Aadha Aadmi - 6 in Hindi Moral Stories by Rajesh Malik books and stories PDF | आधा आदमी - 6

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आधा आदमी - 6

आधा आदमी

अध्‍याय-6

‘‘जो मज़ा हमरे में हय वे औरत में नाय.‘‘

‘‘सही कह रही हव मेरी जान, अब लाव जरा से तुमरी जलेबी का रस लई ली.‘‘ कहकर चाँद बाबू धीरे-धीरे पायल की गुदा को चाटने लगा।

‘‘अरी सो गई का? बाहर आ कर देख धोबी का टेपका (लड़का) आवा हय शस्त्रे (कपड़े) ले के. ‘‘ दीपिकामाई ने आवाज़ लगायी।

‘‘आई मइया.‘‘ पायल ने सलवार पहनते कहा।

चाँदबाबू को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके मुँह से निवाला छीन लिया हो। वह गुस्से का घूँट पीकर रह गया। उसके भीतर का तूफान अब भी बाहर निकलने को मचल रहा था। शिराओं में रक्त संचार तेज हो गया था। मगर अगले ही क्षण उसने अपनी इच्छाओं को रौंद डाला। वह शर्ट पहन कर कमरे से बाहर आया और दीपिकामाई से इज़ाज़त ले कर दरवाज़ें की तरफ़ बढ़ गया।

पायल उसकी नाराज़गी भाँप गयी। वह मन ही मन मुस्करायी। इससे पहले कि चाँदबाबू दरवाज़े से बाहर जाता कि पायल ने पीछे से आवाज़ दी, ‘‘जात हव का?‘‘

मगर चाँदबाबू ने उसकी एक न सुनी और तेजी से बाहर चला गया। पायल उदास होकर लौट आयी।

तभी ज्ञानदीप आया। मगर उसके मन में डर बना था कि कहीं दीपिकामाई उससे आने का कारण न पूछ लें। लेकिन उन्होंने बड़े प्यार से उसे बैठाया। तब कहीं जाकर उसकी जान में जान आई। फिर भी ज्ञानदीप बड़ी जद्दोजहद में था कि वह अपनी बात कहाँ से शुरू करे। अंततः उसे बात करने का सिरा मिल ही गया, ‘‘माई, आपको मालूम हैं मुंबई में क्या हुआ?‘‘

‘‘बेटा! हम हिजड़े तो जरूर हय पर दुनिया जहाँन की ख़बर हम्म भी रखते हय। बम्बई में जो आतंकी हमला हुआ ऊका ग़म जेतना तुम लोगों को हय उतना हम्म सभई को हय। समाज ने हम्म लोगों का ठोकराया मगर हमने समाज को हमेशा दिल में रखा हय.‘‘ दीपिकामाई के एक-एक शब्द ज्ञानदीप के दिलो-दिमाग में उतरते चले गये।

वह अपने अंदर उठे बवंडर को रोक न सका, ‘‘आप का कहना पूरी तरह से जायज़ हैं माई, यह तो समाज को समझना चाहिए कि उसकी ही कोख़ से जन्में हिजड़ों के प्रति उसका रवैया क्या हो? बेहतर तो यही होगा कि समाज अमानवीय ‘‘हिजड़ा‘‘ शब्द को ही अपने सामाजिक शब्दकोष से बाहर कर दें। यह तभी संभव हैं जब समाज हिजड़ों को अपने में आत्मसात करेगा। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने कहा हैं-

पुरूष नपुंसक नाई व जीव चरारर कोई।

सर्वभाव भज कपटि तजि मोहि परम प्रिय सोई।।

दीपिकामाई सिगरेट का कश लेती हुई बड़े गौर से ज्ञानदीप की बातें सुन रही थी। सिगरेट का धुआँ चारों तरफ़ फैला था। जबकि ज्ञानदीप को सिगरेट के धुए से एलर्जी थी। फिर भी वह डटा अपनी बात बताये जा रहा था, ‘‘रामायण में हिजड़ों का उल्लेख राम वनवास के प्रसंग में हैं.‘‘

दीपिकामाई का सेलफोन बजा। उन्होंने उठाकर ‘हैलो‘ कहा और सारी बात सुनने के बाद चीखी, ‘‘अंधे की चुदईया बुर की खराबी....हमरे आगे झव्वा औंधावत हय.‘‘

ज्ञानदीप ने ऐसी गाली पहली बार सुनी थी। उसने सोचा, ‘क्यों न इस स्टाइलिश गाली को डायरी में नोट कर लें, मगर सिर्फ़ वह सोचता ही रह गया। जैसे आतंकवाद को लेकर भारत सरकार सोचती रह गई।

दीपिकामाई ने सेलफोन तो रख दिया। मगर वह अब भी बड़बड़ाये जा रही थी, ‘‘बूढ़ी गाँड़ पर अगरेजी बाजा....।‘‘

‘‘का हुआ अम्मा?‘‘ पायल ने पूछा।

‘‘कुच्छ नाय.‘‘ दीपिकामाई ने मसाले की पुड़िया मुँह में फाँकी और अपनी भड़ास निकालने लगी, ‘‘ई सुवर चौदी अपने आपको हिजड़ा कहती हय। ई हिजड़ा नाय बोहरूपिया हय। साली, अपनी जजमानी में टोली तो बजाती हय सात-सात दोसरे की जजमानी में भी चली जाती हय खाने, न जाने गाँड़चोदी की कितनी बड़ी खूमड़ हय। जौने दिन हमरे हात चढ़ गई अईसा पीटना डालूँगी कि बा-बा करती फिरेगी.‘‘

इसी बीच इसराइल ने आकर बताया, ‘‘बाहर कल्लन चिकवा आया हैं.‘‘

दीपिकामाई उठी और ज्ञानदीप को ले कर बरामदे में आ गई।

ज्ञानदीप मन ही मन कुढ़ रहा था, ‘कि बताओ इतनी देर मुझे आये हो गया हैं पर अभी तक कोई खास बात नहीं हो पाई। ऐसे तो मैं लिख चुका इन पर किताब?’

चिकवा के जाते ही दीपिकामाई तख़्त पर आकर लेट गई। और ज्ञानदीप की तरफ मुख़ातिब हुई, ‘‘का सोच रहे हव?‘‘

‘‘कुछ नहीं‘‘

‘‘अगर हमरे बारे में सोच रहे हव तो बेहिचक पूछ सकते हव?‘‘

ज्ञानदीप को जैसे माँगी मुराद मिल गई हो। वह तो इसी इंतजार में था। वक्त की नज़ाकत को देखते हुए उसने पूछ ही लिया, ‘‘माई! क्या आप बचपन से ऐसी ही थी?‘‘

‘‘वाह बेटा! सवाल भी पूछा तो अईसा.‘‘

‘‘अगर कुछ गलत कहा हो तो उसके लिए माँफी चाहूँगा.‘‘

‘‘अईसी कौनों बात नाय हय। खैर, तुमने पूछा तो हाँ भी अउर न भी, पर हम्म इतना जरूर कहूँगी कि हिजड़ा बनना शायेद हमरे नसीब में था। और नसीब के खेल कितने निराले होते हय........।‘‘ दीपिकामाई अभी अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पायी थी, कि एक थुलथुल-सी महिला आकर बोली,

‘‘इक चीज़ के लिये आयेन हय, पर हिम्मत नाय होत हय.‘‘

‘‘बोलव, तो इहाँ कौनों नाय हय.‘‘

‘‘मइया, मेरा बच्चा बहोत बीमार हय होय सके तो पचास रुपया उधार देई देव.“

दीपिकामाई के पर्स में उस वक्त पचास ही रुपये थे। उन्होंने झट से निकाल कर दे दिया। महिला दुआये देती चली गई।

सेलफोन बजते ही दीपिकामाई ने उठाकर हैलो कहा, ‘‘अस्सलामवलैकुम गुरूभाई, कईसी तबियत हय?‘‘

‘‘ठीक हैं गुरूभाई‘‘ दूसरी तरफ से सेलफोन पर आवाज़ आई।

‘‘कल अइहव कि नाय?‘‘

‘‘शनीचर के अइबै.‘‘

‘‘तो फूटव ले आयेव‘‘

‘‘कौन वाली?‘‘

‘‘अरी उही जो तुम नंगी खेचवाये राहव.‘‘ दीपिकामाई हँस-हँस कर सेलफोन पर बात कर रही थी।

ज्ञानदीप बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहा था।

दीपिकामाई अभी भी सेलफोन पर बिजी थी, ‘‘इहाँ सन्नो, कम्मो आग बोये हय। जानत हव गुरूभाई, घंटाघर में खान्जरा (धंधा ) करत हय.‘‘

‘‘अब का बताई गुरूभाई हमरी अभई बारात लगी हय.‘‘ दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।

इससे पहले कि दीपिकामाई कुछ कहती फोन कट गया।

‘‘बईठी ही रहोगी या चलोगी भी.‘‘ इसराइल ने आकर याद कराया।

इसराइल का इशारा समझने में ज्ञानदीप ने जरा भी देर नहीं की, वह इज़ाजत लेकर चला गया।

गों निकली, आँख बदली

चारों तरफ़ कान फोड़ लाउडस्पीकर ने लोगों का जीना दूभर कर दिया था। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी प्रचार अब भी जारी था-

न ज़ुल्म न ज़ालिम का अधिकार रहेगा।

दुनिया में कुछ रहेगा तो बस प्यार रहेगा।।

अँधेरा ठीक वैसे ही बढ़ता जा रहा था जैसे वल्र्ड में आतंकवाद, नक्सलवाद, जल संकट, भ्रष्टाचार, महँगाई, भुखमरी, बेरोजगारी ,अशिक्षा, महामारी, अपराध, उर्जासंकट ,कृषि योग्य भूमि की कमी, पर्यावरण की गम्भीर क्षति।

ज्ञानदीप साइकिल खड़ी करके दुकान के अंदर आ गया। बजाय हाय-हैलो कहने के अपनी बात यहाँ से स्टार्ट की, ‘‘ये सब गाने भी इलेक्शन के समय ही सुनाई पड़ते हैं। पार्टियाँ तो ऐसे प्रचार कर रही हैं जैसे अब इस देश से आतंकवाद ख़त्म ही हो जायेगा। सारी पार्टियाँ तो बेईमान हैं इसीलिए मैं वोट नहीं देता.‘‘

‘‘तेरे एक वोट न देने से पार्टियों का नुकसान होने वाला नहीं.‘‘ लल्ला ने कहा।

‘‘बात नुकसान-नफ़े की नहीं हैं मेरे यार, बात हैं अपनी संतुष्टि की कि मैने गलत लोगों को वोट नहीं दिया। मगर हाँ जिस दिन कोई कर्मठ उम्मीदवार या निस्वार्थ पार्टी आयेगी सबसे पहले मेरा वोट पड़ेगा.‘‘

‘‘पर वोट तो डालना ही हैं.‘‘ दाढ़ी वाले सज्जन ने दुकान के अंदर आकर कहा।

‘‘वोट डालने का यह मतलब नहीं हैं कि आप किसी को भी वोट दे दें। सबसे पहले हमें उसका कैरेक्टर, क्वालिफिकेशन उसके काम करने का तरीका देखना चाहिए। न कि जाति -धर्म.‘‘ ज्ञानदीप ने अपनी बात कहीं।

‘‘आज जिस तरह से हालात हैं उससे जनता भी का करे.’’ दाढी वाले ने अपनी पीड़ा व्यक्त की।

‘‘बस यही अफसोस हैं, कि आज वोट को मज़हब से जोड़ दिया गया हैं। कार्ल माक्र्स ने सही कहा था- धर्म अफीम की तरह होता हैं। आज वोट डालना इंसान की मजबूरी बन गई हैं। इन पार्टियों ने जिस तरह से हमारे दिलों मे नफ़रत का ज़हर पैदा किया हैं उससे न हिन्दू निकल पायेगा न मुसलमान।

‘‘छोड़ों यार, तुम भी कहाँ की बातें लेकर बैठ गये.‘‘ लल्ला ने टोका।

लेकिन दाढ़ी वाले सज्जन कहाँ मानने वाले थे उन्होंने बातों का सिरा दूसरी तरफ़ मोड़ा, ‘‘तुलसीदास! रामचन्द्र जी के बहुत बड़े भक्त थे इसलिए उन्होने राम को सबसे ऊँचा स्थान दिया। मगर लक्ष्मण जी को नहीं.‘‘

‘‘प्वाइंट की बात की हैं आप ने.‘‘ लल्ला ने प्रशंसा की।

‘‘और सुनो, मेघनाथ को वही मार सकता था जो चैदह बरस सोया न हो और औरत से दूर रहा हो। मगर तुलसीदास ने कहीं इसका जिक्र नहीं किया हैं। और तो और जब रावण को मारने के बाद रामचन्द्र जी को अयोध्या वापस आना था। तो भरत से किये वादे के अनुसार उनके पास सिर्फ़ एक दिन शेष बचा था। वह जानते थे अगर पहुँचने में जरा भी विलम्ब हुआ तो भरत अपने प्राण त्याग देंगे। इसलिए उन्होंने वही रथ चुना जिससे रावण ने सीता का हरण किया था.‘‘ दाढ़ी वाले ने रामायण के पहलुओं पर गौर फरमाया।

”तुलसीदास ने रामायण में एक और गलती की। उन्होंने सीता जी की पीड़ा कहीं नहीं व्यक्त की। जबकि रामचन्द्र जी जानते थे कि सीता जी अग्नि की तरह पवित्र हैं। मगर उसके बावजूद भी उन्हें धोखें से भयानक जंगल में छोड़ा गया और वह पेट से थी.‘‘ ज्ञानदीप ने प्रतिक्रिया की।

‘‘अगर तेरी बात ख़त्म हो गई हो तो मैं कुछ कहूँ.‘‘ लल्ला ने दूबारा टोका।

‘‘चल बोल.‘‘

‘‘यार! तू तो न्यूज चैनल हो जाता हैं। एक बार शुरू हुआ तो बस रूकने का नाम नहीं लेता.‘‘

दाढ़ी वाला चला गया।

‘‘अच्छा अब बता किस लिए बुलाया था?‘‘

‘‘ऐसा हैं घरबारी टोला में टयूशन पढ़ाना हैं.‘‘

घरबारी टोला का नाम सुनते ही ज्ञानदीप की आँखों में दीपिकामाई की छवि उतर आई। उसने सोचा, ‘चलो इसी बहाने एक पंथ दो काज़ हो जायेंगे.‘‘

ऐ जीजा जरा हमरे मुँह मूत देते तो हम्म तर जाती

‘‘तुम लोग निकली नाय, अरी टेपके की बधाई बजाने जा रही हव या मरदों को निंघलने....।‘‘

दीपिकामाई चिल्लायी।

‘‘अम्मा! शास्त्रे पहिन रही थी। कहव तो नंगी चली जाऊ का?‘‘सानिया ने सफाई दी।

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