thoda hans le yaar in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | थोड़ा हँस ले यार- सुभाष चन्दर

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थोड़ा हँस ले यार- सुभाष चन्दर

आमतौर पर किसी व्यंग्य को पढ़ते वक्त हमारे ज़हन में उस व्यंग्य से जुड़े पात्रों को लेकर मन में कभी त्रासद परिस्थितियों की वजह से करुणा तो कभी क्षोभ वश कटुता उपजती है। ज़्यादा हुआ तो एक हल्की सी...महीन रेखा लिए एक छोटी सी मुस्कुराहट भी यदा कदा हमारे चेहरे पर भक्क से प्रदीप्त हो उठती है। मगर कई बार किसी किताब को पढ़ते वक्त किताब में आपकी नज़रों के सामने कोई ऐसा वाकया या ऐसा पल भी आ जाता है कि पढ़ना छोड़ बरबस आपकी हँसी छूट जाती है। अगर ऐसा कभी आपके साथ भी हुआ है तो समझिए कि वह किताब पाठकों को अपने साथ... अपनी रौ में बहाए ले जाने में पूर्णतः सक्षम है और अगर उसी किताब में पृष्ठ दर पृष्ठ आपके सामने ऐसे ही वाकयों की भरमार लग जाए तो सोचिए कि आपकी हालात कैसी होगी उस समय, आप पढ़ कम रहे होंगे और ठठा कर हँस ज़्यादा रहे होंगे।

ऐसे ही कभी खुल कर खिलखिलाने को तो कभी ठहाके लगाने को मजबूर करता है प्रसिद्ध व्यंग्यकार सुभाष चन्दर जी का कहानी संग्रह "थोड़ा हँस ले यार"। कमाल का हास्य बोध छिपा रहता है उनकी कहानियों में। अमूमन लगातार पढ़ने वालों को पढ़ते वक्त पहले से यह अंदाज़ा लग जाता है कि अगले वाक्य का ऊँट किस करवट बैठने वाला है? मगर सुभाष चन्दर जी की कहानियों में सीधा चलता वाक्य भी कब अचानक खुराफाती बंदर की तरह गुलाटी मार हुडदंग मचा दे...कोई भरोसा नहीं।

इनकी कहानियाँ अमूमन अपने में ग्रामीण अथवा क़स्बाई चरित्र के किरदारों को समेटे हुए होती हैं सहज एवं स्वाभाविक स्थितियों से भी कैसे हास्य उत्पन्न किया जा सकता है, ये जानना चाहने वाले जिज्ञासुओं एवं शोधार्थियों के लिए सुभाष चन्दर जी का लिखा हुआ पढ़ना एक उत्तम उपाय कहा जा सकता है।

इस संग्रह में कहीं...कोई युवा तथाकथित लव गुरु की मदद से अपनी प्रेम कहानी शुरू कर अपना बेड़ा पार लगाना चाहता है तो कहीं मूंछों की लड़ाई अपने चरम पर है। इसमें कहीं हँसती गुदगुदाती झोलाछाप डॉक्टर की व्यथा कथा है तो कहीं इसमें हवाई यात्रा के नाम पर किसी अनाड़ी के द्वारा अजब ग़ज़ब पापड़ बेले जाने का वर्णन है। कहीं किसी मरियल...सींकिया को ब्याह करने की शर्त के रूप में कुश्ती तक लड़नी पड़ जाती है तो कहीं बददिमाग एवं गुस्सैल पति को अपने ही ढंग से सबक सिखाती उसकी नवविवाहिता बीवी नज़र आती है।

इसमें कहीं बच्चे की ज़िद और उसकी माँ की शह पर कुत्ता पालने को मजबूर पति की दुर्गत दिखाई देती है तो कहीं इसमें ससुरालियों की होली का हुड़दंग है। कहीं इसमें गांव के ऊधम मचाते बच्चों की कारस्तानियां हैं तो कहीं इसमें खटारा स्कूटर को ले कर पूरी कथा का ताना बाना बुना गया है। कहीं इसमें चंट लड़कियों के दाव पैंतरे हैं तो कहीं इसमें पूरा का पूरा गांव ही लफून्डरों से भरा पड़ा है।

कहीं इसमें शातिर दंपति के पड़ोस में आ बसने की बात है तो कहीं किसी कुएँ के मेढ़क छाप दंपत्ति के पहली बार शताब्दी जैसी बढ़िया ट्रेन में सफर करने की बात है। कहीं चेपू टाइप के शुभचिंतकों के कारनामे हैं तो कहीं काइयां रिश्तेदार को सबक सिखाने की बात है।

संयोग से ऐसा हुआ कि इस किताब की जो प्रति मुझे मिली इसमें बाइंडर की ग़लती से सब पेज इधर के उधर हो गए। उम्मीद है कि प्रकाशक इस कमी पर आगे आने वाली किताबों में ध्यान देंगे।

136 पृष्ठीय इस बढ़िया हास्य कहानियों के संग्रणीय संकलन को छापा है भावना प्रकाशन ने और इसके पेपरबैक संस्करण का मूल्य रखा गया है ₹175/ जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले सुखद भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।