Anu aur Manu Part-7 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | अणु और मनु - भाग-7

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अणु और मनु - भाग-7

गौरव कॉलेज की कैंटीन के काउंटर से दो कॉफ़ी के कप लाकर मेज पर रखते हुए बोला “क्या बात है रीना तुम्हारी तबियत तो ठीक है” |

रीना अपने चेहरे से बाल हटाते हुए बोली “क्यों क्या हुआ” |

गौरव रीना को एक बार फिर ध्यान से देखते हुए बोला “तुम आज पूरा समय चुप बैठी रहीं | कुछ बात तो है” |

रीना अपने चेहरे पर नकली हँसी लाते हुए बोली “अरे नहीं बाबा ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है | मैं तो बस वैसे ही....” |

गौरव रीना की आँखों में आँखें डालते हुए बोला “मैडम आपकी कौन सी हँसी असली है और कौन सी नकली मुझे सब मालूम है | खैर इस बात को छोड़ो और मुद्दे पर आओ और जल्दी से बताओ कि कौन सी बात तुम्हें परेशान कर रही है” |

रीना कॉफ़ी का कप उठाते हुए बोली “आज कल तुम मुझ पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगे हो” |

गौरव टेबल पर हाथ मारते हुए बोला “यही बात तो मैं सुनना चाहता था | मैडम आखिर क्यों न दूँ | तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो” |

रीना बहुत मासूमियत से बोली “बस दोस्त ही हूँ” |

गौरव गंभीर भाव से बोला “बस दोस्त ही हूँ | इसका क्या मतलब हुआ | कहना क्या चाहती हो”, कह कर गौरव चुप कर जाता है लेकिन मन ही मन वह बोलता है, ‘मैं दूसरे लोगों की तरह नाटक नहीं कर सकता | यार मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ | तुम्हारे बिना रह नहीं सकता’ |

रीना गौरव के मन की बात समझते हुए बोली “नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं कहना चाहती हूँ जिसके लिए तुम्हें झूठ बोलना पड़े या फिर कोई नाटक करना पड़े | मैंने तो बस एक आम बात की थी कि क्या मैं तुम्हारे दूसरे दोस्तों की तरह ही हूँ”?

गौरव उसकी बात सुन कर हैरान हो जाता है | उसे समझ नहीं आता है कि रीना ने उसके मन की बात कैसे जान ली | वह अपनी सोच पर काबू पाते हुए बोला “मैंने अभी तो बोला कि तुम मेरे सब दोस्तों से बिलकुल अलग हो और ख़ास हो | तुम ही हो जिस से मैं जब चाहे कोई भी बात कर सकता हूँ | तुम ही मुझे मेरे माँ-बाप के इलावा समझ पाती हो | मैंने तुम्हें कभी भी एक लड़की की तरह नहीं माना है | और तुम ने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि तुम एक लड़की हो | दोस्त दोस्त होते हैं उनका कोई मजहब कोई जाति और कोई लिंग नहीं होता | वह दोस्त ही सबसे अच्छा दोस्त होता है जो दूसरे की बात बिना कहे ही समझ जाए | और जहाँ तक कॉलेज के दोस्तों की बात होती है तो इस दोस्ती की अलसी परख तो कॉलेज से निकलने के बाद होती है | हम तो अभी एक सपनों की जिन्दगी जी रहे हैं | ज्यादात्तर को एक दूसरे से सिर्फ आकर्षण मात्र है | जब यहाँ से निकल कर जमीन पर आएंगे तो समझ में आएगा कि दोस्ती किस चिड़िया का नाम है” |

रीना अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोली “बाप रे बाप | इतनी सी बात पर इतना बड़ा भाषण | मुझे मॉफ करो | गलती हो गई जो मैंने तुम्हें कुछ कहा | मैं अपने शब्द वापिस लेती हूँ” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “इसमें मॉफी की क्या बात है | जब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल ही दिया है तो अब डंक सहने ही पड़ेंगे | कुछ और सुनना है तो बोलो” |

रीना अपने कानों को हाथ लगाते हुए बोली “प्लीज मॉफ करो” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “अच्छा मॉफ किया | अब ये बताओ कि तुम आज उखड़ी-उखड़ी क्यों हो | कभी तो मुझ से अपनी परेशानियाँ साझा कर लिया करो | क्यों तुम अकेली ही अपनी परेशानियों से झूझती रहती हो | मेरे सब दोस्त-यार मुझे अपने ख़ुशी-गम बताते हैं और मुझसे सलाह लेते हैं | लेकिन तुमने मुझसे कभी कोई सलाह नहीं मांगी | मैं जानता हूँ तुम्हें कई तरह की परेशानियां आती रहती हैं लेकिन तुमने मुझे कभी नहीं बताया | तुम हमेशा अकेले झूझती रहती हो | अन्दर ही अन्दर घुटती रहती हो लेकिन तुमने मुझे कभी नहीं पुकारा......”|

रीना गौरव के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली “ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो बस...”, कहते हुए रुक जाती है | गौरव उसे चुप करने का इशारा करते हुए बोला “तुम यही मानती हो न कि जब सब मुझसे सलाह लेते हैं या मुझे परेशान करते हैं तो तुम इसमें क्यों भागीदार बनो | रीना ऐसा कुछ नहीं है | आज के जमाने में कोई किसी को अपना नहीं समझता है | सब मतलबी हो गये हैं | सब को अपनों पर विश्वास खत्म हो गया है | और सही मायनों में कहें तो कोई किसी को बिना मतलब के सलाह भी नहीं देता है | ऐसे में मैं अगर लोगों में फिर से अपनेपन को जगा रहा हूँ तो क्या गलत कर रहा हूँ” |

रीना गौरव की आँखों में आँखें डालते हुए बोली “मुझे इसी गौरव पर तो गौरव है | इसी कारण ही तो मैं तुम्हारी ओर खिंची चली आती हूँ” |

“सच” |

“सचमुच | लेकिन गौरव तुम्हें नहीं लगता कि सब तुम्हें तभी याद करते हैं जब उन्हें तुम्हारी जरूरत होती है | तुम्हारे आगे-पीछे घूमते हैं जब उन्हें तुम से काम होता है | जब सब ठीक होता है तो कोई तुम्हारी तरफ ध्यान भी नहीं देता | जब कोई तुम्हें काम होने के बाद याद नहीं करता या कोई कभी तुम से तुम्हारी परेशानी नहीं पूछता तो तुम्हें अकेलापन नहीं महसूस होता है | तुम सबके लिए हो लेकिन कोई भी तुम्हारे लिए नहीं है” |

गौरव कॉफ़ी का कप रीना की ओर बढ़ाते हुए बोला “मैडम बोलती ही रहोगी कि कॉफ़ी भी पियोगी | ठंडी हो रही है” |

रीना मुस्कुराते हुए बोली “बोलने दो | आज बहुत दिनों बाद तो तुम मुझसे खुल कर बात कर रहे हो” |

“सच पूछो तो मुझे कभी भी अकेलापन नहीं महसूस हुआ | क्योंकि जिसके पास मेरे माँ-बाप जैसे दोस्त हों और सोने पर सुहागे जैसी रीना हो तो वो कभी भी अकेलापन महसूस कर ही नहीं सकता” |

रीना ठंडी हो गई कॉफ़ी को एक ही घूँट में पीकर बोली “तुम से बातों में तो कोई नहीं जीत सकता | तुम किसी को भी अपनी लच्छेदार बातों से पागल कर सकते हो | कोई कभी भी नहीं समझ सकता कि आखिर तुम्हारे दिल में क्या है” |

“अच्छा अब बहुत हो गया | बात घुमाओ नहीं सीधे-सीधे बोलो तुम आज परेशान क्यों हो”|

“बस आज दीदी की बहुत याद आ रही है | अगले हफ्ते उसका जन्मदिन है” |

“ओह ! वैसे तो यह एक भाषण की तरह है कि जो आया है उसे एक दिन जाना ही है | लेकिन यह भी सच है कि जिसका अपना असमय चला जाता है वही जानता है” |

रीना अपने आँसू पोंछते हुए बोली “बात तो तुम ठीक कह रहे हो लेकिन मैं दीदी की मौत का जिम्मेवार अपने माँ-बाप को मानती हूँ और कुछ मैं भी हूँ | उस दिन मैं उसके साथ कमरे में आई होती तो शायद वह नहीं होता”, कह कर रीना मेज पर झुक कर रोने लगती है |

गौरव रीना को दिलासा देने के लिए उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला “रीना यार रोने से क्या होगा | तुम दुखी मत हुआ करो मुझे अच्छा नहीं लगता | प्लीज अब चुप कर जाओ देखो सब तुम्हें ही देख रहे हैं” |

रीना आँसू पोंछते हुए कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए बोली “वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी | हम दोनों अपनी कोई बात एक दूसरे से नहीं छुपाते थे | वह मुझ से पांच साल बड़ी थी फिर भी उसने कभी अपने बड़े होने का एहसास नहीं कराया | हमारी कभी लड़ाई नहीं होती थी | उसके जाने के बाद मैं कितनी ही रात सो नहीं सकी थी | हम दोनों एक दूसरे को जब तक दिन भर की आपबीती सुना नहीं लेते थे हमें नींद नहीं आती थी | कैसे भूलूं वह दिन और वह आखिरी रात”, कह फिर से रीना की आँखों से अविरल आंसू बहने लगते हैं | गौरव को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह रीना को आखिर दिलासा देने के लिए क्या कहे और क्या न कहे |

गौरव बात बदलते हुए बोला “तुमने मुझे आज तक कभी बताया नहीं कि आखिर तुम्हारी दीदी के साथ हुआ क्या था” |

रीना अपने आँसू पोंछते हुए बोलने ही लगती है कि सामने से कुणाल को आते देख चुप कर जाती है | कुणाल कुर्सी खींच कर गौरव के पास बैठते हुए बोला “आज फिर तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या” ?

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “हमारी आपस में कभी लड़ाई-झगड़ा या फिर कहा-सुनी न हुई है और न कभी हो सकती है | अम्मी-अप्पा से सीखा है कि जिन्दगी को खुशनुमा बनाना है | तो सामने वाले को बदलने की हिम्मत रखो या फिर अपने को बदल लो | यदि सामने वाले का साथ मंजूर है वरना साथ छोड़ सकते हो तो साथ छोड़ दो | लेकिन मनमुटाव कभी पैदा न होने दो उससे दोनों तकलीफ में रहते हैं और साथ हो कर भी असल में साथ नहीं होते हैं” |

“रीना क्या गौरव ठीक कह रहा है | तुम दोनों की कभी आपस में लड़ाई नहीं हुई और अगर नहीं हुई तो फिर मैंने क्यों तुम्हें कई बार रोते देखा है” |

रीना मुस्कुराते हुए बोली “यह बात तो सच है कि गौरव से मेरी कभी कोई लड़ाई नहीं हुई | वैसे मेरी बात-बात पर रोने की आदत है” |

कुणाल सिर पर हाथ मारते हुए बोला “भाई मुझे तो तुम दोनों की बातें न कभी समझ नहीं आईं हैं और शायद न........” |

गौरव मुस्कुरा कर बीच में हो बोल पड़ता है “और कभी समझ में आएगा भी नहीं | रीना सही बात कह रही है | जैसे किसी दीवार में कहीं पानी रिस रहा तो दिवार में सीलन आ जाती है या फिर धरती के बहुत कम नीचे जब पानी होता है तो वहाँ दलदल या फिर वह जमीन गीली रहती है | उसी तरह रीना की आँखों के किसी कोने में हर समय आँसू रहते हैं | जरा सी कोई भी बात दिल को छूने वाली हो तो आँसू टपक जाते हैं | कहीं कुछ है जो यह कभी बताती नहीं है | कहीं पानी दबा हुआ है और उस पानी पर यह बैठी है | जब तक उठ कर और हिम्मत कर यह कुछ बोलेगी नहीं तब तक यह आँसू यदा कदा टपकते ही रहेंगे” |

कुणाल फिर अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला “मैं भी क्या बात लेकर बैठ गया और वह भी किन लोगों के साथ | भाई गलती हो गई मुझे तुम दोनों न कभी समझ आये और न कभी समझ आओगे | तुम दोनों अलग-अलग जब भी मिलते हो तो सधारण लगते हो लेकिन इकट्ठे बैठे तुमसे तुम्हारी कोई बात करना यानी दीवार में सिर मारने के बराबर है” |

गौरव मुस्कुरा कर बोला “फिर कौन कहता है कि सिर मार | चल छोड़ इस बात को भाई ये बता कि एक दिन तूने अपने दोस्त आयुष के बारे में बात की थी कि वह दिल्ली आ रहा है | क्या हुआ अभी तक आया नहीं क्या” ?|

“अभी कुछ दिन पहले ही उससे बात हुई थी | वह खुश था कि जल्द ही वह दिल्ली आएगा तो हम दोनों बैठ कर घंटों एक दूसरे से बात करेंगे” |

“ये बात तो है | भाई दोस्त तो दोस्त ही होता है | क्या नया और क्या पुराना लेकिन जब दोस्त बहुत सालों के बाद मिले तो बात ही कुछ और होती है | इसमें तो कोई शक नहीं”| “भाई उसकी बात ही सुन कर मुझे ख़ुशी हो रही है | जब एक साथ बैठेंगे तो मजा ही कुछ अलग....... होगा”, कुणाल अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया था कि वैशाली दूर पड़ी कुर्सी घसीट कर कुणाल के साथ बैठते हुए बोली “किस की ख़ुशी में तुम सब ख़ुश हो रहे हो” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोली “कुणाल की शादी हो रही है | बस यही सुन कर खुश हो रहे थे” |

वैशाली यह बात सुन कर सुन्न हो जाती है | सब उसकी यह हालत देख कर मंद ही मंद मुस्कुराते हैं | वह कुछ देर बाद होश में आते हुए बोली “कुणा......ल ....क......क्या ये.....यह बात सच है” |

इससे पहले कि कुणाल कुछ बोलता गौरव मुस्कुराते हुए बोला “तुम्हारे आने से पहले यही बात तो हो रही थी कि हम सब के सोचने और दुःख या सुख मनाने से क्या होता है | तेरा परिवार और तू यदि खुश है तो हम सब भी तुझे खुश देख कर खुश हैं | क्यों हम इसे सही समझा रहे हैं न, तुम क्या कहती हो” |

वैशाली अटकते हुए बोली “हाँ.......हाँ यदि यह खुश है तो ठीक है जो तुम सब कह रहे हो” |

रीना मुस्कुराते हुए बोली “मतलब तुम खुश नहीं हो” | वैशाली एक झटके से उठती है और पैर झटकते हुए बाहर की ओर चल देती है |

वैशाली को बाहर जाते देख कुणाल भी अपनी जगह से उठते हुए बोला “तुम लोग भी न, बिना बात के उसको नाराज कर दिया” |

गौरव कुणाल का हाथ पकड़ कर उसे वापिस कुर्सी पर बैठाते हुए बोला “अबे बेचारी के लगते चुप-चाप बैठ जा | तू उसे जितना जानता है न उससे ज्यादा मैं उसे जानता हूँ | अभी देख कुछ देर में वह वापिस आ कर फिर से पूछेगी” |

“क्या पूछेगी” |

“यही कि क्या तुम लोग सही कह रहे थे और जब हम कहेंगे कि नहीं हम तो उसका मज़ाक बना रहे थे तो कहेगी मुझे तो पता था | मैं तो फलाना काम याद आ गया था वो करने गई थी”, कह कर गौरव हँस पड़ता है |

कुणाल गंभीर भाव से बोला “तुमने देखा नहीं वह आँसू पोंछ रही थी | वह नहीं आएगी” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “बोला न तू चुपचाप बैठ | मैं तेरे लिए कॉफ़ी ले कर आता हूँ | बोल कौन सी कॉफ़ी पीयेगा” |

“ब्लैक | लेकिन मैं कह रहा हूँ वो नहीं आएगी” | गौरव उसकी बात अनसुनी कर कॉफ़ी लेने चल देता है |

*

कुणाल तीसरा कप कॉफ़ी पीकर रखते हुए अपनी घड़ी देख कर बोला “साले मैं टेंशन में तीन कप कॉफ़ी पी गया और देख आधा घंटा हो गया है | मैं कह रहा हूँ न कि वह नहीं......” | कुणाल अभी अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया था कि रीना के फ़ोन की घंटी बज उठती है | घंटी की आवाज सुन कुणाल चुप कर जाता है |

रीना फ़ोन उठा कर देखती है और फिर कुणाल को देखते हुए इशारा करती है कि वैशाली का फ़ोन है | फ़ोन को कान पर लगा रीना बोली “हाँ बोल” | कुछ देर चुप रह कर मुस्कुराते हुए फिर से बोली “अबे यार हम तो मज़ाक कर रहे थे”, कह कर फ़ोन मेज पर रख कर बोली “उसने काट दिया” |

“मैं कह रहा हूँ वह नहीं आएगी” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “पीछे मुड़ कर देख तुम्हारी वैशाली आ रही है” | कुणाल झटके से जैसे ही मुड़ कर देखता है तो उसका हाथ मेज पर रखे कॉफ़ी के कप से टकरा जाता है | कप में बची कॉफ़ी कुणाल के कपड़ो पर गिर जाती है और कप जमीन पर गिर कर टूट जाता है | कुणाल जल्दी से उठ कर पेंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपनी पेंट पोंछने लगता है |

वैशाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली “और झूठ बोलो” | यह सुनते ही रीना और गौरव की हँसी छूट जाती है | उन्हें हँसता देख अपनी झेंप मिटाते हुए वैशाली बोली “मुझे तो पहले से ही पता था कि तुम सब झूठ बोल रहे हो” |

गौरव अपनी हँसी रोकते हुए बोला “जब तुम्हें पता था तो फिर तुम पैर पटकते हुए कहाँ गई थी” |

“वो तो मैं लाइब्रेरी से ये किताब लेने गई थी”, किताब टेबल पर रखते हुए वैशाली बोली | उसकी बात सुन रीना और गौरव और जोर से हँसने लगे | दोनों को हँसता देख वैशाली जोर से बोली “पागलों की तरह क्या हँस रहे हो | मैं सच बोल रही हूँ” |

रीना वैशाली के कंधे पर हाथ रखते हुए अपनी हँसी रोक कर बोली “मैडम हम तो कुणाल को देख कर हँस रहे थे”|

“इसमें हँसने वाली क्या बात है | उस बेचारे की एक तो पेंट खराब हो गई है ऊपर से तुम लोग उसका मज़ाक बना रहे हो | तुम रुको कुणाल मैं पानी लेकर आती हूँ”, कह कर वह कैंटीन से बाहर लगे वॉशबेसिन की ओर चल पड़ती है |

गौरव वैशाली को जाते देख जोर से बोला “हाँ भाई तुम दोनों ही बेचारे हो हम तो दुश्मन हैं” | वैशाली यह सुन कर पीछे मुड़ कर गौरव और रीना को मुँह चिढ़ा कर फिर चल देती है | गौरव, कुणाल को देख मुस्कुरा कर बोला “देखा मैंने क्या कहा था ” |

कुणाल, गौरव के आगे झुक कर दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला “गुरुदेव आपका मुकाबला नहीं है”, कह कर हँस पड़ता है |

कुणाल के लाख मना करने के बावजूद भी वैशाली वॉशबेसिन से लाये गीले रुमाल को कुणाल की पेंट पर रगड़ने लगती है | गौरव और रीना मुँह पर हाथ रख कर दबी हँसी से हँसने लगते हैं | वैशाली की जैसे ही नजर उन दोनों पर पड़ती है तो वह मुँह चिढ़ाते हुए बोली “इसमें हँसने वाली क्या बात है” |

रीना अपनी हँसी रोकते हुए बोली “हम तो खुश हो रहे हैं कि तुम कुणाल की कितनी चिंता करती हो” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “इतनी चिंता अगर तुम कुणाल की करती तो हम लोग और भी खुश होते”|

वैशाली गुस्से से बोली “मतलब पेंट क्या मैंने पहनी है | कुणाल ने ही तो पहनी है”|

कुणाल गौरव और रीना को देख कर आँख मारते हुए बोला “वैशाली तुम करो अच्छा लग रहा है” | वैशाली यह बात सुन कर भड़क जाती है और गीला रुमाल मेज पर फैंकते हुए बोली “भाड़ में जाओ | एक तो मैं कोशिश कर रही थी कि चाय का दाग न पड़े और तुम इन से मिल कर मेरा ही मज़ाक बना रहे हो |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “वैशाली तुम बिना बात के भड़क रही हो कुणाल का तो मतलब था कि यदि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं” | यह सुन कर वैशाली शर्म से नजरें झुका कर अपनी कुर्सी पर पीछे हट कर बैठ जाती है | गौरव उसे ऐसा करता देख कुणाल को इशारा करता है | कुणाल गौरव का इशारा समझ कर बोला “हाँ, हाँ मैं भी यही कहना चाहता था” |

वैशाली कुणाल के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली “सच”|

कुणाल रीना और गौरव को देखते हुए बोला “हाँ, हाँ सौ प्रतिशत सच”|

“अच्छा ठीक है | बहुत मजाक हो गया, उठो अब चलते हैं | मुझे पढ़ना भी है” कह कर वैशाली उठ कर खड़ी हो जाती और उसके साथ सब मुस्कुराते हुए उठ कर उसके साथ कैंटीन से बाहर की ओर चल पड़ते हैं |

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