कहानी-
ये कहां आ गये हम
(राजेश कुमार भटनागर)
जब आज दोनों मिले तो न जाने कैसा जुनून सवार था दोनों पर । आखिर दोनों ने अपनी-अपनी प्रेमिकाओं को मंहगी डायमण्ड रिंग देने का वादा जो कर लिया था । मंहगी गिफ्ट देने के साथ ही किसी फाइव स्टार होटल में डिनर और नाईट शो का प्लान बना चुके थे । जबसे हरीश ने कॉलेज ज्वाईन किया पता नहीं कब वो प्रकाश का दोस्त बन गया । प्रकाश जो उसे पहले ही दिन दोस्ती के बहाने शहर के हुक्का बार में ले गया था ।
हरीश वहां कॉलेज की अन्य लड़कियों को लड़कों के साथ हुक्का पीते देख हतप्रभ रह गया था । एक बार तो उसे डर लगा था कि कहीं उसे पुलिस न पकड़ ले, कहीं घर वालों को पता न चल जाये । मगर प्रकाश ने उसे विश्वास दिलाया था-
“खंमखां में डरता है । कैसा मर्द है यार...? देख लड़कियां भी क्या मज़े से हुक्का पी रहीं हैं, तू उनसे भी गया बीता है क्या ? देख डरने की ज़रूरत नहीं है । हम सब तेरे साथ हैं । होटल वाले की सेटिंग है पुलिस से ....कुछ नहीं होगा ।“ कहते हुए उसे जबरन हुक्के वाली टेबल पर बैठा दिया था । उसी टेबल पर बैठी रीना ने हरीश का हाथ अपने नर्म कोमल हाथों में लेकर नशे में हुई मदभरी आंखों में ढेरों प्यार समेटकर कहा था-
“कम ऑन यार.....क्या नाम है तुम्हारा .....? डरो मत आओ मेरे साथ शेयर करो ।”
“हरीश ...हरीश है इसका नाम । न्यू एडमीशन है रीना । आज से ये तुम्हारा पार्टनर ।”
रीना ने हरीश के आगे नशे में हाथ बढ़ा दिया था- ग्लैड टू मीट यू हरीश डार्लिग ।”
और तब प्रकाश और उसकी पार्टनर टीना एक दूसरे को आंख मारकर मुस्करा उठे थे । और फिर हरीश के मुंह से हुक्का लगा दिया था । हरीश एक दो कश के बाद मदहोश हो गया था । होटल के कमरे में तमाम लड़के-लड़कियां जोड़ा बनाये हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे । कुछ नशे में चूर हो एक-दूसरे को बांहों में लेकर चूमने लगे थे । हरीश ये सब दृश्य देखकर जैसे पगला गया था । फिर क्या रोज़ कॉलेज से गोत मार कर प्रकाश के साथ रीना को मोटर साईकिल पर बैठा पहुंचने लगा था हुक्का बार । शुरू-शुरू में तो कभी प्रकाश, कभी रीना और कभी टीना होटल का बिल चुकाते रहे । फिर जैसे-जैसे हरीश को लत पड़ती गई वैसे-वैसे वह स्वयं ही अपनी मॉं से पैसे मांग मांगकर खर्च करने लगा । और न जाने कब उन्होंने आपने मंहगे शौक पूरे करने और अपनी प्रेमिकाओं की मांग को पूरा करने के लिए चेन स्नेचिंग करना शुरू कर दिया था । शुरू शुरू में तो दोनों ऐसा कार्य करने से डरते रहे । मगर पकड़े नहीं जाने पर उनका दिल खुलता गया और वे दोनों आये दिन भेष बदल-बदलकर चेन स्नेचिंग जैसे घोर घृणित कार्य करने लगे । और आज उन्होंने कोई बड़ा हाथ मारने का पक्का इरादा कर लिया था जिससे वे अपनी अपनी प्रेमिकाओं को डायमण्ड रिंग गिफ्ट कर सकें ।
रात के लगभग नौ बजे होंगे । दोनों ने शराब का सेवन करने के बाद सिगरेट सुलगा ली थी और शहर के एकान्त इलाके में शिकार का इन्तज़ार करने लगे थे । सर्दियों के दिन थे । दोनों ने सिर पर हेलमेट के अलावा जैकेट पर भी कंबल लपेट लिये थे जिससे वारदात करने के बाद वे कंबल उतारकर किसी झाड़ी में फेंक सकें और जैकेट में लोग उन्हें पहचान नहीं सकें । सर्दियों के कारण उस स्थान पर अंधेरा होने के साथ ही बिल्कुल एकांत था । शहर का बाहरी इलाका होने के कारण इक्का-दुक्का लोग ही वहां से गुज़र रहे थे । क्योंकि यहां विवाह समारोह स्थल था अतः लोग शादी में खाना खाकर अपने-अपने घर लौट रहे थे । समारोह स्थल चुनने का एक ही मकसद था, जे़वर आदि से सज़ा-धजा ग्राहक आसानी से मिलने की पूरी उम्मीद थी ।
अनायास ही पास से तेज़ गति से कोई जोड़ा मोटर साईकिल पर गुज़रा जिसके पीछे बैठी महिला ने भारी जे़वर पहन रखे थे । हरीश लधुशंका के लिए गया था । उसके आते ही प्रकाश ने उसे पीछे बैठाकर मोटर साईकिल दौड़ा दी । जिस स्थान पर वे शिकार तक पहुंचे वहां काफी अंधेरा था । प्रकाश के इशारा करते ही हरीश ने शातिर बदमाश की भांति अंदाजे़ से पीछे शॉल ओढ़े बैठी महिला के थोड़े से शॉल से अनढके खुले गले पर झपट्टा मारा और हाथ में जेवर आते ही फुर्रर से आगे निकल लिये । पीछे वो जोड़ा वारदात के कारण दहशत में आकर लड़खड़ाकर मोटरसाईकिल सहित सड़क पर गिर पड़ा । उनके गिरने के कुछ ही देर बाद उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी हो गई । लोग पकड़ो-पकड़ो करते तब तक वे सुरक्षित स्थान पर पहुंच चुके थे । वहां जाते ही दोनों ने घबराहट मिटाने के लिए रम की बोतल खोल कर जल्दी से गटागट ढेर सारी शराब गले से उतारी और औंधे मुंह पड़कर सो गये ।
सुबह उठे तो अखबार में रात की वारदात की खबर पढ़ते ही हरीश के होश उड़ गये । रात जिसका शिकार किया था वो कोई और नहीं उसके मम्मी-पापा थे जो रात को रिश्तेदार की शादी से लौट रहे थे । उसे तो पता ही नहीं था क्योंकि वो तो उन्हें प्रतियोगी परीक्षा देने के बहाने शहर से बाहर जाने की कहकर घर से भाग आया था । उसके पिता के सिर में गहरी चोट आई थी जिन्हें रात में ही लोगों ने एम्बुलेंस बुलाकर अस्पताल में भर्ती करवा दिया था ।
हरीश का ख़ून जैसे जम गया । वह आंखों में प्रायश्चित के आंसू लिये हरीश से कह उठा-
“ये क्या हो गया.....? हम ये क्या कर रहे हैं ...? प्रकाश हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई यार....। मां-बाप ने हमारा जीवन संवारने के लिए हमें कॉलेज में दाखिला करवाया । अपना पेट काट-काटकर ऊंची ऊंची फीस भर रहे थे और हम कहां से कहां आ गये ....? मेरे दोस्त हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है । आज मेरे माता-पिता थे, कल तेरे भी हो सकते हैं....। ये तो बाल-बाल बच गये, कहीं कुछ हो जाता तो .....?“
कहते-कहते प्रकाश के कन्धे पर सिर रखकर हरीश फफक-फफककर रो पड़ा । लगा जैसे कांच की किरचें उसके पैरों में धंस गईं हों । जैसे किसी घने रेगिस्तान में भटक गया हो जहां से निकल पाना उनके लिये बहुत मुश्किल हो । रोते-रोते अनायास ही हरीश ने प्रकाश को झिंझोड़ डाला -
“मुझे नहीं चाहिये ये सब ....मुझे मेरे पापा चाहिये । प्रकाश कुछ कर ....। तू तो मेरा पक्का दोस्त है ? बता न इस दलदल से कैसे निकलेंगे हम.....? पुलिस को क्या बताएंगे...? पापा को कैसे कहेंगे कि अपनी ही मॉं के गले पर झपट्टा मारा है हमने....। कैसे मुंह दिखाएंगे...? रीना-टीना को क्या ये कहेंगे कि हम लुटेरे हैं.... बदमाश, चोर हैं.....? वो तो हमें रईस समझकर ही हमसे प्यार करती हैं । रिश्ते-नातेदार, आस-पडौस.......।” हरीश ने आंखों में आंसू लिये पश्चात्ताप से अपने बाल नोंच लिये थे । प्रकाश किंकर्तव्यविमूढ़ सा कुछ सोचता रहा फिर हरीश के कंधे पर हाथ रख बोला-
“जल्दी चल अस्पताल । तेरे ही पापा नहीं, वो मेरे पापा भी हैं । हम अपने गुनाहों की उनके चरणों में सर रखकर माफी मांगेगे । वो जो सज़ा देंगे हम कबूल करेंगे । मुझे पूरा विश्वास है कि वो हमें ज़रूर माफ़ कर देंगे । हमने जिस जिस की स्नेचिंग की है उनके घर जाकर उनके जेवर या उनका पैरा माफी मांगते हुए लौटा देंगे । हरीश विश्वास रख सब ठीक हो जायेगा । बस आज ये कसम खाते हैं कि हम कभी ऐसा घोर घृणित कार्य कभी नहीं करेंगे मेरे दोस्त...।” कहकर वह भी हरीश से लिपटकर रो पड़ा ।
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राजेश कुमार भटनागर
एल-27, विवेकानन्द कॉलोनी,
अजय नगर, अजमेर- 305001
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