ichchha - 11 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | इच्छा - 11

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इच्छा - 11

आठ महीने गुजर गये | हॉलाकि उसके जीवन मे कोई विशेष परिवर्तन न आया था ,सिवाय इसके कि इच्छा खुद को पहले से अधिक सहनशील बनाने की कोशिश कर रही थी | मन से ज्यादा शक्तिशाली, और मन से ज्यादा कमजोर, कुछ भी नही अपनी परिस्थितयों को बदलने के लिए , यह बात इच्छा को उस दिन समझ आयी जब, रोज की तरह आफिस से आने के बाद इच्छा चाय बनाने किचन मे घुसी |लाइट गई हुई थी ,
इसलिए किचन मे अंधेरा था | वैसे यह कोई नई बात नही थी, लाइट सप्लाई कट का यह नियत समय था , जिसने इच्छा को अन्धेरे मे कार्य करने का अभ्यास करा दिया था | खैर ऐसा केवल इच्छा के किचन और कमरे की बात थी | ऊपर के फ्लोर पर इनवर्टर कनेक्शन होने की वजह से यह दिक्कत वहाँ न थी | किचन मे घुसते ही इच्छा सबसे पहले सिलेन्डर से गैस नॉक ऑन कर ,चूल्हे पर लाइटर रखते हुए बटन आन करती | किन्तु इसे दैवीय प्रेरणा या भाग्य द्वारा उसे दिया गया यह परिवर्तन का निर्देश ही था कि, आज अचानक इच्छा का हाथ लाइटर पर न जाकर सीधा बर्नर पर पड़ा, जो ऐसा लग रहा था कि किसी के द्वारा जानबूझकर निकाल अलग रख दिया गया था | स्थिति को भाँपते हुए बिना चाय बनाए ही इच्छा किचन से बाहर आ सोफे पर बैठ गई | बड़े बोझिल मन से इच्छा , जैसे अपने पति के मन को एक आखिरी बार टटोलकर देखना चाह रही थी , यह शायद रिश्ते मे एक टुकड़ा गुंजाइस की एक तलाश थी, आखिर सालो से सब कुछ बर्दाश्त करते हुए भी , वह जिस रिश्ते को सहेजती आई थी उससे आजद होना, इतना आसान न था इच्छा के लिए | उसने इस घटना का जिक्र पति से किया, किन्तु उसके पति का हमेशा की तरह अनसुना सा व्यवहार उसके मन को अथाह पीड़ा और खीज से भर गया | पूर्व की पीड़ाओ और वर्तमान स्थिति ने फिर से गहन विचारो मे उसे डुबो दिया ,
वहीं सामर्थ की साँसो ने जैसे ही साथ छोड़ा ,उसने स्वयं को परिवर्तन के पहले सबसे महत्वपूर्ण और समाजिक रूप से उपेक्षित मार्ग पर स्वयं को पाया | नींद की सारी तासीर तो आज करवटो ने ले ली थी किन्तु, बैचैनी के साथ |यह बैचनी निर्णय की पराकाष्ठा से उत्पन्न थी जो वह मन ही मन कर चुकी थी | सुबह रोज की तरह आम दिनो सी थी, किन्तु इच्छा आज बदल चुकी थी | बस अन्य लोगो मे इसका आभास कराना बाकी था | सुबह साइड बैग टांग इच्छा आफिस के लिए निकली , आफिस के गेट पर पहुँचने ही वाली थी कि , अचानक मन मे उथल -पुथल सी होने लगी |एक बैचैनी सी जिसने इच्छा के कदमो को उल्टी दिशा मे मोड़ दिया | यह मोड़ उसे कहाँ ले जा रहा है ,वह स्वयं नही समझ पा रही थी , कि तभी एक चौराहा आता है , उस चौराहे पर कुछ देर के लिए मानो स्वयं को किसी बात के लिए आश्वस्त करा रही हो खड़ी जाती है | जैसे मेघो का झुण्ड किसी पहाड़ से टकरा धराशायी हो जाता है , उसी प्रकार इच्छा के नेत्र भी अपने भार को कम करने का प्रयास करने लगे, परिणामतः आने जाने वाले लोगो का ध्यान इच्छा की तरफ आकर्षित होने लगा बहुत कोशिशो के बाद भी वह इसपर नियंत्रण पाने मे स्वयं को असमर्थ पा रही थी , कि सहसा उसने अपने दुपट्टे से चेहरे को इस प्रकार लपेटा कि वह लोगो से अपनी स्थिति को छुपा सके , और एक दिशा चुन चल पड़ती है| वह एक मन्दिर के बाहर जाकर सहसा रूक गई , यह वही मंदिर है जहाँ इच्छा हर सप्ताह आया करती थी , हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, किन्तु आज मन मे घर गृहस्थी के सुख समृद्धि की कामना या पति की दीर्धायु या उनमे सुधार की कोई कामना न थी | आज मन्दिर के बाहर खड़ी होकर मानो वह उसी परमात्मा से अपने बदलाव मे उनका साथ माँग रही हो , कुछ देर मन ही मन ईश्वर से बात करने के पश्चात, वही बगल मे ही ए टी एम मशीन से पैसे निकाल दोनो बच्चों को स्कूल से साथ लेकर , रिक्शा कर वह अशोक नगर बसअड्डे की तरफ चल पड़ती है | जहाँ उसे पता चलता है कि बस तीन घण्टे के बाद जायेगी | वह बेचैन हो जाती है एक चोर की भाँति कही कोई उसे पकड़ न ले , यह चोरी उसके अपने प्राणो की थी जिसे वह लेकर भाग रही थी|
वह अपने साथ अपनी साँसे और जीने का सामन जो उसके अपने दोनो बच्चे थे साथ लेकर भाग रही थी | बस की टिकट इच्छा ने जाते ही ले ली थी ,जो कि एक घण्टे बाद चलने वाली थी | किन्तु एक घण्टे के पश्चात पता चला कि वह दो घण्टे बाद चलेगी | यह सुनते ही ,वह टिकट कलेक्टर पर झुंझलाकर बरस पड़ती है , "भैय्या आपने तो कहा था आधे घण्टे मे चलने के लिए यहाँ तो एक घण्टा हो गया और अब तीन घण्टे बाद चलेगी "| "हाँ तो मैडमजी इतनी दूर आपको अकेले ले जाऊँ क्या ? ये प्राइवेट बस है, सबका किराया कौन देगा ?
भरेगी तभी चलेगी | " "अगर आपको जल्दी है तो ,बीस प्रतिशत काट कर आपको टिकट का पैसा वापस कर देता हूँ| कही और देख लीजिये मैडम| " इच्छा कशमकश मे थी साथ ही भयभीत भी, कुछ देर सोचने के बाद टिकट कलेक्टर से टिकट कैन्सल करने को कहती है | टिकट कलेक्टर ने न जाने क्या सोच इच्छा की तरफ एक नजर गौर से देखा, इच्छा को थोड़ा अजीब सा लगा किन्तु भावहीन प्रतिक्रिया को दर्शाती वह यथावत रही | टिकट कलेक्टर ने टिकट कैंसल कर ,बिना बीस प्रतिशत काटे ही ,उसके पूरे पैसे वापस लौटा दिये | ऐसा लग रहा था कि वह उसकी परिस्थतियों को कुछ हद तक भॉप गया हो | इच्छा पैसे लेकर "धन्यवाद भैय्या" कह कर चलने को जैसे ही तैयार हुई कि, उसी व्यक्ति ने कहा मैडम ! आप इतनी दूर बस से मत जाइये ! बच्चो को लेकर परेशान हो सकते है | आप ट्रेन के लिए प्रयास करिये| इच्छा को उसकी बाते सही लग रही थी ,परन्तु कुछ कठिनाइयों के कारण ही उसने बस से जाना चुना था , लेकिन भाग्य भी उसके साथ खिलवाड़ कर रहा हो जैसे , कोई भी बस इस समय जाने को तैयार न थी| जीवन मे पहली बार उसने इतना बड़ा फैसला लिया था | यह फैसला उसके लिए जीवन और मृत्यु के बीच की कड़ी थी | वह जानती थी कि ,यदि वह आज असफल रही तो , सबकुछ बदल जायेगा या फिर बदलने के लिए कुछ बचे ही न |
कुछ देर वही बैठी वह यह सब सोचती रही कि अचानक विचार आया ,कि मै हमेशा अपने घर ट्रेन से वहीं पास के ही स्टेशन से जाया करती थी , वो भी अपने पिता जी के साथ जो कि ,मुझे हर दूसरे-तीसरे साल मे एक बार बड़े आग्रह द्वारा खुद बुलाकर ले जाया करते थे | हाँ ! यदि न ले जाते तो शायद मै मायके का मुँह आज के फैसले की सफलता के बाद ही देख पाती | अचानक विचारो का तार उसके बेटे के झकझोरने के साथ ही टूट जाता है ,जिन्हे भूख के अहसास ने बाध्य कर दिया था | आस पास बहुत दूर तक देखने पर भी खाने के नाम पर केवल चाय और बिस्किट की दुकान ही दिखाई दे रही थी , इस स्थिति से निपटने के लिए उसे वह स्थान छोड़ना ही उचित लगा | कुछ आगे जाने पर उसे एक ठेलीनुमा ढाबा दिखाई दिया , जहाँ से छोले कुल्चे खरीद उसने अपने दोनो बच्चो की भूख को शान्त कर, आगे के बारे मे सोचने लगी | साथ ही इस बात की अधीरता कि कही कोई उसे ढूंढ न ले , तभी खुद को दिलासा देते हुए , वह मुझे नही ढूंढ सकते , यदि कोई कोशिश करेगा भी तो वह उसी स्टेशन पर ही जायेगा | किन्तु यदि मै एक स्टेशन आगे से बैठूं तो? हाँ ! वे मुझे नही ढूंढ पायेंगे ,यह सोच वह उसी स्टेशन के लिए ऑटो करती है | लगभग एक घण्टे के पश्चात स्टेशन के बाहर आकर ऑटो रूकती है | ऑटो वाले को पैसे देकर इच्छा इन्क्वाइरी रूम से ट्रेन का पता कर ,टिकट लेकर प्लेटफार्म पर अपने दोनो बच्चों के साथ ट्रेन का इन्तजार घबराहट और बेचैनी के बीच करने लगती है | तभी फोन की रिंग बजती है | इच्छा चौकते हुए !
मानो ग्लास भर पानी किसी ने उसके चेहरे पर उलट दिया हो |
पसीने से तरबतर ,फोन पर नजर डालती है | यह फोन उसकी एक सहेली का था, सहेली से बात कर उसका मन कुछ हद तक हल्का हो जाता है | अभी ट्रेन आने मे लगभग एक घण्टा शेष था | उसकी बैचैनी निरन्तर बढ़ती जा रही थी | हॉलाकि उसे इस बात का अन्दाजा था कि, यहाँ तक तो उसे कोई ढूंढ नही पायेगा | किन्तु फिर भी अपनी बद्किस्मती का भान उसे निरन्तर व्यथित कर ही रहा था | एक घण्टे पश्चात स्टेशन पर एक घोषणा होती है ,कि ट्रेन अपने निर्धारित समय से आधा घण्टा लेट आने की सम्भावना है ,जो कि जल्द ही दो घण्टे मे परिवर्तित हो जाती है | इच्छा की घबराहट समय के साथ बढ़ती ही जा रही थी |अन्ततः दो घण्टे बीस मिनट के पश्चात ,पूर्वा एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर पहुँचने की घोषणा हो जाती है | क्रमशः.