Karm path par - 41 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 41

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कर्म पथ पर - 41




कर्म पथ पर
Chapter 41


जय को घर छोड़कर गए तीन महीने हो रहे थे। श्यामलाल उसके बारे में ही सोंच रहे थे।
वह अजीब सी विचित्र स्थिति में थे। कभी जय की धृष्टता पर क्रोधित होते थे। तो कभी यह सोंच कर दुखी होते थे कि अपनी बेवजह की ज़िद में वह बेकार ही कष्ट उठा रहा है।
इस समय वह एक गहरी सोंच में बैठे थे। जय से उन्होंने कभी भी कोई आशा नहीं की थी। वह देखते थे कि उनके दोस्तों के बच्चे बड़े बड़े ओहदों पर हैं। अपने बाप दादा की दौलत को और बढ़ा रहे हैं। लेकिन जय के भीतर उन्होंने कभी भी आगे बढ़ने या कुछ कर दिखाने की इच्छा कभी नहीं देखी। आरंभ में वह जय को इस विषय में टोंकते भी थे। पर उस पर कोई असर होते ना देख कर उन्होंने कहना छोड़ दिया। उसकी जगह खुद ही अपनी धन दौलत और रसूख को बढ़ाने में जुट गए। जय का काम केवल उनकी दौलत को खर्च करना था। किंतु उन्होंने कभी उसे ऐसा करने से नहीं रोका।
जय श्यामलाल की एकमात्र संतान था। विवाह के दस साल के बाद उन्हें संतान सुख मिला था। जब जय दो साल का था तभी उसकी माँ की मृत्यु हो गई। श्यामलाल ने सदा उसे माता व पिता दोनों का ही प्यार दिया। बचपन में जय बहुत ज़िद्दी था। जिस चीज़ पर उसका मन आ जाता था उसे प्राप्त किए बिना मानता नहीं था। श्यामलाल उसकी हर इच्छा पूरी करते थे।
बचपन में एक बार वह उनके साथ एक दोस्त के घर गया था। तब उसने वहाँ उनके बेटे के पास एक खिलौना देखा। खिलौना महंगा था और विलायत में ही मिलता था। जय उस खिलौने को लेने की ज़िद करने लगा। श्यामलाल ने जय को समझाया कि वह खिलौना बहुत महंगा है और देश में मिलता भी नहीं है। इसलिए वह कोई और खिलौना ले ले। लेकिन जय अपनी ज़िद पर अड़ गया।
श्यामलाल को पता चला कि उनके एक और मित्र जो विलायत गए हुए थे कुछ ही दिनों में लौटने वाले थे। उन्होंने तार भेज कर उनसे विनती की कि वह लौटते समय जय के लिए वही खिलौना लेते आएं। वह मित्र जय के लिए खिलौना ले आए।
कुछ दिनों तक जय ने वह खिलौना खुशी खुशी खेला पर जल्दी ही उसका मन भर गया। उसके बाद उसने कभी वह खिलौना नहीं छुआ।
श्यामलाल ने सोंचा था कि जय की ये नई ज़िद भी वैसी ही होगी। कुछ दिनों में वह वापस घर आ जाएगा। पर उनकी सोंच के विपरीत जय तीन महीने से घर से बाहर रह कर दिक्कतें झेल रहा था।
इंद्र ने उन्हें बताया था कि वह उस लड़की वृंदा के लिए दीवाना है। उस लड़की के लिए ही उसने घर छोड़ा है। वह सोंच‌ रहे थे कि वृंदा अंग्रेज़ी सरकार की नज़रों में बागी है। बिना इस बात की परवाह किए कि उसका यह बेवकूफ़ी भरा कदम कितना घातक साबित हो सकता है जय उसके पीछे पागल है। इस हद तक कि अपना घर भी छोड़ दिया।
यह भी नहीं सोचा कि यदि पुलिस उसे उस बागी लड़की के साथ पकड़ लेती तो अंग्रेज़ी सरकार की नज़रों में उनकी जो साख है वह मिट्टी में मिल जाएगी। उन्होंने कितनी मुश्किल से अंग्रेज़ी सरकार का विश्वास हासिल किया है। इसके लिए कई बार उन्होंने अपने हाथों से अपनी अंतर्रात्मा का गला घोंटा है। अब जब उन्हें राय बहादुर के खिताब के रूप में उसका ईनाम मिलने वाला है तो वह किसी प्रकार का जोखिम नहीं ले सकते। वह जय को अपनी कमाई हुई दौलत तो लुटाने दे सकते हैं किंतु अपनी साख के साथ खिलवाड़ करने नहीं दे सकते हैं।
आज उनका मन बहुत उद्विग्न था। वह किसी के सामने अपना मन हल्का करना चाहते थे। उन्हें अपने बड़े भाई समान दोस्त रहमतुल्लाह खान की याद आई। वह उनके घर जाने के लिए तैयार होने लगे।
कुछ फल व रहमतुल्लाह खान की बेगम शौकत खानम के लिए उनकी पसंदीदा रबड़ी लेकर श्यामलाल उनकी हवेली पर पहुँचे।
जुम्मन ने उन्हें सलाम किया और उन्हें हवेली की बैठक में बैठाते हुए कहा,
"बहुत दिनों बाद आना हुआ हुज़ूर।"
"हाँ कुछ मसरूफ था। भाईजान कहाँ हैं ?"
"अभी कुछ देर पहले ही कचहरी से लौटे हैं। मैं इत्तिला किए देता हूँ।"
श्यामलाल ने फल व रबड़ी देते हुए कहा,
"इसे भी ले जाइए...."
कुछ देर में रहमतुल्लाह बाहर आए। श्यामलाल ने उठकर उन्हें सलाम किया। रहमतुल्लाह ने आगे बढ़कर उन्हें गले से लगाते हुए कहा,
"श्यामलाल तुम तो ईद का चाँद हो गए। पहले क्लब में मिल जाते थे। अब तो वहाँ भी नहीं आते। कोर्ट में भी नहीं दिखते।"
श्यामलाल ने उदास होकर कहा,
"आजकल मन खिन्न है भाईजान।"
रहमतुल्लाह ने उन्हें बैठाते हुए कहा,
"क्या बात है श्यामलाल ? तुम्हारा चेहरा भी उतरा हुआ है। सेहत तो ठीक है ना ?"
"भाईजान जिस्म तो ठीक है। पर मन की सेहत ठीक नहीं है।"
रहमतुल्लाह ने महसूस किया कि श्यामलाल बहुत ही दुखी हैं। उनकी आवाज़ भर्राई हुई थी। उन्हें फिक्र हुई।
"खुलकर बताओ श्यामलाल...जय तो ठीक है ना।"
श्यामलाल अपने आप पर काबू नहीं रख पाए। वह रोने लगे। रहमतुल्लाह किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा उठे। वह उठकर उनके पास आए।
"श्यामलाल रो मत। काबू रखो खुद पर।"
उसी समय शौकत खानम भी बैठक में आईं। श्यामलाल को रोते देखकर वह भी घबरा गईं।
"या अल्लाह क्या हुआ आपको ?"
रहमतुल्लाह ने उनसे कहा कि वह श्यामलाल के लिए एक गिलास पानी ले आएं। वह फौरन पानी लेने भीतर चली गईं।
जब वह पानी लेकर आईं तब श्यामलाल अपने आप पर काबू पा चुके थे। उन्होंने थोड़ा पानी पिया। फिर बोले,
"माफ कीजिए भाईजान मैं खुद पर काबू नहीं कर सका।"
शौकत खानम ने बैठते हुए कहा,
"आपने तो डरा दिया। अब बताइए बात क्या है ? जय बेटा तो ठीक है ना।"
"क्या बताऊँ ठीक है या नहीं ? जहाँ होगा ठीक ही होगा।"
रहमतुल्लाह ने कहा,
"श्यामलाल पहेलियां ना बुझाओ। सारी बात बताओ। हमारी जान हलक में अटकी है।"
श्यामलाल ने उन्हें सारी बात बता दी। कुछ देर तक रहमतुल्लाह और शौकत खानम दोनों शांत रहे। जो कुछ उन्होंने सुना उस पर उन्हें यकीन नहीं हो रहा था।
वो लोग बचपन से जय को जानते थे। वह बड़े ही आराम में पला था। बहुत ही शौकीन मिज़ाज था।
रहमतुल्लाह को याद आ रहा था कि पहले उनके पास एक बग्घी हुआ करती थी। बचपन में जय जब उनके घर आता था तब उस बग्घी में बैठकर आसपास सैर करने ज़रूर जाता था। तब वह बग्घी में इस तरह बैठता था जैसे कोई नवाब हो।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ऐशो आराम में पला वह लड़का ऐसा कैसे कर सकता है।
शौकत खानम ने कहा,
"क्या बताएं ? हवा ही कुछ ऐसी चल पड़ी है। ना जाने आज के ये नौजवान ना तो अपना भला सोंच पा रहे हैं और ना अपने वालदैन की फ़िक्र करते हैं।"
रहमतुल्लाह ने अपनी बेगम की बात का जवाब देते हुए कहा,
"बेगम ये सब राह भटक गए हैं। क्या मिलेगा इन खुराफातों से ? पर आज की नौजवान पीढ़ी सोंचती कहाँ है कुछ।"
श्यामलाल को तसल्ली देते हुए वह बोले,
"फ़िक्र मत करो। जनाब का फितूर जल्द ही उतर जाएगा। आसान तो नहीं है यूं मारे मारे फिरना। वैसे भी मैंने सुना है कि उस लड़की वृंदा ने हैमिल्टन साहब के बारे में अपने अखबार में बड़ा ऊल जलूल लिखा है। वो तो बचेगी नहीं।"
"भाईजान ये भी तो एक चिंता है मुझे। उस लड़की के साथ अगर जय का नाम भी जुड़ गया तो मेरी साख मिट्टी में मिल जाएगी।"
शौकत खानम ने पूँछा,
"आपने पता नहीं किया कि कहाँ रह रहे हैं जय आजकल ?"
"मैं तो टूट गया हूँ। मुझमें तो हिम्मत नहीं की कि पता करूँ। उसका दोस्त इंद्रजीत खन्ना आया था। वह कह रहा था कि कोशिश करेगा।"
"वही नाटक वाला दोस्त ?"
"जी..."
रहमतुल्लाह और शौकत खानम उन्हें तसल्ली देते रहे। कुछ और समय रुक कर श्यामलाल अपने घर लौट गए।