MUflisi se jung - meri saheliya in Hindi Short Stories by Annapurna Bajpai books and stories PDF | मुफ़लिसी से जंग - मेरी सहेलियाँ

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मुफ़लिसी से जंग - मेरी सहेलियाँ

मुफ़लिसी से जंग - लघुकथा
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कई दिनों बाद आज कलुआ अपने घर से निकला । ठेले को जंजीरों से मुक्त किया और उसको नहलाया धुलाया , बढ़िया सुंदर आवरण से सजाया । उस पर बड़े छोटे ताजे तरबूज लादे जो वह खेत से तोड़ कर लाया था और चल दिया ।
" मीठा रसभरा है, कोरोना से न डरा है" नया स्लोगन सुनकर नैंसी ने खिड़की खोल कर बाहर झाँका बढ़िया ताजे तरबूज देखकर उसका मन ललचा गया । उसने आवाज दी,' ऐ ! लड़के ! सुनो कहाँ से लाये हो ! क्या भाव दोगे ?' तमाम प्रश्न उत्तर के बाद उसने एक तरबूज कटवाया । लेकिन उसे लिया नही । कलुआ काफी गिड़गिड़ाया , 'आपने तरबूज कटवा दिया और लिया भी नही । हमारा नुकसान जो जाएगा मैडम जी !' नैंसी भी क्या करती अंदर से डरी हुई थी 'कहीं कोरोना इसको भी हुआ तो !'
प्रत्यक्ष में बोली , 'चल भाग यहाँ से !' कलुवा भी घर की बेजारी से तंग होकर ठेला लेकर निकला था चार पैसे मिलेंगे तो राशन का जुगाड़ करेगा ।
भरी दुपहरी ,पानी का कोई ठिकाना नही , कोई खुली दुकान नही , क्या करे ?? भूख प्यास से बेहाल होकर उसने अपने उस कटे हुए तरबूज को खाने के लिए उठाया और मुँह को लगाया ही था कि पीछे से पुलिस वाले ने जोर का लठ्ठ उसकी पीठ पर जमाया , "क्यों रे! कटे फल बेचता घूम रहा है । तुझे क्या अलग से बताना पड़ेगा कि इस तरह कटे फल अब नही बेच सकते !"
तरबूज उसके हाथ से छूट कर दूर जा गिरा । वह कुछ संभलता या बोलता तब तक एक और लट्ठ उसके पीठ पर आया , जिससे वह बुरी तरह बिलबिला गया । वह संभल कर कुछ कहने वाला ही था कि सामने दुकान की शेड से एक बदहाल सी मैली कुचैली गुदड़ी ओढ़े एक छाया निकली और वह छाया धीरे धीरे आगे बढकर और लपक कर सड़क पर पड़े उस तरबूज को उठाकर अपनी गुदड़ी में छुपा कर भाग गई । बड़े चाव से उसने उस तरबूज को खाया और पेट पर हाथ फेरा । एक लंबी डकार ली । और वहीं लुढ़क कर सो गयी । इधर कलुवा अपनी पीठ पर पड़े डंडे की जलन अभी तक महसूस कर रहा था । कुछ सोच कर वह एक और तरबूज उसी गुदड़ी वाली छाया के पास रखने गया उसने उस छाया को देखा और चौंक गया "अजीबन बी !!" उसकी आँखों के सामने उस दिन का मंजर तैर उठा । इनको उस दिन इनके घर वालों ने पागल करार देकर निकाल दिया था जबकि घर वाले अच्छे खाते पीते लोग है , लेकिन किस्मत और महामारी ने इनको बेघर कर दिया । आज ये बिचारी इस हाल में !! जबकि इनको तो वो बीमारी थी भी नही !! " उसने वो तरबूज उनके सिरहाने रख दिया और ठेला लेकर आगे बढ़ गया । उसकी आँखों के सामने उसका अपना भूखा परिवार तैर रहा था और दिमाग में फलों को बेचने की जुगत के साथ - साथ अजीबन बी के हालात !!

अन्नपूर्णा बाजपेयी
कानपुर