वह अलसाया सा बिस्तर पर लेटा था! नींद तो उसकी सुबह ही चिड़ियों की चहचहाट से कब की खुल चुकी थी! दूर पहाड़ियों के पीछे उगते सूरज की किरणे खिड़की से छन कर उस तक पहुंच रही थी! जैसे उस से कह रही हों "उठो सुबह हो गई! कब तक यूँ ही लेटे रहोगे!" और वह उन किरणों को जवाब देता "क्या करूंगा उठकर! मेरा कोनसा कारोबार ठप्प हो रहा हैं!"
इधर कुछ दिनों से वह अपने आस पास मौजूद मूक सजीव और निर्जीव चीजों से मन ही मन बातें करने लगा था! कभी वह पेड़ों से बतियाता! कभी पार्क में लगे फूलों और उन पर मंडराती तितलियों को घंटो निहारता रहता! उसे तो बस अपना बोझिल दिन किसी भी तरह काटना होता! कहने को तो वह पहाड़ों की रानी शिमला में रहता था! वो शिमला जहाँ बारह महीनो पर्यटकों की भीड़ रहती! गर्मियों में कभी मैदानी इलाकों के लोग ठन्डे पहाड़ी झोंको की तलाश में आते तो कभी ठंडियों में बर्फवारी देखने की ललक पर्यटकों को पहाड़ों की और खींच लाती! माल रोड पर्यटकों और स्थानीय बाशिंदो से भरा रहता! पर्यटन सीजन में तो माल रोड में इतनी भीड़ होती कि चलते हुए लोगों के कंधे भी आपस में टकराते! उसका घर मालरोड के नजदीक ही पड़ता था! जहाँ तक नजर जाती हरी भरी ऊँची पहाड़ियां और आसमान चूमते देवदार के पेड़! आस पड़ोस में दो चार घर और थे! दुआ सलाम के अतिरिक्त और कोई बातचीत नहीं थी! इसका भी एक कारण था! सभी बेचलर किरायदार थे जो नौकरी में ट्रांसफर के कारण शिमला आये थे! परिवार दिल्ली में ही बसे थे! सुबह वह सब ऑफिस जाते रात तक ही घर लौटते! सप्ताहांत या सार्वजानिक अवकाश में वह लोग भी अपने घर दिल्ली चले जाते!
अपने घर में वह अकेला सदस्य था! उसके बच्चे विदेश नौकरी करने गए और वही बस गए! कभी कभार फ़ोन करके उसका हालचाल पूछकर वे अपने कर्तव्यों की पूर्ति कर देते! दो वर्ष पूर्व पत्नी भी स्वर्ग सिधार गई! उसकी आयु ६५ वर्ष के आस पास होगी! रिटायरमेंट के बाद पेंशन से गुजर बसर तो अच्छे से हो जाती लेकिन घर में पसरा सन्नाटा उसे भीतर तक कचोटता! सुबह शाम वह अपनी छड़ी उठाता पहाड़ी पगडण्डी से होता हुआ मॉल रोड पहुँचता! मॉल रोड के नजदीक ही एक पार्क था जहाँ उसके हमउम्र कुछ मित्र बन गए थे! पार्क में वह घंटो बतियाते! दिन ढलता फिर सब अपने अपने घर की राह पकड़ते! घर पहुंचकर जैसे अकेलापन उसका ही इन्तजार कर रहा होता! और उसे अपनी बाँहों में जकड़ लेता! लेकिन वह प्रतिदिन पार्क भी नहीं जा पाता क्योंकि पहाड़ी इलाका होने के कारण बादल भी जब तब बरस जाते! अभी खिली धूप होगी पल में आकाश का दृश्य बदल जाता! घनघोर बादल छा जाते और झमाझम बरस जाते! पहाड़ों की बारिश का क्या ठिकाना एक बार शुरू हुई तो न जाने कब रुके! पहाड़ और बादल की तो जैसे कोई पुरानी रिश्तेदारी हैं जब देखो मिलने को आतुर! कभी कभी बिना रुके दो तीन दिन तक बारिश होती! बादल कुहासा बनकर पहाड़ों पर छा जाता! ऊँचे देवदार के पेड़ भी बादल के आगोश में समां जाते! दूर दूर तक बस बादलों की सफ़ेद चादर दिखती! ऐसे में उसका अकेलापन घर में नृत्य करने लगता! और वह बेबस लाचार बन जाता! तब सारा दिन चाय की केतली चूल्हे पर चढ़ी रहती और वह चाय की चुस्कियों के साथ घंटो बरामदे में अपना हिमाचली गर्म शाल और टोपी पहने बादलों और पहाड़ों को गले मिलता देखता!
आजिज आ गया था इस अकेलेपन से! अपना जीवन उसे निरर्थक लगने लगा था! कुछ दिनों से उसके मन में एक ख्याल बार बार आ रहा था क्यों न वह आत्महत्या कर ले! कोई उसे देखने सुनने वाला नहीं तो वह किसलिए जिए! उसने बिस्तर पर लेटे लेटे करवट बदली! घडी सुबह के दस बजा चुकी थी! आज रात वह अपना जीवन ख़त्म कर देगा! उसने मन ही मन सोचा और बिस्तर से उठ गया! हाथ मुँह धोकर उसने चाय का पानी चढ़ाया! चूल्हे के पास ही ब्रेड और बटर का पैकेट रखा था! तवे पर दो ब्रेड सेंकी बटर लगाया उसका नाश्ता तैयार था!
खा पी के वह माल रोड जाने के लिए तैयार हो गया! “आज वह पार्क नहीं जाएगा बल्कि दुकान से कीटनाशक खरीद कर सीधा घर आएगा!”
रात के आठ बज रहे थे! बाहर बादलों की गड़गड़ाहट होने लगी थी! "ओह फिर बारिश होने वाली हैं" उसने अपने मन में सोचा! लेकिन अब उसे बारिश से क्या लेना देना! थोड़ी देर में वह अपनी जीवन लीला ख़त्म कर देगा! यह सोचकर उसके होठो पर मुस्कान फैल गयी! वह कुर्सी से उठा और किचन में चला गया! किचन की शेल्फ में कीटनाशक की बोतल रखी थी जिसे वह आज दिन में माल रोड से खरीद कर लाया था! उसने कांपते हाथो से बोतल का ढक्कन खोला और एक गहरी सांस छोड़ी! तभी दरवाजे पर खटर खटर की आवाज हुई! वह चौंक गया! इस समय कौंन आया हैं! यह सोचते हुए वह दरवाजे की और बढ़ गया! दरवाजा खोला! सामने एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला था! उसका एक पंजा जख्मी था! पिल्ला दर्द से कूँ कूँ कर रहा था! वह तुरंत पिल्ले को घर के अंदर ले आया! प्यार से उसका माथा सहलाया! उसके घाव पर रुई के फाहा लगाया! "क्या पता इसे भूख भी लगी हो" यह सोचते हुए उसने थोड़ा सा दूध गर्म किया और कटोरे में डाल दिया! और पिल्ले के सामने रख दिया! पिल्ला लप लप करके सारा दूध पी गया! उसका स्नेह देखकर पिल्ला उसके पैर चाटने लगा और प्यार से अपनी पूँछ हिलाने लगा! वह भी उसका माथा सहलाने लगा! वह भूल गया कि वह आत्महत्या करने वाला था! थोड़ी देर वह पिल्ले के साथ खेलता रहा!! जब वह दूध का खाली कटोरा रखने किचन में गया तो सामने कीटनाशक की बोतल रखी थी! उसने कीटनाशक की पूरी बोतल किचन की नाली में उड़ेल दी और खाली बोतल कूड़े के डिब्बे में फेक दी! उसके साथ ही उसका अकेलापन भी कूड़े की डिब्बे में चला गया! जिंदगी उसके घर में फिर मुस्कुराई थी!
उसने अपने बेड की पास ही पिल्ले के लिए कम्बल का बिस्तर बिछाया और पिल्ले को उठाकर बिस्तर पर रख दिया! फिर अपने बेड पर लेट गया! कल वह दूकान से इसके लिए नया बिछोना खरीदेगा यह सोचते हुए उसने अपना कम्बल ओढ़ लिया! पिल्ला भी गुमटी मार कर उसके बेड से सटकर सो गया! बाहर बादलों की गड़गड़ाहट के साथ झमाझम बारिश लगी थी!