asli sukh in Hindi Moral Stories by Jainand Gurjar books and stories PDF | असली सुख...

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असली सुख...

सड़क रानी की आंखों में खुशी के आँसू आ गए।

उसने बादल बाबा, मिट्टी चाची, नदी दीदी, पेड़ राजा और बारिश मौसी से अपने खुशी के आँसू पोंछते हुए कहा, "पता है आप सभी को, आज मेरी एक और बेटी की शादी है, बस अभी थोड़ी ही देर में उसकी बारात आने वाली है।वह बिटिया जिसने अपने पूरे बचपन में मुझ पर भाग-भाग कर खेला, दौड़ लगाई, नाची, कुदी, हुडदंग की, आज उसकी शादी है। वह बिटिया जिसका नाम अभिलाषा है, जो स्वभाव में बहुत अच्छी है, जिसे मुझे परेशान करने में मज़ा आता है, आज उसकी शादी है। अब वो भी मुझे अकेला छोड़ के चली जाएगी, उसकी शादी होगी, उसका एक अच्छा पति होगा, वो उसका ख्याल रखेगा, उसका सूना संसार खुशियों के रंग से भरेगा, जो उसे समझेगा, उसे अपनाएगा, उसकी सारी ख्वाहिशें और इच्छाएं पूरी करेगा, आज वो मेरे ही द्वार पर आएगा। आज वो अपने शुभ कदमों से मुझे प्रफुल्लित करेगा। आज वो दूल्हा राजा मेरी रानी को ले जाएगा। मुझे मेरी बेटी के लिए बहुत खुशी है, लेकिन दुःख भी कि अब वो मेरे संसार को अधूरा कर जाएगी। अब मुझे तंग कौन करेगा? मुझे सताएगा कौन? बारिश में बारिश मौसी के संग मुझे नहालाएगा कौन? मिट्टी चाची के गुस्से से मुझे बचाएगा कौन?"

सड़क रानी की बात सुनकर मिट्टी चाची ने कहा, "अरे क्यों परेशान होती हो दीदी, भगवान ने हमारी अभि(अभिलाषा का उपनाम) के लिए जिसको भी भेजा है, वो अच्छा ही होगा। भगवान पर भरोसा रखो। आज तक ऊपर वाले ने सब संभाला है ना, तो बस आज भी वो संभाल लेगा।"

सड़क रानी ने फिर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, " बस इसी का तो डर है बहना कि भगवान कहीं फिर से उसके साथ कुछ अनर्थ ना कर दे। वैसे ही उसके साथ बचपन में जो अनर्थ हुआ, उसमें मेरा भी हाथ था। उसके मां-बाप उसे अनाथालय में छोड़ गए और वे मेरे पर से ही गुज़रे थे। काश तभी मैंने उन्हें रास्ता ना दिया होता तो शायद आज हमारी अभि के भी माता पिता होते। उसका प्रायश्चित करने के लिए मैंने क्या कुछ नहीं किया। अपने इन गड्ढे में उसे गिराया, ताकि वह गिरकर उठना सीख सके, ताकि वह अपने आप को संभालना सीख सके। उसके मां बाप के घर का मार्ग मैंने रोक दिया ताकि वह फिर से ज़िन्दगी से धोका ना खाए। अब बस यही उम्मीद करती हूं कि उसका होने वाला पति उसका ख्याल रखे और उसे किसी की कमी महसूस ना होने दे। और बादल बाबा, आपने मेरी अभि के साथ अच्छा नहीं किया। आपने उसकी सगाई के दिन बारिश मौसी को यहां क्यों भेजा। उसकी वजह से उसकी पूरी सगाई खराब हो गई। सभी लोग गीले हो गए थे।"

बादल बाबा ने उदासी से जवाब दिया, "अब क्या करता बेटी में भी। किसानों की जमीन सूखी पड़ी थी। फसलें खराब हो रही थी। हर जगह सूखा सा पड़ा था। त्राहि त्राहि मच रही थी।किसान आत्महत्या कर रहे थे । ऊपर से अब मैं भी थोड़ा बीमार हो गया हूं। अपने पर अब नियंत्रण कम रख पाता हूं। हालत खराब हो रही है। कभी ज़्यादा बरस पड़ता हूं तो कभी कभी मुझमें से पानी ही नहीं आता। पर मैं भी क्या करूं? इसमें भी इन इंसानों का ही दोष है। प्रदूषण के कारण मेरी हालत खराब हो रही है। ऊपर आसमान में वायुयान से निकली हानिकारक गैस एवं नीचे ज़मीन से होने वाले प्रदूषण के कारण मैं कमजोर हो गया हूं। इसलिए पहले तो मुझसे वर्षा हुई ही नहीं, और जब शुरू हुई तो मैंने अपना नियंत्रण खो दिया। और इसमें मेरे अकेले कि गलती नहीं है, इसमें नदी बिटिया की भी गलती है। अगर वो पहले से ही पानी से लबालब भरी होती तो मुझे इतना बरसने की जरूरत ही नहीं पड़ती।"

नदी दीदी ने भी बड़ी शालीनता से जवाब दिया, " अब देखो बादल बाबा, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। मेरे पास पर्याप्त उपयोग करने लायक पानी था। लेकिन इन मनुष्यों के लालच की वजह से ही ये सारी परेशानी खड़ी हुई है। पहले उन्होनें मुझमें अपने घर के अपशिष्ट पदार्थ डालने शुरू किये । करोड़ों लोग मुझमें पूजा आरती का सामान डालते है। कई लोग अपने बाल मुझमें बहाते हैं। इन नदी नालों ने तो मेरी सारी नई नई ड्रेस ही खराब कर दी है। और जब से ये कारखने खुले है, ये तो नोच नोच कर मेरा कत्ल करने पर तुले हुए हैं। अब मैं भी क्या करू बाबा, मेरा पूरा पानी गंदा हो रहा है, पीने लायक पानी तो दूर, अब तो सिंचाई लायक पानी भी नहीं है। जो जल है वो प्रदूषित है या तो है ही नहीं। कई जगह तो मैं सूख चुकी हूं। लेकिन मैं भी क्या करूं बाबा, ये इंसान है जो समझने का प्रयास ही नहीं करते। और तो और ये मिट्टी चाची भी मेरा साथ नहीं देती। पहले कितना कितना जल उनकी गोदी में समाता था, इठलाता था, मचलता था और मेरे में आकर मेरा साथी बन जाता था। लेकिन अब देखो कई साल हो गए, मैं जल से अच्छे से मिली ही नहीं हूं। चाची अब तो उसे बुलाओ, जल को संरक्षित करो और मेरा भरण पोषण करो। देखो मैं कैसी कुपोषित होती जा रही हूं।"

मिट्टी चाची ने बड़े ही खेद के साथ जवाब दिया, "तुझे क्या लगता है बिटिया, मुझे जल को अपनी गोदी में लेकर खिलाने में मज़ा नहीं आता। मैं भी मां हूं, ममता मेरे अंदर भी है लेकिन मैं क्या करूं, मैं मजबूर हूं,। अब मैं कर भी क्या सकती हूं? मुझे कोई बंजर रहने में मज़ा थोड़ी ही आता है, मुझे भी अपने ऊपर दरारें पसंद नहीं, लेकिन मैं करूं क्या, इन मनुष्यों ने मेरा बुरा हाल कर रखा है। पहले में खेतों में प्राकृतिक चीज़ों और खादों से संवरती थी, उससे मुझमें ऊर्जा रहती थी, लेकिन जबसे इन लोगों ने कीटनाशक और उर्वरक डालने शुरू किए है मेरी तो जान ही निकल रही है। ये लोग मुझे पूरा निचोड़ निचोड़ कर मेरा फायदा उठा रहे है। इन्हें लगता है कि इन कीटनाशकों और उर्वरकों के कारण मेरा स्वास्थ्य अच्छा होता जा रहा है। ये लोग पहले तो पूरा कचरा मेरे ऊपर फेकेंगे,उसके बाद स्वछता अभियान चलाकर ये उस कचरे को एकत्रित करेंगे और बाद में किसी दूर जगह ले जा कर मेरे ऊपर ही जला देंगे। लेकिन ये बेचारे मूर्ख हैं। इन्हें नहीं पता कि मैं इससे अन्दर ही अन्दर मर रही हूं।"

पेड़ राजा ने मिट्टी चाची को टोकते हुए कहा, " नहीं चाची ऐसा मत कहिए, अगर आप नहीं रही तो हमारा क्या होगा। आपके बिना हम अस्तित्वहीन हैं।"

मिट्टी चाची ने दुख के साथ पेड़ राजा से कहा, " अब में क्या करूं मेरे लाल! मेरे पुत्र! लेकिन ये हकीकत है और इसमें तेरा भी योगदान है। आजकल तू खत्म होते जा रहा है और इसकी वजह से मैं फिसलती जा रही हूं। अब मैं अपने बेटे, अपने जल से भी दूर होते जा रहीं हूं। क्या तुझे अपने भाई की बिल्कुल भी चिंता नहीं। देख हम कब से बात कर रहे हैं, लेकिन वह अभी भी हमारे साथ नहीं है। पता नहीं उसके बिना अपनी अभिलाषा की शादी कैसे होगी। क्या तुझे अपने भाई की ज़रा सी भी चिंता नहीं है?"

पेड़ राजा ने जवाब दिया, " नहीं चाची ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है। मुझे भी अपना भाई जल बहुत प्यारा है लेकिन मैं क्या करूं? इस वैश्वीकरण और शहरीकरण ने मेरा जीना दुशवार कर रखा है। अब मैं भी देखो कैसे हट्टे कट्टे से बौना होता जा रहा हूं। यह प्रदूषण और वैश्विक तापमान तो मेरी जान के दुश्मन हैं। रोज़ नए नए कारखाने खुल रहे हैं, घर और कॉलोनियां बन रही हैं। और ये सड़क रानी भी कुछ कम नहीं। इनके जाल की वजह से मैं रोज़ तड़पता हूं। लोग मुझे और मेरे पिता जंगल को इस धरती का फेफड़ा कहते हैं। लेकिन अब तो मेरा सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। और इसमें रानी साहिबा आपका भी हाथ है।"

सड़क रानी ने कहा," बेटा मैं भी तो इन मनुष्यों के वश में हूं। मैं कहां अपने से कुछ कर पाती हूं। ख़ैर हमारी बातें तो होती रहेंगी ज़रा इधर देखो, मेरी बेटी की शादी का मंडप तैयार है। देखो कितना खूबसूरत है वो। और देखो वो रही उसकी डोली। इसमें वो विदा होगी।" ये कहते कहते उनकी आंखों से आंसुं आ गए।

इतने में बादल बाबा ने कहा, "अरे बेटी छोड़ो ये बातें।ज़रा वो देखो! बारात आ गई। देखो तो ज़रा, कितना खूबसूरत दूल्हा है। और वो देखो, बारात में कितने सारे लोग हैं। लेकिन है राम! ये क्या! देखो तो ज़रा!"

सभी ने बाबा से हैरानी से एक साथ पूछा," क्या हुआ बाबा? क्या हुआ?"

बादल बाबा ने उन्हें जवाब दिया, " ज़रा वो देखो, उन सबके पास तो हमारा जल बेटा है। लेकिन हाय! ये क्या! ये तो पानी के पाउच में है। और वो देखो, ये पॉलीथीन के पाउच है और वे लोग इन्हें सड़क रानी पर फेंक रहे हैं। इस कारण देखो रानी साहिबा, आपके पूरे कपड़े खराब हो गए।"

"हे भगवान! ये क्या!" मिट्टी चाची ने कहा, " इन्होंने तो प्लास्टिक की थैलियों में नाश्ता किया और पूरा का पूरा कचरा मेरे ऊपर डाल दिया। मैं कितनी गंदी हो रही हूं।"

पेड़ राजा ने भी इनकी बात का समर्थन करते हुए कहा, "हां हां सही कहा आपने। इन जैसे लोगों के साथ हमारी बेटी कैसे खुश रह पाएगी???"

इतने में वहां पर अभिलाषा आ जाती है। जैसे ही वह अपनी सड़क मां, मिट्टी चाची की दर्दनाक हालत देखती है, वह निराश हो जाती है। लेकिन न जाने उसे एकदम से क्या होता है, वह पूरी बारात को रोक देती है और खुले आम दूल्हे को घोड़े की सवारी से नीचे उतारकर गुस्से से कहती है," ले जाओ अपनी बारात वापस यहां से। वरना मुझसे बुरा तुम्हारे लिए कोई नहीं होगा।"

जैसे ही दूल्हा यह बात सुनता है, वह हतप्रभ हो जाता है। उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। उसे तो अपने कानों पर भरोसा ही नहीं होता।

जैसे ही वह इस बात का कारण पूछता है अभिलाषा अपने पूरे वेग से उत्तर देती है, " इस शादी के टूटने की असली वजह यह है कि तुम अपनी मां, अपने पिता, अपने परिवार का सम्मान करना ही नहीं जानते। अरे जो व्यक्ति प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान नहीं कर सकता, भला अपने परिवार और अपनी पत्नी क्या सम्मान करेगा। जिसे प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम नहीं हो सकता, वो किसी और से भला क्या प्रेम करेगा। ये सड़क मेरी मां है और ये मिट्टी मेरी चाची। बादल मेरे बाबा और पेड़ मेरे पिता। बारिश मेरी मौसी है और नदी मेरी बहना। ये पूरी प्रकृति मेरा परिवार है। ये पर्यावरण मेरा कुटुंब। अगर तुम इनका सम्मान और इज्ज़त नहीं कर सकते तो तुम मेरे लायक बिल्कुल भी नहीं हो।"

लेकिन वो फिर एकदम से अपनी ही बात पर विचार देकर कहती है, "नहीं नहीं मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने लिए कोई ऐसी लड़की ढूंढ लेना, जो तुम्हारे साथ मिलकर मेरे इस परिवार को नष्ट करे। लेकिन मुझसे तो ये उम्मीद कतई भी मत करना कि मैं इसमें तुम्हारा जन्म-जन्म तक साथ दूंगी। अब मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में जाकर शिकायत करूं और तुम्हे धक्के मारकर यहां से बेदखल करूं, उससे पहले तुम यहां से चले जाओ।"

जैसे ही दूल्हे ने अभिलाषा की यह बात सुनी, वह अपना मुंह छिपाकर उल्टे पांव वहां से भाग निकला।

लेकिन अपनी बेटी की शादी टूटने की वजह से सड़क रानी की आंखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी।

सड़क रानी ने अपनी बेटी से कहा, "बेटा, आज एक बार फिर मैंने तेरा घर संसार उजाड़ दिया। पहले भी मैं तुझे अपने माता पिता से अलग कर चुकीं हूं और अब ये। बेटी, अब मुझसे रहा नहीं जाता। जी करता है कि अब मैं मर जाऊं।"

अभिलाषा ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा,"नहीं मां। आपको बिल्कुल भी उदास होने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोग कभी मेरे लायक थे ही नहीं। ना उन्हें कभी मेरी ज़रूरत थी ना मुझे उनकी है। मैं आप लोगों से ही पूर्ण हूं। चाहे आप प्राकृतिक रूप से इस प्रकृति का हिस्सा ना हो, लेकिन आप इसका एक महत्वपूर्ण अंग हो। ये प्रकृति ही है जो मेरा घर है। यह मेरे अंग अंग, मेरे कण कण में व्याप्त है। मैं प्रकृति से हूं और प्रकृति मुझसे। हम दोनों एक दूसरे के पूरक है।" फिर वो अपनी बात पर स्वयं ही विचार देखर कहती है,"नहीं नहीं, प्रकृति और पर्यावरण तो अपने आप में पूर्ण है। यह ही मेरा घर है, यही मेरा परिवार और मेरा पूरा संसार है।"

अभिलाषा की यह बात सुनकर सभी जन संतुष्ट हुए। और सभी ने यही सोचा की अगर सभी लोगों की सोच ऐसी हो जाए, जो सिर्फ अपना सुख और खुशी छोड़कर पर्यावरण की खुशी के बारे में सोचे, तब तो इस पूरे पर्यावरण और प्रकृति का उद्धार हो जाए।

लोगों को अभिलाषा से कुछ सीखना चाहिए, जिसने अपनी शादी सिर्फ पॉलीथीन और प्लास्टिक के अनावश्यक उपयोग होने के कारण तोड़ दी और ये लोग है, जो अंतहीन पर्यावरण का नुकसान करने के बाद भी अपने आप को सुखी समझते हैं।

ऐसे व्यर्थ के सुख होने से अच्छा है, आंतरिक और असली सुख होना। पर्यावरण और प्रकृति को बचाने का सुख। अपनी ज़िन्दगी का असली सुख