बात चाहे जो भी हो बहस उसे विवाद तक लाकर खड़ा कर देती है। और विवाद का परिणाम हमेशा बुरा ही साबित हुआ है, विवाद अपनों को ही निगल जाने का या अपनों से दूर करने का बहुत बड़ा और गलत रास्ता है जिस पर खड़ा व्यक्ति कभी सही लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है। यही हुआ उस दिन जोखू और जग्गी दो सगे भाईयों के बीच
जोखू - (पत्नी कमला से कहते हुये) यही जग्गिया की शादी बीत जाये किसी तरह फिर को कुछ उधार बाढ़ी रहेगा सबका चुकता कर शान्ती से जीवन बिताना है।
कमला - हा सब कुछ तुम्हीं को करना है, और करोगे क्यूं नहीं, जिम्मेदारी जो ओढ़ लिए हो सर पर, मै मानती हूं बड़े हो करना तुम्हारा फर्ज है लेकिन जग्गी को भी तो समझना चाहिये न की उसका अब जिम्मेदारियों के प्रति आपका साथ चाहिये। जग्गी दोस्तों के साथ बात करते हुए आ ही रहा था कि गांव में झगड़े की आवाज सुन दौड़ पड़ा। वापस आने के बाद जोखू ने कहा तुझे कुछ अपने घर की भी चिंता फिकर है कि नहीं। दिन भर आवारागर्दी ही करता है, कल रिश्ता आने वाला है मै क्या कहूंगा किसी को कि मेरा जग्गी दोस्तों के साथ दिन भर घूमता है।
जग्गी - आवारागर्दी मत कहो जोखू भइया मै और मेरे मित्र व्यापार संगठन का हिस्सा बनने वाले हैं फिर को भी व्यापारी माल बेचेगा उसका कुछ हिस्सा अपने हक में भी आएगा और हम बड़े आराम से रहेंगे।
जोखू - ठीक है मै तो अपनी करनी कर है दूंगा आगे ऊपर वाले की मर्जी, भगवान सबका भला करे।
अगले दिन कुछ रिश्तेदार आये और गांव वाले भी इकट्ठा हुये और विवाह की तिथि तय हुई सब कार्य संपन्न हुआ लोग जलपान कर चले गये।
जोखू - अरे सुनती हो, मै सोच रहा था बाजार में जाकर सही भाव से पिछले बरस का सारा अनाज बेच कर उसी से विवाह का खर्च चला लेता हूं और जो कुछ उधार हुआ रहेगा आगे - पीछे चुकता करेंगे।
कमला - ठीक है, जो सही लगे लेकिन जग्गी को भी साथ ले जाओ पता तो चले किस तरह से तैयारी चल रही है।
जोखू और जग्गी बाजार जाते हैं और अनाज बेचकर सारा काम कर घर लौट रहे थे तभी रास्ते में दो लोग बहस करते मिले। जोखू ने उन्हें समझाया, भाई मुखिया तुम इतने समझदार और और बाबू साहब आप तो जमींदार हैं फिर भी राह चलते तोर - मोर कर रहे हैं। जाने दीजिए बहस अच्छी बात नहीं होती मुखिया जी, कहते हुये दोनों चल पड़े। विवाह का दीन आया बारात गई सब कार्य विधि पूर्वक संपन्न हुआ और बहू घर आई। बहू के घर का नया पर्दा और रास्ते का घर हर किसी कि नजर उस ओर चली ही जाती थी और बहू कुछ चटपट स्वभाव होने के कारण पर्दा आधा खुला ही छोड़ दिया करती।
कमला - देखो जग्गी मै कई बार कह चुकी हूं मधुमति पर्दा पूरा बंद रखा करो, रास्ता घर के सामने से जाता है लोग देखते रहते हैं कुछ मान मर्यादा का भी खयाल है कि नहीं।
जग्गी - भौजी समझदार तो वो भी है लेकिन घर में दम घुटता है उसका इसलिए, वैसे बोला तो हूं मै भी, आज फिर से बोल देता हूं। कमला - भौजी क्या कह रही हैं जरा ध्यान रखना उस बात का।
जोखू - अरे जग्गी मै जरा बगल वाले गांव में पंचायत कराने जा रहा हूं कुछ काम होगा तो देख लेना। मुझे आने मै सांझ हो जायेगी।
जग्गी दोस्तों के साथ घूमने चला गया और कमला पशुओं का चारा लेने, तभी पड़ोस की चाची मधुमती से मिलने आ पहुंची। कुछ महीने बीत जाने की वजह से आसपास वालों को मधुमती भी पहचान लेती थी। चाची हालचाल करते - करते बोल पड़ी एक घर उस किनारे होता तो तुम्हारा भी आने - जाने वालों से सामना न होता बिटिया बड़े आराम से वहां रहती। यह बात सुनकर मधूमती बोली, नहीं चाची यहीं ठीक है। आते - जाते लोग दिखाई देते हैं तो मन लगा रहता है नहीं तो इस काम ने तो सबका आराम ही छीन लिया है। बस फिर क्या था अगले ही पल गांव में खबर फैल गई जग्गी की दुलहिन तो आते - जाते लोगों को निहारती रहती है। जब यह खबर कमला ने सुनी तो जोखू से बोलने लगी। जोखू को विश्वास नहीं हुआ और मधुमती से पूछने लगा।
मधुमति - भइया मै तो अपने घर में हूं लोग आते - जाते देखेंगे तो मै क्या कर सकती हूं।
जोखू चुपचाप चला गया और और अगले दिन ही किसी मिस्त्री को बुला कर एक घर बनाने के लिये जमीन दिखानऔर नक्शा बताने लगा। दूसरे पड़ोसी कोटेदार रामजीत जोखू से ईर्ष्या रखता था वह आ पहुंचा और कहने लगा, देखो जोखू जो कुछ भी करना अपने जमीन में करना मेरे जमीन में हिस्सा मत लगाना।
जोखू - अरे भइया कोटेदार मेरा मेरा एक घर का मकान, क्या हिस्सा कैसी जमीन बस घर के पीछे का हिस्सा तुम्हारे तरफ है वो भी मेरे ही जमीन में है।
रामजीत - तब तो घर का नाला भी पीछे ही बहेगा यह मै नहीं होने दूंगा।
जोखू - घर बनेगा तो नाला बहेगा ही भाई और नाला भी मै अपने ही जमीन में निकालूंगा।
रामजीत - (चिल्लाते हुए) नहीं जोखू मेरे घर के सामने नाला, यह मै कभी बर्दास्त नहीं करूंगा।
जोखू - (गुस्से से) नहीं बर्दास्त करोगे तो क्या करोगे, मेरा मकान है मेरी जमीन है तुम कैसे रोक सकते हो भाई।
रामजीत - कोई भी मिस्त्री हाथ लगायेगा तो पहले उसको ही मारूंगा, नहीं तो नाला यहां नहीं रहेगा तो ही काम होने दूंगा।
जग्गी यह बात सुनकर बोल पड़ा फैसला आज ही हो जायेगा कौन रोकेगा और कौन बनायेगा। जोखू ने किसे तरह मामला शांत किया। शाम हुई कोटेदार ने किसी बहाने जग्गी को गोदाम में बुलाया और पैसे का लालच और भौजी के प्रति मन में ग्लानि भरने का भरपूर प्रयास किया और सफल हो गया। अगले दिन जग्गी ने जोखू से कहा - भइया घर का दरवाजा उस तरफ और नाला इस तरफ रहेगा।
जोखू - कैसी बात कर रहा है ? तू तेरा दिमाग ठिकाने तो है न ? या भूत - प्रेत साया चढ़ा है कि कोई नशा पत्ती कर लिया है ? जो ऐसी बात कर रहा है।
कमला - देख लो अपने भाई साहब की करतूत क्या बोल रहे हैं अब, कोटेदार हमारा मित्र बनेगा।
जग्गी - भौजी कौन कैसा है यह सब को पता है लेकिन घर का दरवाजा उस तरफ ही रहेगा।
जोखू - (जोर से चिल्लाते हुए) अरे चुपकर तू मालिक है क्या को अपने मन का करेगा ?
जग्गी - भइया मै आपका मालिक नहीं लेकिन अपना और मधुमती का मालिक हूं और मुझे जो करना है वह करुंगा।
देखते ही देखते दोनों भाई आपस में बहस करने लगे और बहस इतनी हुई की नौबत लड़ाई की आ गई। लाठी लेकर तैनात दोनों भाई आमने - सामने हुए ही थे कि बीच में कमला आ गई और दोनों की लाठी का शिकार कमला अपने सिर से बहता खून देख बेहोश हो गई। झगड़ा छोड़ दोनों भाई कमला को लिए अस्पताल की ओर भागे। समय पर पहुंच कर मरहम पट्टी कराने के बाद कमला को होश आया और दोनों भाई साथ ही देखने पहुंचे। जग्गी ने दोनों से क्षमा मांग अपनी गलती स्वीकार की और कमला के साथ घर वापस आए और कुछ दिन में मधुमती को उसके मायके पहुंचा कर एक घर की जगह पूरा मकान बनवा कर दोनों भाई कमला और मधुमती के साथ सुख पूर्वक जीवनयापन करने लगे। मित्रों बहस विवाद का जड़ होता है और बहस ही अपनों में फूट डालने का मुख्य कारण बनता है। इसलिये जब कभी बात बहस में परिवर्तित होने लगे तो चुप हो जाना चाहिये या अपनों कि बात स्वीकार कर लेने में ही समझदारी है।
लेखक :
ज्योति प्रकाश राय