Dani ki kahani - 9 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 9

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दानी की कहानी - 9

मर्द की ज़ुबान (दानी की कहानी )

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दानी बहुत बातूनी ! दादी,नानी बन गईं थीं लेकिन उनका बच्चा उनके भीतर कभी भी कुनमुनाने लगता |

सभी बच्चों को बुलातीं ,बच्चे समझ जाते दानी की अपने बचपन की कहानी शुरू

होने वाली है |

इस बार की कहानी तो और भी मज़ेदार थी ,साथ ही एक प्रश्न भी खड़ा कर रही थी और साथ ही संदेश भी दे रही थी | वह कुछ यूँ थी |

एक बार दानी के मम्मी-पापा कुछ बात कर रहे थे |

दानी की मम्मी दानी के पापा से कुछ नाराज़ सी थीं |

"आप हर बात में इतने दिन लगा देते हैं ,जो सामान लाना हो वो इतने दिनों तक लटकाए रखते हैं |" दानी की मम्मी ने बुड़बुड़ करते हुए कहा |

"अरे ! आज शाम को तुम्हारा सामान आ जाएगा ,ऑफ़िस से लौटते हुए ----मैं ज़रूर याद रखूँगा---|"दानी के पापा ने कहा |

"आप तो बस -----" दानी की मम्मी को विश्वास नहीं हो रहा था,कितने दिनों से उन्हें उस चीज़ की ज़रूरत थी लेकिन दानी के पापा हर रोज़ भूल जाते |

"तो ,दानी --आप क्यों बाज़ार जाकर अपनी ज़रूरत का सामान नहीं ला सकती थीं ?"

"बेटा! हमारे ज़माने में स्त्रियाँ अकेले बाज़ार-हाट नहीं जाती थीं ---" दानी ने समझाया था |

" हा --इतनी बड़ी दानी की मम्मी ! और उन्हें बाज़ार जाना नहीं मिलता था ---"

"ठीक है न ,बताया न दानी ने ,उनके ज़माने में नहीं जाती थीं लेडीज़ --बाज़ार ---"

उस दिन जब दानी की मम्मी नाराज़ हुईं ,दानी के पापा ने उन्हें मनाते हुए कहा ;

"आज पक्का वायदा देख लेना ,लेकर ही आऊँगा,मर्द की ज़बान एक होती है ---उन्होंने एक ठहाका लगाया और ऑफ़िस के लिए निकल गए |

"अम्मा ! क्या औरत की ज़्यादा ज़बान होती हैं ?" अपने पिता के जाते ही दानी ने अपनी मम्मी से पूछा

प्रश्न बड़ा विकट था ,दरसल जितना छोटा --उतना ही कठिन !

" हाँ दानी ! सच्ची तो है ---हम भी तो कितनी बार सुनते हैं --'मर्द की एक ज़बान होती है 'तो औरत की ज़बान ज़्यादा होती हैं क्या ?"बड़े पोते का दिमाग़ भी चला |

" आपकी मम्मी ने क्या बताया दानी ?" नन्ही ने पूछा |

बड़े भैया के दिमाग़ में जब तक यह बात नहीं आई थी ,तब तक किसीके भी दिमाग़ में यह गोल-गोल बात नहीं आई थी |

"हाँ ,मुझे भी कुछ समझ नहीं आया था ----" दानी ने कहा था |

" तो आपकी मम्मी को बताना चाहिए था न ---?" नन्ही यूँ तो छुटकी सी थी पर दिमाग़ उसका खूब तेज़ दौड़ता |

"फिर ,पता चला आपको ?किसीने बताया ?"

" मेरी मम्मी पहले तो खूब देर तक हँसीं---फिर उन्होंने मुझे टालने की कोशिश की -----" दानी ने मुस्कुराते हुए बताया था |

"फिर ---?"

"फिर क्या ---जब हमने मिलकर बात की ,उसका निष्कर्ष यह निकला कि यह आदमी ,औरत की बात नहीं होनी चाहिए ---"

"तो ---क्या होना चाहिए --?

"यह होना चाहिए कि इंसान की या मनुष्य की एक ज़बान होती है ---यानि यहाँ मर्द का अर्थ मनुष्य हुआ | "

"मतलब ,हम जो कहते हैं ,उस पर हमें क़ायम रहना चाहिए ----" बड़े ने स्पष्टीकरण करने की कोशिश की |

" बिलकुल ,यही मतलब होना चाहिए ---यह बात तो सब पर ही लागू होती है न ?" दानी ने कहा था |

"हाँ --अगर इसका मतलब यह है तो यह बात सबके लिए हुई न ---?

"बिलकुल ----सही ----"

"तो कोई औरत ऐसा क्यों नहीं कहती ?"

एक प्रश्न का उत्तर तलाशने में दूसरा प्रश्न आकर सामने खड़ा हो गया था |


डॉ. प्रणव भारती

pranavabharti @gmail.com