रमा देवी अपने बेटे नारंग, बहु सुरीली और पोते विवेक के साथ जयपुर मैं रहती हैं। बेटे नारंग का जब से विवाह हुआ तब से उसके रंग बहू के कारण बदल गए हैं। बहू का नाम सुरीली है लेकिन सास की ओर से उसके सुर; जब से शादी कर इस घर में आयी है तब से बदले हुए ही हैं।
रमादेवी घर का सारा काम करती हैंं जैैसे विवेेेक को स्कूल के के लिए तैयार करना खाना बनाना आदि।
एक दिन सुबह - सुबह ही जब रमा जी बेटे - बहू को चाय देने गयी तब दोनों सो रहे थे। जब उन्होंने बेटे को आवाज लगाई तो बहू भड़क उठी और कहा कि आपको कितनी बार कहा है कि सुबह-सुबह उठते ही मुझे अपना चेहरा मत दिखाया करो, पूरा दिन ही खराब हो जाता है और जब भी आप कमरे में आओ तो पहले दरवाजे को नोक करके आया करो।
इस पर नारंग ने भी पत्नी का ही पक्ष लिया। तभी वहाँ 10 साल का विवेक भी आ गया और कहा कि "दादीजी ने दरवाजा नोक किया था।"
तब सुरीली ने अपने बेटे विवेक से धमकी भरे लहजे में कहा कि तुम अपने स्कूल का काम पूरा करो और जल्दी से तैयार होकर स्कूल जाओ।
और बड़बड़ाने लगी कि दादी ने विवेक को भी बहला कर अपनी ओर कर लिया है। विवेक चुपचाप अपनी दादी के साथ पापा के कमरे से बाहर आ गया।
कुछ दिन बाद रमादेवी से नारंग ने कहा माँ मैंने कल आपको जो पर्ची दी थी वो सुरीली की दवाओं की थी आप मुझे दें मैं ऑफिस से आते समय दवाएं ले आऊँगा। रमादेवी ने कहा कि बेटे तुमने मुझे कल कोई पर्ची नहीं दी थी तब नारंग गुस्से से बोला माँ आजकल आप सठिया गयी हैं तो रामादेवी ने सच जानते हुए भी कहा कि हो सकता है मैं ही भूल गयी। और हाँ बेटे जब तुम ऑफिस से आओ तो डॉक्टर सुधीर से मेरी रिपोर्ट भी ले आना क्योंकि 6 या 7 दिन पहले मैंने भी जाँच करवाई थी। शायद अब तक रिपोर्ट आ गयी हों।
ये सुनकर नारंग अपनी माँ को मना कर देता है कि मेरे पास इतना वक़्त नहीं है जो मैं आपकी रिपोर्ट ले आऊं।
तभी वहाँ विवेक आता है और उसके हाथ में वो पर्ची थी जो अभी थोडी देर पहले नारंग रमादेवी से मांग रहा था और अपने पापा से कहा कि सठिया तो आप गए हैं पापा! ये पर्ची कल आपने ही तो मुझे दी थी और कहा था कि मैं इसे अलमारी में रख दूँ।
तभी सुरीली ने विवेक का हाथ पकड़कर धमकाया की क्या बड़ों से ऐसे बात की जाती है? क्या तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है? इस पर विवेक बोला की पापा ने भी तो अभी-अभी दादी जी से ऐसे ही बात की दादी जी भी तो पापा से बड़ी हैं।
विवेक से ऐसा सुनकर दोनों पति - पत्नी निरुत्तर हो गए।
कुछ दिन बाद नारंग ने रामादेवी से बात की , माँ मालवीय नगर वाला फ्लैट जो कि आपके नाम पर है वो आप सुरीली के नाम कर दो। फिर हम वहाँ शिफ्ट हो जाएंगे और तुम यहाँ रहना इसी घर में , अकेले।
रमा देवी को अचानक जैसे सदमा सा लगा और वे थोड़ा संभलकर बोली कि मैं अकेली इस घर में कैसे रहूंगी? इस पर बहू ने कहा कि आपको यहाँ अकेले ही रहना पड़ेगा।
तब रामादेवी ने कुछ देर सोच कर कहा कि आप मुझे केवल 3 महीने का समय और दें इसके बाद मैं सब कुछ आपके नाम कर दूंगी और आपसे बहुत दूर चली जाऊँगी।
एक दिन नारंग कोई जरूरी कागजात ढूंढ़ रहा था। पता नहीं किस उलझन में था और इसी वजह से वो रमादेवी के कमरे में चला गया। अचानक उसकी नज़र एक डायरी पर पड़ी।
कुछ सोचकर उसने वो डायरी उठा ली और पढ़ने लगा। चूंकि उस समय रमादेवी मंदिर गयीं थी।
जैसे -जैसे नारंग डायरी को पढ़ता गया वैसे -वैसे उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे।
उसने वो डायरी अपनी पत्नी को भी दिखाई जिसमें लिखा था " मैं रमादेवी अपने बेटे को बहुत चाहती हूँ, आज उसने मुझसे अलग रहने की माँग की है लेकिन मैं हमेशां उसके साथ रहना चाहती हूँ। मैं जानती हूँ कि मैं उनके साथ रहकर भी खुद को अकेली महसूस करती हूँ तो फिर बेटे - बहू के साथ रहूँ या अलग क्या फर्क पड़ता है। मैं अपने बेटे की खुशी के लिए उनसे अलग रह सकती हूँ लेकिन मुझे ये चिंता भी रहती है की हो सकता है कल को बड़ा होकर विवेक भी मेरे बेटे-बहू के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार करे जैसा मेरे साथ नारंग कर रहा है?
नहीं चाहती मैं की मेरा बेटा भी बुढ़ापे में दर-दर की ठोकरें खाता फिरे।
मैंने 3 महिने का समय इसलिए मांगा है क्योंकि डॉक्टर के अनुसार मुझे केंसर है और लगभग 3 महीने बाद मेरी मृत्यु हो जाएगी और मेरा बेटा-बहू भी इस कलंक से बच जाएगे कि उन्होंने बुढ़ापे में अपनी माँ को अपने साथ नहीं रखा।"
जब सुरीली ने भी उस डायरी को पढ़ा तो उसकी आँखें भी आँसुओं से भर गई।
उसके बाद दोनों ने एक निर्णय लिया कि वे माँ के आगे कभी जाहिर नहीं होने देंगे कि उन्होंने डायरी को पढ़ लिया है और बेसब्री से रमादेवी के आने का इंतज़ार करने लगे...।
उसके बाद नारंग और सुरीली ने रमादेवी से माफी मांगी और उनकी अच्छे से देखभाल करनी शुरू कर दी। लगता था जैसे पूरे परिवार में सालों बाद खुशियाँ लौट आयी हों...।
समाप्त
✍️ परमानन्द 'प्रेम'