अंतिम इच्छा
राजा विक्रम सिंह की सेना में अजय सिंह व विजय सिंह नाम के दो बहादुर सैनिक थे। उनमें से अजय सिंह, विजय सिंह से 10 वर्ष पुराना एवं सेनापति का अत्यंत वफादार व करीबी था। इस कारण विजय सिंह मन ही मन में उससे जलता था। उसके मन में ईर्ष्या व द्वेष इतना बढ़ गया था कि वह अजय सिंह को खत्म करने की योजना बनाने लगा। वे दोनो प्रतिदिन प्रातःकाल साथ-साथ घूमने के लिये जाते थे। उनके रास्ते में नदी को पार करने के लिये एक छोटा सा कच्चा पुल बना था जिसके ऊपर बहुत सावधानीपूर्वक चलना पड़ता था। विजय ने एक दिन रात्रि के समय उस पुल को एक स्थान पर इतना कमजोर कर दिया कि उस पर पाँव रखते ही व्यक्ति नदी में गिर जाए और उसकी मृत्यु हो जाए।
दूसरे दिन दोनो प्रतिदिन की तरह प्रातः के समय पुल के पास पहुंचे। विजय ने अजय से कहा कि आप आगे चलो मैं लघुशंका से निवृत्त होकर आपके पीछे-पीछे आता हूँ। अजय अपनी रफ्तार से पुल पर आगे बढ़ता जा रहा था, उसने पीछे मुड़कर देखा तो विजय धीरे-धीरे आ रहा था। पुल को जिस जगह से कमजोर किया गया था, वहाँ पर पहुँचकर अजय रूक गया और विजय की प्रतीक्षा करने लगा। उसके वहाँ पहुँचने पर उसने विजय को आगे चलने के लिये कहा, विजय बहुत असमंजस में था। यदि आगे बढ़ता है तो जान से हाथ धो बैठेगा, यदि नही जाता है तो पकड़ा जायगा और यह सोचकर उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी, उसकी मनःस्थिति को भांपकर अजय ने उसका गिरेबान पकड़ लिया और कहा- मैं बहुत समय से तुम्हारी गतिविधियों पर नज़र रखे हुये था। परंतु तुम इतना गिर जाओगे यह मैने सोचा भी नही था। कल रात जब तुम चुपचाप यहां आ रहे थे, तो तुम्हें यहाँ आते देखकर मुझे आभास हो गया था कि तुम कुछ बुरा करने की योजना बना रहे हो, तभी से मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था। मेरा अनुभव तुमसे कहीं अधिक है। अब तुम सच सच बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया ? वरना यह खबर मैं सेनापति एवं राजा तक पहुँचा दूँ तो तुम्हें निश्चित मृत्युदंड मिलेगा ?
यह सुनकर विजय के होश उड़ गये और वह गिड़गिड़ाकर रोते हुये अजय के पाँव में गिर गया और बोला, मैंने आपसे ईर्ष्यावश ऐसा कुकृत्य किया। मेरे घर में मेरी पत्नी और दो अबोध बच्चे हैं, यदि मैं जीवित नही रहा तो मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे और उनकी देखभाल करने वाला कोई नही हैं। वह फूट फूट कर रो रहा था और उसके मन में पश्चाताप के आंसू थे। यह देखकर अजय का मन द्रवित हो गया उसने विजय को उठाकर कहा कि चलो मैंने तुम्हें माफ कर दिया। यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच में ही रहना चाहिये। विजय इस उपकार के प्रति हृदय से कृतज्ञ था और उसका मन साफ होकर वह वास्तव में अजय का सच्चा मित्र बन गया था।
कुछ माह के उपरांत पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर दिया। दोनो सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। दुर्भाग्यवश अजय दुश्मनों से लड़ते हुये चारों ओर से घिर गया। उसे आभास होने लगा था कि अब उसकी मृत्यु करीब है। तभी अचानक से विजय दहाड़ता हुआ दुश्मनों के चक्रव्यूह को तोड़कर अजय को सुरक्षित स्थान पर ले गया। इस दौरान विजय गंभीर रूप से घायल हो गया और उसने अजय से कहा कि मेरा बचना नामुमकिन है, मेरे मरने के बाद मेरे परिवार का ख्याल रखना। इतना कहकर उसकी मृत्यु हो गयी।
युद्ध समाप्त होने पर अजय उसके घर पहुँचा। अपना परिचय देकर उसकी पत्नी को विजय द्वारा कही गयी अंतिम इच्छा से अवगत कराया। उसकी पत्नी की आँखों से आंसू बंद नही हो रहे थे। अजय ने कहा कि बहन ईश्वर के विधान के आगे हम सभी नतमस्तक है, मैं विजय को वापस तो नही ला सकता परंतु आपका भाई बनकर उसकी अंतिम इच्छा को पूरा करना चाहता हूँ। मैं एक सच्चा सैनिक हूँ और मेरे द्वारा दिये गये वचन के अनुसार आपके परिवार की देखरेख करना मेरा फर्ज एवं धर्म है जिसे मैं आजीवन निभाऊँगा। यह सुनकर विजय की पत्नी अत्यंत भावुक हो उठी और अजय से बोली कि परमात्मा ने आपको भाई के रूप में देवदूत बनाकर भेज दिया है अब मैं सभी चिंताओं से निश्चिंत हो गयी हूँ।