होने से न होने तक
27.
प्रबंधक राम सहाय जी नें लाइब्रेरी कमेटी की मीटिंग बुलायी थी। दीपा दी ने उसके लिए पॉच टीचर्स की कमेटी बना दी है। आर्ट फैकल्टी के तीन और साईंस और कामर्स से एक एक टीचर। हम सब उनके कमरे में पहुंचे तो दीपा दी वहॉ पहले से मौजूद थीं और बहुत तरो ताज़ा और प्रसन्न दिख रही थीं। राम सहाय जी ने अपनी बात शुरू की थी,‘‘मैं लाइब्रेरी का एक्सपैंशन करना चाहता हॅू। हर तरह से उसे फैलाना चाहता हॅू। उसकी बिल्डिंग को भी और किताबों को भी। हम देखतें हैं कि इसके लिए हमें कितनी ग्रान्ट मिल सकती है और हम लोग कितने अपने रिर्सोसेज़ जुटा सकते हैं। न जाने कितने लोग है जिनके पास किताबें हैं। उनके बच्चो की उन किताबों मे कोई रूचि नहीं है,’’ उन्होने कुछ मुड़े हुए पन्ने अनिता की तरफ बढ़ा दिए थे,‘‘आप कामर्स फैकल्टी से हैं। यह मेरी पर्सनल किताबों की लिस्ट है। उसमें फायनैन्स की और कम्पनी लॉ वगैरा की किताबें हैं। आप देख लीजिए कौन सी किताबें स्टूडैन्ट्स या टीचर्स के काम आ सकती हैं। एक दो मेरे रिटायर्ड फ्रैन्ड्स और रिश्तेदार हैं। मैं औरों से भी पता करुंगा। बस यह देखना होगा कि काम की किताबें ही हमारे पास आऐं, लोग अपने घरों का कूड़ा हमें न भेजने लगें,’’ वे धीरे से मुस्कुराए थे।
उन्होने जिस ढंग से यह बात कही थी उससे हम सभी को हॅसी आ गयी थी। वे पुनः गंभीर हो गये थे ‘‘तीन खंड की हमारी बिल्डिगं हैं मैं चाहता हॅू एक खंड पर एक फैकल्टी की ही किताबें हों। मतलब नीचे आर्ट्स की, फर्स्ट फलोर पर सॉइस और सैकन्ड पर कामर्स की। अनिता का मुह उतर गया था। शायद उसने धीमे से कुछ कहा भी था। उन्होने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा था.‘‘भई आपकी फैकल्टी सबसे छोटी है सो ऊपर तो आपको ही जाना होगा...वह सबसे छोटा हिस्सा है। अभी वह एकदम कूड़े की तरह पड़ा हुआ है...निरी अल्मारियॉ और सामान भरा है वहॉ। मैं समझता हॅू इस पोर्शन का प्रापर युटिलाइज़ेशन होना चाहिए।’’
दीपा दी ने सफाई दी थी,‘‘असल में वह हिस्सा बेकार नही पड़ा है। वहॉ सभी फैकल्टीज़ की थोड़ी थोड़ी किताबें हैं। वे किताबें जो ज़्यादा काम मे नहीं आती हैं और हिन्दी फिक्शन भी वहीं है।’’
‘‘बट वी हैव टू बी मोर आर्गेनाइस्ड। किस सब्जैक्ट की अल्मारी कहॉ रखी जाए इसका कोई सिस्टम तो होना पड़ेगा। हर फैकल्टी की एक दो अल्मारी वहॉ रखने का मतलब ?’’उन्होने दीपा दी को काटते हुए अपनी बात ज़ोर दे कर कही थी।
दीपा दी ने फिर से जैसे अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की थी,‘‘नहीं आप ठीक कह रहे हैं पर कोई भी फैकल्टी वाले पूरी तरह से ऊपर नही जाना चाहते। वहीं बात ठप्प हो जाती है।’’
राम सहाय जी ने आश्चर्य से पहले अनिता की तरफ और फिर दीपा दी की तरफ देखा था, ‘‘नहीं जाना चाहते? इसका मतलब ? किसी भी इंन्स्टीट्यूशन में एक सुप्रीम इच्छा होती है। वही सब की इच्छा होनी चाहिए। यदि सब की इच्छा अलग अलग सुनिएगा तो फिर संस्था को ठीक से कैसे चलाईएगा। डोन्ट बिहेव लाइक अ वीक एडमिस्ट्रेटर।’’
‘‘दीदी की ज़रूरत से ज़्यादा की यह शराफत सच में इन्हें एक कमज़ोर प्रिंसिपल बना देती है। ‘नहीं चाहते’ कहने का मतलब ?’’ मानसी जी धीरे से बुदबुदायी थीं।स्
राम सहाय जी शायद माहौल को हल्का करने के लिए धीरे से मुस्कुराए थे,‘‘अरे इसमें परेशान होने की तो कोई बात है ही नहीं। रोज़ तो कोई किताबें इश्यू करानी नही होती हैं। फिर कुल दो फ्लोर की ही तो बात है। भला कितनी चढ़ाई है।’’ वे हॅसे थे ‘‘आप यंग लोगो का यह हाल है। दीपा जी सब यंग टीचर्स का एक क्लास नीचे तो दूसरा ऊपर लगाइए-नहीं तो ज़्यादा लाढ़ करिएगा तो तीस साल तक सब बूढ़े हो जाऐंगे।’’
आपस में थोड़ी बाते होने लगी थीं। वे फिर से किताबों की सॅख्या बढ़ाने की बात करने लगे थे,‘‘सुन रहे हैं कि शहर में कुछ अच्छी लाइब्रेरीज़ बन्द होने वाली है...शायद ब्रिटिश काउॅसिल भी। इस सबके लिए हमे सही ढंग से अपना केस बनाना होगा और उसके लिए सही ढंग से प्लीड करना होगा। ऐसे हर किसी को वे किताबें नहीं दे देंगे। लैटर बनाईए कि आपके यहॉ कितनी टीचर्स पी.एच.डी.हैं...कितनी कर रही हैं...कितने लोगों के पब्लिश्ड वर्क हैं...उनकी स्पेश्लाइज़्ड फील्ड क्या हैं। मतलब आपको यह बताना होगा कि आप किताबों का पाना डिसर्व करते हैं और यह भी कि किस किस सब्जैक्ट की किताबें आपको चाहिए। स्टूडैन्ट्स की स्ट्रैन्थ ज़रूर लिख दीजियेगा क्योकि वे अपनी किताबें उन्हीं को देंगे जहॉ बहुत सारे लोग उन किताबों का फायदा उठा सकें। आपके कालेज के जो एक्स स्टूडैन्ट्स पी.एच.डी. कर रहे हैं अगर उनकी लिस्ट दे सकें तो बहुत अच्छा रहेगा। उस हालत में आपको उन पुरानी स्टूडैन्ट्स को लाइब्रेरी की सुविधा देनी होगी...कम से कम बी.सी.आई. से मिली किताबें तो उन्हें देनी ही होंगी।’’
पत्र बनाने का काम कौशल्या दी को सौंपा गया था। उसी समय राम सहाय जी ने रमेश बाबू को बुला कर पुस्तकालय कमेटी का लैटर हैड छपवाने के लिए कह दिया था जिसकी अध्यक्ष कौशल्या दी मनोनीत की गयी थीं।
दो दिन में लैटर हैड छप कर आ गया था और कौशल्या दी पूरी लगन से उस काम में जुट गयी थीं। उससे पहले ही प्रबंधक महोदय की दी गयी लिस्ट में से किताबें छॉटने के लिए उन्होने अनिता से कह दिया था। उन में से बहुत सी किताबें टीचर्स और स्टूडैन्ट्स के काम की है। सो उस लैटर हैड पर सबसे पहला पत्र इस आशय का धन्यवाद सहित उन्हे ही भेजा गया था। कुछ ही महीनों में थोड़ी बहुत अच्छी किताबें हम लोगो को और जगहों से भी मिल गयी थीं। ब्रिटिश काऊॅसिल से पत्र मिला था कि वे हमारे आवेदन पर विचार कर रहे हैं और अपने निर्णय के बारे में हम लोगों को समय आने पर सूचित करेंगे। कुछ जानकारी उन्होंने हमसे चाही थी जिसका जवाब कौशल्या दी ने फौरन ही भेज दिया था। हाल फिलहाल हम लोगो के लिए उतनी उपलब्धि ही काफी थी। कौशल्या दी अपने हर काम को ही बहुत उत्साह और निष्ठा से निबटाती हैं पर आजकल तो वे बेहद उत्तेजित रहने लगी हैं और उनके साथ मेरा भी यदा कदा प्रबंधक के पास जाना आना होता रहता है। उनके पास जा कर हम लोगों को हमेशा अच्छा लगता है। हमेशा लगता है कि कालेज की बेहतरी के लिए कुछ कदम हम ने और चल लिए हैं। कौशल्या दी के शब्दों में वे बहुत जैनुइन पर्सन लगते हैं। शशि अंकल से कौशल्या दी का अपनेपन का रिश्ता था...एक निकट के संबधी जैसा पर राम सहाय जी का वे शायद मन से सम्मान करने लगी हैं। राम सहाय जी की तारीफ करते हुए अक्सर ही वे अन्जाने ही शशि अंकल से उनकी तुलना कर बैठती हैं। उस दिन कहने लगीं कि ‘‘अब लग रहा है कि सही मायनो में दीपा प्रिंसिपल बनी हैं। कालेज को लेकर पूरी तरह से सपने देखना तो अब शुरू किया है दीपा ने। पहले तो वह नयी ग्रान्ट आने के नाम से घबराने लगी थी। अब तो ग्रान्ट ही नहीं डोनेशन लाने से भी डर नही लगता उसे।’’
उस दिन कौशल्या दी, नीता और मैं किताबों के बारे में बात करने के लिये प्रबंधक के कमरे में पहुंचे तो दीपा दी उनके पास पहले से बैठी थीं। हम लोग फिर आने की बात कह कर दरवाज़े के पास ही रुक कर खड़े रहे थे पर उन्होने रोक लिया था। वे विद्यालय के बारे में बहुत सी बातें करते रहे थे। पॉच कमरों की एक नयी ब्लाक बनाने की ग्रान्ट आयी है। उनके कार्यकाल में यह पहली बड़ी ग्रान्ट आयी है। वे बहुत ख़ुश लग रहे थे। उसके पेपर्स सामने फैला कर विस्तार से पूरी योजना बनाते रहे थे,‘‘दो बजे धवन आर्किटैक्ट को बुलवाया है। आप भी देख लीजिए आप क्या चाहती हैं।’’ उन्होने दीपा दी की तरफ देखा था, ‘‘अगर आप मीटिंग में एकाध टीचर्स को शामिल करना चाहें तो उन्हे भी बुला लीजिए। क्लास रूम की ज़रूरतों के बारे मे शायद उन लोगो को बेहतर आइडिया हो।’’
जब तक दीपा दी कुछ कहतीं या सोंच भी पातीं तब तक राम सहाय जी ने अपनी बात का समापन किया था,‘‘वैसे आप देख लीजिए। जो आप ठीक समझें। इट्स ओनली अ सजेशन।’’ और वे फाईल समेटने लग गए थे।
‘‘जी’’ दीपा दी मुस्कुरा दी थीं।
मुझे लगा था इस व्यक्ति के साथ काम करना कितना आसान है। काम करने का एकदम सीधा सादा तरीका। उन्होने हम सब को बैठने का इशारा किया था और लाइब्रेरी के बारे में बात करने लग गये थे,‘‘कौशल्या जी अब देख लीजिए कि आप लोगो को क्या करना है और कैसे करना है। मुझे हर बात आ कर बताने की या मुझसे पूछने की ऐसी कोई ख़ास ज़रुरत नही है। आप सब एडूकेशनिस्ट हैं। इन चीज़ो में मुझ से ज़्यादा लियाकत रखते हैं। वैसे भी...’’और उन्होने अपनी बात आधी छोड़ कर दीपा दी की तरफ देखा था,‘‘मिस वर्मा मैंने आपको ख़ास इसलिए बुलवाया था कि मैं अब बस कुछ महीने के लिए और हॅू। आप को मुझसे जो भी मदद चाहिए हो या राय करना हो वह आप देख लीजिए। वह काम मैं और आप मिल कर जल्दी ही निबटा लें तो ही बेहतर है।’’
दीपा दी एकदम से घबड़ा गयी थीं,‘‘मतलब?’’ उनके मुॅह से निकला था।
राम सहाय जी मुस्कुराए थे,‘‘मिस वर्मा मतलब कुछ नही, बस मैं मैनेजमैंण्ट कमेटी छोड़ रहा हूं।’’
‘‘पर क्यो सर ? सब कुछ इतनी अच्छी तरह से तो चल रहा है।’’लगभग हम सभी ने एक साथ अलग अलग तरह से यह बात कही थी।
उन्होंने हमारी तरफ बारी बारी से देखा था,‘‘अच्छी तरह से चल रहा है इसी लिए जा पा रहा हूं। न चल रहा होता तो कैसे छोड़ पाता।’’
‘‘आप शहर छोड़ कर जा रहे हैं क्या ?’’ दीपा दी ने पूछा था।
‘‘नही हाल फिलहाल तो शहर छोड़ कर नही जा रहा हॅू।’’ उन्होने अटकते हुए जवाब दिया था ‘‘यह कालेज....इट टेक्स टू मच आफ माय इनर्जी। अब मैं फुर्सत चाह रहा हूं। मेरे बहुत सारे पर्सनल पैंडिंग काम हैं जो मुझे निबटाने हैं।’’
‘‘आप थोड़ा वर्क लोड कम कर लीजिए। आप रोज़ मत आईए। ज़रूरी फाईल्स घर पर मॅगा लिया करिए पर आप मैनेजमैण्ट कमेटी छोड़ने की बात मत करिए।’’ दीपा दी ने जैसे ख़ुशामद सी की थी।
Sumati Saxena Lal.
Sumati1944@gmail.com