कैदी नंबर 306 - बेगुनाह अपराधी
पंकज राजपूत
‘कैदी नंबर 306’ एवं ‘कैदी नंबर 306 रिटर्न्ड’ मैं आपने पढ़ा की रामखिलावन निहायत ही शरीफ आदमी था और अपनी जीविका चलाने के लिए प्रेस मैं रिपोर्टर का काम कर रहा था। पुलिस द्वारा दर्ज़ किये गए एक फ़र्ज़ी मामले को जान, रामखिलावन खोलने का प्रयास करता है तब पुलिस रामखिलावन को भी फ़र्ज़ी मामले मैं फसा देती है। रामखिलावन खुद को निर्दोष साबित करने का प्रयास करता है, परन्तु पुलिस अपनी नाकामी छुपाने के लिए प्रयासरत है, इसीलिए रामखिलावन के निर्दोष होने के साक्ष्य कोर्ट मैं नहीं पहुँच पाते और रामखिलावन को सजा हो जाती है। रामखिलावन हार नहीं मानता और हाई कोर्ट मैं अपील करता है।
अब आगे :
कैदी नंबर 306 की अपील का हाईकोर्ट से फैसला आने वाला था। इंतज़ार करते करते 306 सो गया। जब 306 जगा तो शाम हो रही थी। 306 को इंतज़ार था परन्तु उसे व्यग्रता नहीं थी। उसने अपील पर मेहनत की थी और उसे यह भी पता था की फैसला उसके खिलाफ भी हो सकता था और 306 आगे की लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार था। शाम के करीब 4 बजे जज साहब ने फैसला सुनाने के लिए आवाज लगाई। पुरे दिन का इंतज़ार और जज साहब ने सिर्फ एक मिनट मैं फैसला सुना कर अपनी सीट से उठ गए। 306 खुद को फैसला सुनने के लिए तैयार भी नहीं कर पाया था उससे पहले ही जज महोदय फैसला सुना कर उठ चुके थे। 306 हर तरह के फैसले के लिए तैयार था परन्तु फैसले ने उसे भी आश्चर्य चकित कर दिया।
कैदी नंबर 306 को हाई कोर्ट द्वारा बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया था। 306 अपनी ज़िन्दगी दुबारा शुरू करने के लिए पूरी तरह आज़ाद था। 306 ने बहुत मेहनत की थी उसे न केवल बरी होने की उम्मीद थी परन्तु उसे यह भी उम्मीद थी की साज़िशकर्ता के खिलाफ कोर्ट कुछ अवश्य कहेगी। फैसला सुनकर रामखिलावन के होटों पर मुस्कराहट आ गयी परन्तु यह मुस्कराहट ख़ुशी की नहीं बल्कि निराशा की थी। क्योंकि कोर्ट ने साज़िश कर्ता अधिकारियों को बचाने का प्रयास स्पष्ट दिखाई देता था।
कैदी नंबर 306 से दोबारा रामखिलावन बन जाने पर रामखिलावन की आँखो में खुशी के आंसू आ गए और होटों पर निराशा की मुस्कराहट भी। रामखिलावन से कैदी नंबर 306 और कैदी नंबर 306 से दुबारा रामखिलावन बनने का अनजाना सफर आसान नहीं था परन्तु रामखिलावन ने इस सफर को सफलतापूर्वक पूरा किया था। इस दौरान रामखिलावन ने बहुत कुछ नया सीखा। रामखिलावन खुश था परन्तु उसे दुःख इस बात का था की उसके खिलाफ साज़िश करने वाले अधिकारियों अभी भी अपने पदों पर बने हुए थे। रामखिलावन भ्रस्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए दृढ संकल्प था परन्तु वह एक अलग लड़ाई थी जिसका इस वक़्त ज्यादा महत्व नहीं था इस वक़्त उसे अपने घर जाना था अपने परिवार की तलाश करनी थी। उसका घर उसका इंतज़ार कर रहा था।
रामखिलावन को मालूम था की उसका परिवार शहर छोड़ कर जा चुका है परन्तु उसके पुराने मोहल्ले वाला मकान अभी तक सुरक्षित था और उसके स्वागत के लिए तैयार भी। रामखिलावन अपने घर की तरफ रिक्शा पर रवाना हो गया रास्ते से रात के खाने के लिए बढ़िया खाना पैक करवा लिया। रामखिलावन बहुत दिन जेल मैं रहा था जेल का खाना खाते खाते वह परेशान हो चुका था इसीलिए बढ़िया खाने की इच्छा थी जो उसे होटल से ही मिल सकता था।
रामखिलावन को अपने घर आते आते रात के 8 बज गए अंधेरा हो चुका था इसलिए स्ट्रीट लाइट जला दी गयी थी। जिससे घर के बाहर काफी रोशनी थी। घर के दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था और रामखिलावन के पास चाबी नहीं थी ताला तोड़ने के लिए किसी भारी वस्तु की तलाश में रामखिलावन इधर उधर देखना शुरू करता है और अंत में एक भारी पत्थर उठा लेता है। पत्थर को ताले पर मारना से काफी आवाज़ हुए जिसे सुनकर कुछ पड़ोसी बाहर निकल आये परंतु रामखिलावन को देख कर लगभग तुरंत ही अपने अपने घरों पर चले गए किसी ने भी रामखिलावन की सहायता करने का प्रयास नहीं किया। अचानक रामखिलावन एक तेज़ आवाज़ सुनता है आवाज़ पड़ोसी महिला की थी इस आवाज़ को रामखिलावन बहुत अच्छी तरह पहचानता था। महिला तेज़ आवाज़ में कह रही थी कि मोहले अब शरीफ महिलाओं के रहने लायक नहीं रहा। शब्द रामखिलावन के कानों मैं पिघले शीशे की तरह चुभ रहे थे परन्तु इस वक़्त रामखिलावन को सोने के लिए सुरक्षित जगह की तलाश थी इसीलिए जैसे तैसे रामखिलावन टाला तोड़ कर घर मैं दाखिल हो गया। बरसों से घर की सफाई नहीं हुई हो जगह जगह मिट्टी धूल की मोटी परत जमी हुई है घर के अर कोने मकड़ी के जाले लगे है चूहों ने धमाचौकड़ी मचा रखी थी घर भूतिया घर से कम नहीं लग रहा था। परन्तु रामखिलावन को रात गुजारनी ही थी। बहरी कमरे को थोड़ा साफ़ करके रामखिलावन वही सो गया। उसकी भूख मर चुकी थी उससे खाना नहीं खाया गया। रामखिलावन जानता था की उसे मुजरिम समझा जा रहा है उसे उम्मीद थी की अगले दिन पेपर मैं उसके बाइज़्ज़त बरी होने की खबर पढ़कर पड़ोसियों का व्यवहार बदल जायेगा।
रामखिलावन लम्बे समय के बाद अपने घर पर सोया था। घर असुविधाजनक था परन्तु अपना था। रात भर मीठी नींद के बाद सुबह रामखिलावन उठा तब प्रसनचित था। रामखिलावन 5 बजे ही जाग चूका था परन्तु उठने की इच्छा नहीं हो रही थी। रामखिलावन को भूख लगी थी उसे चाय की भी जरूरत थी इसीलिए उसे आखिर उठना ही था। तकरीबन 6.30 के आस पास रामखिलावन दूध लेकर आया जैसे तैसे कागज जला कर दूध गरम किया और रात का खाना गरम करके नाश्ता किया। आते वक़्त रामखिलावन न्यूज़ पेपर भी ले आया था जिसमे उसकी बरी होने की न्यूज़ 6 वे पन्ने पर एक कोने मैं छपी हुई थी। सामान्य परिस्थिति मैं रामखिलावन पडोसी भाभी के यहां से दूध और खाना गरम करवा सकता था परन्तु रात को सुनी हुई आवाज़ अभी भी उसके कानों मैं गूँज रही थी।
भूख शांत होने के बाद घर की सफाई और अन्य जरूरी वस्तुओं का इंतज़ाम भी जरूरी थी। सफाई के लिए उसके यहां बहुत लम्बे समय से कमलाबाई आती थी उसका घर भी 2 गली छोड़ कर पड़ता था। रामखिलावन बिना किसी देरी के कमला को बुलाने चल देता है रास्ते में उसके जानने वाले कई लोग दिखाई दिए रामखिलावन ने सबको जयराम भी कहा परन्तु या तो जवाब नहीं आया या किसी ने जवाब दिया भी तो कड़वा जवाब दिया। वो लोग उसे ऐसी नज़रों से देखते हैं जैसे की मोहल्ले मैं कोई जंगल भेड़िए आ गया हो।
रामखिलावन समझ गया की मोहल्ले मैं वह अपनी इज़्ज़त गंवा चूका है उसे यहाँ कोई निर्दोष नहीं मानता इस बात की मोहल्लेवासियों के लिए कोई अहमियत नहीं की रामखिलावन को बाइज़्ज़त बरी किया गया है उसे आज भी मुजरिम ही माना जा रहा है। निराश रामखिलावन सर झुकाकर कमला बाई की तलाश मैं उसके घर पहुँच गया।
रामखिलावन उसके घर के बाहर खड़े हो कर आवाज़ लगता है। थोड़ी देर बाद कमलाबाई दरवाजा खोलती है और रामखिलावन को सामने देख कर कमला भाई चौंक जाती है परन्तु जल्द ही संभल कर अपने पति को आवाज़ लगाती है। कमला का पति बहार आकर रामखिलावन को देखता है और कड़क आवाज़ मैं पूछता है की जेल से भाग आया है क्या ? तब रामखिलावन उसे समझाता है की हाई कोर्ट ने उसे बाइज़्ज़त बरी कर दिया है और वह कमलाबाई को बुलाने आया है ताकि घर की साफ सफाई हो सके और उसे रहने लायक बनाया जा सके। कमलाबाई रामखिलावन को डांट देती है और कहती है की मैं तुम्हारे यहां काम नहीं कर सकती तुमने बहुत गलत काम किया है मुझे तो अपनी जिंदगी प्यारी है जब तुम एक बार ऐसा गलत काम कर चुके हो तो तुम मेरे साथ भी कर सकते मुझे भूखा रहना मंजूर है लेकिन मैं तुम्हारे जैसे जानवर के यहाँ काम नहीं कर सकती और यहां दोबारा मत आना यह शरीफों का मोहल्ला है अगर तुम फिर कभी आए तो धक्के मार मार कर निकाल दूँगी। रामखिलावन आश्चर्यचकित खड़ा यह सब होते देख रहा है और उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा। और वह सोच रहा था की जिस जजमेंट के लिए उसने इतनी मेहनत की उसका किसी के लिए कोई महत्व ही नहीं तो आखिर यह कोर्ट बनाये किसके लिए गए है?
रामखिलावन को गहरा धक्का लगता है और कामवाली बाई द्वारा कहे गए शब्द उसके कानों से उत्तर कर पूरे शरीर में आग सी लगा देते हैं उसकी आंखों के आगे अंधेरा आने लगता है उसे लगता है कि मैं वही मर जाएगा उसके पूरे जिस्म में अजीब सी सिहरन दौड़ जाती है लेकिन तभी कमला की आवाज़ उसके कानों में पड़ती है वह उसे शराफ़त से चले जाने के लिए तो वह अपने आप को संभालना है और अपने घर की तरफ चल देता है कैदी नंबर 306 को इतनी निराशा तो तब नहीं हुई थी जब उस पर आरोप लगे थे जितनी की कोर्ट द्वारा उसे बरी किए जाने के बाद हो रही है कैदी नंबर 306 अब अपने घर वापस आ चुका है और ना चाहते हुए भी घर की सफाई करने को मजबूर है किसी तरह वह अपने अस्त-व्यस्त पड़े घर को कुछ हद तक साफ करने में सफल हो जाता हैl पड़ोस लोगों का नज़रिया उसके प्रति बिल्कुल बदल चुका हैl रामखिलावन बिल्कुल अकेला है। जिसके प्रति समाज का नजरिया वैसा ही है जैसा किसी जानवर के लिए हो।
रामखिलावन की आंखो के सामने वही घटनाक्रम घूमने लगता है कि कैसे वह रामखेलावन से कैदी नंबर 306 बन गया आंखो के आगे चित्र आते ही उसके चेहरे पर दर्द के साथ आंसू निकाल आते है उसने सच का साथ देने की कोशिश की ओर और कैसे उसे झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया जिसकी वजह से उसका परिवार तबाह हो गया। कैदी नंबर 306 खुद को संभालना है उसे अब भूख लगी है शाम के 6 बज चुके है वह नहाने जाता है और तैयार होकर अपने खाने पीने का इंतजाम करने लिए बाजार के लिए निकलता है रास्ते में उसके मिलने वाले लोग उसे इस तरह से देख रहे है जैसे वो कितना घिनौना हो, लेकिन कैदी नंबर 306 चलता रहता है और राधेश्याम किराना स्टोर पर पहुंचता है। यह वही किराना स्टोर है जहां से वो पहले भी सामान लिया करता था राधेश्याम रामखिलावन को अच्छे से जानता था। पहले जब भी रामखिलावन स्टोर पर आता था तब राधेश्याम उसे दुकान के अंदर बैठा कर उसे चाय अवश्य पिलाया करता था। रामखिलावन राधेश्याम से पुराने व्यव्हार की उम्मीद कर रहा था उसने राधेश्याम को नमस्कार किया और उसे अपने आने का मकसद बताया। राधेश्याम व्यापारी था उसे दुकान चलने के लिए हर किसम के व्यक्ति से लेनदेन करना पड़ता था। शायद राधेश्याम रामखिलावन को सबसे घृणित मान रहा था उसे शायद रामखिलावन से होने वाले मुनाफे की भी परवाह नहीं थी बस वह रामखिलावन को को दफा करने की परवाह थी। राधेश्याम रामखिलावन से कह देता है की यहाँ शरीफों को सामान मिलता है तेरे जैसे अपराधी को नहीं आगे निकाल यहां महिलाएं भी खड़ी है जल्दी निकाल आगे। दुकानदार की बाते सुनकर वहां खड़े लोग रामखिलावन को घूरने लगते हैं और आपस में बाते करने लगते है।
कैदी नंबर 6 को अपनी ऐसी बेज्जती की उम्मीद नहीं थी वह समझ चुका था कि उसका बहिष्कार किया जा रहा है खुद को फिर से अपमानित होता देख रामखिलावन तिलमिला उठा और खून का घूंट पीकर उस दुकान को छोड़कर आगे बढ़ जाता है। रामखिलावन अपना मुंह ढक लेता है और दूर किसी दुकान पर जाता है अपने लिए खाने पीने की चीजें लेता है और अपनी घर की ओर चल देता है।
रास्ते में कैदी नंबर 306 को आता देख शर्मा जी अपनी पत्नी को बची को अंदर जाने को बोलते हुए कहते हैं अब तो इस मोहल्ले में अपराधी रहने आ गए हैं जिसे रामखिलावन अनसुना कर देने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता पर चलते उसे लगने लगता है कहीं रेप उसने ही तो नहीं किया उसका दिमाग जैसे मानने को तैयार है कि तभी कुत्ते की भोकने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी तो वह कैसे अपने अवचेतन मन से बाहर आया और खुद को संभालते हुए अपने घर की ओर चल देता है पर उसके दिमाग में तो जैसे तूफान चल रहा है।
रामखिलावन जब घर पहुंचा तो सूरज ढल चुका था उसे भूख लगी थी परन्तु दिन भर हुए अपमान के कारन उसका मन उदास था उसकी खाना बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी परन्तु रामखिलावन जनता था की समाज मैं अपनी खोई हुई इज़्ज़त दुबारा पाने के लिए उसे अभी लम्बी लड़ाई लड़नी है इसके लिए स्वस्थ एवं प्रसनचित रहना जरूरी है। उसे एहसास था की खाना खाना जरूरी है वह जो खाने-पीने का सामान लाया था उसमें से वह ब्रेड और मक्खन को निकालता है और मक्खन को ब्रेड पर लगाकर खाने लगता है।
रामखिलावन दिन भर कि जो उठापटक हुई है उससे वह मानसिक शारीरिक रूप से थक चुका है उसे आराम की जरूरत थी। आंखें बंद करते ही और उसके जेहन में सारी बाते आने और सोचते सोचते कब उसे नींद आ जाती है पाता नहीं चलता। आज मंगलवार है रामखेलावन की नींद सुबह जल्दी खुल जाती है जो की जेल में रहने के समय उसकी आदत बन चुकी है रामखेलावन पास लगे हैंडपंप से नहाने के लिए पानी भर कर लाया है और नहा कर तैयार हो जाता है धार्मिक प्रवृति होने के कारण पहले कि तरह हनुमान चालीसा का पाठ करता है 7 बजे तक फ़्री होने के बाद उसे चाय की तलब महसूस होती है पर घर में चाय बनाने के कुछ भी नही है।
रामखिलावन की जमा पूंजी भी कुछ अधिक नहीं थी इसीलिए कुछ काम धंधा करना आवश्यक था। इसके अलावा पूरा दिन घर बैठ कर भी गुजरा नहीं जा सकता था अतः रामखिलावन अपने मित्र हरीश से मिलने चल देता है। हरीश दोस्त होने के साथ साथ हमपेशा भी था और फिर किसी के साथ बैठ कर चाय पीये भी लम्बा वक़्त हो चुका था। हरीश के घर पर दरवाज़ा हरीश के 14 वर्षीय पुत्री के खोला। बहुत ही प्यारा बच्ची थी रामखिलावन को देख कर उसकी आँखों मैं ख़ौफ़ स्पष्ट दिखाई दिया। रामखिलावन समझ सकता था की यह ख़ौफ़ बच्ची का अपना नहीं बल्कि हरीश एवं उसकी पत्नी के विचारों की प्रतिछाया मात्र है। इस बारे मैं रामखिलावन ज्यादा नहीं सोच पाए इससे पहले ही हरीश बहार आ गया।
हरीश की आँखों मैं भी रामखिलावन को प्यार और मित्रता के भावों की अपेक्षा अबूझे और अनजाने से भाव ही दिखाई दिए। रामखिलावन जल्द से जल्द वापिस लौट जाना चाहता था परन्तु जो बात करने रामखिलावन आया था वह कहना भी जरूरी था। रामखिलावन ने हरीश को अपने हाई कोर्ट के आर्डर की कॉपी देते हुए उसे प्रेस के मालिक तक पहुँचाने की प्रार्थना की ताकि उसके पुराने पद को हासिल करने सम्बंदि प्रेस मालिक के विचार जाने जा सकें। हरीश ने आर्डर की कॉपी मालिक तक पहुँचाने का वादा किया और मालिक के विचार जानने के प्रयास करने का वादा भी किया। हरीश ने रामखिलावन को प्रेस मैं 3 बजे के आस पास उससे मिलने के लिए कहा।
रामखिलावन होटल से चाय एवं नाश्ता करने के बाद घर आ गया और कोई काम न होने के कारण एक लेख लिखने बैठ गया। उसका विचार था की प्रेस मैं मालिक या एडिटर से मुलाकात होने पर उनको लेख की कॉपी देगा और पब्लिश करने के लिए कहेगा। इसके अलावा लेख लिखने का एक अन्य कारण भी था रामखिलावन बरी हो चुका था परन्तु समाज अभी भी उससे अपराधियों के जैसा व्यवहार कर रहा था। रामखिलावन इस अन्याय का विरोध करना चाहता था इसके लिए रामखिलावन के पास एकमात्र हथियार कलम थी। रामखिलावन ने बहुत भावुकता से भरा हुआ लेख लिखा और उसमे अपने समस्त विचार उड़ेल दिए। रामखिलावन की इच्छा थी हरीश प्रेस मालिक और अन्य लोग उसके लेख को पड़ें इसका एकमात्र तरीका था की लेख को छपवाया जाये। रामखिलावन चाहता था की लेख उसकी प्रेस मैं छपे परन्तु यदि उसे उसकी नौकरी वापिस नहीं भी मिल सकती तब भी वह उसे स्वतंत्र पत्रकार के रूप मैं छपवाना चाहता था।
रामखिलावन ठीक 3 बजे प्रेस के ऑफिस मैं पहुंचा और तुरंत ही उसने अपने लेख की कॉपी एडिटर को अवं प्रेस मालिक को भिजवा दिए। रामखिलावन की मुलाकात हरीश से रिसेप्शन पर ही हो गयी और उसने एक कॉपी हरीश को भी दी। इसके बाद रामखिलावन वेटिंग रूम मैं आ कर बैठ गया। हरीश ने रामखिलावन को अपने केबिन मैं बैठने के लिए कहा परन्तु रामखिलावन कुछ देर वेटिंग रूम मैं बैठना चाहता था क्योंकि रामखिलावन यहाँ काम की तलाश मैं आया था इसके अलावा वेटिंग रूम मैं पुराने दोस्तों से मुलाकात होने की सम्भावना भी थी। रामखिलावन ने हरीश से वादा अवश्य कर दिया था की थोड़ी देर बाद वह उसके केबिन मैं आ जायेगा।
रामखिलावन कुछ देर वेटिंग रूम मैं बैठने के बाद हरीश के केबिन की तरफ चला गया। हरीश अभी भी रिसेप्शन पर ही था परन्तु उसने रामखिलावन को बता दिया की केबिन खुला हुआ है। रामखिलावन हरीश के केबिन तक नहीं पहुँच पाया उससे पहले ही प्रताप रेड्डी रामखिलावन को अपने केबिन मैं ले गया। प्रताप रेड्डी रामखिलावन का परम मित्र था प्रताप रेड्डी से रामखिलावन को प्रेस मैं उसके खिलाफ माहौल पर विस्तार मैं बताया और साथ ही यह भी बताया की प्रेस मालिक उसस्के पूरी तरह खिलाफ था वह रामखिलावन के खिलाफ बाकायदा अभियान चलना चाहता था परन्तु प्रेस की बदनामी से डरता था इसीलिए सीधे तौर पर उसने कुछ नहीं किया परन्तु अप्रतयक्ष रूप से बहुत कुछ किया उसने कई NGO को डोनेशन भी दिया ताकि रामखिलावन को फांसी दिलवाने लिए अभियान चलता रहे।
बहुत देर इंतज़ार करने के बाद रामखिलावन को मालिक के रूम मैं बुलवाया गया वही पर एडिटर भी मौजूद थे। रामखिलावन दोनों के बारे मैं प्रताप रेड्डी से जान चुका था और उसे उम्मीद थी की मालिक के चेहरे पर उसके लिए नफरत दिखाई देगी। केबिन मैं दाखिल होते ही रामखिलावन मन ही मन चौंका कारण था मालिक एवं एडिटर के चेहरे के भाव। मालिक के चेहरे पर अजीब से भाव थे इन भावों को पहचानना आसान नहीं था परन्तु इसे किसी भी हालत मैं नफरत नहीं खा जा सकता था।
रामखिलावन की कलम का जादू अपना असर दिखा चुका था परन्तु प्रेस मालिक उसे नौकरी पर रखने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि यह बिज़नेस के लिए अच्छा नहीं था। इसके अलावा शहर के कई NGO प्रेस के खिलाफ माहौल तैयार कर सकते थे। एडिटर ने एक अन्य समस्या भी सामने रखी जब रामखिलावन प्रताप रेड्डी के पास बैठा था तब प्रेस का महिला स्टाफ मालिक से मुलाकात कर चूका था और स्पष्ट कह चुका था की यदि प्रेस मैं रामखिलावन को जगह मिलती है तो महिला स्टाफ प्रेस के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। रामखिलावन न अपना लेख छपने की प्रार्थना की एडिटर इसके लिए तैयार थे परन्तु वह रामखिलावन का नाम लेखक के रूप मैं देने से हिचक रहे थे। रामखिलावन किसी भी कीमत अपनी बात लोगों के सामने रखना चाहता था इसीलिए रामखिलावन अपने नाम के बिना लेख छपवाने के लिए तैयार हो गया।
अगली सुबह वास्तव मैं हंगामाखेज थी रामखिलावन का लेख उसके सामने था लोगों की प्रतिक्रिया आने का इंतज़ार था। जब रामखिलावन दूध लेने बहार गया तब कुछ लोगों की नज़र मैं उसके प्रति सहानुभूति दिखाई दे रही थी। दूध वाले ने बाक़ायदा उससे बातचीत के लिए अपनी दुकान से बहार तक आया। रामखिलावन खुश था और उसे पूरी उम्मीद थी की जल्द ही माहौल बदलेगी। अगली सुबह फिर से पेपर आया और एक बार फिर रामखिलावन की निराशा से भर गया। कई अख़बारों मैं रामखिलावन के लेख के विरोध मैं लेख लिखे गए थे अनजान लेखक को अपराधी के प्रति सहानुभूति रखने के जुर्म मैं अपराधी से भी बड़ा अपराधी घोषित किया गया था। कई महिला संगठन अपराधी एवं अपराधी के प्रति सहानुभूति रखने वाले लेखकों के विरोध मैं आज जुलुस निकलने वाले थे। कई गर्ल्स स्कूल एवं कॉलेज के छात्राएं जुलुस मैं भाग लेने वाले थे। इस सम्बन्ध मैं शाम को प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी होने वाली थी। उसके बाद कलेक्टर एवं कमिशनल को विज्ञापन भी देने का प्रस्ताव था। पुलिस कमिश्नर ने भी स्पष्ट कर दिया था की महिला अपराधों के प्रति किसी भी किस्म का बढ़ावा देने सम्बंदि मटेरियल बर्दास्त नहीं किया जायेगा और उचित कार्यवाही की जाएगी।
रामखिलावन को निराशा अवश्य हुई परन्तु उसने हार नहीं मानी थी। रात को तकरीबन १० बजे एक हवलदार उसे बुलाने आया और उसे पुलिस स्टेशन ले गया। हरीश ने रामखिलावन के खिलाफ शिकायत दर्ज़ करवाई थी। हरीश के केबिन से 1 लाख रुपये चोरी चले गए थे और उसने कम्प्लेन की थी की उसके केबिन मैं रामखिलावन अकेले बैठ था। जाँच अधिकारी ने उसे शक के आधार पर जाँच के लिए बुलवा लिया था। पूरी रात थाने मैं बिताने के बाद रामखिलावन को थाने से छुटकारा मिल पाया। प्रेस मालिक की सहानुभूति रामखिलावन के साथ थी और उसने CCTV रिकॉर्डिंग जांच अधिकारी को भिजवा दी थी। CCTV रिकॉर्डिंग से स्पस्ट था कि रामखिलावन हरीश के केबिन में गया ही नहीं उसे प्रताप रेड्डी अपने साथ ले गया था (1 लाख की चोरी का मामला बाद ही दिलचस्प है परंतु यह हरीश की कहानी का हिस्सा है रामखिलावन की नहीं इसीलिए फिर कभी)| रामखिलावन थक चुके थे प्रेस मालिक उसे उसके घर तक अपनी कार में छोड़ गए और सहानुभूति पूर्वक राय भी दे गए कि इस शहर में इसका अब कोई भविष्य नहीं है।
रामखिलावन हार नहीं मानना चाहता था वो लड़ना चाहता था उसने कुछ और समय शहर में बिताने का फैसला किया। रामखिलावन की कलम बहुत धारदार थी परंतु कलम के धार तभी कामयाब होती जब कोई प्रेस उसे छपती जोकि संभव नहीं दिख रहा था। रामखिलावन ने अन्य सूचना माध्यम तक पहुँच बनाने का फैसला किया उसने सोशल मीडिया जॉइन किया, ब्लॉग्स लिखने शुरू किए। रामखिलावन शुरुआत में कुछ कामयाब दिख रहा था परंतु हर गुजरते दिन के साथ उसके विरोधियों की संख्या बढ़ रही थी। रामखिलावन के एक ब्लॉग के विरोध में 10 ब्लॉग लिखे जा रहे थे। एक ट्वीट के बदले 100 ट्वीट किए जा रहे थे। बार बार उसके पोस्ट्स को ब्लॉक एवं कंप्लेन की जा रही थी। कुछ लोगों ने IT Act के तहत कार्यवाही का प्रयास भी किया था। तर्क की बजाए लोग उसकी पर्सनल लाइफ की धज्जियाँ उड़ा रहे थे। माहौल पूरी तरह उसके खिलाफ था। यहां तक कि पुलिस भी उसे परेशान कर रही थी हर छोटी बड़ी आपराधिक घटना होने पर उसे पहचान परेड के लिए बुलवा लिया जाता। आखिर रामखिलावन थक गया।
रामखिलावन थक गया परंतु हारा नहीं। जमापूंजी भी लगभग खत्म हो चुकी थी ऐसे में लड़ाई जारी रखने की संभावना नहीं थी।
एक दिन सुबह के अंधेरे में जब सारा मोहल्ला सो रहा था रामखिलावन अपना छोटा सा बेग लिए चल जा रहा था अपनी अगली मंज़िल की तलाश में। रामखिलावन की लड़ाई लंबी थी परंतु अभी फिलहाल शांति काल था और उसे अपने परिवार की तलाश करनी थी।