ने अब तक हमारा पीछा न छोड़ा था. सायद हम किसी और जगह निकल आये थे. इधर उधर देखने लगे. कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा था की हम कहाँ निकल आये है.
तभी हमारा ध्यान समुद्र में खड़े एक छोटे खड़क पर पड़ा. जो हमने बोट से भी देखा था. बोट से वह खड़क पश्चिम में दूर दिखाई दे रहा था, पर अब वह हमें नजदीक दिखाई दे रहा था. इससे तै हो गया की हम जहां से चले थे वहां से पश्चिम में निकले है.
हम पूर्व की और चले. करीब घंटे भर चलने के बाद हमें अपनी बोट दिखाई दी. वह नाव भी वहीँ खड़ी थी. बोट के नजदीक पहुंचकर हम पानी में उतरे. अब तैरते हुए बोट पर जाना था.
मैंने और संकर ने जगा को और कृष्णा - हसमुख ने विनु को अपनी अपनी पीठ पर लादा. हरी सबसे पीछे हमें सहारा देने के लिए रहा. हम पानी में उतरे. बोझ को पीठ पर लादे तैरना मुश्किल हो रहा था, इसलिए हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. समुद्री वनस्पतियां भी हमारी गति अवरुद्ध कर रही थी. फिर भी हम धीरे धीरे बोट के नजदीक पहुँचे. हम बोट से बस, थोड़े ही दूर थे, तभी हमारी जिन्दगी की सबसे मनहूस घड़ी आ पहुंची.
हमें पानी में सफेद सा तैरता हुआ कुछ दिखाई दिया. वह चीज और ऊपर आई. और हरी की चीख निकल गई. हमारी दृष्टि पड़ी. जैसे हमने स्वयं यमदूत को देख लिया हो, वैसे हम जम से गए. वहां साक्षात् मौत खड़ी थी. वह एक शार्क थी. जगा के पैर से रिसते खून की महक पा कर वह यहाँ आ पहुंची थी.
हमने चीख पुकार मचा दी. जोर जोर से हाथ पैर मारकर बोट की और भागे. बोट पर लटकती हुई रस्सियाँ थाम कर हमने अपने बदन को तेजी से ऊपर की और खींचा. आखिर में हम जैसे तैसे बोट पर पहुँच गए. पर इस हड़बड़ी में हमसे एक बहुत बड़ी गलती हो गई थी.
जब हमने ऊपर चढ़ कर देखा तो विनु और जगा को न पाया. हम को अपने प्राण बचाने के चक्कर में उन दोनों का खयाल ही नहीं रहा था. वह दोनों हमसे सदा के लिए बिछड़ चुके थे.
पानी में जब देखा तो वहां एक बड़े लाल रंग के धब्बे के अलावा कुछ न था. न तो जगा या विनु का कोई निशान था न वह बैरी शार्क का.
यह दृश्य याद करते ही संकरचाचा, हरीचाचा और लखन अंकल फिर से रो पड़े. थोड़ी देर रुकने के बाद लखन अंकल ने फिर शुरू किया.
हम पांचों वहीँ बोट पर गिर पड़े. जोर जोर से रोते रहे. हम पुरी तरह से टूट चुके थे. न जाने कब तक रोते बिलखते पड़े रहे. फिर किसी को कोई सुद्धबुद्ध न रही. कब तक ऐसे ही पड़े रहे, यह भी पता न चला. जब मुझे हरी ने जगाया तब रात्रि होने को आई थी. मुश्किल से हम सब उठे. और वहां से चले.
जब हम घर पहुँचे तब हमने सिर्फ इतना ही बताया की तैरने के दौरान एक शार्क के हमले में वे दोनों मारे गए. पर हम कायरों की यह बताने की हिम्मत आज तक नहीं हुई की वास्तव में हम उस टापू पर क्यूँ गए थे. और वहां जगा और विनु के साथ क्या हुआ था.
इस दुर्घटना के बाद हम भी समझने लगे कि मेघनाथजी का वह धन सचमुच शापित है. इसलिए हम सब ने तै किया कि अब इस बात का जिक्र जिंदगी में किसी से नहीं करेंगे. और अपनी भावी पीढ़ी को भी इस मेघनाथजी के छिपे धन के बारें में कुछ न बताएँगे. जिस से कि वे इस धन को प्राप्त करने की कोशिश में हमारी तरह कोई जान का जोखिम न उठाये.
इस तरह मेघनाथजी के उस धन को जमाने के लिए सदा सदा के लिए लापता कर दिया गया.
पर आज तुम्हारे समक्ष इस राज़ का इजहार कर हम अपने गुनाहों पर शर्मिन्दगी प्रगट करते हैं."
इतना कह, लखन अंकल ने अश्रु भरी आँखों के साथ अपनी कथा समाप्त की.
यह वितक कथा सुन, राजू भी दुःख से विह्वल हो उठा. वह सबको आश्वासन देने लगा:
"देखो अंकल, यह तो एक अकस्मात् था. आप लोगों ने जानबूझकर तो कुछ नहीं किया. आप लोगों की जगह और कोई भी होता तो उनसे भी यहीं गलती होती. इसलिए जो कुछ हो चूका, उसे ईश्वर की मरज़ी ही समझे."
और राजू ने वादा भी किया कि वह भी इस बात को राज़ ही रखेगा.
जब लखन अंकल ने अपनी बात पुरी की तब तक रात्रि के ढाई बज चुके थे. राजू ने सब को अपने अपने घर पर छोड़ा. और स्वयं घर पहुंचकर लेट गया.
पर उसके दिमाग से अपने प्रदादाजी के धन और वह दुर्घटना के विचारों ने पीछा न छोड़ा था. वह सोच रहा था. उसके पापा इस धन को क्यूँ प्राप्त न कर पाए.
तभी उनके दिमाग में बिजली चमकी. उसके होंठों पर एक मुस्कुराहट उभर आई. फिर वह गहरी सोच में डूब गया. ऐसे सोचते सोचते ही वह सो गया.
उसके दिमाग में मेघनाथजी की रची इस पहेली घर कर गई थी. जो अब उनका पीछा नहीं छोड़ने वाली थी.
दूसरे दिन उसने सारा माजरा जेसिका को कह सुनाया. और ताकीद भी की कि इस बात का ज्यादा प्रचार न हो और राज़ ही बना रहे.
"क्या तुम इस धन तक पहुँचने की कोशिश करोगे?" जेसिका ने पूछा.
"मैं सोच रहा हूँ, मुझे भी एक कोशिश अवश्य करनी ही चाहिए. आखिर मेरे प्रदादाजी की भी आखरी इच्छा यही थी कि उनके परिवार का कोई वारिस इस धन तक पहुँचे." राजू ने अपनी मनसा जाहिर की.
"हाँ, मेरी भी यहीं राय है. पर क्या उस अकस्मात् के बाद आंटी तुम्हें मंजूरी देगी?" जेसिका ने अहम संदेह प्रगट किया.
"तुम्हारी बात तो सही है. मेरे लिए भी यह एक बड़ा प्रश्न है. पर कोई न कोई तरीका तो ढूँढना ही पड़ेगा न!" राजू कुछ सोचते हुए बोला.
"फिर तो यह अकस्मात् की बात जहां तक छिपी रहे उतना ही बेहतर रहेगा." जेसिका ने बताया.
"मैं भी यहीं चाहता हूँ. और अब तो मेरे पास सफल होने की वजहें भी ज्यादा हैं. क्यूंकि इस पर मैंने बहुत कुछ पता लगाया है. राजू ने कहा.
"अच्छा! वो क्या!?" जेसिका ने खुश होते हुए बड़ी बेताबी से पूछा.
क्रमशः
राजू को ऐसी कौन सी बात पता चली थी की वह धन को प्राप्त कर लेने के सपने देखने लगा था? क्या वह धन को प्राप्त कर पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहे.