"हैलो मिताली! कैसी हो बेटा?" सात समुंदर पार से आज नीता ने फोन पर बेटी से हालचाल पूछा, तो भाव विभोर होकर उसकी बेटी बोल पड़ी
"माँ, हम सब तो अच्छे हैं लेकिन तुम घर कब आओगी ?बड़ी माँ भी कह रही थी नीता को अब लौट आना चाहिए।"बेटी ने भीगे मन से माँ को बताया ।
"बेटा , तू सही कह रही है लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब तेरा भाई मुझे घर पर अकेले रहने के लिए भेजेगा । लगता है अब मैं यहीं की वासी न..।"
"क्यों माँ ? भैया तो आप को घुमाने के लिए बोलकर ले गए थे । फिर अचानक ये सब ?"
"हाँ तू सच कह रही है, लेकिन अब तेरे भाई की योजना बदल गई है ।उसका कारोबार यहाँ इतना फैल चुका है कि वह चाह कर भी इण्डिया नहीं आ सकता ।"
माँ का वाक्य सुई की तरह मिताली के दिल में गढ़ा तो आँसू छलक पड़े और वह अपने विचारों में गुम हो गई।
"बेटी कुछ तो बोल... ऐसे कैसे चलेगा । तू चिंता मत कर जब तुझे हमारी जरूरत होगी मैं तेरे भाई के साथ मैं तेरे पास मिलूँगी।" लेकिन बेटी न बोली । मानो उसके सारे शब्द चुक गए थे। बेटी के मौन से माँ विचलित हो उठी लेकिन स्वयं को ज़ब्त करते हुए उसने बताया- "मिताली, कई दिनों से एक बात तुझसे कहना चाहती हूँ । पहले मुझसे वादा करो कि मेरी किसी भी बात का तू बुरा नहीं मानेगी ।"
माँ को अधीर होते देख , बेटी ने अपने आँसू पोंछ माँ को आश्वासन दिया कि वह अपने मन की कोई भी उसको बता सकती है ।
बेटी की बातों से नीता को थोड़ी शांति मिली ।
"देख मिताली वैसे तो दामाद जी अच्छा कमाते हैं और तुझे सुंदर -से घर में भी रखते हैं । लेकिन हम चाहते हैं कि तू किराए का मकान छोड़ बचपन वाले अपने घर में शिफ़्ट हो जा। शहर भी एक है तो शिफ़्ट करने में ज़्यादा दिक्कत भी नहीं होगी।"
बेटी के आत्मसम्मान का ध्यान रखते हुए बेटे के प्रस्ताव को माँ ने हिम्मत करके बेटी के आगे रख ही दिया ।
"ये क्या कह रही हो माँ ? मुझे क्या भाई का दुश्मन बनाने का इरादा है , तुम्हारा ?"
"शुभ शुभ बोल बेटा, ये निर्णय मेरे अकेले का नहीं, बल्कि तेरे भाई-भाभी और भतीजे का है ।"
"इस हाहाकारी समय में मेरे भाई-भाभीऔर भतीजा मेरे बारे में ऐसे कैसे सोच सकते हैं ?" वह मन ही मन बुदबुदाई और अपने जीवन से जुटाए-अनुभवों के उदाहरण माँ के सामने पेश करने लगी ।
" माँ आप मेरी मित्र रूपा को भूल गईं ?उसके पिता ने अपनी प्रोपर्टी में से छोटा - सा हिस्सा ही तो उसे दिया था और उसकी जिंदगी को कैसे दरकिनार किया था उसके भाइयों ने।"
"सुन मिताली, कहाँ तो तू सारे दिन हँसने-खेलने में निकाल देती थी और कहाँ तू इतना दिमाग़ लगाने लगी है ?मेरी छोटी बहन इतनी होशियार.....।"
ये वाक्य उधर से मिताली के भाई ने कहा था। अचानक भाई की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी ।
"माँ ,आपने बताया क्यों नहीं कि तुमने फोन लाॅडस्पीकर पर डाला हुआ है ।
"नमस्ते भैया !एटलिस्ट माँ को बताना तो ...!"
मिताली को लगा ,उसकी जान सिमटकर पाँव के तलवों में धड़क उठी हो।
"मिताली !"
"हाँ भैया!"
"तू चिंता मत कर तूने कुछ गलत नहीं कहा है और सुन, माँ जब मेरे साथ अमेरिका आई थीं तब एक डुप्लीकेट चाबी बड़ी माँ को दे कर आई थी। जा उनसे चाबी ले और शान से अपने बाबू जी घर में शिफ्ट हो जा। और हाँ ! दीपावली पर हम माँ के साथ घर आ रहे हैं। बचपन वाले सारे गमलों में फूल खिले मिलने चाहिए ।"
भाई ने बहन पर अधिकार के साथ दुलार जताते हुए कहा और साथ में एक सम्मिलित स्वर भी उसके कानों में गूँज उठा ।
"मिताली हम सब तुम से बहुत प्यार करते हैं ।"
जेठ की भरी दोपहर में मिताली की आँखों से सावना-भादों की झड़ी लग गई ...डबडबाई आँखों से उसने मोबाइल के शीशे में अपना चेहरा देखना चाहा तो उसे आँखों के धुँधलके में लगा कि माँ ही उसे प्रेम से निहार रही है ।उसने झट से फोन फिर से कान से लगाया और हेलो बोला लेकिन फोन कट चुका था ।
"अरे धन्यवाद तो लेते मेरे प्यारे भाई !" कहते हुए मिताली अपने बाबूजी की तरवीर के सामने जाकर खड़ी हो गई ।
कल्पना मनोरमा