अगर सच से बोले , तो गए काम से,
अगर हक से बोले, तो गए काम से।
लाला को भाये जो, लहजे में सीखो ,
ना हो जी हुजूरी, तब गए काम से।
कुक्कुर से पूछो दुम कैसे हिलाना,
काम जो अधूरे याद रातों को आना,
उल्लू के जैसे हीं काम सारे रातों को,
करना जरूरी अब गए काम से।
लाला की बातों पर गर्दन हिलाओ,
मसौदा गलत हो सही पर बताओ ,
टेड़ी हो गर्दन पर झुकना जरूरी,
है आफत मजबूरी अब गए काम से।
लाला की बातें सह सकते नहीं ,
कहना जो चाहें कह सकते नहीं ,
सीने की बातें ना आती जुबाँ तक ,
खुद से बड़ी दुरी है गए काम से।
उम्मीद भी जगाता है लाला पर ऐसा,
मरू स्थल के सूखे सरोवर के जैसा ,
आस भी अधूरी है प्यास भी अधूरी ,
कि वादों में विष है अब गए काम से।
4.रसूलों के रास्ते
हालात जमाने की कुछ वक्त की नज़ाकत,
कैसे कैसे बहाने भूलों के वास्ते।
अपनों के वास्ते कभी सपनों के वास्ते,
बदलते रहे अपने उसूलों के रास्ते।
कि देख के जुनून हम वतन की आज,
जो चमन को उजाड़े फूलों के वास्ते।
करते थे कल तक जो बातें अमन की,
निकल पड़े है सारे शूलों के रास्ते।
खाक छानता हूँ मैं अजनबी सा शहर में,
क्या मिला ख़ुदा तेरी धूलों के वास्ते।
दिल का पथिक है अकेला"अमिताभ" आज,
नाहक हीं चल पड़ा है रसूलों के रास्ते।
5.शहर का आदमी
रोज सबेरे उठकर
सोते हुए बेटे के माथे का
चुम्बन लेता हूँ।
नहाता हूँ, खाता हूँ,
और चल पड़ता हूँ
दिन की लड़ाई के लिए।
लड़ता हूँ दिनभर अथक,
ताकि
पत्नी को मिले सुकून,
बेटे को दुलार,
भाई को स्नेह,
और माता-पिता को सम्मान।
फ़िर लौटता हूँ घर,
देर रात को,
हाथ धोता हूँ, खाता हूँ,
सोए हुए बेटे के माथे का
चुम्बन लेता हूँ,
और सो जाता हूँ।
मैं दूर रहता हूँ आपनों से,
अपनों के वास्ते।
अजय अमिताभ सुमन
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