nahi banna headline in Hindi Philosophy by Shobhana Shyam books and stories PDF | नहीं बनना हैडलाइन

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नहीं बनना हैडलाइन



एक ओर छल कपट, निष्कासन , एकाकी होने का दंश दूसरी ओर घर चलाने के लिए पाई-पाई का संघर्ष , सुगंधा तन मन से टूट चुकी थी| उस पर पिता के प्यार दुलार को तरसते हज़ारों प्रश्नों से जूझते छोटे छोटे मासूम बच्चों को देख उसका कलेजा मुंह को आ जाता था| गीली लकड़ी सा दिन रात सुलगता जीवन असह्य हो चला था |
क्या कमी थी उसके समर्पण में उसकी सेवा में , कि उसे यह निष्कासन मिला । उसने तो खुद को उस परिवार के लिए पूर्णतया समर्पित कर दिया था ।
विवाह की पहली रात जब दिल सपनों के सितार पर मधुर उमंगों की ताल के साथ मिलन का राग गाने को तत्पर था और कोमल भावनाये चेहरे पर नर्तन कर रही थीं । तब राकेश ने उसका हाथ हौले से अपने हाथ मे लेकर कहा था- "सुगन्धा ये मत समझना कि तुम्हारा विवाह बस मुझसे हुआ है । मेरे लिए मेरा परिवार मेरे माता पिता बहुत अहम है। ये समझ लो मैंने उनके कहने पर उनके लिए तुमसे विवाह किया है। उम्मीद है कि तुम उनकी सेवा में कोई कमी नही रखोगी।" टन्न ... ! सितार का कोई तार टूट गया था। ताल सम पर आने पहले से पहले ही रुक गयी । लेकिन राग को बेसुरा नही होने दिया सुगन्धा ने । कोई बात नही मैं अपने नायक के जीवन मे अपनी जगह भी बना ही लूँगी।
और सचमुच सुगन्धा ने दिन रात एक कर दिया । यूं तो हर औरत के कई अदृश्य हाथ होते है लेकिन सुगन्ध ने तो अपने कई अदृश्य रूप भी बना लिए और हर रूप अपने आप मे पूर्ण भी। पूर्ण बहु, पूर्ण भाभी ,पूर्ण पत्नी और मां बनी तो वह भी पूर्ण। बस स्वयम वह शून्य हो गयी थी । खुद को, उस परिवार के कदमों तले बिछा दिया लेकिन ये सारा परिश्रम, सारा त्याग अकारथ हो गया । उसका 100 नही बल्कि 500 प्रतिशत समर्पण भी उसके साधारण रंग रूप का मेकअप न कर सका ।
राकेश पहले छिपकर तो फिर खुलकर अपनी प्रेमिका से मिलने लगा बल्कि उसे घर भी लाना शुरू कर दिया। जितनी देर वह उसके साथ अपने कमरे में होता उतनी देर सुगन्धा की सास सुगन्धा को रसोई में उलझाए रखती।
जल बिन मछली सी तड़पती सुगन्धा अपनी सौत के लिए जब चाय बना रही होती तो वह उसके ही पलँग पर ....।
किंतु यह सब सहने से उसका दाम्पत्य जीवन बचा रहेगा यह समझना सुगन्धा की सबसे बड़ी भूल थी और एक दिन राकेश अपनी प्रेमिका के साथ घर ही नही शहर से गायब हो गया। यूं तो सास ससुर ने उसे ढूंढने का काफी अभिनय किया लेकिन यह तो सुगन्धा को भी पता था कि उन्हें उसकी सारी खबर है।
पुलिस ने उसके ससुर द्वारा चढ़ावे में मिली कुछ बोतलों और मिठाई के बदले सुगन्धा को ही तंग करना शुरू कर दिया। आखिरकार अपनी और अपनी नन्ही बेटी की इज्जत बचाने के लिए सुगन्धा ने दोनों बच्चों के साथ वह घर छोड़ दिया।
माता पिता का पहले ही स्वर्गवास हो चुका था । भाई से कोई उम्मीद थी नही । सुगन्धा ने अपने मायके के शहर में अपने ही एक परिचित के स्कूल में नौकरी करली। और दिन रात मेहनत कर अपने बच्चों को पालने लगी ।
लेकिन एक प्राइवेट स्कूल की नौकरी में घर भी चलाना और किराया भी देना, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई और सबसे बढ़कर अपने सम्पन्न रिश्तेदारों के बीच अपना सम्मान बनाये रखने का प्रयत्न, ये सब मिलकर उसे तोड़ने को उतारू थे। हर दिन बीत जाने पर अगले दिन के लिए फिर से हाड़ तोड़ मेहनत , तप्त कामनाओ का उद्दाम प्रवाह , आये दिन सारी जान सोख लेने वाला माइग्रेन , बच्चों का दूसरे बच्चों के पिताओं को देखकर चुपचाप आंसू बहाना , कितनी चोटें, कितने प्रहार उसके जीवन मे विश्वास को प्रतिक्षण कमजोर कर रहे थे।

आखिर उसकी हिम्मत पूरी तरह जवाब दे गई थी | आज उसने वो भयंकर निर्णय ले ही लिया जो चार साल से दिन रात उसके दिल-दिमाग पर सवार था लेकिन वो उसे अपनी पूरी ताकत से धकेल कर अपने से दूर करने का प्रयास कर रही थी |आखिरकार वह हार गयी | दोनों बच्चे स्कूल से आकर बिना खाना खाये सो गए थे | बेटी नींद में भी सुबक रही थी, आज पता नहीं क्या हुआ स्कूल में, उसने आते ही, हमारे पापा क्यों नहीं है? वो मर गए है क्या? कहते कहते रोना शुरू कर दिया था |

अपने निश्चय पर अमल करने के लिए सुगंधा ने चूहे मारने की दवाई को आटे में गूंथ कर कांपते हाथो से रोटियां बनाई और खाना लगा कर कमरे में ले आई ,मन को कड़ा कर बच्चों को जगा ही रही थी अचानक उसकी नज़र पलंग पर पड़े हुए अखबार की एक हेड लाइन पर पड़ी |

उफ़ फ .. ये क्या करने चली थी वह अगर तीनों में से एक भी बच गया तो ....?ओह ! सोच कर ही काँप उठी सुगंधा | खाने की थाली उठा कर रसोई की तरफ भागी | कूड़े दान में डालते हुए अचानक विचार आया , कहीँ किसी जीव-जंतु या जानवर ने खाली तो ? सुगंधा ने शीघ्रता से सिंक में पानी चला दिया और उन ज़हरीली रोटियों के नन्हे नन्हे टुकड़े करके उसमें बहाने शुरू कर दिए| ओह ये टुकड़े घुल कर नाली में जा क्यों नहीं रहे? ये रोटी के टुकड़े है या लोहे के , कहीँ बच्चों में से कोई उठकर आ गया तो क्या बताएगी , क्यों बहा रही है रोटियों को नाली में ? ........और वह पुराना अखबार वहां पलँग पर कैसे आ गया जिसमें छपा था- पति-पत्नी ने की दो बच्चों के साथ आत्महत्या - चार साल की सबसे छोटी लड़की बच गयी , नन्ही सी जान रह गयी इस दुनिया में अब बिलकुल अकेली .......।"
नहीं ,नहीं! मुझे नही बनानी कोई हैड लाइन. मैं करूँगी संघर्ष जीवन की अंतिम सांस तक। सांसों की लड़ी को यूं झटके से नही टूटने दूंगी ...।

शोभना श्याम